1980 का दशक एक अजब जवांमर्दी का दौर था. रेट्रोसेक्शुअल ऊर्जा उफनी रहती थी. उस दौर के लोकप्रिय पुरुष घेर वाली पतलून पहनते थे. उनके लम्बे घुंघराले बाल कंधों पर जलप्रपात की तरह गिरते. छाती उघड़ी होती. ये पुरुष विनम्रता और सौम्यता की प्रतिमूर्ति नहीं थे, किंतु वो अपने हुनर और सिफ़त का गर्वीला इश्तेहार ज़रूर हुआ करते थे, जिसके सामने दुनिया सिर झुकाती थी. वो मार्केज़, कास्त्रो, सोक्रेटीज़, जैक्सन, निकलसन, मैकेनरो, ट्रवोल्टा, रिचर्ड्स और माराडोना का ज़माना था. डिएगो माराडोना (Diego Maradona) से पहले पेले फ़ुटबॉल का ख़ुदा था. उसके बाद में भी फ़ुटबॉल की दुनिया में अनेक देवता पैदा हुए, जिन्होंने अपनी श्रेष्ठता का चर्चा छिड़ने पर अपने द्वारा जीते गए ख़िताबों और दाग़े गए गोलों की तरफ़ इशारा किया. पर माराडोना ने फ़ुटबॉल के मैदान पर जिस करिश्मे, उन्माद और भावोद्रेक को जन्म दिया, वह उससे पहले और बाद में कभी नहीं हुआ. माराडोना ने किंवदंतियां रचीं और किंवदंतियों को जीया. उसका जीवन किसी लिहाज़ से बेदाग़ नहीं था, पर उसने कभी इसकी परवाह भी नहीं की. वह फ़ुटबॉल की दुनिया का क्लॉउस किन्स्की था, जिसे फ़्लॉड जीनियस कहा जाता है. हमारे ज़ेहन के किसी कोने में इस आवारा ख़याल को जन्म देने वाला कि खरे सोने से भले गहने बनते हों, आदमी जिस मिट्टी से बनता है वो तो अनगढ़ और सच्ची ही होती है.
डिएगो माराडोना हद दर्ज़े का जुझारू और लड़ाका था. उसकी ऊर्जा उसके साथियों को आविष्ट कर लेती थी. फ़ुटबॉल के मैदान पर वह रोमन ग्लेडिएटर बन जाता था. इटली की दंतकथाओं में वह अकारण ही शुमार नहीं है. आज भी आप नेपल्स की गलियों में निकल जाएं तो वहां आपको माराडोना के पोस्टर्स और म्यूरल्स मिलेंगे. वहां उसे ईश्वर की तरह पूजा जाता है. रोज़ेरियो में माराडोना...
1980 का दशक एक अजब जवांमर्दी का दौर था. रेट्रोसेक्शुअल ऊर्जा उफनी रहती थी. उस दौर के लोकप्रिय पुरुष घेर वाली पतलून पहनते थे. उनके लम्बे घुंघराले बाल कंधों पर जलप्रपात की तरह गिरते. छाती उघड़ी होती. ये पुरुष विनम्रता और सौम्यता की प्रतिमूर्ति नहीं थे, किंतु वो अपने हुनर और सिफ़त का गर्वीला इश्तेहार ज़रूर हुआ करते थे, जिसके सामने दुनिया सिर झुकाती थी. वो मार्केज़, कास्त्रो, सोक्रेटीज़, जैक्सन, निकलसन, मैकेनरो, ट्रवोल्टा, रिचर्ड्स और माराडोना का ज़माना था. डिएगो माराडोना (Diego Maradona) से पहले पेले फ़ुटबॉल का ख़ुदा था. उसके बाद में भी फ़ुटबॉल की दुनिया में अनेक देवता पैदा हुए, जिन्होंने अपनी श्रेष्ठता का चर्चा छिड़ने पर अपने द्वारा जीते गए ख़िताबों और दाग़े गए गोलों की तरफ़ इशारा किया. पर माराडोना ने फ़ुटबॉल के मैदान पर जिस करिश्मे, उन्माद और भावोद्रेक को जन्म दिया, वह उससे पहले और बाद में कभी नहीं हुआ. माराडोना ने किंवदंतियां रचीं और किंवदंतियों को जीया. उसका जीवन किसी लिहाज़ से बेदाग़ नहीं था, पर उसने कभी इसकी परवाह भी नहीं की. वह फ़ुटबॉल की दुनिया का क्लॉउस किन्स्की था, जिसे फ़्लॉड जीनियस कहा जाता है. हमारे ज़ेहन के किसी कोने में इस आवारा ख़याल को जन्म देने वाला कि खरे सोने से भले गहने बनते हों, आदमी जिस मिट्टी से बनता है वो तो अनगढ़ और सच्ची ही होती है.
डिएगो माराडोना हद दर्ज़े का जुझारू और लड़ाका था. उसकी ऊर्जा उसके साथियों को आविष्ट कर लेती थी. फ़ुटबॉल के मैदान पर वह रोमन ग्लेडिएटर बन जाता था. इटली की दंतकथाओं में वह अकारण ही शुमार नहीं है. आज भी आप नेपल्स की गलियों में निकल जाएं तो वहां आपको माराडोना के पोस्टर्स और म्यूरल्स मिलेंगे. वहां उसे ईश्वर की तरह पूजा जाता है. रोज़ेरियो में माराडोना के नाम का एक उपासनागृह भी है. ब्यूनस ऑयर्स और बार्सीलोना में उसके नाम की क़समें खाई जाती हैं.
