बचपन को याद करिये. जब भी आप शैतानी करते या लीग से इधर उधर निकल जाते मम्मी यही डायलॉग मारकर आपके अरमानों पर चूना डाल देती होंगी कि चुपचाप यहां बैठो नहीं तो पुलिस पकड़ ले जाएगी. किसी भी बच्चे के बचपन में पुलिस का टेम्पो कुछ इस हद तक हाई रहता है कि अधिकांश को पुलिस ही बनना होता है. नहीं आप ख़ुद बच्चों के खेल देख लीजिए. हमारी इस बात की तस्दीख हो जाएगी. 10-12 बच्चे हुए तो आधे पुलिस आधे डाकू और लकड़ी की पिस्टल के बीच मुंह से ठाएं ठाएं. बचपन में मुझे भी लगता था कि भैये जीवन में अगर किसी के भौकाल है तो वो पुलिस है उन्हें कोई नहीं पकड़ पाता. किसी और कि क्या कहूं मुझे भी पुलिस बनना था मगर बात वही है हर किसी को मुक़म्मल जहां नहीं मिलता... पुलिस है वाक़ई बड़ा भौकाली शब्द मगर किसी पुलिस वाले से पूछिए खासकर यूपी वाले पुलिसवाले से पूछिए. जैसी ड्यूटी है भाई ने पैसा तो बहुत कमाया होगा लेकिन उसे खर्च करने का वक़्त उसके पास नहीं है. किसी एक को क्या आप यूपी के 100 पुकिसवालों के साथ मुफ्त की चाय पर चर्चा कीजिये. हम डंके की चोट पर कहेंगे कि 90 होंगे जो कहेंगे कि भाई पान की दुकान खोल ले पर पुलिस न बनना. अब तक ये बातें हमने सुनी थीं लेकिन अब यूपी में पुलिस वाले इसे अमली जामा पहना रहे. यूपी में जैसे हालात हैं पुलिसवालों को पुलिस नहीं बनना वो मास्साब बनना चाहते हैं कारण है छुट्टी विशेषकर संडे वाली छुट्टी.
उपरोक्त बातों को पढ़कर चकराने की जरूरत नहीं है. जैसे हर आदमी के होते हैं इन पुलिसवालों के भी अरमां हैं और इन्होंने सोच लिया है कि नहीं भाईसाहब उन्हें थाने पर रहकर नहीं खर्च करना. बीवी को टाइम देंगे तो मां और बच्चों के अलावा सास भी ख़ुश होगी. सोसाइटी में इज्जत भी मेंटेन रहेगी.
तो साहब मैटर कुछ यूं है...
बचपन को याद करिये. जब भी आप शैतानी करते या लीग से इधर उधर निकल जाते मम्मी यही डायलॉग मारकर आपके अरमानों पर चूना डाल देती होंगी कि चुपचाप यहां बैठो नहीं तो पुलिस पकड़ ले जाएगी. किसी भी बच्चे के बचपन में पुलिस का टेम्पो कुछ इस हद तक हाई रहता है कि अधिकांश को पुलिस ही बनना होता है. नहीं आप ख़ुद बच्चों के खेल देख लीजिए. हमारी इस बात की तस्दीख हो जाएगी. 10-12 बच्चे हुए तो आधे पुलिस आधे डाकू और लकड़ी की पिस्टल के बीच मुंह से ठाएं ठाएं. बचपन में मुझे भी लगता था कि भैये जीवन में अगर किसी के भौकाल है तो वो पुलिस है उन्हें कोई नहीं पकड़ पाता. किसी और कि क्या कहूं मुझे भी पुलिस बनना था मगर बात वही है हर किसी को मुक़म्मल जहां नहीं मिलता... पुलिस है वाक़ई बड़ा भौकाली शब्द मगर किसी पुलिस वाले से पूछिए खासकर यूपी वाले पुलिसवाले से पूछिए. जैसी ड्यूटी है भाई ने पैसा तो बहुत कमाया होगा लेकिन उसे खर्च करने का वक़्त उसके पास नहीं है. किसी एक को क्या आप यूपी के 100 पुकिसवालों के साथ मुफ्त की चाय पर चर्चा कीजिये. हम डंके की चोट पर कहेंगे कि 90 होंगे जो कहेंगे कि भाई पान की दुकान खोल ले पर पुलिस न बनना. अब तक ये बातें हमने सुनी थीं लेकिन अब यूपी में पुलिस वाले इसे अमली जामा पहना रहे. यूपी में जैसे हालात हैं पुलिसवालों को पुलिस नहीं बनना वो मास्साब बनना चाहते हैं कारण है छुट्टी विशेषकर संडे वाली छुट्टी.
उपरोक्त बातों को पढ़कर चकराने की जरूरत नहीं है. जैसे हर आदमी के होते हैं इन पुलिसवालों के भी अरमां हैं और इन्होंने सोच लिया है कि नहीं भाईसाहब उन्हें थाने पर रहकर नहीं खर्च करना. बीवी को टाइम देंगे तो मां और बच्चों के अलावा सास भी ख़ुश होगी. सोसाइटी में इज्जत भी मेंटेन रहेगी.
तो साहब मैटर कुछ यूं है कि यूपी के मेरठ में जॉइनिंग से पहले ही 33 लोगों ने पुलिस की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया है. ज्यादातर प्राइमरी स्कूल में टीचर हो गए हैं. मेरठ क्या सूबे के बाकी हिस्सों की भी स्थिति मिलती जुलती है. वहां भी यही हाल है. पुलिसवाले खाकी उतार के नार्मल शर्ट पैंट पहन रहे हैं. बता दें कि मेरठ पुलिस लाइन में छह अक्तूबर से यूपी पुलिस आरक्षी प्रशिक्षुओं की जूनियर ट्रेनिंग की शुरुआत हुई. 268 जवानों को कॉल लेटर भेजा गया. कॉल लेटर मिलने के बाद 37लोगों ने ही ट्रेनिंग में आमद दर्ज कराई. 31 लोग ट्रेनिंग से गैर हाजिर थे.
