नीचे जो कुछ भी लिखा जा रहा है, वो सूत्रों के हवाले से है और उसमें कई सारे प्रश्नवाचक निशान (?) भी हैं. जहां कहीं भी प्रश्नवाचक के निशान छूट गए हों, पाठक खुद लगा लें. क्योंकि अगर ‘संजू’ फिल्म से जुड़ा कोई भी पात्र (पर्दे का या पर्दे के पीछे का) मानहानि का दावा करता है, तो आप इस लेख के प्रबुद्ध पाठक होने के नाते खुद जिम्मेदार होंगे.
दरअसल, मुझे ‘सूत्रों से’ पता चला है कि ‘संजू’ जितनी कमाल की फिल्म बनाने से पहले हिरानी और संजय दत्त के बीच किस तरीके से संवाद हुए? कैसे हिरानी ने अपने अजीज मित्र को समझाया कि फिल्म में न होते हुए भी वो अपने लिए बहुत कुछ ‘कमा’ जाएंगे. और कैसे गांधीगीरी से शुरू हुआ उनका सफर उन्हें गांधी के और करीब पहुंचा देगा. जिस फिल्म की शुरुआत में आपने ‘एक बापू और एक बाबा’ डायलॉग सुना, उसके बनने से पहले की काल्पनिक कहानी सुनिए :
संजय दत्त बोले- यार हिरानी मेरे इतने अवगुणों के बाद भी तू मुझे अक्खा मुंबई में भला मानस कैसे साबित करेगा?
हिरानी साहब ने कहा- वो शोले में वीरू का कैरेक्टर भूल गया? जब मौसी कहती है- शराबी वो, जुआरी वो, कोठे पर जाने की आदत उसकी, फिर भी वो अच्छा आदमी है? बेचारा है? याद है न कि इस पर ‘जय’ क्या कहता है? कहता है कि- दोस्त की नजर ही कुछ ऐसी होती है. बुराइयों को कहां देख पाता है. ठीक वही तो सिचुएशन है. वैसे भी ये सब तो अब तेरा अतीत है, ‘वीरू’ का तो वर्तमान था. वर्तमान में तो तू गांधीगीरी करता है. वो भूल गया अपनी ही फिल्म?
संजू बाबा की जिज्ञासा और बढ़ी. पूछा- और ये मीडिया वाले? तू मेरे को अच्छा-अच्छा बताएगा और वो फिर से मेरी वाट लगाने लगेंगे.
हिरानी...
नीचे जो कुछ भी लिखा जा रहा है, वो सूत्रों के हवाले से है और उसमें कई सारे प्रश्नवाचक निशान (?) भी हैं. जहां कहीं भी प्रश्नवाचक के निशान छूट गए हों, पाठक खुद लगा लें. क्योंकि अगर ‘संजू’ फिल्म से जुड़ा कोई भी पात्र (पर्दे का या पर्दे के पीछे का) मानहानि का दावा करता है, तो आप इस लेख के प्रबुद्ध पाठक होने के नाते खुद जिम्मेदार होंगे.
दरअसल, मुझे ‘सूत्रों से’ पता चला है कि ‘संजू’ जितनी कमाल की फिल्म बनाने से पहले हिरानी और संजय दत्त के बीच किस तरीके से संवाद हुए? कैसे हिरानी ने अपने अजीज मित्र को समझाया कि फिल्म में न होते हुए भी वो अपने लिए बहुत कुछ ‘कमा’ जाएंगे. और कैसे गांधीगीरी से शुरू हुआ उनका सफर उन्हें गांधी के और करीब पहुंचा देगा. जिस फिल्म की शुरुआत में आपने ‘एक बापू और एक बाबा’ डायलॉग सुना, उसके बनने से पहले की काल्पनिक कहानी सुनिए :
संजय दत्त बोले- यार हिरानी मेरे इतने अवगुणों के बाद भी तू मुझे अक्खा मुंबई में भला मानस कैसे साबित करेगा?
