कैसा अजीब आया है इस साल का बजट,
मुर्ग़ी का जो बजट है, वही दाल का बजट.
nion Budget 2021 : गुरु पंक्तियां बड़ी सही और मौके की नजाकत के अनुरूप हैं. जिन्हें 'बजट' के मद्देनजर लिखा है शायर 'खालिद इरफ़ान' ने. बजट आ चुका है केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की स्पीच के बीच तमाम बड़ी बड़ी बातें हो रही हैं. ये योजना, वो योजना, राहत पैकेज, किसानों के लिए तोहफा, नौकरी पेशा लोगों के लिए टैक्स में छूट, लड़कियों और महिलाओं के लिए उपहार, सब्सिडी मतलब तमाम तरह की हाई प्रोफाइल बातें. बातें वो भी ऐसी जिनके लिए मैथ्स, एकाउंट और इकोनॉमिक्स आनी बेहद ज़रूरी. जिन्हें आती हो अच्छी बात जिन्हें नहीं आती उनके लिए बजट निल बट्टे सन्नाटा.
मेरे जैसे तमाम लोग हैं जिन्हें आज तक ये समझ में नहीं आया कि Algebra में हर बार X की खोज Y क्यों करता है जब वो बजट, न्यूज़ चैनल में देखते या फिर अखबार में पढ़ते हैं तो उन्हें ज्यादा कुछ समझ नहीं आता और वो कहावत चरितार्थ होती है कि 'अंधे के आगे रोना अपना दीदा खोना.'
सच बोलने में क्या ही शर्माना अपन जैसे लोगों के लिए बजट भैंस बराबर और उसमें लिखी बातें काला अक्षर हैं. बात एकदम क्लियर है क्या ही घुमाना फिराना. बजट की आस भले ही तमाम सेक्टर्स लगाए बैठे हों लेकिन आम आदमी सिर्फ सिगरेट, पेट्रोल, रजनीगंधा जैसी चीजों की कीमत में उछाल या गिरावट से समझ जाता है कि बजट कैसा है.
मतलब इस बात को ऐसे समझिए कि अगर पेट्रोल पंप पर पेट्रोल 75 पैसे महंगा हुआ या फिर ठेके पर शराब 5 रुपए महंगी मिली तो बजट खराब है. वहीं अगर सिगरेट, रजनीगंधा और दाने- दाने में...
कैसा अजीब आया है इस साल का बजट,
मुर्ग़ी का जो बजट है, वही दाल का बजट.
nion Budget 2021 : गुरु पंक्तियां बड़ी सही और मौके की नजाकत के अनुरूप हैं. जिन्हें 'बजट' के मद्देनजर लिखा है शायर 'खालिद इरफ़ान' ने. बजट आ चुका है केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की स्पीच के बीच तमाम बड़ी बड़ी बातें हो रही हैं. ये योजना, वो योजना, राहत पैकेज, किसानों के लिए तोहफा, नौकरी पेशा लोगों के लिए टैक्स में छूट, लड़कियों और महिलाओं के लिए उपहार, सब्सिडी मतलब तमाम तरह की हाई प्रोफाइल बातें. बातें वो भी ऐसी जिनके लिए मैथ्स, एकाउंट और इकोनॉमिक्स आनी बेहद ज़रूरी. जिन्हें आती हो अच्छी बात जिन्हें नहीं आती उनके लिए बजट निल बट्टे सन्नाटा.
मेरे जैसे तमाम लोग हैं जिन्हें आज तक ये समझ में नहीं आया कि Algebra में हर बार X की खोज Y क्यों करता है जब वो बजट, न्यूज़ चैनल में देखते या फिर अखबार में पढ़ते हैं तो उन्हें ज्यादा कुछ समझ नहीं आता और वो कहावत चरितार्थ होती है कि 'अंधे के आगे रोना अपना दीदा खोना.'
सच बोलने में क्या ही शर्माना अपन जैसे लोगों के लिए बजट भैंस बराबर और उसमें लिखी बातें काला अक्षर हैं. बात एकदम क्लियर है क्या ही घुमाना फिराना. बजट की आस भले ही तमाम सेक्टर्स लगाए बैठे हों लेकिन आम आदमी सिर्फ सिगरेट, पेट्रोल, रजनीगंधा जैसी चीजों की कीमत में उछाल या गिरावट से समझ जाता है कि बजट कैसा है.
मतलब इस बात को ऐसे समझिए कि अगर पेट्रोल पंप पर पेट्रोल 75 पैसे महंगा हुआ या फिर ठेके पर शराब 5 रुपए महंगी मिली तो बजट खराब है. वहीं अगर सिगरेट, रजनीगंधा और दाने- दाने में विमल वाली चीजें निर्धारित मूल्य या उससे 50 पैसे कम में मिलीं तो फिर इस बजट से बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता.
तो भइया क्या महंगा होगा क्या सस्ता पता अगले दो तीन दिन में पता चल जाएगा फिर तभी हम जैसे मैंगो मैन इस बात की घोषणा करेंगे कि बजट अच्छा है या फिर ये उतना खराब है कि उसके लिए निर्मला ताई को इस्तीफे की पेशकश कर देनी चाहिए.
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