कहावत है घर की मुर्गी दाल बराबर और यही हम भारतवासियों का हाल है. आज से तक़रीबन पांच साल पहले मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी बैतूल में पहली बार किसी बच्चे को सबसे ज्यादा कचरा उठाने पर प्रथम पुरस्कार दिया गया था. शहरवासियों में स्वच्छता के प्रति अलख जगाने के लिए नगर पालिका द्वारा गार्बेज रन का आयोजन किया गया था और एक आदिवासी बच्चे दुर्गेश ने 45 मिनट में सर्वाधिक 3 किलो 370 ग्राम सूखा कचरा एकत्रित किया था.
स्पर्धा का उद्देश्य लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें सूखे एवं गीले कचरे की पहचान भी करना था. इस प्रतिस्पर्धा में 200 से अधिक युवक-युवतियों ने हिस्सा लिया था. स्पर्धा में दौड़ के लिए तीन स्थल चयनित किए गए थे. 45 मिनट की इस दौड़ में युवाओं को सूखा कचरा यानि (कागज, प्लास्टिक, पन्नी, डिस्पोजल) एकत्रित करना था. सभी को नगरपालिका द्वारा कचरा एकत्रीकरण करने के लिए बैग भी दिए थे. स्पर्धा के समाप्त होने के बाद युवाओं द्वारा बैग में लाए गए कचरे का इलेक्ट्रॉनिक कांटे की मदद से तौल किया गया. तब कुल 263 किलो कचरा स्पर्धा के दौरान सभी प्रतिभागियों द्वारा एकत्रित किया गया था लेकिन इसमें सर्वाधिक कचरा दुर्गेश ने एकत्रित कर विजेता का खिताब जीता.
तब मध्यप्रदेश के बैतूल की इस अनोखी इनोवेशन का देश में अनुसरण हुआ हो या नहीं, उस दौरान एक जापानी टूरिस्ट की क्लिपों को जापान में ज़रूर देखा गया था. वही क्लिपें आज इस इनोवेटिव खेल स्पोगोमी (Spo-Gomi) की प्रेरणा स्रोत हैं. जी हां, इसी साल नवंबर से यहां एक खेल की शुरुआत होगी, जिसका नाम है स्पोगोमी. स्पोगोमी में स्पोर्ट्स के स्पो की संधि गोमी से कर दी गयी है जिसका अर्थ होता है कचरा (rubbish). यानी कचरा बीनने की...
कहावत है घर की मुर्गी दाल बराबर और यही हम भारतवासियों का हाल है. आज से तक़रीबन पांच साल पहले मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी बैतूल में पहली बार किसी बच्चे को सबसे ज्यादा कचरा उठाने पर प्रथम पुरस्कार दिया गया था. शहरवासियों में स्वच्छता के प्रति अलख जगाने के लिए नगर पालिका द्वारा गार्बेज रन का आयोजन किया गया था और एक आदिवासी बच्चे दुर्गेश ने 45 मिनट में सर्वाधिक 3 किलो 370 ग्राम सूखा कचरा एकत्रित किया था.
स्पर्धा का उद्देश्य लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें सूखे एवं गीले कचरे की पहचान भी करना था. इस प्रतिस्पर्धा में 200 से अधिक युवक-युवतियों ने हिस्सा लिया था. स्पर्धा में दौड़ के लिए तीन स्थल चयनित किए गए थे. 45 मिनट की इस दौड़ में युवाओं को सूखा कचरा यानि (कागज, प्लास्टिक, पन्नी, डिस्पोजल) एकत्रित करना था. सभी को नगरपालिका द्वारा कचरा एकत्रीकरण करने के लिए बैग भी दिए थे. स्पर्धा के समाप्त होने के बाद युवाओं द्वारा बैग में लाए गए कचरे का इलेक्ट्रॉनिक कांटे की मदद से तौल किया गया. तब कुल 263 किलो कचरा स्पर्धा के दौरान सभी प्रतिभागियों द्वारा एकत्रित किया गया था लेकिन इसमें सर्वाधिक कचरा दुर्गेश ने एकत्रित कर विजेता का खिताब जीता.
तब मध्यप्रदेश के बैतूल की इस अनोखी इनोवेशन का देश में अनुसरण हुआ हो या नहीं, उस दौरान एक जापानी टूरिस्ट की क्लिपों को जापान में ज़रूर देखा गया था. वही क्लिपें आज इस इनोवेटिव खेल स्पोगोमी (Spo-Gomi) की प्रेरणा स्रोत हैं. जी हां, इसी साल नवंबर से यहां एक खेल की शुरुआत होगी, जिसका नाम है स्पोगोमी. स्पोगोमी में स्पोर्ट्स के स्पो की संधि गोमी से कर दी गयी है जिसका अर्थ होता है कचरा (rubbish). यानी कचरा बीनने की प्रतियोगिता.
इस प्रतियोगिता में खिलाड़ी टोक्यो शहर की सड़कों से पांच साल पहले बैतूल की गार्बेज रन की तर्ज पर ही कचरा बीनते दौड़ेंगे. हां, कुछ संशोधन कर दिए गए हैं प्रारूप में ; प्रथम टीम स्पर्धा होगी, प्रत्येक टीम में 3 से 5 प्रतिभागी होंगे. उन्हें शहर के तय किए गए इलाकों में कचरा बीनना होगा. हर टीम के लिए एक घंटे की समय सीमा होगी. साथ ही इस खेल में कूड़े को व्यवस्थित ढंग से उठाने का नियम भी है जिसके तहत जलने वाला कूड़ा, रीसाइकिल होने वाला, मेटल कैन आदि को अलग-अलग इकट्ठा करना है और अलग अलग रंग के बैग में डालना है. टाइम खत्म होने पर, जिसका कूड़ा वजन अनुसार सबसे ज्यादा होगा वह टीम जीत जाएगी. टाय की स्थिति में कूड़े की गुणवत्ता वाला फैक्टर लागू होगा यानी जिस टीम ने ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले कूड़े को ज्यादा इकठ्ठा किया है, उसे ज्यादा पॉइंट मिलेंगे. जीतने वाली टीम को सर्टिफिकेट, ट्रॉफी और स्पॉन्सर की तरफ से कुछ रुपये भी मिलेगें.
पायलट रूप इस स्पोर्ट्स का फुटबॉल वर्ल्ड कप के दौरान देखने को मिला था, खूब सराहा भी गया था. चूंकि उद्देश्य महान है लोगों को सार्वजनिक स्थलों को स्वच्छ रखने के लिए जागरूक करना, कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि नवंबर 2023 में जापान के टोक्यो में शुरू होने वाले स्पोर्ट्स को इतना हाइप मिल जाए कि एक विश्व स्तरीय प्रतियोगिता के प्रारूप की कल्पना साकार हो उठे. खैर! जो भी हो, क्रेडिट तो इंडिया के बैतूल शहर को मिलना चाहिए. लेकिन मिलेगा, संदेह है. यहां तो लोग लगे थे स्वच्छता अभियान का मखौल उड़ाने में, जबकि जापान ने सिर्फ नामकरण कर बैतूल के गार्बेज रन के कांसेप्ट को हथिया लिया और एक प्रकार से पेटेंट ही अपने नाम कर लिया.
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