मेरे लिए सचिन तेंडुलकर के लिए अपने प्यार को शब्दों में बयान करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
जनता से सबसे ज्यादा प्यार पाने वाला भारतीय है सचिन. सचिन का नाम लो और उनके फैन्स की लाइन लग जाती है. लेकिन फिर भी, सचिन नाम पर कोई भी चमकता, धुआंधार रिकॉर्ड नहीं जुड़ा है. उन्होंने कभी आखिरी गेंद छक्के नहीं लगाए, कोई बड़ा फाइनल नहीं अपने कंधों पर नहीं जीता. लेकिन फिर भी सचिन को लोग दिलोजान से प्यार करते हैं. उसके पीछे सचिन की कड़ी मेहनत, ईमानदारी, मशीन के जैसी उनकी जीतने और खुद को संभालने की क्षमता ही कारण है.
मैं अक्सर सोचता हूं कि आखिर लोग सचिन को इतना प्यार क्यों करते हैं? सचिन में ऐसा क्या है जो लोग उनके लिए पागल हैं? इसके पीछे कारण अगर रिकॉर्ड तोड़ने और लगातार नई ऊंचाइयां पाना है तो इस मामले अजहरुद्दीन, सचिन से कहीं आगे हैं. अजहर हर क्रिकेट रिकॉर्ड में टॉप पर थे. अगर बात अपने दम पर मैचों में जीत दिलाने की थी तो सचिन ने ऐसी बहुत पारियां नहीं खेलीं जिसके बारे में बात की जा सके. मैं सचिन से ज्यादा मैचों की लिस्ट तो सहवाग के इनिंग्स की बना सकता हूं जिसमें उन्होंने अकेले, अपने दम पर भारत के लिए मैच जीताए हैं. हो सकता है कि हम सचिन को इसलिए प्यार करते हैं क्योंकि वो एक आदर्श भारतीय बालक हैं. एक ऐसा इंसान जिसे युवा एक रोल मॉडल की तरह देखते हैं, बूढ़े लोग जिसे प्यार करते हैं, और वयस्क एक अच्छे दोस्त की तरह उसके साथ बुढ़े हो सकते हैं.
यही कारण है कि हम सचिन के बारे में इतने भावुक हैं. इतने ज्यादा पज़ेसिव की सचिन के लिए शायद सात समंदर भी पार करने में गुरेज़ न करें. एक स्टैंड-अप कॉमेडियन के तौर पर मैं, धर्म, राजनीति और सेक्स पर कटाक्ष कर सकता हूं- लेकिन अगर कभी सचिन का मजाक उड़ाता हूं तो कमरे में बैठे हर इंसान का असहज हो जाना साफ दिख जाता है. एक अजीब सी शांति और तनावपूर्ण माहौल हो जाता है.
यही कारण है कि क्रिकेट के कुछ बेहतरीन जानकार यूट्यूब पर इस बहस में शामिल हैं कि सबसे महान बल्लेबाज कौन थे. यही कारण है कि हम हम...
मेरे लिए सचिन तेंडुलकर के लिए अपने प्यार को शब्दों में बयान करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
जनता से सबसे ज्यादा प्यार पाने वाला भारतीय है सचिन. सचिन का नाम लो और उनके फैन्स की लाइन लग जाती है. लेकिन फिर भी, सचिन नाम पर कोई भी चमकता, धुआंधार रिकॉर्ड नहीं जुड़ा है. उन्होंने कभी आखिरी गेंद छक्के नहीं लगाए, कोई बड़ा फाइनल नहीं अपने कंधों पर नहीं जीता. लेकिन फिर भी सचिन को लोग दिलोजान से प्यार करते हैं. उसके पीछे सचिन की कड़ी मेहनत, ईमानदारी, मशीन के जैसी उनकी जीतने और खुद को संभालने की क्षमता ही कारण है.
