विराट और गंभीर एक ही मिट्टी के दो घड़े हैं. फ़र्क़ इतना है कि गंभीर थोड़ा सीनियर है और विराट ज़्यादा फेमस, इन दोनों के ईगो टकराने का सिलसिला वहीं से शुरु हुआ था जब मैन ऑफ द मैच ट्रॉफी गम्भीर को मिली थी और गंभीर ने वो कोहली को ऑफर की थी. कोहली ने शिष्टाचार को किनारे रख, झट से ऑफर एक्सेप्ट कर लिया था और वहीं से गंभीर के मन में ज़रा सी खटास आ गयी. विराट की इन्हीं हरकतों की वजह से न RCB एक भी ट्रॉफी जीती है और न ही भारत को एक अरसे से कोई ICC ट्रॉफी नसीब हुई है. वहीं वर्ल्ड कप और KKR को दो ट्रॉफी जिताने वाला गौतम किसी टीम में टिककर न रह सका. फॉर्म ज़रा सी बिगड़ी नहीं की इसको सबसे पहले हटाया गया.
दिल्ली में जब इसको कैप्टेंसी से हटाकर अय्यर को कप्तान बनाया गया था, तब अय्यर ने अपने प्लेयिंग 11 में ही इसे नहीं लिया तो बस इसी एटीट्यूड की वजह से. (बाद कवरअप हुआ कि ख़ुद छोड़ी है कप्तानी और फीस भी नहीं ली - तब के मैच प्रेजेंटेशन पढ़े/सुने) इन दोनों के झगड़ने के तरीके में भी फ़र्क़ है, गंभीर भावनाओं में बहकर अग्रेसिव होता है और विराट मज़े लेने के लिए, ख़ास इंतज़ार करके, मौका देखकर चिढ़ाता है.
फिर कोई सामने से जवाब दे दे तो सच में भड़क जाता है. इन सब में नवीन-उल-हक़ का पंगे लेना समझ से परे रहा. ग्राउंड में हीट ऑफ द मोमेंट आते ही हैं, तिसपर सिराज की बदतमीज़ी, क्रीज़ के अंदर खड़े नवीन की बेल्स उड़ा देना, एक और बचकानी हरकत का नमूना था पर मैच ख़त्म होने के बाद, वहां भी नवीन का बदतमीज़ी करना, हारने के बावजूद भाव दिखाना, वो बेहद ख़राब था. एक कोच या...
विराट और गंभीर एक ही मिट्टी के दो घड़े हैं. फ़र्क़ इतना है कि गंभीर थोड़ा सीनियर है और विराट ज़्यादा फेमस, इन दोनों के ईगो टकराने का सिलसिला वहीं से शुरु हुआ था जब मैन ऑफ द मैच ट्रॉफी गम्भीर को मिली थी और गंभीर ने वो कोहली को ऑफर की थी. कोहली ने शिष्टाचार को किनारे रख, झट से ऑफर एक्सेप्ट कर लिया था और वहीं से गंभीर के मन में ज़रा सी खटास आ गयी. विराट की इन्हीं हरकतों की वजह से न RCB एक भी ट्रॉफी जीती है और न ही भारत को एक अरसे से कोई ICC ट्रॉफी नसीब हुई है. वहीं वर्ल्ड कप और KKR को दो ट्रॉफी जिताने वाला गौतम किसी टीम में टिककर न रह सका. फॉर्म ज़रा सी बिगड़ी नहीं की इसको सबसे पहले हटाया गया.
दिल्ली में जब इसको कैप्टेंसी से हटाकर अय्यर को कप्तान बनाया गया था, तब अय्यर ने अपने प्लेयिंग 11 में ही इसे नहीं लिया तो बस इसी एटीट्यूड की वजह से. (बाद कवरअप हुआ कि ख़ुद छोड़ी है कप्तानी और फीस भी नहीं ली - तब के मैच प्रेजेंटेशन पढ़े/सुने) इन दोनों के झगड़ने के तरीके में भी फ़र्क़ है, गंभीर भावनाओं में बहकर अग्रेसिव होता है और विराट मज़े लेने के लिए, ख़ास इंतज़ार करके, मौका देखकर चिढ़ाता है.
फिर कोई सामने से जवाब दे दे तो सच में भड़क जाता है. इन सब में नवीन-उल-हक़ का पंगे लेना समझ से परे रहा. ग्राउंड में हीट ऑफ द मोमेंट आते ही हैं, तिसपर सिराज की बदतमीज़ी, क्रीज़ के अंदर खड़े नवीन की बेल्स उड़ा देना, एक और बचकानी हरकत का नमूना था पर मैच ख़त्म होने के बाद, वहां भी नवीन का बदतमीज़ी करना, हारने के बावजूद भाव दिखाना, वो बेहद ख़राब था. एक कोच या मेंटर से उम्मीद की जाती है कि वो बिगड़े प्लेयर्स को सही गाइडेंस देगा, लेकिन ये सरऊ सांसद, ये इतना भड़क गया कि इसी के प्लेयर्स इसे रोक रहे हैं और ये काबू में नहीं आ रहा...
वाह! इस सारे कांड के बाद, राहुल और कोहली बात कर रहे हैं, दोनों पुराने दोस्त हैं, मैच के अंदर जो हो, बाहर तो दोस्त ही रहते हैं. अब नवीन सामने से गुज़र रहा है, राहुल, उसका कप्तान उसे बुला रहा है पर वो मना कर देता है.
भैया किस बात की अकड़ है तुझे?
कोहली ने कितने शतक मारे वो तो छोड़ ही दो, उसे खेलते ही 15 साल होने आए, गम्भीर का तो बताया ही, वर्ल्ड कप और आईपीएल ट्रॉफी सब जीता उसने, पर तेरे अदने से कद पे ऐसे कौन सितारे लगे हैं कि तू भाव खाने लगा? बादबाक़ी विराट और गम्भीर दोनों की 100% मैच फीस कट गई है, फेयर प्ले पॉइंट्स से तो इन्हें कोई लेना देना था भी नहीं, नवीन उल हक की 50% मैच फीस कटी है पर ये काफ़ी नहीं है.
गंभीर को 5 मैच और कोहली नवीन को कम से कम 2 मैच के लिए बैन करना चाहिए. साथ ही, लखनऊ को अगले आईपीएल तक इसी मेंटर को बाबा रामदेव के पास कपाल भाती करने के लिए छोड़ देना चाहिए ताकि ये गुस्सा करे भी तो सांस लेना न भूलें.
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