आईपीएल 2023 में गुजरात के खिलाफ अंतिम ओवर में 5 छक्कों की बदौलत 31 रन जुटाना और 3 विकटों से मैच अपने नाम करना भर था. क्रिकेट फैंस के बीच रिंकू - रिंकू की सदाएं गूंज रही हैं. चाहे वो रणवीर सिंह और शाहरुख़ खान जैसे सितारें रहे हों, या फिर देश का आम आदमी, जिस तरहबीते दिन स्टेडियम में रिंकू के बल्ले ने आग उगली हैरत में हर आदमी है. चर्चा तेज हो गयी है कि यदि रिंकू ने ऐसा ही प्रदर्शन आगे भी बरक़रार रखा तो शायद ही कोई उन्हें या उनके खेल को पकड़ पाए. इस बात में कोई शक नहीं है कि रिंकू ने अपने खेल की बदौलत इतिहास रचा है लेकिन सोशल मीडिया को इससे कोई मतलब नहीं है.रिंकू के मामले में दुर्भाग्यपूर्ण ये देखना है कि सोशल मीडिया विशेषकर ट्विटर पर रिंकू का खेल नहीं बल्कि उनकी जाति सुर्ख़ियों में है.
तमाम पोस्ट / ट्वीट ऐसे आए हैं जिनमें लोग रिंकू की जाति को आधार बना रहे हैं और उससे अपने आप को जोड़ रहे हैं. भले ही रिंकू को बधाइयों का तांता लगा हो मगर जैसा लोगों का रवैया है उन्हें रिंकू में जाट, ब्राह्मण, ठाकुर, दलित तो दिख रहा है. लेकिन अगर उन्हें रिंकू के अंदर एक मेहनतकश खिलाडी दिखता तो शायद बात कुछ और रहती.
रिंकू की जाति को मुद्दा बनाकर अनर्गल बातों का प्रपंच करने वाले इस बात को समझ लें कि गुजरात के खिलाफ 5 छक्कों ने भले ही एक खिलाड़ी के रूप रिंकू की ज़िन्दगी बदल दी हो. मगर जिस मुकाम पर रिंकू आज...
आईपीएल 2023 में गुजरात के खिलाफ अंतिम ओवर में 5 छक्कों की बदौलत 31 रन जुटाना और 3 विकटों से मैच अपने नाम करना भर था. क्रिकेट फैंस के बीच रिंकू - रिंकू की सदाएं गूंज रही हैं. चाहे वो रणवीर सिंह और शाहरुख़ खान जैसे सितारें रहे हों, या फिर देश का आम आदमी, जिस तरहबीते दिन स्टेडियम में रिंकू के बल्ले ने आग उगली हैरत में हर आदमी है. चर्चा तेज हो गयी है कि यदि रिंकू ने ऐसा ही प्रदर्शन आगे भी बरक़रार रखा तो शायद ही कोई उन्हें या उनके खेल को पकड़ पाए. इस बात में कोई शक नहीं है कि रिंकू ने अपने खेल की बदौलत इतिहास रचा है लेकिन सोशल मीडिया को इससे कोई मतलब नहीं है.रिंकू के मामले में दुर्भाग्यपूर्ण ये देखना है कि सोशल मीडिया विशेषकर ट्विटर पर रिंकू का खेल नहीं बल्कि उनकी जाति सुर्ख़ियों में है.
तमाम पोस्ट / ट्वीट ऐसे आए हैं जिनमें लोग रिंकू की जाति को आधार बना रहे हैं और उससे अपने आप को जोड़ रहे हैं. भले ही रिंकू को बधाइयों का तांता लगा हो मगर जैसा लोगों का रवैया है उन्हें रिंकू में जाट, ब्राह्मण, ठाकुर, दलित तो दिख रहा है. लेकिन अगर उन्हें रिंकू के अंदर एक मेहनतकश खिलाडी दिखता तो शायद बात कुछ और रहती.
रिंकू की जाति को मुद्दा बनाकर अनर्गल बातों का प्रपंच करने वाले इस बात को समझ लें कि गुजरात के खिलाफ 5 छक्कों ने भले ही एक खिलाड़ी के रूप रिंकू की ज़िन्दगी बदल दी हो. मगर जिस मुकाम पर रिंकू आज पहुंचे हैं वहां पहुंचना आसान नहीं है.
चूंकि दुनिया का दस्तूर यही है कि जब इंसान कामयाब होता है तो उसके बारे में खूब बातें होती हैं. लोग उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं. रिंकू के साथ भी ऐसा ही हुआ है. मीडिया के कैमरों ने रिंकू को घेर लिया है. हर कोई उनसे कामयाबी का मूल मंत्र सीखना चाह रहा है.
