18 अप्रैल 2016 को जब दीपा कर्माकर को रियो ओलिंपिक का टिकट मिला था तब शायद ही किसी को उम्मीद रही होगी की 22 वर्षीया यह लड़की रियो ओलिंपिक में भारतीय पदक की सबसे बड़ी उम्मीद बन जाएगी. मगर चट्टानी इरादों और जी तोड़ मेहनत से दीपा ने वो कर दिखाया जो आने वाली कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी.
दीपा भले ही ओलिंपिक में कुछ पॉइंट्स के कारण पदक नहीं जीत पाई हो मगर हम भारतियों के लिए तो दीपा का क्वालीफाई करना ही ऐतहासिक पल था, क्योंकि दीपा से पहले आज तक किसी भी भारतीय महिला जिम्नास्ट ने ओलिंपिक में क्वालीफाई ही नहीं किया था. जिम्नास्ट में भारत के तरफ से क्वालीफाई करने वाले सारे 11 पुरुष ही थे.
इसे भी पढ़ें: जिमनास्टिक देखने के लिए इस देश ने अपनी नींद कब खराब की थी?
बाधाओं से लड़ कर पाया मुकाम
आज दीपा जिस मुकाम पर है वह उसके और उसके परिवार वालों की कई वर्षों की अथक मेहनत का नतीजा है. भारत जैसे देश जहाँ ना तो जिम्नास्टिक को लेकर कोई खास इंफ्रास्ट्रक्चर है और ना ही देश में इस खेल से जुड़े ज्यादा लोग, ऐसे में इस खेल पर अपना पूरा जीवन लगाना किसी बहुत बड़े रिस्क से कम ना था.
दीपा कर्माकर |
हिंदी की बहुत ही पुरानी कहावत है कि पूत के पांव पालने में ही पहचाने जाते हैं, मगर दीपा के जिम्नास्टिक शुरू करने में जो सबसे बड़ी बाधा थी वो दीपा के पांव ही थे. पांच वर्षीया दीपा जब जिम्नास्टिक का ट्रेनिंग लेने स्पोर्ट्स...
18 अप्रैल 2016 को जब दीपा कर्माकर को रियो ओलिंपिक का टिकट मिला था तब शायद ही किसी को उम्मीद रही होगी की 22 वर्षीया यह लड़की रियो ओलिंपिक में भारतीय पदक की सबसे बड़ी उम्मीद बन जाएगी. मगर चट्टानी इरादों और जी तोड़ मेहनत से दीपा ने वो कर दिखाया जो आने वाली कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी.
दीपा भले ही ओलिंपिक में कुछ पॉइंट्स के कारण पदक नहीं जीत पाई हो मगर हम भारतियों के लिए तो दीपा का क्वालीफाई करना ही ऐतहासिक पल था, क्योंकि दीपा से पहले आज तक किसी भी भारतीय महिला जिम्नास्ट ने ओलिंपिक में क्वालीफाई ही नहीं किया था. जिम्नास्ट में भारत के तरफ से क्वालीफाई करने वाले सारे 11 पुरुष ही थे.
इसे भी पढ़ें: जिमनास्टिक देखने के लिए इस देश ने अपनी नींद कब खराब की थी?
बाधाओं से लड़ कर पाया मुकाम
आज दीपा जिस मुकाम पर है वह उसके और उसके परिवार वालों की कई वर्षों की अथक मेहनत का नतीजा है. भारत जैसे देश जहाँ ना तो जिम्नास्टिक को लेकर कोई खास इंफ्रास्ट्रक्चर है और ना ही देश में इस खेल से जुड़े ज्यादा लोग, ऐसे में इस खेल पर अपना पूरा जीवन लगाना किसी बहुत बड़े रिस्क से कम ना था.
दीपा कर्माकर |
हिंदी की बहुत ही पुरानी कहावत है कि पूत के पांव पालने में ही पहचाने जाते हैं, मगर दीपा के जिम्नास्टिक शुरू करने में जो सबसे बड़ी बाधा थी वो दीपा के पांव ही थे. पांच वर्षीया दीपा जब जिम्नास्टिक का ट्रेनिंग लेने स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया गयीं तब अथॉरिटी ने दीपा को ट्रेंनिंग देने से यह कहते हुए मना कर दिया की उसके पैर एक जिम्नास्ट बनने लायक नहीं है, और ऐसे में वो एक जिम्नास्ट तो बिलकुल भी नहीं बन सकती. दीपा के पैर फ्लैट थे, फ्लैट फुट के कारण पैरों में ज्यादा लचीलापन नहीं रहता जबकि एक जिम्नास्ट के लिए पैरों में लचीलापन होना बहुत ही जरुरी होता है. मगर जब इरादे चट्टानी हो तो राह में आने वाली हर बाधा का मुक़ाबला किया जा सकता है, दीपा ने भी अपनी कमी को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत की और आज उसका परिणाम सबके सामने है.
इसे भी पढ़ें: रियो ओलंपिक में भारत के खराब प्रदर्शन के जिम्मेदार राजनेता हैं, खिलाड़ी नहीं!
जान की बाजी लगाकर किया फाइनल में क्वालीफाई
दीपा के फाइनल तक के सफर पर पूरा देश गौरवान्वित हो रहा है. दीपा ने यहाँ तक पहुँचने के लिए जिम्नास्ट का सबसे जानलेवा माना जाने वाला प्रदुनोवा स्टंट किया था. प्रदुनोवा कितना खतरनाक है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रियो-2016 में ऐसा करने वाली दीपा एकमात्र जिम्नास्ट रहीं और आज तक इसे केवल पांच महिला जिम्नास्ट ही करने में सफल हुई हैं. और तो और कल हुए फाइनल में गोल्ड मेडल जीतने वाली सिमोन बॉल्स ने यह कहते हुए इस स्टंट करने से मना कर दिया था वो यहाँ खेलने आयी ना की मरने.
Hello everyone, very happy to connect with you all today through my team. Happy Independence Day! pic.twitter.com/6AW11EPPRe
— Dipa Karmakar (@DipaKarmakar) August 15, 2016
आज पूरे देश में दीपा की चर्चा हो रही है. आम से खास लोग सभी दीपा को उसकी उपलब्धि पर बधाइयां दे रहा है. दीपा ने भी ट्विटर पर एक विडियो पोस्ट कर तमाम शुभकामनायों के लिए सभी लोगों का आभार जताया है. तमाम विपरीत परिस्थियों को झेलते हुए दीपा आज जिस मुकाम तक पहुंची है, उससे देशवासियों को उनसे आगे भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद होगी और दुआएं भी कि रियो में पदक चूकने की भरपाई दीपा अगले ओलिंपिक में गोल्ड से कर दे.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.