प्रिय खुला खत लेखकगण,
आप लोगों ने जिस तरह बेहद कम वक्त में खुला खत लिखकर लोकप्रियता की नयी ऊंचाइयां पाई हैं, उससे मन में ईर्ष्या का भाव भर गया है. बिना एक पैसा खर्च किए इस तरह की पब्लिसिटी कम लोगों को मिलती है. तो हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा की चाह में मैं भी यह खुला खत लिख रहा हूं.
आप लोगों का खुला खत पढ़कर मेरे मन में पहला ख्याल यही आया कि लोग खुला खत क्यों लिखते हैं? इसकी पहली वजह तो यह हो सकती है कि खुले खत के खोने का कोई डर नहीं होता. भारतीय डाक विभाग के भरोसे रहा जाए तो पीएम को लिखा खत तभी पहुंचता है जब वो पूर्व पीएम बन जाता है. भारतीय डाक विभाग भारत सरकार की तरह जिम्मेदारी मुक्त संस्था है, जो विलंब से डाक पहुंचाकर लोगों को भी जिम्मेदारी से मुक्त करती है. यानी अगर आपके पास किसी विवाह का कोई निमंत्रण देर से आया तो आप शादी में पहुचेंगे ही नहीं. यानी जिम्मेदारी मुक्त.
खुला खत लिखने की एक वजह यह भी हो सकती है कि खुला खत लेखकों के पास डाक टिकट का पैसा न हो. या लेखकगण इस कदर आलसी हो चुके हैं कि वो डाक टिकट खरीदने तक की जहमत नहीं उठाना चाहते.
वैसे, मुझे लगता है कि खुला खत लेखन की सबसे बड़ी वजह खुले में रायता फैलाने की प्रबल इच्छा है. खुला खत लेखक के मन में अचानक इच्छा जागती है कि वो किसी बात पर रायता फैलाए. इस इच्छा के प्रबल होते ही लेखक किसी भी नामी शख्स के खिलाफ एक खुला खत लिख मारता है. खुला खत पढ़ने वाले पाठक लेखक के फैलाए रायते को और तेजी से फैलाने में जुट जाते हैं. फेसबुक-ट्विटर के इस युग में रायता फैलाना बेहद आसान है, और इस तरह खुला खत रायता फैलाने की सामूहिक परंपरा का प्रतीक बनता है.
क्यों लिखा जाता है खुला... प्रिय खुला खत लेखकगण, आप लोगों ने जिस तरह बेहद कम वक्त में खुला खत लिखकर लोकप्रियता की नयी ऊंचाइयां पाई हैं, उससे मन में ईर्ष्या का भाव भर गया है. बिना एक पैसा खर्च किए इस तरह की पब्लिसिटी कम लोगों को मिलती है. तो हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा की चाह में मैं भी यह खुला खत लिख रहा हूं. आप लोगों का खुला खत पढ़कर मेरे मन में पहला ख्याल यही आया कि लोग खुला खत क्यों लिखते हैं? इसकी पहली वजह तो यह हो सकती है कि खुले खत के खोने का कोई डर नहीं होता. भारतीय डाक विभाग के भरोसे रहा जाए तो पीएम को लिखा खत तभी पहुंचता है जब वो पूर्व पीएम बन जाता है. भारतीय डाक विभाग भारत सरकार की तरह जिम्मेदारी मुक्त संस्था है, जो विलंब से डाक पहुंचाकर लोगों को भी जिम्मेदारी से मुक्त करती है. यानी अगर आपके पास किसी विवाह का कोई निमंत्रण देर से आया तो आप शादी में पहुचेंगे ही नहीं. यानी जिम्मेदारी मुक्त. खुला खत लिखने की एक वजह यह भी हो सकती है कि खुला खत लेखकों के पास डाक टिकट का पैसा न हो. या लेखकगण इस कदर आलसी हो चुके हैं कि वो डाक टिकट खरीदने तक की जहमत नहीं उठाना चाहते. वैसे, मुझे लगता है कि खुला खत लेखन की सबसे बड़ी वजह खुले में रायता फैलाने की प्रबल इच्छा है. खुला खत लेखक के मन में अचानक इच्छा जागती है कि वो किसी बात पर रायता फैलाए. इस इच्छा के प्रबल होते ही लेखक किसी भी नामी शख्स के खिलाफ एक खुला खत लिख मारता है. खुला खत पढ़ने वाले पाठक लेखक के फैलाए रायते को और तेजी से फैलाने में जुट जाते हैं. फेसबुक-ट्विटर के इस युग में रायता फैलाना बेहद आसान है, और इस तरह खुला खत रायता फैलाने की सामूहिक परंपरा का प्रतीक बनता है.
