हम 2018 में कदम रखने जा रहे हैं और हर किसी से इस समय सिर्फ यही सुनने को मिल रहा है कि ये साल कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. वैसे .. ये सिर्फ कहने की ही बात है. पता तो खूब चला और लोगों को परेशानी भी खूब हुई.
पर जो मुद्दे 2017 में अहम बने, जिनसे लोग परेशान रहे वो भाजपा के राज में और भी गहराते जा रहे हैं और जहां दुनिया आगे बढ़ रही है वहीं धर्म के नाम पर जो कुछ भी भारत में 2017 में हुआ उससे लग रहा है कि भारत पीछे जा रहा है. इन मुद्दों के देखें तो शायद 2018 में लोगों के लिए नए साल का संकल्प यानि न्यू इयर रेजोल्यूशन ये बन जाएंगे...
1. पद्मावती को रिलीज नहीं होने देंगे..
जी पहला संकल्प यानि रेजोल्यूशन हम इस बात का लेंगे कि इस बार तो पद्मावती फिल्म को रिलीज नहीं होने देंगे. भले ही पहले जोधा-अकबर रिलीज हो गई और हमने उसे सह लिया. भले ही पद्मावती पर पहले भी कई फिल्में बनी हैं.. सीरियल बना है और हमने उसे सह लिया हो, लेकिन अभी तो मां पद्मावती का अपमान नहीं होने देंगे और हम ये बिलकुल नहीं सहेंगे कि ऐसी फिल्म रिलीज हो. आखिर आन-बान-शान भी कोई चीज होती है.
भले ही मां पद्मावती के नाम पर रक्त की नदियां बह जाएं.. लेकिन फिर भी हम नहीं रुकेंगे. भले ही कितनी भी आन-बान-शान की बात की गई हो फिल्म में राजपूतों की. पर ऐसा तो कहा जा रहा है न कि कोई ड्रीम सीक्वेंस फिल्माया गया है. फिर.. हम फिल्म देखने का इंतजार क्यों करें. हम तो जनाब फिल्म रिलीज ही नहीं होने देंगे.
2. लव जिहाद का नामोनिशां मिटा देंगे..
शंभूलाल ने जो राजसमंद में जो किया वो आम लोगों के लिए तो बर्बरता और किसी बुरे सपने जैसा है, लेकिन कइयों के लिए तो ये एक अच्छा काम था जिसके कारण शंभूलाल के अकाउंट में लाखों रुपए भी जमा करवाए गए. अब तो शंभूलाल के जेल से...
हम 2018 में कदम रखने जा रहे हैं और हर किसी से इस समय सिर्फ यही सुनने को मिल रहा है कि ये साल कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. वैसे .. ये सिर्फ कहने की ही बात है. पता तो खूब चला और लोगों को परेशानी भी खूब हुई.
पर जो मुद्दे 2017 में अहम बने, जिनसे लोग परेशान रहे वो भाजपा के राज में और भी गहराते जा रहे हैं और जहां दुनिया आगे बढ़ रही है वहीं धर्म के नाम पर जो कुछ भी भारत में 2017 में हुआ उससे लग रहा है कि भारत पीछे जा रहा है. इन मुद्दों के देखें तो शायद 2018 में लोगों के लिए नए साल का संकल्प यानि न्यू इयर रेजोल्यूशन ये बन जाएंगे...
1. पद्मावती को रिलीज नहीं होने देंगे..
जी पहला संकल्प यानि रेजोल्यूशन हम इस बात का लेंगे कि इस बार तो पद्मावती फिल्म को रिलीज नहीं होने देंगे. भले ही पहले जोधा-अकबर रिलीज हो गई और हमने उसे सह लिया. भले ही पद्मावती पर पहले भी कई फिल्में बनी हैं.. सीरियल बना है और हमने उसे सह लिया हो, लेकिन अभी तो मां पद्मावती का अपमान नहीं होने देंगे और हम ये बिलकुल नहीं सहेंगे कि ऐसी फिल्म रिलीज हो. आखिर आन-बान-शान भी कोई चीज होती है.