अच्छा बात चूंकि नियुक्ति की थी तो मेरठ पुलिस के आला अफसरों ने भी टेलीफोन के माध्यम से इन लोगों का हाल चाल लिया और जो जानकारी उन्हें मिली उसके बाद उनके होश फाख्ता होना स्वाभाविक था. सीनियर्स को जानकारी मिली कि ज्यादातर का नंबर प्राथमिक स्कूलों की 69 हजार शिक्षक भर्ती में आ गया है. इसके अलावा दो युवक ऐसे भी थे जिनकी तैनाती अन्य विभाग में बतौर जूनियर इंजीनियर हुई है.
यूपी के पुलिस वालों में टीचर बनने का क्रेज किस हद तक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गोरखपुर-बस्ती रेंज के 53 सिपाहियों ने शिक्षक बनने के लिए खाकी वर्दी का त्याग किया. तो वहीं कुशीनगर में 22 पुलिसकर्मियों ने त्यागपत्र देकर शिक्षक की नौकरी पा ली. 'Police is the new teacher' ये कांसेप्ट केवल यूपी में नहीं है राजस्थान के जयपुर में भी 43 पुलिसकर्मियों ने अपने पद से इस्तीफा देकर चॉक और डस्टर थामा है.
अच्छा बात क्यों कि उत्तर प्रदेश की चली है तो जान लीजिए बात सिर्फ मेरठ रेंज, गोरखपुर, बस्ती और कुशीनगर की नहीं है. सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, नोएडा समेत अधिकांश जनपदों में हाल मिलता जुलता है. पुलिसकर्मी इस्तीफा दे रहे हैं और मास्साब बन रहे हैं. दिलचस्प ये भी है कि कई ऐसे भी पुकिसवाले टीचर हुए हैं जिनकी आधी ट्रेनिंग पूरी हो गयी है.
तो क्या है इस मोहभंग की वजहें
इसमें कोई शक नहीं कि यूपी जैसे राज्य में पुलिस की कमाई का कोई ठिकाना नहीं है. इतिहास गवाह है कई कई हेड कॉन्स्टेबल और सब इंस्पेक्टर ऐसे हुए हैं जिन्हें महीने में आईजी डी आईजी से ज्यादा खर्चा पानी मिलता है. लेकिन भइया पैसा हाथ की मैल है अब ऐसी भी क्या नौकरी कि आदमी किसी शादी में अभी पुलाव के साथ पनीर खा भी न पाया हो या फिर ये कि पहले रबड़ी खा लूं या फिर गुलाब जामुन और तभी उसका फोन बजे और उसे ड्यूटी पर जाना पड़ जाए. ये तो बात हो गई टाइमिंग की अब बात करते हैं पे ग्रेड की बता दें कि शिक्षकों का वेतन पे बैंड जहां 4200 रुपये है, वहीं पुलिस का वेतन पे बैंड 2000 रुपये है.
जिक्र छुट्टियां का हुआ है तो जान लीजिए शिक्षक की एक साल में संडे, सार्वजनिक अवकाश और कैजुअल लीव मिलाकर करीब 100 छुट्टियां होती हैं,। पुलिसकर्मियों को सालभर में 60 छुट्टियां स्वीकृत हैं, लेकिन उन्हें अधिकतम 20 छुट्टी ही मिल पाती हैं.
जिक्र नौकरी का हुआ है तो चर्चा प्रमोशन पर भी होगी.शिक्षकों को पहला प्रमोशन औसतन अपनी नौकरी के दस सालों बाद मिल जाता है, जबकि पुलिसकर्मियों को पहला प्रमोशन मिलने में पन्द्रह साल तक लग जाते हैं. शिक्षकों की ड्यूटी सात घंटे होती है, लेकिन बेचारी पुलिस इन्हें ड्यूटी के नामपर 12 से 15 घंटे डेली थाने में बिताने ही पड़ते हैं.
छोटे लेवल पर पुलिस वाले नौकरी छोड़ छोड़ के दूसरी विधा में अपने हाथ आजमा रहे हैं इसपर जो तर्क पुलिस के सीनियर अफसरों ने दिया है हमें उसे भी नकारने की गुस्ताखी नहीं करनी चाहिए. पुलिस के आला अधिकारियों के अनुसार अब वो दौर गया जब पुलिस में जॉइनिंग पाने के इच्छुक युवा सिर्फ पुलिस में अपना हाथ आजमाते थे अब जो लोग आ रहे हैं वो शिक्षित है और पुलिस के अलावा भी अलग अलग परीक्षाओं में बैठते हैं. इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है.
बुराई तो वाक़ई नहीं है मगर कोई सिर्फ छुट्टियों और वेतन/ प्रोमोशन की लालच में ऐसी नौकरी पकड़े जो जिम्मेदारियों से भरी हो तो बात तो होगी ही और बड़ी दूर तक जाएगी भी. अब जबकि इस कलयुग में हमें ये सब देखने को मिल रहा है तो कहा यही जा सकता है कि यूपी जैसे राज्य में जहां शिक्षा का यूं ही निचले लेवल पर हो यदि वहां कोई सिर्फ मजे के लिए टीचर बन समाज की सेवा करने का प्रण ले रहा है तो गुरु शिक्षा और यूपी दोनों का फिर रब ही मालिक.
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