"टाइगर जिंदा है" बीते दिन से इस वक़्त तक यही तीन शब्द मुझ गरीब शादीशुदा आदमी के कान सुन रहे हैं. फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, न्यूज़ पोर्टल्स, यूट्यूब समेत दीगर वेबसाइटों पर मैं इन्हीं तीन शब्दों से जुड़ी चीजें देख रहा हूं. बेचारा टाइगर! अब टाइगर के जिंदा होने पर मुझे तरस आ रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये गरीब, अपनी रिलीज के बाद से ही सबको इंटरटेन करने में लगा हुआ है. इसकी बस एक कोशिश है कि कहीं कोई कमी न छूटे और सबका मनोरंजन बदस्तूर होता रहे. साथ ही अपनी मेहनत के बल पर ये 100, 200, 500 करोड़ के पायदान पर सफलतापूर्वक चढ़ता रहे. कह सकते है कि "जिंदा टाइगर अभी खुल कर अपनी जिंदगी जी रहा है''.
ये ठीक है कि टाइगर अभी जिंदा है, शायद ये जिंदा इसलिए भी है क्योंकि ये अभी कुंवारा है. जिस दिन इसकी शादी हो जाएगी उस दिन इसका "जिन्दापन" या तो मर जाएगा या फिर नहीं सिर्फ जीवित कहलाएगा. जी हां सही सुन रहे हैं आप. आम धारणा यही है कि सामाजिक रूप से व्यक्ति तब तक ही जिंदा होता है जब तक वो कुंवारा है. सुना आपने भी होगा जब मुहल्ले से गुजरने पर आवाज़ आती थी "और टाइगर! कैसा है?" "टाइगर! कहाँ है आजकल यार, अब तो तू दिखाई ही नहीं देता?" "और सुना टाइगर काम धंधा कैसा चल रहा है?"
याद करिए उन पलों को, महसूस करिए उस खुशी को. कितना सुकून मिलता था तब. कल तक जो टाइगर जिंदा था शादी के बाद वो केवल "जीवित" रहता है. कल तक बेफिक्र होकर घूमने वाला टाइगर शादी के बाद भीगी बिल्ली बन जाता है और उलझ जाता है महीने के राशन कि हिसाब की डायरी में.
हर रोज उसकी ज़िन्दगी का बस एक रूटीन रहता है कि सुबह जल्दी उठो तो दूध लाओ, कूड़ा फेंको, पानी के लिए मोटर ऑन करो, सब्जी लेने जाओ तो मटर पोपली नहीं भरे दाने की हो, गोभी...
"टाइगर जिंदा है" बीते दिन से इस वक़्त तक यही तीन शब्द मुझ गरीब शादीशुदा आदमी के कान सुन रहे हैं. फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, न्यूज़ पोर्टल्स, यूट्यूब समेत दीगर वेबसाइटों पर मैं इन्हीं तीन शब्दों से जुड़ी चीजें देख रहा हूं. बेचारा टाइगर! अब टाइगर के जिंदा होने पर मुझे तरस आ रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये गरीब, अपनी रिलीज के बाद से ही सबको इंटरटेन करने में लगा हुआ है. इसकी बस एक कोशिश है कि कहीं कोई कमी न छूटे और सबका मनोरंजन बदस्तूर होता रहे. साथ ही अपनी मेहनत के बल पर ये 100, 200, 500 करोड़ के पायदान पर सफलतापूर्वक चढ़ता रहे. कह सकते है कि "जिंदा टाइगर अभी खुल कर अपनी जिंदगी जी रहा है''.
ये ठीक है कि टाइगर अभी जिंदा है, शायद ये जिंदा इसलिए भी है क्योंकि ये अभी कुंवारा है. जिस दिन इसकी शादी हो जाएगी उस दिन इसका "जिन्दापन" या तो मर जाएगा या फिर नहीं सिर्फ जीवित कहलाएगा. जी हां सही सुन रहे हैं आप. आम धारणा यही है कि सामाजिक रूप से व्यक्ति तब तक ही जिंदा होता है जब तक वो कुंवारा है. सुना आपने भी होगा जब मुहल्ले से गुजरने पर आवाज़ आती थी "और टाइगर! कैसा है?" "टाइगर! कहाँ है आजकल यार, अब तो तू दिखाई ही नहीं देता?" "और सुना टाइगर काम धंधा कैसा चल रहा है?"
याद करिए उन पलों को, महसूस करिए उस खुशी को. कितना सुकून मिलता था तब. कल तक जो टाइगर जिंदा था शादी के बाद वो केवल "जीवित" रहता है. कल तक बेफिक्र होकर घूमने वाला टाइगर शादी के बाद भीगी बिल्ली बन जाता है और उलझ जाता है महीने के राशन कि हिसाब की डायरी में.
हर रोज उसकी ज़िन्दगी का बस एक रूटीन रहता है कि सुबह जल्दी उठो तो दूध लाओ, कूड़ा फेंको, पानी के लिए मोटर ऑन करो, सब्जी लेने जाओ तो मटर पोपली नहीं भरे दाने की हो, गोभी में कीड़े न हों, टमाटर गला न हो, हरा धनिया पीलापन लिए हुए सूखा न हो, नॉन वेज का प्लान हो तो ध्यान रहे कि चिकन या मटन जो भी लिया जा रहा हो उसमेंन तो ज्यादा चर्बी ही हो और न ही ज्यादा हड्डी.
शादीशुदा जीवन के अपने अलग पेंच हैं. जिसे आज जो टाइगर बना घूम रहा है कभी नहीं समझ सकता. ये दर्द उसे तब समझ आएगा जब उसकी शादी हो जाएगी और वो गृहस्थ आश्रम में दाखिल होगा. कल तक जो टाइगर था वो शादी के बाद हर रोज अपने से बस यही सवाल करता है कि, "मैं क्या करने आया था, मैं क्या कर रहां हूं."
बहरहाल ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि सिनेमा का टाइगर आज भी ज़िंदा है, कल भी ज़िंदा रहेगा और परसों भी. वो क्या है न कि उसे दूध नहीं लाना होता, कूड़ा नहीं फेंकना होता, मार्किट से ताज़ी सब्जियां तो बिल्कुल नहीं चुननी होतीं चिकन या मटन में लगी चर्बी और हड्डी के लिए दुकानदार से उलझना नहीं होता.
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