कहावत है बद अच्छा बदनाम बुरा. अब जो कहावत को बतौर उदाहरण देखना हो तो हम हलिया रिलीज फिल्म ठग्स ऑफ हिंदोस्तान को देख सकते हैं. आज देश में जितने दर्शक नहीं उससे ज्यादा समीक्षक हैं और इन स्वघोषित समीक्षकों ने फिल्म को लेकर ऐसे ऐसे रिव्यू दे दिए हैं कि क्या कहा जाए. फिल्म की बुरी तरह बदनामी हुई है. फिल्म को लेकर हालात कुछ ऐसे हैं कि जिन्होंने फिल्म देख ली है वो भी जग हंसाई के कारण बिल्कुल चुप, एकदम मुंह में अंगुली धरे बैठे हैं. ऐसे लोगों के विपरीत समाज में एक वर्ग वो भी है जो हमेशा ही कुछ तूफानी करने का आदी है. मारे एडवेंचर के ये लोग फिल्म देखने तो गए मगर जब थियेटर से बाहर निकले तो हालत ऐसी कि काटो तो खून नहीं.
चाहे हॉलीवुड हो या बॉलीवुड फिल्म केवल और केवल मनोरंजन का माध्यम है. अब इतना कुछ जानने बूझने के बावजूद अगर हम जज्बाती हो रहे हैं, तो फिर इसमें न तो दोष आमिर खान का है. न ही अमिताभ बच्चन का और कैटरीना कैफ का तो बिल्कुल नहीं है. गलती फिल्म की बिल्कुल नहीं है. बेसिक फाल्ट हममें है. ठग्स ऑफ हिंदोस्तान को लेकर सोशल मीडिया का रुख करिए. फेसबुक और ट्विटर के तो कहने ही क्या.
लोग कह रहे हैं कि व्यक्ति ऐसी फिल्म कैसे देख सकता है. मैं जब-जब ऐसी बातें या फिर फिल्म को लेकर दिए गए ऐसे रिव्यू पढ़ रहा हूं तो मुझे हंसी आ रही है. अरे भइया, हम मां करीना के लाडले और अब्बा सैफ की जान तैमूर को देखने वाले लोग हैं. ये जानते हुए कि न तो एक दिन में तैमूर की मूंछें ही आ जाएंगी और न ही उसके 24 इंच के बाइसेप हो सकते हैं हम रोज तैमूर की फोटो देखते हैं.
खुद कल्पना करिए उस पल की जब आप खबर पढ़ रहे थे कि कैसे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डोकलाम के विषय पर सख्त...
कहावत है बद अच्छा बदनाम बुरा. अब जो कहावत को बतौर उदाहरण देखना हो तो हम हलिया रिलीज फिल्म ठग्स ऑफ हिंदोस्तान को देख सकते हैं. आज देश में जितने दर्शक नहीं उससे ज्यादा समीक्षक हैं और इन स्वघोषित समीक्षकों ने फिल्म को लेकर ऐसे ऐसे रिव्यू दे दिए हैं कि क्या कहा जाए. फिल्म की बुरी तरह बदनामी हुई है. फिल्म को लेकर हालात कुछ ऐसे हैं कि जिन्होंने फिल्म देख ली है वो भी जग हंसाई के कारण बिल्कुल चुप, एकदम मुंह में अंगुली धरे बैठे हैं. ऐसे लोगों के विपरीत समाज में एक वर्ग वो भी है जो हमेशा ही कुछ तूफानी करने का आदी है. मारे एडवेंचर के ये लोग फिल्म देखने तो गए मगर जब थियेटर से बाहर निकले तो हालत ऐसी कि काटो तो खून नहीं.
चाहे हॉलीवुड हो या बॉलीवुड फिल्म केवल और केवल मनोरंजन का माध्यम है. अब इतना कुछ जानने बूझने के बावजूद अगर हम जज्बाती हो रहे हैं, तो फिर इसमें न तो दोष आमिर खान का है. न ही अमिताभ बच्चन का और कैटरीना कैफ का तो बिल्कुल नहीं है. गलती फिल्म की बिल्कुल नहीं है. बेसिक फाल्ट हममें है. ठग्स ऑफ हिंदोस्तान को लेकर सोशल मीडिया का रुख करिए. फेसबुक और ट्विटर के तो कहने ही क्या.
लोग कह रहे हैं कि व्यक्ति ऐसी फिल्म कैसे देख सकता है. मैं जब-जब ऐसी बातें या फिर फिल्म को लेकर दिए गए ऐसे रिव्यू पढ़ रहा हूं तो मुझे हंसी आ रही है. अरे भइया, हम मां करीना के लाडले और अब्बा सैफ की जान तैमूर को देखने वाले लोग हैं. ये जानते हुए कि न तो एक दिन में तैमूर की मूंछें ही आ जाएंगी और न ही उसके 24 इंच के बाइसेप हो सकते हैं हम रोज तैमूर की फोटो देखते हैं.