हिरानी साहब ने कहा- वो शोले में वीरू का कैरेक्टर भूल गया? जब मौसी कहती है- शराबी वो, जुआरी वो, कोठे पर जाने की आदत उसकी, फिर भी वो अच्छा आदमी है? बेचारा है? याद है न कि इस पर ‘जय’ क्या कहता है? कहता है कि- दोस्त की नजर ही कुछ ऐसी होती है. बुराइयों को कहां देख पाता है. ठीक वही तो सिचुएशन है. वैसे भी ये सब तो अब तेरा अतीत है, ‘वीरू’ का तो वर्तमान था. वर्तमान में तो तू गांधीगीरी करता है. वो भूल गया अपनी ही फिल्म?
संजू बाबा की जिज्ञासा और बढ़ी. पूछा- और ये मीडिया वाले? तू मेरे को अच्छा-अच्छा बताएगा और वो फिर से मेरी वाट लगाने लगेंगे.
हिरानी बोले- इस बार मीडिया की वाट अपुन लगाएंगे. केस खतम, उनका भी खेल खतम. जितनी सजा काटनी थी काट ली तूने. जेल की भी और इन दो कौड़ी के मीडिया वालों के ताने झेलने की सजा भी. अब इन थर्ड ग्रेड एडिटरों को अपुन बताएगा कि तूने मुन्ना भाई के साथ अतीत में क्या-क्या जुल्म किया है? कैसे उसका घर तबाह किया है. बोले तो ये सब कुछ उन्हीं की माफिक दुनिया को बताएगा हम.
हिरानी के आत्मविश्वास को देख संजू बाबा का भरोसा और भी बढ़ा. बड़बड़ाने लगे- सा&*%$ ब्रेकिंग न्यूज. संजय दत्त आतंकवादी है. संजय दत्त के घर में आरडीएक्स से भरा ट्रक मिला? संजय दत्त फिनिश हो गया. अब अपन इन्हें फिनिश का मतलब समझाएगा. इनकी वाट लगाएगा. न सूत्रों के हवाले से, न प्रश्नवाचक निशान. भाई, बस इनकी तो वाट लगा दे.
अब तक ये तय हो चुका था कि ‘संजू’ फिल्म बनेगी. और ये भी तय हो चुका था कि किसकी वाट लगेगी और किसकी वाह-वाह होगी. लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि इतने ब्लैक शेड्स के बीच संजू बाबा की वाह-वाह कराई कैसे जाए?
इमोशन... इमोशन... इमोशन...
ऐसा लगा कि आसमान से ये आवाज आई हो. विवेकशील फिल्मकार हिरानी ने आइडिया लपक लिया. बोले- इमोशन. एक ऐसी बला, जो इस देश में इंसान तो क्या, पत्थर को भी पिघला दे. गणपति को दूध और विरोध में आवाज उठाने वालों को पानी पिला दे.
बहरहाल, संजू बाबा की गलतियों को नादानियों में तब्दील कर इस पर इमोशन का मुलम्मा चढ़ाने का ऐतिहासिक फैसला हुआ. मां की मृत्यु शैय्या पर होने का इमोशन, गर्ल फ्रेंड के छोड़ देने का इमोशन, अनुशासन पसंद बाप की सख्ती से पैदा संजू बाबा की बेचारगी का इमोशन. बगैरह-बगैरह. और इन सबसे लड़ते संजू बाबा के बढ़ते कदम.
काम हो गया. इमोशन की लेप में संजू बाबा के गुनाहों को गलतियों में और गलतियों को नादानियों में तब्दील किया और हो गई ‘आह संजू’ से ‘वाह संजू’ की जमीन तैयार. अब सब वाह-वाह है. पैसे और इमेज, दोनों का कलेक्शन छप्पर फाड़ है.
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