एक कहावत है कि यदि समय खराब हो तो हाथी पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है. सच में आजका दिन बड़ा बुरा था उसके बाद एक खबर सुनी जिसने गम को और बढ़ा दिया. खबर उत्तराखंड के चमोली से थी. उत्तराखंड स्थित चमोली की खाद्य सुरक्षा अदालत ने रजनीगंधा पान मसाले को 'अनसेफ ब्रांड' और खाने के लिये असुरक्षित घोषित करते हुए इसका उत्पादन करने वाली कम्पनी पर चार लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. जिले के फूड सिक्योरिटी ऑफिसर की शिकायत पर खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के तहत दिये गये आदेश में स्थानीय स्तर पर इस पान मसाले को बेचने वाले व्यापारी पर भी पन्द्रह हजार रुपये जुर्माना लगाया गया है.
इस खबर से, मैं मारे टेंशन के अवसाद में चला गया हूं. ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ वहां टीवी पर बताया जाता है कि 'मुंह में रजनीगंधा हो तो दुनिया क़दमों में आ जाती है. दूसरी तरफ ऐसी ख़बरें. बताइए साहब ये भी कोई बात हुई कि मुंह में रजनीगंधा रख दुनिया को अपने कदमों तले रखने की कल्पना करने वाले हम लोगों पर क्या बीतती होगी जब हम ऐसी खबरें सुनते या पढ़ते होंगे. नहीं, मतलब सच में, ये जुल्म और शोषण की पराकाष्ठा है. इतना बड़ा शोषण तो कांग्रेस पार्टी ने देश का और राहुल गांधी ने अपने को युवा नेता कहकर भी नहीं किया.
मैं सच में बहुत गुस्से में हूं. हिम्मत कैसी हुई उस अफसर की जिसने रजनीगंधा जैसे होनहार बिरवान पर जांच बैठाई. अच्छा जांच बैठा दी तो बैठा दी कुछ ले दे के मामला सुलझा लेना था. ये क्या बात हुई कि जरा-जरा सी बात को मामला बनाकर लेकर सीधे अदालत ही चले जाओ. अदालत को भी देखिये, एक तरफ जहां देश की अदालतों में दीवानी, फौजदारी, सुरक्षा मामलों, जैसे लाखों छोटे बड़े लंबित मुक़दमे पड़े हैं उनको...
एक कहावत है कि यदि समय खराब हो तो हाथी पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है. सच में आजका दिन बड़ा बुरा था उसके बाद एक खबर सुनी जिसने गम को और बढ़ा दिया. खबर उत्तराखंड के चमोली से थी. उत्तराखंड स्थित चमोली की खाद्य सुरक्षा अदालत ने रजनीगंधा पान मसाले को 'अनसेफ ब्रांड' और खाने के लिये असुरक्षित घोषित करते हुए इसका उत्पादन करने वाली कम्पनी पर चार लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. जिले के फूड सिक्योरिटी ऑफिसर की शिकायत पर खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के तहत दिये गये आदेश में स्थानीय स्तर पर इस पान मसाले को बेचने वाले व्यापारी पर भी पन्द्रह हजार रुपये जुर्माना लगाया गया है.
इस खबर से, मैं मारे टेंशन के अवसाद में चला गया हूं. ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ वहां टीवी पर बताया जाता है कि 'मुंह में रजनीगंधा हो तो दुनिया क़दमों में आ जाती है. दूसरी तरफ ऐसी ख़बरें. बताइए साहब ये भी कोई बात हुई कि मुंह में रजनीगंधा रख दुनिया को अपने कदमों तले रखने की कल्पना करने वाले हम लोगों पर क्या बीतती होगी जब हम ऐसी खबरें सुनते या पढ़ते होंगे. नहीं, मतलब सच में, ये जुल्म और शोषण की पराकाष्ठा है. इतना बड़ा शोषण तो कांग्रेस पार्टी ने देश का और राहुल गांधी ने अपने को युवा नेता कहकर भी नहीं किया.
मैं सच में बहुत गुस्से में हूं. हिम्मत कैसी हुई उस अफसर की जिसने रजनीगंधा जैसे होनहार बिरवान पर जांच बैठाई. अच्छा जांच बैठा दी तो बैठा दी कुछ ले दे के मामला सुलझा लेना था. ये क्या बात हुई कि जरा-जरा सी बात को मामला बनाकर लेकर सीधे अदालत ही चले जाओ. अदालत को भी देखिये, एक तरफ जहां देश की अदालतों में दीवानी, फौजदारी, सुरक्षा मामलों, जैसे लाखों छोटे बड़े लंबित मुक़दमे पड़े हैं उनको दरकिनार कर एक अदना से पान मसाले पर फैसला ये साफ बताता है कि इस देश में आम आदमी के सपनों का कोई महत्त्व नहीं है. जी हां आम आदमी के वही सपने जो वो मुंह में रजनीगंधा रखकर देखता है जहां उसके क़दमों में दुनिया आ जाती है.
शायद आप विश्वास न करें. मगर इस देश का वो आम सा आदमी बहुत परेशान है जो मुंह में पान मसाला भर पीक मारता है. उसे प्रायः यही महसूस होता है कि ये दुनिया माया है. और सभी ये जानते हैं कि माया महाठगनी है. ऐसे में यदि उसके पास कुछ अपना है तो केवल वो पान मसाला और उसकी पीक. दाने-दाने में केसर देश के इस आम आदमी ने देखा नहीं और शायद वो कभी देख भी न पाए, उसने इसे अपने जीवन में केवल और केवल पान मसाले में ही देखा है. इतना सब जानने और समझने के बाद अगर कोई अधिकारी या फिर सरकार, कोर्ट पान मसाले के खिलाफ जाती हैं तो जाहिर है इन्हें आम आदमी की बिल्कुल भी परवाह नहीं.
हो सकता है उपरोक्त बातों को पढ़कर किसी की भावना आहत हो जाए और वो कह बैठे कि चमोली की इस अदालत ने एक बहुत अच्व्चा फैसला दिया है. तो ऐसे लोगों से इतना ही कि ये एक अच्छा फैसला तब होता जब सरकार और कोर्ट दोनों मिलकर गुटखे और पान मसाले की खरीद फरोख्त हो पूर्णतः प्रतिबंधित कर देतीं. इस फैसले का स्वागत करने वालों को उस तरफ भी देखना चाहिए जहां सरकारी संरक्षण में इसे खुलेआम बेचा जा रहा है. और हां ये इसलिए बिक रहा है कि इससे सरकारी राजस्व में टैक्स के नाम पर मोटा पैसा आ रहा है.
खैर कहने और सुनने को बहुत सी बातें हैं. अंत में बस इतना ही कि काश सरकार और कोर्ट वाकई अपने नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए फिक्रमंद होती तो न हम ऐसे फैसले सुनते और न ही बाजारों में बिकते गुटखे और पानमसाले ही देखते.
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