मैं अक्सर सोचता हूं कि आखिर लोग सचिन को इतना प्यार क्यों करते हैं? सचिन में ऐसा क्या है जो लोग उनके लिए पागल हैं? इसके पीछे कारण अगर रिकॉर्ड तोड़ने और लगातार नई ऊंचाइयां पाना है तो इस मामले अजहरुद्दीन, सचिन से कहीं आगे हैं. अजहर हर क्रिकेट रिकॉर्ड में टॉप पर थे. अगर बात अपने दम पर मैचों में जीत दिलाने की थी तो सचिन ने ऐसी बहुत पारियां नहीं खेलीं जिसके बारे में बात की जा सके. मैं सचिन से ज्यादा मैचों की लिस्ट तो सहवाग के इनिंग्स की बना सकता हूं जिसमें उन्होंने अकेले, अपने दम पर भारत के लिए मैच जीताए हैं. हो सकता है कि हम सचिन को इसलिए प्यार करते हैं क्योंकि वो एक आदर्श भारतीय बालक हैं. एक ऐसा इंसान जिसे युवा एक रोल मॉडल की तरह देखते हैं, बूढ़े लोग जिसे प्यार करते हैं, और वयस्क एक अच्छे दोस्त की तरह उसके साथ बुढ़े हो सकते हैं.
यही कारण है कि हम सचिन के बारे में इतने भावुक हैं. इतने ज्यादा पज़ेसिव की सचिन के लिए शायद सात समंदर भी पार करने में गुरेज़ न करें. एक स्टैंड-अप कॉमेडियन के तौर पर मैं, धर्म, राजनीति और सेक्स पर कटाक्ष कर सकता हूं- लेकिन अगर कभी सचिन का मजाक उड़ाता हूं तो कमरे में बैठे हर इंसान का असहज हो जाना साफ दिख जाता है. एक अजीब सी शांति और तनावपूर्ण माहौल हो जाता है.
यही कारण है कि क्रिकेट के कुछ बेहतरीन जानकार यूट्यूब पर इस बहस में शामिल हैं कि सबसे महान बल्लेबाज कौन थे. यही कारण है कि हम हम क्रिकेटर को चैलेंज करते हैं और कहते हैं भारत की पीच पर आकर खेले फिर चाहे वो - विव रिचर्ड्स हों या फिर डोडा गणेश. इसके बाद देखेंगे कि सबसे महान बल्लेबाज कौन है!
जब बात सचिन तेंडुलकर की हो तो हम अत्यधिक संवेदनशील हो जाते हैं.
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हो सकता है कि सचिन के मामले बहुत सारे "फिल्मी" यादें, क्षण न हों- लेकिन इस लिस्ट में सबसे उपर एक मूमेंट है.
ठीक 21 साल पहले, इसी दिन, एक पर्फेक्ट बॉलीवुड फिल्म की तरह की पारी हम भारतीयों के सामने खेली गई. 90 के दशक की लुगदी सिनेमाओं की तरह, इस दिन हमारे हीरो का जन्मदिन भी था!
इस आर्टिकल को बेहतर तरीके से समझने के लिए, आपके 90 के दशक आखिरी कुछ सालों के बारे में अच्छा खासा आइडिया होना चाहिए. कुछ महीने पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में बहुमत पा लिया. ऐसी कमजोर सरकार जो कभी भी गिर सकती थी.
भारत में लोगों के पास पैसे आने लगे थे और अब रंगीन टीवी क्लास की निशानी नहीं थे. केबल टीवी ने दूरदर्शन के वर्चस्व को खत्म कर दिया था. सेंसरशिप ने अपने जहरीले डंक फैलाए नहीं थे, और युवा बायोलॉजी के चैप्टर पढ़ने के बाद एफटीवी के सामने बैठ सकते थे.
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ त्रिकोणीय टूर्नामेंट खेला जा रहा था. इस समय तक सचिन को भगवान का दर्जा नहीं मिला था. हालांकि कई लेखों में अक्सर "दुनिया के तीन सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों- सचिन, लारा और पोंटिंग" इस वाक्य का प्रयोग किया जाता था. इसी दिन, ठीक 21 साल पहले सचिन ने खुद को सर्वश्रेष्ठ, दि बेस्ट के रूप में स्थापित किया.
