दिल्ली-गुरुग्राम एक्सप्रेस वे पर एम्बिएंस मॉल है. मॉल बड़ा है और सुन्दर है. एक से चार मार्च तक जी20 की बैठक होने वाली थी. जगह सुंदर और भौकाली का कॉम्बो लगे यहां रंग-बिरंगे फूलों से सजे कई गमले लगाए गए थे.लेकिन हुआ वही जिसके लिए भारतीय कुख्यात हैं. कुछ भाई लोग आए. बड़ी बड़ी और महंगी वाली गाड़ी में आए और इन गमलों को चुरा लिया. वीडियो इंटरनेट पर वायरल है. गमले चुराने वाले जिस अंदाज में गमले चुरा रहे हैं उनका अंदाज बिलकुल पेशेवर लग रहा है. इनकी बेशर्मी देखते हुए महसूस यही हो रहा है कि इस तरह यहां वहां हाथ मारना इनका पुराना शगल है.
मेरी उम्र लगभग 35 साल है. अपने जीवन के इन पैतीस सालों में मैंने कई ट्रेन यात्राएं की. कई बार मैं पैसों के लेन देन या फिर उन्हें जमा करने बैंक भी गया. ट्रेन में मैंने देखा कि वहां बाथरूम में मग को और बैंक में कैश काउंटर के पास पड़ी पेन को गुलामी की जंजीरों में जकड़ा गया है.
मैं जब भी उन्हें देखता विचलित रहता. और अक्सर खुले आसमान में तारों के नीचे बैठकर अपने से सवाल करता कि आखिर ट्रेन के बाथरूम में लगे मग्गे को और बैंक में रखी पेन को कब गुलामी की बेड़ियों से आजादी मिलेगी.
मैंने अक्सर अपने बड़ों से, अपने शिक्षकों से इस अहम विषय पर बात भी की. कभी उन्हें मेरी बातें क्रांति से लबरेज लगीं तो कभी उन्हें मेरी उन बातों में बचपना दिखा. किसी ने ठीक जवाब दिया ही नहीं.
आज जबकि मैंने गुरुग्राम में महंगी गाड़ी से आए गमला चोरों को देख लिया है मुझे मेरे तमाम सवालों का जवाब मिल गया है. मैं समझ चुका हूं की इन लोगों या ये कहूं की इन चोरों के कारण ही हम विकासशील से विकसित नहीं बन पा रहे और दुनिया के कई लोग आज भी...
दिल्ली-गुरुग्राम एक्सप्रेस वे पर एम्बिएंस मॉल है. मॉल बड़ा है और सुन्दर है. एक से चार मार्च तक जी20 की बैठक होने वाली थी. जगह सुंदर और भौकाली का कॉम्बो लगे यहां रंग-बिरंगे फूलों से सजे कई गमले लगाए गए थे.लेकिन हुआ वही जिसके लिए भारतीय कुख्यात हैं. कुछ भाई लोग आए. बड़ी बड़ी और महंगी वाली गाड़ी में आए और इन गमलों को चुरा लिया. वीडियो इंटरनेट पर वायरल है. गमले चुराने वाले जिस अंदाज में गमले चुरा रहे हैं उनका अंदाज बिलकुल पेशेवर लग रहा है. इनकी बेशर्मी देखते हुए महसूस यही हो रहा है कि इस तरह यहां वहां हाथ मारना इनका पुराना शगल है.
मेरी उम्र लगभग 35 साल है. अपने जीवन के इन पैतीस सालों में मैंने कई ट्रेन यात्राएं की. कई बार मैं पैसों के लेन देन या फिर उन्हें जमा करने बैंक भी गया. ट्रेन में मैंने देखा कि वहां बाथरूम में मग को और बैंक में कैश काउंटर के पास पड़ी पेन को गुलामी की जंजीरों में जकड़ा गया है.
मैं जब भी उन्हें देखता विचलित रहता. और अक्सर खुले आसमान में तारों के नीचे बैठकर अपने से सवाल करता कि आखिर ट्रेन के बाथरूम में लगे मग्गे को और बैंक में रखी पेन को कब गुलामी की बेड़ियों से आजादी मिलेगी.
मैंने अक्सर अपने बड़ों से, अपने शिक्षकों से इस अहम विषय पर बात भी की. कभी उन्हें मेरी बातें क्रांति से लबरेज लगीं तो कभी उन्हें मेरी उन बातों में बचपना दिखा. किसी ने ठीक जवाब दिया ही नहीं.
आज जबकि मैंने गुरुग्राम में महंगी गाड़ी से आए गमला चोरों को देख लिया है मुझे मेरे तमाम सवालों का जवाब मिल गया है. मैं समझ चुका हूं की इन लोगों या ये कहूं की इन चोरों के कारण ही हम विकासशील से विकसित नहीं बन पा रहे और दुनिया के कई लोग आज भी हमें थर्ड वर्ल्ड कंट्री कहते हैं.
हो सकता है कि गुरुग्राम में गमला चुराते लोगों को देखकर हमारे बीच से कोई क्रांतिकारी निकल आए इन चोरों की गतिविधि को पर्यावरण के प्रति उनका प्रेम पता दे तो भइया ऐसा हरगिज़ नहीं है. हमें पर्यावरण वर्यावरण से कोई मतलब नहीं है. फ्री में मिल जाए तो हम वो हैं जो फाइनल पीने से नहीं चूकेंगे. यहां गुरुग्राम में भी मैटर यही था. अच्छे खिले फूल, उम्दा खाद पड़े रंगीन महंगे गमले. हमें से वो लोग जिन्हें फूल के पास जाते ही छींक आ जाती है वो भी फ्लॉवर लवर बन जाएंगे.
बाकी फ्री के माल के प्रति हमारा रवैया और नजरिया कैसा है इसपर बहुत ज्यादा बात करने का कोई स्कोप इसलिए भी नहीं है क्योंकि हम लोग 10 किलो दाल का पैकेट सिर्फ इसलिए खरीद लेते हैं क्योंकि उसपर कंपनी 100 ग्राम का लाल मिर्च का पैकेट बिलकुल फ्री दे रही होती है.
गुरुग्राम में अपने भाइयों ने जो कुछ भी किया. वो अच्छा है या बुरा? इसपर हम किसी तरह का कोई कमेंट इसलिए भी नहीं करेंगे. क्योंकि कहावत यही है कि जब हम किसी की तरफ एक अंगुली उठाते हैं तो बाकी की चार अंगुलियां खुद हमारी तरफ होती हैं. हम जब खुद दूध के धुले नहीं हैं तो आखिर कैसे गुरुराम के इन गमला चोरों को देखकर आहें भरें और इन्हें भला बुरा कहे. बात बस ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में भारत विश्वगुरु बन रहा है और जब तक ऐसे छोटी छोटी चीजों को साफ़ करने वाले गुरु लोग रहेंगे भारत का वहां पहुंचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
वैसे तो बेशर्म और बेशर्मी दोनों पर किसी का कॉपी राइट नहीं है. आदमी कभी भी, कहीं भी बन सकता है इसलिए हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि इन गमला चोरों को नमन है. यही लोग हैं जो सुदूर ईरान, सूडान और जापान में भारत का जिक्र अपनी गतिविधियों से करवा रहे हैं. कुल मिलाकर विश्व मानचित्र पर इन लोगों ने भारत को एक नयी पहचान दिलाई है इसके लिए इन्हें हमारी तरफ से नमन और चरण वंदन.
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