रिंकू सिंह कैसे इस मुकाम पर पहुंचे? इसे समझने के लिए हमें उस वीडियो को देखना होगा जो कोलकाता नाईट राइडर्स ने यूट्यूब पर पोस्ट किया है. इस वीडियो में रिंकू ने अपने क्रिकेट करियर के शुरूआती दिनों पर बात की है और बतायाहै कि कैसे तमाम चुनौतियां थीं जिनको पार लगाते हुए आज वो इस मुकाम पर पहुंचे हैं.
ध्यान रहे रिंकू यूपी के अलीगढ़ के एक ऐसे परिवार से आते हैं जहां संसाधनों के नाम पर यदि कुछ है तो सिर्फ और सिर्फ संघर्ष हैं. परिवार भी कैसा है इसे ऐसे समझिये कि परिवार में पिता हॉकर हैं. मां हाउस वाइफ क्योंकि रिंकू के कई भाई थे और पिता अकेले ही सबकी चटनी रोटी का भार अपने कंधों पर उठाए थे तो उन्हें कभी भी रिंकू का क्रिकेट खेलना अच्छा नहीं लगा.
पिता यही चाहते थे कि जब वो इतनी मेहनत से कमा रहे हैं तो बच्चे भी पढ़ाई करें. शायद आपको जानकार हैरत हो, रिंकू के जीवन में कई मौके ऐसे भी आए जब उन्हें सिर्फ इसलिए पिता द्वारा बुरी तरह मारा गया क्योंकि उनके हाथ में बल्ला था और वो कहीं से मैच खेलकर आए थे. रिंकू का मामला देखते हुए हमें इस बात को भी अपने जेहन में रखना होगा कि उसके घर वालों को उसका क्रिकेट इसलिए भी नहीं पसंद था क्योंकि वो लोग बेहद गरीब थे, उनके सामने चुनौती रोटी थी. हर वक़्त प्रश्न ये रहता था कि चलो आज का तो हो गया अब आगे क्या होगा?
खेल के लिहाज से कभी भी रिंकू को अपने पिता का समर्थन नहीं मिला, हां लेकिन अच्छी बात ये रही कि वो अपनी मां को समझाने में कामयाब हुए और उनके जीवन में कुछ एक मौके ऐसे भी आए जब टूर्नामेंट की एंट्री फीस देने के लिए उनकी मां ने आस पड़ोस के लोगों से पैसे उधार लिए.
आज हम भले ही रिंकू की तारीफों के पुल बांध रहे हों लेकिन भारत जैसे देश में एक गरीब परिवार में पैदा हुए बच्चे का खेल की दुनिया में जाना आसान नहीं है. खुद सोचिये जो लड़का अपनी प्रैक्टिस के लिए अच्छे स्टेडियम नहीं जा सकता यदि वो कामयाब हुआ है तो कारण बस ये है कि उसने खूब मेहनत की और हमेशा अपने लक्ष्य का पीछा किया.
अपने इंटरव्यू में रिंकू ने इस बात को भी बताया है कि, मैं बहुत ज़्यादा पढ़ नहीं पाया इसलिए कहीं न कहीं सारी उम्मीदें क्रिकेट से ही थीं, मुझे विश्वास था कि यही मुझे आगे ले जाएगा. बस फिर पूरा फ़ोकस और मेहनत खेल में लगा दिए और आज लग रहा कि मेरी मेहनत सफल हुई है."
रिंकू का परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहा था इसलिए रिंकू ने नौकरी करने का भी फैसला किया. उन्हें एक कोचिंग सेंटर में झाड़ू-पोछा लगाने का काम मिल गया. लेकिन उनका दिल क्रिकेट में ही लगा रहता था. इसलिए उन्होंने नौकरी नहीं की और तमाम तरह की आलोचना का सामना करते हुए अपना सारा ध्यान क्रिकेट में ही लगाया. कह सकते हैं कि भले ही आज अपने अंतिम ओवर में 5 छक्के मारने के बाद रिंकू सिंह सुर्ख़ियों में आए हों लेकिन जैसा उनका जीवन रहा उन्होंने समय समय पर छक्के जड़े और आगे बढ़ते गए.
बाकी विषय रिंकू की जाति से शुरू हुआ तो यदि हम रिंकू के जीवन को देखें तो उसमें हमें तमाम रंग दिखते हैं. चाहे वो कोच के रूप में मसूद अमिनी रहे हों या फिर मोहम्मद ज़ीशान, अर्जुन सिंह फकीरा स्वप्निल जैन और अनिल सिंह इन सभी लोगों ने रिंकू के टैलेंट को न केवल पहचाना बल्कि उसे आगे बढ़ाया. कुल मिलाकर रिंकू का जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा है जिनमें आगे बढ़ने की ललक है और जो बिना रुके मेहनत का दामन थामे आगे जाना चाहते हैं.
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