जब सैलरी आने से लेकर बच्चों की फीस जमा करने और बिजली, इंटरनेट और मोबाइल का बिल देने का दिन निर्धारित हो, 16 अक्टूबर तारीखों की दुनिया में एक आम तारीख है. बात जब इसपर हो कि इसमें खास क्या है? तो यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि 16 अक्टूबर को पूरा विश्व विश्व खाद्य दिवस के रूप में सेलिब्रेट करता है. यानी ये एक ऐसा दिन है जो खाने पीने को समर्पित है. दिन अच्छा है. आज हम ऐसा कोई आंकड़ा पेश नहीं करेंगे जो ये बताएगा कि भुखमरी से फलां साल इतने बच्चे मरे. या फिर देश में प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं की मौत सिर्फ इसलिए रही हैं क्योंकि उन्हें पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा था.
हमने प्रण लिया है कि,आज के दिन हम ऐसा कुछ भी बुरा नहीं कहेंगे जिसकी जिम्मेदारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी सरकार और अधिकारियों की है.
सोशल मीडिया के इस दौर में जब क्रांति का सबसे बड़ा टूल हैशटैग है. फेसबुक से लेकर ट्विटर तक, लोग अपने मन की बात लिख लिखकर हमारी थाली में परोस रहे हों, हमारा पेट भर रहे हों. तो हमारे लिए जरूरी हो जाता है इस विर्चुअल खाद्य यानी फूड पर बात करना. जैसे शरीर के विकास के लिए भोजन के रूप में विटामिन, प्रोटीन, वसा, मिनिरल और कार्ब की जरूरत है. वैसे ही परिवर्तन और विकास के लिए विचार जरूरी हैं.
विचार करने के लिए वक़्त चाहिए और हम जैसे साधारण मध्यमवर्गीय लोगों के पास कहां इतना वक़्त है कि हम परिवर्तन या फिर विकास के लिए अपने दिमाग में विचार पकाएं.सोशल मीडिया के आ जाने से ये परेशानी काफी हद तक दूर हुई है. करना कुछ नहीं है. क्रांति की आंच तले जो खाना किसी दूसरे ने बनाया है उसे कंट्रोल सी और कंट्रोल वी करना है. मोबाइल वालों के लिए ये प्रक्रिया और भी आसान है. सिलेक्ट किया उसे कॉपी...
जब सैलरी आने से लेकर बच्चों की फीस जमा करने और बिजली, इंटरनेट और मोबाइल का बिल देने का दिन निर्धारित हो, 16 अक्टूबर तारीखों की दुनिया में एक आम तारीख है. बात जब इसपर हो कि इसमें खास क्या है? तो यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि 16 अक्टूबर को पूरा विश्व विश्व खाद्य दिवस के रूप में सेलिब्रेट करता है. यानी ये एक ऐसा दिन है जो खाने पीने को समर्पित है. दिन अच्छा है. आज हम ऐसा कोई आंकड़ा पेश नहीं करेंगे जो ये बताएगा कि भुखमरी से फलां साल इतने बच्चे मरे. या फिर देश में प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं की मौत सिर्फ इसलिए रही हैं क्योंकि उन्हें पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा था.
हमने प्रण लिया है कि,आज के दिन हम ऐसा कुछ भी बुरा नहीं कहेंगे जिसकी जिम्मेदारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी सरकार और अधिकारियों की है.
सोशल मीडिया के इस दौर में जब क्रांति का सबसे बड़ा टूल हैशटैग है. फेसबुक से लेकर ट्विटर तक, लोग अपने मन की बात लिख लिखकर हमारी थाली में परोस रहे हों, हमारा पेट भर रहे हों. तो हमारे लिए जरूरी हो जाता है इस विर्चुअल खाद्य यानी फूड पर बात करना. जैसे शरीर के विकास के लिए भोजन के रूप में विटामिन, प्रोटीन, वसा, मिनिरल और कार्ब की जरूरत है. वैसे ही परिवर्तन और विकास के लिए विचार जरूरी हैं.
विचार करने के लिए वक़्त चाहिए और हम जैसे साधारण मध्यमवर्गीय लोगों के पास कहां इतना वक़्त है कि हम परिवर्तन या फिर विकास के लिए अपने दिमाग में विचार पकाएं.सोशल मीडिया के आ जाने से ये परेशानी काफी हद तक दूर हुई है. करना कुछ नहीं है. क्रांति की आंच तले जो खाना किसी दूसरे ने बनाया है उसे कंट्रोल सी और कंट्रोल वी करना है. मोबाइल वालों के लिए ये प्रक्रिया और भी आसान है. सिलेक्ट किया उसे कॉपी किया और पेस्ट कर दिया.
सोशल मीडिया को ध्यान से देखें तो मिलता है कि यहां सिर्फ और सिर्फ दो तरह के लोगों का राज है. एक वो जो मेहनत कर रहे हैं और लिखकर खाना पका रहे हैं. दूसरे वो जो उस पकाए हुए को बिना किसी शर्म के चुरा रहे हैं और अपने बर्तन में रखकर दुनिया को बता रहे हैं कि कैसे इस खाने को बनाने में उन्होंने दिन दूनी रात चौगुनी मेहनत की है.
कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि जिसका मौलिक खाना है उसको कोई पूछने वाला नहीं है. जिसने चुराया है उसे तमाम तरह के रिएक्शन, लाइक, कमेंट, शेयर और तारीफें मिल रही हैं. उनका जय जयकार हो रहा है.
इन बातों को देखकर शोले फिल्म का दौर याद आ जाता है. खुलेआम विचारों की ऐसी चोरी, जो फिल्म का मेन विलेन गब्बर देखता तो शायद वो भौचक्का रह जाता और यही कहता 'बहुत नाइंसाफी है.' कुल मिलकर बात का सार बस इतना है कि आज के दिन हम उन लोगों को कोटि-कोटि नमन करना चाहेंगे और उनके आगे दंडवत होंगे जिनके जीवन का सिर्फ एक मकसद है और शायद आगे भविष्य में भी हो, दूसरों का क्रेडिट खाना.
देखिये बात बहुत साफ है. खाना पीना बुरा नहीं है. खाते पीते रहना चाहिए. मगर अति बुरी है. सोशल मीडिया पर आप जिसके विचार बिना क्रेडिट दिए खा रहे हैं, बस इतना ख्याल रखियेगा कि उसे ज्यादा खा लेने के चलते कहीं बदहजमी न हो जाए. कहीं कोई मित्र, उसका मित्र या फिर फॉलोवर आकर ये कह दे कि, ये खाना तो दो दिन पहले हम फलां साहब की थाली में देख चुके थे. आज आपने अपने नाम से परोस दिया. ये बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है. यकीन मानिए उस क्षण जो बेइज्जती होती है उसका अंदाजा लगा पाना आज मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
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