राहुल गांधी ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री को एक चैलेंज दिया था. फ्यूल चैलेंज. कहा था कि तेल की कीमत कम करके दिखाओ. केंद्र की सरकार ने चैलेंज को कबूल किया. कीमत ‘पूरे एक पैसे’ कम कर दी. अब राहुल इसे मजाक कह रहे हैं. ट्वीट किया है कि- “प्रधानमंत्री जी अगर आपने कीमत एक पैसे कम कर मजाक करने की कोशिश की है, तो यह बचकाना है. यह मेरे फ्यूल चैलेंज का सही जवाब नहीं है.”
लेकिन हे कांग्रेस अध्यक्ष ऐसा कहकर आप कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं, शायद आपको इसका अंदाजा भी नहीं है. गुस्ताखी माफ. लेकिन राहुल बाबू एक पैसे की कीमत नहीं समझ रहे आप. जबकि ‘1’ की ताकत न समझने का ही नतीजा है कि आज आपकी पार्टी पर ‘अनेक’ सवाल हैं. उन्होंने (बीजेपी) तो 1999 में ही ‘एक की कीमत’ और ताकत समझ ली थी, जब गिरिधर गमांग के 1 वोट से वाजपेयी की सरकार गिर गई थी.
तभी तो बीजेपी 1 और 1 को जोड़कर 11, फिर 11 में 1 जोड़कर 111, इसके बाद 111 में 1 जोड़कर 1111 के फॉर्मूले पर चलते हुए दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई. पन्ना प्रमुखों के सहारे देश में अपना प्रमुख चौकीदार बैठा लिया. आप अब भी 1 की कीमत पूछ रहे हो? यही फर्क है राहुल बाबू.
बड़े-बूढ़े कह गए हैं. ऊपर वाले के दिए को नेमत समझनी चाहिए. जो भी दे, उसे खुशी-खुशी कबूल करना चाहिए. आज 1 स्वीकार करोगे, तभी तो ये सरकार कल 11, परसों 111 और फिर एक दिन आपकी जेब में 15 लाख देगी. आपने तो पहली ही किस्त का तिरस्कार कर दिया. फिर कहूंगा कि 1 की कीमत आप नहीं समझोगे राहुल बाबू. इसीलिए कल 15 लाख से भी हाथ धो बैठो,...
राहुल गांधी ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री को एक चैलेंज दिया था. फ्यूल चैलेंज. कहा था कि तेल की कीमत कम करके दिखाओ. केंद्र की सरकार ने चैलेंज को कबूल किया. कीमत ‘पूरे एक पैसे’ कम कर दी. अब राहुल इसे मजाक कह रहे हैं. ट्वीट किया है कि- “प्रधानमंत्री जी अगर आपने कीमत एक पैसे कम कर मजाक करने की कोशिश की है, तो यह बचकाना है. यह मेरे फ्यूल चैलेंज का सही जवाब नहीं है.”
लेकिन हे कांग्रेस अध्यक्ष ऐसा कहकर आप कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं, शायद आपको इसका अंदाजा भी नहीं है. गुस्ताखी माफ. लेकिन राहुल बाबू एक पैसे की कीमत नहीं समझ रहे आप. जबकि ‘1’ की ताकत न समझने का ही नतीजा है कि आज आपकी पार्टी पर ‘अनेक’ सवाल हैं. उन्होंने (बीजेपी) तो 1999 में ही ‘एक की कीमत’ और ताकत समझ ली थी, जब गिरिधर गमांग के 1 वोट से वाजपेयी की सरकार गिर गई थी.
तभी तो बीजेपी 1 और 1 को जोड़कर 11, फिर 11 में 1 जोड़कर 111, इसके बाद 111 में 1 जोड़कर 1111 के फॉर्मूले पर चलते हुए दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई. पन्ना प्रमुखों के सहारे देश में अपना प्रमुख चौकीदार बैठा लिया. आप अब भी 1 की कीमत पूछ रहे हो? यही फर्क है राहुल बाबू.
बड़े-बूढ़े कह गए हैं. ऊपर वाले के दिए को नेमत समझनी चाहिए. जो भी दे, उसे खुशी-खुशी कबूल करना चाहिए. आज 1 स्वीकार करोगे, तभी तो ये सरकार कल 11, परसों 111 और फिर एक दिन आपकी जेब में 15 लाख देगी. आपने तो पहली ही किस्त का तिरस्कार कर दिया. फिर कहूंगा कि 1 की कीमत आप नहीं समझोगे राहुल बाबू. इसीलिए कल 15 लाख से भी हाथ धो बैठो, तो आप किसी और को दोष ना देना.
‘एक’ मोदी जी ने ही तो ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का ‘एक’ नारा दिया था. देखा नहीं आपने, कितना संक्रमण फैला इस ‘एक’ नारे का? एक-एक कर ही तो आपकी पार्टी देश के एक-एक राज्य से कार्यमुक्त होती चली गई. आप हर हार के बाद सोचते रहे कि एक ही (राज्य) तो गंवाया है. वो हर एक जीत के बाद ‘एक’ नई ऊर्जा ग्रहण करते गए. आप एक-एक गंवाकर 21 (राज्य) से हाथ धो बैठे. वो एक-एक जुटाकर 21 (राज्यों) पर काबिज हो गए. फिर भी आप 1 का तिरस्कार कैसे कर सकते हो राहुल बाबू?
आप कहते हो कि प्रधानमंत्री ने 1 पैसे का मजाक किया है. भूल गए गुजरात? एक(1) मणिशंकर जी ने ही तो आपका खेल खराब कर दिया था. ऐसा आप ही के एनलिस्ट कहते हैं, हम नहीं. फिर भी कहते हो कि ये 1(एक) मजाक है! उससे पहले बिहार में देखा नहीं ‘एक नीतीश’ का फर्क? आप एक नीतीश को संभाल नहीं पाए वो एक नीतीश को हथियाकर आपके मुंह से सत्ता का निवाला खींच ले गए.
हो सके तो मेरी सलाह को तार समझना. आखिरी मौका है राहुल बाबू. एक-एक कर कुनबा जुटा लो. गठबंधन जोड़ लो. वर्ना 2019 की हार भी सिर्फ ‘एक हार’ होगी. लेकिन याद रखना आप. प्रलय भी एक (1) ही बार आता है बाबू.
वैसे गलती आपकी भी उतनी नहीं है राहुल बाबू. आपकी (कांग्रेस) और बाकी पार्टियों के बीच इसी ‘1’ को देखने के नजरिये का ही तो फर्क है. कांग्रेस को 1947 में ‘एक साथ’ पूरा देश मिल गया. जो बाद में एक-एक कर घटता गया. जबकि बाकी पार्टियां एक-एक जोड़कर खड़ी होती रहीं. आपका अतीत आपको 1 (पैसे) की कोई कीमत नहीं लगाने देता. उनका अतीत उन्हें ‘1’ की कद्र करना सिखाता है. सोच बदलो और भूल सुधारो बाबू. सरकार के 1 पैसे के ‘राहतदान’ को यूं कूड़ेदान में न फेंको ‘कांग्रेस नरेश’!
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