मैं स्कूल में पढ़ने वाला लड़का था और युवावस्था की दहलीज पर खड़ा था. सचिन और अजहर जैसे पुराने भगवानों के साम्राज्य पर रवीना टंडन और माधुरी दीक्षित जैसी नई देवियों अपना दावा कर रही थीं. मेरे परिवार में क्रिकेट को एक बेकार, कामचोरी और फालतू का काम माना जाता था. और मुझे इसके चंगुल से बचाने के लिए पास के ही साईं बाबा मंदिर में भेजा गया, ताकि ध्यान सही जगह लगाउं. टेलीविजन को बंद कर दिया गया था. इसका मतलब ये था कि मुझे क्रिकेट की सारी घटनाओं के बारे में जानकारी रखने के लिए रेडियो का सहारा लेना होगा.
टीवी देखना एक सामाजिक अनुभव है. दोस्तों, परिवार और खुब सारा शोर. लेकिन रेडियो सूनना एक बहुत ही व्यक्तिगत अनूभुति है. इसके लिए आपको अपने कल्पना की उड़ानों को हमेशा उंचा और सक्रिय रखने की ज़रूरत है! मुझे फील्ड पोजिशन के नामों को सीखना पड़ा. जैसे ही कमेंटेटर चीखता "मिड ऑन की तरफ उठा दिया और ये लगा बीएसएनएल चौका!" और ये पूरी तस्वीर मुझे अपने दिमाग में बनानी पड़ती.
लेकिन अगर आप अपनी आंखें बंद करके उस कमंट्री को ध्यान से सुनते हैं तो बैकग्राउंड में मैदान में मौजूद दर्शकों की भीड़ के शोर को भी सुन सकते हैं.
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उस गर्मी के मौसम में एक महागाथा को दो भागों में लिखा गया था.
पहली बार 22 अप्रैल 1998 को. इस मैच में भारत को शारजाह में कोका कोला कप के फाइनल पहुंचने और जीतने के लिए 254 रन चाहिए थे. सचिन पर जैसे माता सवार हो गई थी. उन्होंने 143 रनों की शानदार पारी खेली जिसे अंपायर के एक विवादास्पद फैसले ने समय से पहले ही खत्म कर दिया.
और फिर दो दिन बाद 24 अप्रैल 1998, ये फाइनल था. अब मैंने रेडियो का साथ छोड़ दिया और रंगीन टीवी का जुगाड़ कर लिया. भारत में शॉपिंग मॉल के आने के पहले किराना स्टोर वाले ही थे जिनकी दुकानों पर सामान खरीदने वाले नहीं बल्कि मैच देखने वालों का तांता लगा रहता. और वो दुकान वाले भी अपनी रंगीन टीवी को बाहर की तरफ करके ऑन कर देते ताकि लोग मैच देख सकें.
उस रात जब सचिन बल्लेबाजी करने उतरे तो माहौल ही अलग था. टोनी ग्रेग की कमेंट्री अपने शबाब पर थी. और स्टीव बकनर और जावेद अख्तर अंपायर की भूमिका में थे. सचिन ने ड्राइव किया, कट शॉट खेला. ये सब तब जब सचिन लॉफ्टेड स्ट्रेट ड्राइव भी पूरी आसानी से, मक्खन की तरह लगा सकते थे. अपने इस शॉट को सचिन ने ऑस्ट्रेलिया के लगभग हर गेंदबाज के खिलाफ खेला और अपने लगातार दूसरे शतक के साथ भारत को जीत दिला दी.
24 अप्रैल 1998 को, सचिन ने शतक बनाया. मैच जीता. प्लेयर ऑफ द सीरीज का ईनाम जीता. खुद के लिए एक ओपल एस्ट्रा जीती, और इस दिन 26 साल के हुए.
कुछ ही सालों में, मैच फिक्सिंग का बदनुमा दाग जेंटलमैन्स गेम को कटघरे में खड़ा करेगा. भारत, क्रिकेट की महाशक्ति बनेगा. सचिन के आगे उनका एक लंबा, पूरा करियर होगा. लेकिन उस रात के बाद भी किसी ने सचिन, लारा या पोंटिंग के बारे में कभी सवाल नहीं किया.
21 साल पहले इस रात को भारत के पास कुछ ऐसा था जो दुनिया की किसी भी चीज़, किसी भी इंसान और किसी भी जगह से बहुत ही ज्यादा बेहतर था.
हैप्पी बर्थ डे सचिन!
अब एक झलक सचिन की उस महान यादगार पारी :
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