खुद कल्पना करिए उस पल की जब आप खबर पढ़ रहे थे कि कैसे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डोकलाम के विषय पर सख्त हैं और वो चीन की कड़ी निंदा कर रहे हैं. आप खबर पढ़ रहे हैं तभी सैफ करीना के बेटे तैमूर से जुड़ा एक लिंक आता है और आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन, डोकलाम अरुणाचल प्रदेश सब कुछ भूलकर तैमूर की उन "क्यूट फोटोज" में व्यस्त हो जाते हैं.
अरे साहब हम नागिन सीरियल में इंसान को नेवला बनते देख रहे हैं. हम आए रोज हीरा ठाकुर को बीवी के आईएएस बनने के बाद गांव वालों को मिठाई खिलाते देखते हैं. हमने वो दृश्य भी देखें हैं जब मक्खी विलेन से इन्तेकाम लेती है. हम किस मुंह से ठग्स ऑफ हिंदोस्तान को बुरा कह रहे हैं ये बात वाकई कई मायनों में समझ के परे है.
सोचने वाली बात है कि बॉलीवुड के मद्देनजर हम जैसी ऑडियंस, जिसने लगभग असंभव सी कई चीजों को पचा लिया है आज ठग्स ऑफ हिंदोस्तान पर अपनी भौं तिरछी कर रही है. टीजर और ट्रेलर से लेकर फिल्म तक कुछ भी देख लीजिये साफ है कि आमिर खान ने हमें वो सब दिया जिसके लिए हम प्रायः हाथ में पॉप कॉर्न और कोल्ड ड्रिंक लेकर थियेटर का रुख करते हैं.
वाकई ये दुखद है कि, किसी बड़े फिल्म क्रिटिक का रिव्यू पढ़कर. या अपने किसी दोस्त जिसे हम 'बुद्धिजीवी' कहते हैं, और उसकी हर बात पर सहमत दद्दा करते हैं. उसके द्वारा कही बात पर हमें फिल्म के साथ ऐसा सुलूक तो हरगिज़ नहीं करना चाहिए था. इंसानियत का ये तकाजा बिल्कुल भी नहीं है.
मानवता के नाते हमें आमिर खान का साथ देना था और फिल्म को ज्ञान के लिए नहीं बल्कि मनोरंजन के लिए देखना था. फिल्म में कैटरीना कैफ का होना और उनका उस गाने पर थिरकते हुए कहना कि 'दे चुकी दरसन सुरैया, अब परसाद लोगे क्या?' इस बात की पुष्टि कर देता है कि फैशन के इस दौर में कभी भी खरीदार को गारंटी की इच्छा नहीं करनी चाहिए.
ठग्स ऑफ हिंदोस्तान के रिव्यू हमारे सामने हैं जिन्हें देखकर चुनाव के एग्जिट पोल्स याद आ गए हैं. जिस तरफ एग्जिट पोल चुनाव को प्रभावित करते हैं ठीक वैसे ही रिव्यू के चलते ठग्स ऑफ हिंदुस्तान प्रभावित हुई है. फिल्म का पहले दिन 50.75 करोड़ दूसरे दिन 28.25 करोड़ और तीसरे दिन 22.75 करोड़ का बिजनेस करना ये बता देता है कि जब आदमी दर्शक न होकर समीक्षक बन जाता है तो एक ठीक ठाक फिल्म पिट जाती है.
फिल्म ठग्स ऑफ हिंदोस्तान के साथ जो हुआ वो बुरा हुआ. अब जब बुरा हो ही गया है तो कम से कम अगर हमने फिल्म देखी है तो अपने यार दोस्तों के बीच उसके बारे में बात करने से हमें बिल्कुल भी शर्मना नहीं चाहिए. इससे शायद उसका थोड़ा बहुत प्रमोशन ही हो जाए.
ऐसा इसलिए क्योंकि ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं कि जिसे गुलाब जामुन पसंद नहीं उसे रस मलाई भी पसंद न आए. भले ही फिल्म हमें बुरी लगी हो, मगर हो ये सकता है कि फिल्म किसी को बहुत अच्छी लगे और वो तारीफों का पुल बांधकर 10-12 लोगों को उसे देखने के लिए प्रेरित ही कर दे.
ये भी पढ़ें -
क्या वाकई 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' ने 100 करोड़ क्लब में आकर संजू का रिकॉर्ड तोड़ा है?
केदारनाथ का नया ट्रेलर 'लव-जिहाद' का जवाब है!
रामकृपाल बाबू एक बार जवानी में ठगाए थे, अब 'ठग्स ऑफ हिंदुस्तान' से...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.