भले ही मां पद्मावती के नाम पर रक्त की नदियां बह जाएं.. लेकिन फिर भी हम नहीं रुकेंगे. भले ही कितनी भी आन-बान-शान की बात की गई हो फिल्म में राजपूतों की. पर ऐसा तो कहा जा रहा है न कि कोई ड्रीम सीक्वेंस फिल्माया गया है. फिर.. हम फिल्म देखने का इंतजार क्यों करें. हम तो जनाब फिल्म रिलीज ही नहीं होने देंगे.
2. लव जिहाद का नामोनिशां मिटा देंगे..
शंभूलाल ने जो राजसमंद में जो किया वो आम लोगों के लिए तो बर्बरता और किसी बुरे सपने जैसा है, लेकिन कइयों के लिए तो ये एक अच्छा काम था जिसके कारण शंभूलाल के अकाउंट में लाखों रुपए भी जमा करवाए गए. अब तो शंभूलाल के जेल से चुनाव लड़ने की बात भी सामने आ रही है.
अब इसे देखकर यही कहा जा सकता है कि आने वाले साल में शंभूलाल के चेले बढ़ जाएं. शायद कइयों ने ये संकल्प भी ले लिया होगा कि लव जिहाद का नामोनिशां मिटाना है. गाजियाबाद में एक किस्से में दोनों परिवारों की सहमती से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत हुई शादी को लेकर भी बातें हो रही हैं क्योंकि आखिर हिंदू मुस्लिम विवाह था. भाजपा समर्थक जोड़े को और उनके परिवार वालों को परेशान कर रहे हैं. अब खुद ही सोच लीजिए कि क्या ये सही है?
खैर, इस हिसाब से देखा जाए तो 2018 का नया रेजोल्यूशन शायद यही होने वाला है.
3. गऊ माता की रक्षा किसी भी हाल में करेंगे..
चाहें राजस्थान हो या उत्तर प्रदेश हर जगह इसी तरह की बातें सामने आ रही हैं. गाय तस्कर को नहीं छोड़ेंगे. गऊ माता की रक्षा हर हाल में करेंगे. इस मामले में कई इंसान मारे गए हैं. और भी न जाने कितनी बली चढ़ सकती हैं, लेकिन आखिर हमें इससे क्या? हमें तो बस गऊ माता (सिर्फ जो ट्रक पर चढ़ी हुई हैं.. सड़क पर चलने वाली .. पॉलिथीन खाने वाली गायों से कोई लेना-देना नहीं) की रक्षा करनी है. बस आने वाले साल में यही संकल्प है.
4. 2018 में सभी आवारा लड़कियों को तमीज सिखाएंगे..
कोई लड़की भला कैसे अपने हिसाब से घूम सकती है, भला कैसे अपने हिसाब से दोस्त बना सकती है, भला कैसे अपने तरीके से जी सकती है (वाक्य में छुपे व्यंग्य को समझने की कोशिश कीजिए...). चाहें 2017 की शुरुआत में बेंगलुरू मास मॉलेस्टेशन की बात हो या फिर उस घटना पर नेताओं का लड़कियों को दोष देना हो. 2017 ने विक्टिम शेमिंग को एक अलग तरीके से देखा है.
कट्टर संगठनों ने अपना काम बखूबी किया है 2017 में और अब 2018 में भी लोग यही करेंगे. बस यही तो संकल्प है 2018 का.
और अंतिम..
5. मंदिर वहीं बनाएंगे..
इसके बारे में तो कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है. भले ही देश के बाकी मंदिरों की हालत कुछ भी हो, उनसे कितनी भी गंदगी निकलती हो, भले ही अस्पताल में बच्चे मर रहे हों, भले ही सस्ते इलाज की और खाने की जरूरत पूरे देश में हो.. फिर भी मंदिर तो हम वहीं बनाएंगे..
ये वो सभी बातें थीं जिन्होंने 2017 में परेशान कर रखा था. 2017 में अच्छाई और विकास के कदम भी काफी उठाए गए, लेकिन फिर भी चाहें देश हो या विदेश हर जगह इन बातों के कारण लोगों को परेशानी उठानी पड़ी. उम्मीद है कि 2018 में हालात कुछ बेहतर होंगे.
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