तो गुरू...बात ये है कि श्रीलंका की लग गई है 'लंका'. श्रीलंका में उपजे आर्थिक संकट ने सत्ता पक्ष के राजनेताओं की ऐसी की तैसी कर दी है. महंगाई और भ्रष्टाचार से लोगों का गुस्सा आसमान पर पहुंचा. और, इसी वजह से श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को 'पुष्पक विमान' से देश छोड़कर भागना पड़ा. अब गोटाबाया के इस्तीफे के बाद काम चलाने के लिए रानिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया है. लेकिन, उनकी भी हालत खराब ही है. वैसे, खबर ये है कि एक हफ्ते अंदर श्रीलंका का नया राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा. खैर, श्रीलंका का राष्ट्रपति जो भी बने उसके सामने चुनौतियां तो 'सुरसा' की तरह मुंह खोले पहले से ही खड़ी होंगी. तो, सवाल ये हैं कि श्रीलंका के लिए इस कठिन समय में कौन 'संकटमोचक' राष्ट्रपति साबित होगा?
वैसे, भारत ने हाल ही में श्रीलंका को आर्थिक संकट से निपटने के लिए 3.5 बिलियन डॉलर से ज्यादा की मदद की है. तो, भारत का विपक्ष भी अपनी ओर से श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालने के लिए चाहे तो अपने गुट के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को वहां का मानद राष्ट्रपति बनवाकर एक और बड़ी मदद कर सकता है. ये बात हवा-हवाई तौर पर नहीं कही जा रही है. यशवंत सिन्हा जैसा अनुभवी नेता श्रीलंका को दूसरा नहीं मिलेगा. क्योंकि, यशवंत सिन्हा की इन्हीं खूबियों के चलते तो विपक्ष ने उन्हें अपना साझा उम्मीदवार बनाया था. वैसे, भारत में यशवंत सिन्हा की राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में हार पहले से ही तय है. तो, वह चाहें, तो विपक्ष के सियासी दलों के सहारे खुद को श्रीलंका का मानद राष्ट्रपति बनाए जाने की मांग कर सकते हैं.
हां, ये समस्या जरूर हो सकती है कि अभी तक जो विपक्षी दल उनके साथ में खड़े नजर आ रहे हों. वह भाजपा के द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाते ही पाला बदल लें. वैसे, श्रीलंका में राष्ट्रपति पद की रेस में वहां के सियासी दलों के कुछ नेताओं के नाम चल रहे हैं. लेकिन, वे चाहें, तो यशवंत सिन्हा की...
तो गुरू...बात ये है कि श्रीलंका की लग गई है 'लंका'. श्रीलंका में उपजे आर्थिक संकट ने सत्ता पक्ष के राजनेताओं की ऐसी की तैसी कर दी है. महंगाई और भ्रष्टाचार से लोगों का गुस्सा आसमान पर पहुंचा. और, इसी वजह से श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को 'पुष्पक विमान' से देश छोड़कर भागना पड़ा. अब गोटाबाया के इस्तीफे के बाद काम चलाने के लिए रानिल विक्रमसिंघे को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया है. लेकिन, उनकी भी हालत खराब ही है. वैसे, खबर ये है कि एक हफ्ते अंदर श्रीलंका का नया राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा. खैर, श्रीलंका का राष्ट्रपति जो भी बने उसके सामने चुनौतियां तो 'सुरसा' की तरह मुंह खोले पहले से ही खड़ी होंगी. तो, सवाल ये हैं कि श्रीलंका के लिए इस कठिन समय में कौन 'संकटमोचक' राष्ट्रपति साबित होगा?
वैसे, भारत ने हाल ही में श्रीलंका को आर्थिक संकट से निपटने के लिए 3.5 बिलियन डॉलर से ज्यादा की मदद की है. तो, भारत का विपक्ष भी अपनी ओर से श्रीलंका को आर्थिक संकट से निकालने के लिए चाहे तो अपने गुट के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को वहां का मानद राष्ट्रपति बनवाकर एक और बड़ी मदद कर सकता है. ये बात हवा-हवाई तौर पर नहीं कही जा रही है. यशवंत सिन्हा जैसा अनुभवी नेता श्रीलंका को दूसरा नहीं मिलेगा. क्योंकि, यशवंत सिन्हा की इन्हीं खूबियों के चलते तो विपक्ष ने उन्हें अपना साझा उम्मीदवार बनाया था. वैसे, भारत में यशवंत सिन्हा की राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में हार पहले से ही तय है. तो, वह चाहें, तो विपक्ष के सियासी दलों के सहारे खुद को श्रीलंका का मानद राष्ट्रपति बनाए जाने की मांग कर सकते हैं.
हां, ये समस्या जरूर हो सकती है कि अभी तक जो विपक्षी दल उनके साथ में खड़े नजर आ रहे हों. वह भाजपा के द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाते ही पाला बदल लें. वैसे, श्रीलंका में राष्ट्रपति पद की रेस में वहां के सियासी दलों के कुछ नेताओं के नाम चल रहे हैं. लेकिन, वे चाहें, तो यशवंत सिन्हा की खूबियों का इस्तेमाल देश को बचाने के लिए कर सकते हैं.
अर्थशास्त्र की नीतियों के बड़े शास्त्री
श्रीलंका को आर्थिक संकट से बचने के लिए एक बेहतरीन अर्थशास्त्री की जरूरत होगी. क्योंकि, उसके इस हाल की वजहों के पीछे राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे की गलत आर्थिक नीतियां भी एक बड़ी वजह है. तो, इस जगह पर यशवंत सिन्हा के श्रीलंका के लिए बड़े संकटमोचक साबित हो सकते हैं. क्योंकि, उनके पास भारत सरकार का वित्त मंत्रालय संभालने का करीब 6 साल अनुभव है. एक देश को चलाने के लिए किस तरह की आर्थिक नीतियां जरूरी होती हैं? यशवंत सिन्हा उन सभी से बखूबी वाकिफ हैं. वैसे, सिन्हा भारत सरकार को भी चीन के नाम पर भी घेरते रहे हैं. तो, कहा जा सकता है कि अपने ज्वलंत बयानों से वह श्रीलंका पर लदे चीनी कर्ज को खत्म करवा देंगे. क्योंकि, यशवंत सिन्हा के बयानों से चीन का झुकना तय है. और, ये बात भी हवा-हवाई नहीं है.
विदेशों से संबंध भी सुधार लेंगे
दरअसल, यशवंत सिन्हा के पास वित्त मंत्रालय के साथ ही विदेश मंत्रालय का भी अनुभव है. लिखी सी बात है कि श्रीलंका के पास अभी इतना पैसा नहीं है कि वह किसी भी तरह से अपना फॉरेन रिजर्व बढ़ा सके. इस स्थिति में श्रीलंका को ऐसे कर्ज की जरूरत होगी, जो अलग-अलग देशों से आसान शर्तों और कम ब्याज पर मिले. यशवंत सिन्हा विदेश मंत्री के तौर पर मिले अनुभव को श्रीलंका की भलाई के लिए इस्तेमाल करने से चूकेंगे नहीं. अमेरिका से लेकर यूरोप और मिडिल ईस्ट से लेकर रूस तक सिन्हा अपनी कुशल विदेश नीति के जरिये श्रीलंका के लिए सस्ते कर्ज का आसानी से जुगाड़ कर सकते हैं. और, इसके लिए उन्हें भारत के विपक्षी दलों का सहयोग भी मिलेगा. जो श्रीलंका के लिए विदेशों में लॉबिंग कर सकते हैं. इतना ही नहीं, 24 साल तक IAS के तौर पर यशवंत सिन्हा के पास एक जिले के एसडीएम पद से लेकर भारत सरकार के ज्वाइंट सेकेट्री तक के पद का भी अनुभव है.
भारत की विपक्षी पार्टियां भी देंगी श्रीलंका का साथ
लिखी सी बात है कि जिस विपक्ष की एक आवाज पर संयुक्त राष्ट्र की ओर से प्रोपेगेंडा पत्रकारों मोहम्मद जुबैर और राणा अयूब जैसों के साथ तीस्ता सीतलवाड़ जैसी गुजरात दंगों के नाम पर एनजीओ चलाने वाले के लिए बयान जारी कर दिया जाता हो. उस विपक्ष के साझा उम्मीदवार को अगर श्रीलंका मानद राष्ट्रपति बना दिया जाएगा. तो, क्या विपक्ष उन्हें बीच मझदार में छोड़ देगा? संयुक्त राष्ट्र जब पूरी दुनिया के देशों से अपील करेगा, तो श्रीलंका का आर्थिक संकट चुटकियों में खत्म हो जाएगा. क्योंकि, जो पश्चिमी देश यूक्रेन को रूस से युद्ध लड़ने के लिए अरबों डॉलर के हथियार मुफ्त में उपलब्ध करा सकते हैं. वो डूबते श्रीलंका को बचाने के लिए उसके कर्ज को भी कम करवाने का कोई रास्ता निकाल ही लेंगे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो श्रीलंका का भविष्य बहुत उज्जवल नजर आ रहा है.
फायदा तो पश्चिमी देशों का ही
वैसे, श्रीलंका की मदद करने में अमेरिका का ही फायदा है. क्योंकि, इससे सबसे पहला फायदा तो उसे यही होगा कि चीन का श्रीलंका को दिया गया कर्ज सीधे बट्टे खाते में चला जाएगा. क्योंकि, यशवंत सिन्हा मानद राष्ट्रपति के तौर पर चीन को लताड़ लगाकर जबरदस्ती दिया गया कर्ज वापस करने से इनकार कर देंगे. और, अमेरिका को क्वाड संगठन में श्रीलंका को भी शामिल करने का मौका मिल जाएगा. जिससे चीन को घेरने में आसानी हो जाएगी. खैर, भारत जैसा एक उदार हृदय वाला पड़ोसी देश पहले से ही श्रीलंका की मदद के लिए तैयार खड़ा है. तो, उसकी 'लंका' नहीं लगने दी जाएगी. लेकिन, इसके लिए श्रीलंका के ही नेताओं को बड़ा कदम उठाना होगा. और, विपक्ष के साझा राष्ट्रपति उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को अपने देश में मानद राष्ट्रपति पद का ऑफर देना चाहिए.
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