अच्छी बात सिर्फ इतनी है कि खुला खत परंपरा अभी आशिकों के बीच नहीं पहुंची है. वरना-पानी के लिए तो पता नहीं मुहब्बत के लिए तीसरा-चौथा-पांचवा सारे विश्वयुद्ध हो जाते. फर्ज कीजिए एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को खुला खत लिख दे. जाहिर सी बात है प्रेमिका के उत्तर से पहले उस प्रेमिका के समस्त प्रेमी खुला खत लेखक को निपटाने में लग जाएंगे. और इसे निपटाने के खेल में सारे प्रेमी इस तरह आमने-सामने आ जाएंगे कि विश्वयुद्ध की स्थिति बन जाएगी. मैं इस बात की गारंटी इसलिए ले सकता हूं कि अभी जबकि खुला खत नहीं लिखा जाता, तब भी एक कन्या के समस्त प्रेमी आपस में गुत्थ्मगुत्था रहते ही हैं. महंगे मनोरंजन के दौर में खुला खत मनोरंजन का भी माध्यम है तो बहुत संभव है कि कुछ खुला खत लेखक 'बेस्ट इंटरटेनर' बनने के मकसद से खुला खत लिखते हों. खुला खत लेखक लिखते अच्छा हैं, इसमें संदेह नहीं. यह लेखन की विशिष्ट शैली है-जो सबको नहीं आती. ऐसे में जरुरी है कि पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में अब खुला खत लेखन भी सिखाया जाए. इस खत के टिप्स सिखाए जाएं. जैसे दलाल शब्द के 50 पर्यायवाची. खुला खत परंपरा तेजी से आगे बढ़ रही है, और जिस तरह कोई किसी की नहीं सुन रहा-उस दौर में खुला खत परंपरा और आगे बढ़ेगी. लेकिन-इस दौर में भी कोई खुला खत लेखक उस किसान की तरफ से खुला खत नहीं लिख रहा, जो हर घंटे खुदकुशी कर रहा है. कोई खुला खत लेखक कूड़ा बीनने वाले उन निरक्षर बच्चों की तरफ से खुला खत नहीं लिखता-जो भविष्य में कभी बंद खत भी लिख पाएं-इसकी व्यवस्था नहीं हो पा रही. वैसे, सरकारी स्कूल के बच्चे भी खुला खत लिख पाएंगे-इसमें शक है. मुझे तो लगता है कि सरकार भी इसलिए सरकारी स्कूल का स्तर नहीं सुधारना चाहती क्योंकि अगर स्तर सुधरा तो बच्चे पढ़ना लिखना तेजी से सीखेंगे. ऐसा हुआ तो हर कमी, हर परेशानी के लिए खुला खत लिखेंगे. यानी की सरकार का, प्रशासन का सिरदर्द बढ़ाएंगे. वरना अभी तो आठवीं का बच्चा दूसरी कक्षा का पाठ नहीं पढ़ पाता. स्कूल से पास होने के बाद भी एक खत पढ़ने में उसे घंटों लग जाते हैं तो खुला खत क्या खाक लिखेगा? और जो बच्चे महंगे निजी स्कूल में पढ़कर देश की बुनियादी समस्याओं को खुले खत में उठा सकते हैं, वो कॉलेज से निकलने के बाद पहले दिन से लिखना नहीं सिर्फ पढ़ना चाहते हैं. वो भी ऑफर लैटर. जिसमें उनका वेतन छह या कम से कम पांच अंकों में तो हो! ख़ैर, खुदा जाने मैं क्या लिख गया. लेकिन संतुष्ट हूं पहला खुला खत तो लिखा गया! इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |