भारतीय क्रिकेट को युद्ध मान लें तो आपके जेहन में योद्धा कहते ही कौन सा चेहरा आएगा? नहीं, धोनी नहीं. वह कुशल रणनीतिकार हैं, वह दिलेर सेनापति हैं जो आगे बढ़कर मोर्चा लेता है. पर उतना ही शांत और खामोश भी रहता है. पर असली योद्धा? जिसके चेहरे पर एक आक्रामक गुर्राहट रहती हो? ऐसा कौन खिलाड़ी था? ऐसा जाबांज जो उस देश के गेंदबाज को छह छक्के उड़ा सकने की कूव्वत रखता हो, जहां क्रिकेट का जन्म ही हुआ. अब आपने सही पकड़ा, Yuvraj Singh.
अगर सौरभ गांगुली ने भारतीय क्रिकेट को लड़ने का जज्बा दिया और नख-दंत दिए थे तो उस तेवर के प्रतिनिधि क्रिकेटर युवराज सिंह थे. उसी युवराज ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास ले लिया है. यह सही है कि युवी काफी समय से भारतीय टीम से बाहर चल रहे थे. मौजूदा विश्व कप की टीम में भी उन्हें नहीं चुना गया था.
पर जब भी हम भारतीय क्रिकेट के सबसे आक्रामक और काबिल खिलाड़ियों की बात करेंगे, तो युवराज सिंह का नाम उसमें शामिल होगा. याद कीजिए, टी-20 के इतिहास का चालीसवां मैच. उस मैच से कुछेक दिन पहले ही टी-20 मैचों के इतिहास का पहली शतक मारा गया था. आयोजन वही था, टी-20 विश्व कप. क्रिकेट के इस सबसे छोटे फटाफट फॉर्मेट को बस कुछ वैसे ही प्रयोग की तरह देखा जा रहा था जैसे कुछ बरस पहले हांगकांग में हुए सुपर सिक्स के मुकाबले थे. पर उस मैच में भारत के नए-नवेले और नौजवान कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने पहले बल्लेबाजी का फैसला किया था. विकेट भी बल्लेबाजों के अनुकूल थी.
मैच के सत्रहवें ओवर में उथप्पा आउट हुए और तब आना हुआ युवराज सिंह का. धोनी पहले से ही उनका इंतज़ार कर रहे थे. यहां ज़रूरी है कि एक बार पूरी स्थिति को समझ लिया जाए. भारत 155 रन पर 3 विकेट बना चुका था. 20...
भारतीय क्रिकेट को युद्ध मान लें तो आपके जेहन में योद्धा कहते ही कौन सा चेहरा आएगा? नहीं, धोनी नहीं. वह कुशल रणनीतिकार हैं, वह दिलेर सेनापति हैं जो आगे बढ़कर मोर्चा लेता है. पर उतना ही शांत और खामोश भी रहता है. पर असली योद्धा? जिसके चेहरे पर एक आक्रामक गुर्राहट रहती हो? ऐसा कौन खिलाड़ी था? ऐसा जाबांज जो उस देश के गेंदबाज को छह छक्के उड़ा सकने की कूव्वत रखता हो, जहां क्रिकेट का जन्म ही हुआ. अब आपने सही पकड़ा, Yuvraj Singh.
अगर सौरभ गांगुली ने भारतीय क्रिकेट को लड़ने का जज्बा दिया और नख-दंत दिए थे तो उस तेवर के प्रतिनिधि क्रिकेटर युवराज सिंह थे. उसी युवराज ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास ले लिया है. यह सही है कि युवी काफी समय से भारतीय टीम से बाहर चल रहे थे. मौजूदा विश्व कप की टीम में भी उन्हें नहीं चुना गया था.
पर जब भी हम भारतीय क्रिकेट के सबसे आक्रामक और काबिल खिलाड़ियों की बात करेंगे, तो युवराज सिंह का नाम उसमें शामिल होगा. याद कीजिए, टी-20 के इतिहास का चालीसवां मैच. उस मैच से कुछेक दिन पहले ही टी-20 मैचों के इतिहास का पहली शतक मारा गया था. आयोजन वही था, टी-20 विश्व कप. क्रिकेट के इस सबसे छोटे फटाफट फॉर्मेट को बस कुछ वैसे ही प्रयोग की तरह देखा जा रहा था जैसे कुछ बरस पहले हांगकांग में हुए सुपर सिक्स के मुकाबले थे. पर उस मैच में भारत के नए-नवेले और नौजवान कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने पहले बल्लेबाजी का फैसला किया था. विकेट भी बल्लेबाजों के अनुकूल थी.
मैच के सत्रहवें ओवर में उथप्पा आउट हुए और तब आना हुआ युवराज सिंह का. धोनी पहले से ही उनका इंतज़ार कर रहे थे. यहां ज़रूरी है कि एक बार पूरी स्थिति को समझ लिया जाए. भारत 155 रन पर 3 विकेट बना चुका था. 20 गेंदें फेंकी जानी बची थीं. फ़्लिंटॉफ़ और स्टुअर्ट ब्रॉड के ओवर बचे थे. ये दोनों टी-20 मैचों के आखिरी ओवर फेंकने में उस्ताद माने ही जाते हैं.
युवराज की पहली खेली गेंद डॉट गयी. युवराज अभी क्रीज़ पर आये थे और उन्हें सेटल होने का वक़्त चाहिए था. लेकिन यहां गेंदें ही इतनी कम बची थीं कि वक़्त नहीं था. दूसरी गेंद, कवर्स के ऊपर ड्राइव और चार रन. ओवर खत्म. अब 18 गेंदें बची थीं. इंडिया 159 पर 3 विकेट.
फ़्लिंटॉफ़ चोटिल थे और धोनी को पहली गेंद. एक रन. अगली गेंद युवराज को, 1 रन. एक बूढ़ा शेर जंगल को बचाने की खातिर डटा हुआ था. नए शिकारी उससे पार पाने की फ़िराक में थे. पहली तीन गेंदों में मात्र तीन रन आये. फ़्लिंटॉफ़ रन नहीं दे रहे थे. मगर युवराज भी बस एक मौके की ताक में थे. मौका मिला ओवर की चौथी गेंद पर.
एक हाफ़ वॉली, पॉइंट के ऊपर से चार रन. बल्ले से जो आवाज़ आई वो स्टेडियम के पार्किंग लॉट में बैठे सिक्योरिटी इंचार्ज को कन्फ्यूज़ कर गयी. उसे लगा कि कहीं किसी गाड़ी का कांच टूटा है. ओवर की पांचवीं गेंद. पटकी हुई गेंद. फ़्लिंटॉफ़ युवराज को मौका नहीं देना चाहते थे. वो चोटिल थे लेकिन हारे नहीं थे. लेकिन युवराज उस दिन किसी और ही मौज में थे. गेंद के नीचे आकर हुक कर दिया. साउथ अफ्रीका के आसमान में सेंध मार दी. गेंद को नीचे उतरने में कुछ वक़्त लगा. बाउंड्री के ठीक पहले गिरी, चार रन. आखिरी गेंद, और एक सिंगल. ओवर में देखते ही देखते कुल 12 रन आ गये. अब बारह गेंदें बची हुई थीं.
लेकिन इसी बीच वो हुआ जिसे फ़्लिंटॉफ़ भूल जाना चाहेंगे. फ्लिंटॉफ और युवराज के बीच कुछ कहासुनी हुई. ओवर खत्म हो गया था. गेंद अब स्टुअर्ट ब्रॉड के हाथों में थी. कमेंट्री बॉक्स में रवि शास्त्री थे. रनर छोर पर धोनी.
पहली गेंद. लम्बी फ़ेंकी गेंद. बल्ले के आगे. लेग स्टंप की लाइन में. युवराज ने लेग साइड में रूम बनाया और गेंद के टप्पे पर बल्ले को सटा दिया. हाथों की पूरी ताकत उस शॉट में झोंक दी गयी थी. गेंद आसमान में उड़ चली. जैसे रॉकेट प्रोजेक्टाइल लेता है. थप्पड़ शॉट था ये. गेंद स्टेडियम के बाहर जाकर गिरी थी. स्टुअर्ट ब्रॉड को ये बताना था कि आखिर ऐसे समय में जब इनिंग्स खात्मे की ओर है तब ऐसी जगह पर गेंद फेंकने की ज़ुर्रत भी कैसे की. पहली गेंद और छह रन. युवराज 20 रन, सात गेंद में.
दूसरी गेंद. पहली और दूसरी गेंद के बीच में कुछ वक़्त लगा. युवराज के पैरों की लाइन में आती गेंद. इस बार लेंथ कुछ छोटी. बिना रूम बनाये एक फ्लिक. कलाइयां ऐसे घूमी जैसे चित्रकार कैनवास पर तूलिका फेरता है. गेंद बैकवर्ड स्क्वायर लेग की बाउंड्री के पार गिरी. कैमरा फ़्लिंटॉफ़ को दिखा रहा था. वो अपना सर हिला रहे थे. अविश्वास में. दूसरी गेंद और छह रन. युवराज 26 रन, आठ गेंद में.
तीसरी गेंद. लोवर फ़ुलटॉस. पर नतीजा वही. छक्का. युवराज 32 रन, नौ गेंद में.
चौथी गेंद. इस बार राउंड द विकेट. यॉर्कर के चक्कर में गेंद फुलटॉस हो गयी. ऑफ स्टम्प के बाहर. फिर से छक्का. चार छक्के लगातार. युवराज 38 रन, 10 गेंद में.
पांचवीं गेंद. गुड लेंथ के आस-पास पड़ी गेंद. पैरों की लाइन में. युवराज घुटने पर बैठ जाते हैं. बल्ला फिर गदे की तरह घूमता है. सांय की आवाज आती है. गेंद फिर से उड़ान भरती है और कुछ देर हवा में उड़ते रहने के बाद परिंदे की तरह जाकर सीमा रेखा के पार किसी पेड़ पर बैठती है. पांचवीं गेंद और फिर छह रन. युवराज 44 रन, 11 गेंद में.
छठी गेंद. स्टुअर्ट ब्रॉड चाह रहे थे कि ज़मीन फट जाए और वो उसमें समा जाएं. औवर की छठी गेंद ब्रॉड ने फेंकी जरूर पर नतीजा वही. छठी गेंद और फ़िर फ़िर छह रन. युवराज 50 रन, 12 गेंदों में. टी-20 की सबसे तेज़ हाफ़ सेंचुरी.
यह तो बस एक झलक है. एक मैच. एक ओवर.
Yuvraj Singh ने भारत के लिए 40 टेस्ट, 304 वनडे और 58 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले. भारतीय टीम को 2011 में हुए World Cup का खिताब जिताने में उनकी बड़ी भूमिका रही. गेंद और बल्ले से शानदार प्रदर्शन करते हुए उन्होंने तब इस आयोजन के सर्वश्रेष्ठा खिलाड़ी होने का श्रेय हासिल किया था.
युवराज सिंह का जीवट भी चर्चित रहा. 2011 के विश्व कप के बाद उन्हें कैंसर हो गया था. लेकिन इससे सफलतापूर्वक लड़ते हुए वे मैदान पर वापस आए. पर याद रखिए कि विश्व कप में कैसे गेंदबाजी और बल्लेबाजी से उन्होंने हडकंप मचाया था. कैसे फाइनल में जीत पर मैदान पर जार-जार रो पड़े थे.
हमारा यह योद्धा, जो असल जीवन में भी जाबांज है, भावुक भी था, आक्रामक भी. न हो तो नेट वेस्ट सीरीज़ का फाइनल ही याद कर लीजिए जब मोहम्मद कैफ के साथ इन्होंने लॉर्ड्स में तब जीत की कहानी लिख डाली थी, जब हम विजय को असंभव मानकर अपने टेलिविजन सेट्स ऑफ कर चुके थे और दशहरे के मेले में पहुंच गए थे.
युवराज सिंह को पारिभाषित करना आसान नहीं है. पर अपने करियर के खत्म होने की सूचना देते युवराज के लिए कुछेक शब्द तो बनते ही हैं- जीवट, दिलेर, जाबांज, योद्धा...और इससे मिलते-जुलते न जाने कितने ऐसे ही शब्द.
युवराज सिंह, आपको सिर्फ क्रिकेट ही पारिभाषित कर सकता है. हम आपको कभी नहीं भूलेंगे न ही वो गेंदबाज जिन्होंने आज राहत की सांस ली होगी.
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