कालांतर में ब्यूनस ऑयर्स की गलियों से निकलकर एक और खिलाड़ी बार्सीलोना पहुंचा, जिसे माराडोना का उत्तराधिकारी पुकारा गया. उसका नाम लियोनल मेस्सी था. किंतु ईश्वर ने उसके ज़ेहन को डिएगो से निहायत ही फ़र्क़ करघे पर बुना था. डिएगो में लातीन अमरीकी फ़ुटबॉल की जंगली झरने जैसी रवानी थी, जबकि लियोनल यूरोप की तकनीकी फ़ुटबॉल का कट्टर रियाज़ी है. उसमें तमाम अच्छाइयां हैं, लेकिन डिएगो जैसी जांबाज़ी नहीं.
अर्जेंतीना की नीली और सफ़ेद धारियों को अपने बदन पर आसमान की तरह पहनने वाले इसीलिए आज भी डिएगो को बेतरह याद करते हैं. वो जानते हैं कि उसके जैसों के बिना विश्वविजय सम्भव नहीं. दक्षिण अमरीका का यह महान देश अब उसके अवसान पर तीन दिन के शोक में डूब गया है. जो मुल्क फ़ुटबॉल के ज़रिये अपनी अस्मिता की पहचान करता है, उसके लिए डिएगो माराडोना क्राइस्ट रिडीमर की मूरत से कम नहीं है.
माराडोना वीया फ़ियोरीतो के शैंटीटाउन्स से निकलकर सामने आया था. ग़ुरबत ने उसको पाला और मुक़द्दर ने उसके शरीर में इस्पात भरा. उसका क़द दरमियानी और बदन गठीला था. लो सेंटर ऑफ़ ग्रैविटी के बावजूद वह उक़ाब की तरह फ़ुर्तीला और सांप की तरह शातिर था. आठ बरस की उम्र में वो नौजवान रंगरूटों को छकाकर गोल करने लगा था. अर्जेंतीना की प्राइमेरा डिवीज़न ने उसको हाथोंहाथ लिया और इससे पहले कि दुनिया को भनक लग पाती, वो अर्ख़ेंतिनियोस जूनियर्स के लिए सौ गोल दाग़ चुका था.
तब तक वो बालिग़ भी नहीं हुआ था. इसके बाद वो बोका जूनियर्स के लिए खेला और किंवदंतियों में शुमार ला बोम्बोनेरा स्टेडियम उसके नाम से गूंजने लगा. वास्तव में डिएगो माराडोना का खेल-जीवन कड़ी प्रतिद्वंद्विताओं से भरा हुआ है और ऐसे लमहों में उसका खेल और निखर जाता था. बोका जूनियर्स और रिवर प्लेट की प्रतिद्वंद्विता, जो सुपरक्लैसिको कहलाती है, पूरी दुनिया में कुख्यात है. जब वो बार्सीलोना के लिए खेलने गया तो एल क्लैसिको में रीयल मैड्रिड से भिड़ा.
अर्जेंतीना और ब्राज़ील की प्रतिद्वंद्विता पर पुस्तकें लिखी गई हैं. अर्जेंतीना और इंग्लैंड की प्रतिद्वंद्विता भी फ़ॉकलैंड्स वॉर के चलते अस्सी के दशक में अपने चरम पर थी. जब वो इटली में नैपली के लिए खेलने गया तो रोम से उसने लोहा लिया. यह प्रतिद्वंद्विता डर्बी डेल सोल कहलाती है. इटली को उसने जीत लिया था. मैड्रिड को उसने घुटनों पर झुका दिया था. रीयल मैड्रिड के प्रशंसकों ने माराडोना से पहले बार्सीलोना के किसी खिलाड़ी को सलामी नहीं दी थी और उसके बाद केवल दो को ही दी है- रोनाल्डिनियो और इनीएस्ता.
साल छयासी में इंग्लैंड का जैसा मानमर्दन उसने किया, वह तो जगविख्यात है. अर्जेंतीनियों के लिए यह फ़ॉकलैंड्स की जंग का हिसाब चुकता करने जैसा मामला था. कुछ दिनों पहले माराडोना ने अपनी सुपरिचित बदमाशी का परिचय देते हुए कहा था- 'ज़िंदगी में मेरी एक ही तमन्ना है- इंग्लैंड के ख़िलाफ़ एक और गोल दाग़ना, लेकिन इस बार दाहिने हाथ से.' और इसके बावजूद आज इंग्लैंड की फ़ुटबॉल टीम ने अपने ऑफ़िशियल हैंडल्स से माराडोना को झुककर सलाम किया है. ये दुनिया को जीतने और झुकाने का माराडोना का अपना अंदाज़ है.
जब अर्जेंतीना ने अपने घर में 1978 का विश्वकप जीता तो डिएगो को टीम में शामिल नहीं किया गया था, जबकि वह एक साल पहले ही अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल में पदार्पण कर चुका था. 1982 के विश्वकप तक वह टीम की धुरी बन चुका था. लेकिन 1986 के विश्वकप में उसने जो किया, उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती. उस टूर्नामेंट में अर्जेंटीना के द्वारा दाग़े गए चौदह गोलों में से दस में उसने केंद्रीय भूमिका निभाई- पांच गोल और पांच असिस्ट. उसने नब्बे ड्रिबल्स किए और दर्जनों फ्री-किक जीतीं.
ऐसा मालूम हुआ जैसे कोई अंधड़ मैक्सिको से जा भिड़ा हो. 1986 में माराडोना अपराजेय था. उसे कोई रोक नहीं सकता था. क्वार्टर फ़ाइनल में इंग्लैंड के विरुद्ध महज़ पांच मिनट के फ़ासले में फ़ुटबॉल-इतिहास के दो सबसे चर्चित गोल ('हैंड ऑफ़ गॉड' और 'गोल ऑफ़ द सेंचुरी') दाग़कर वो फ़ुटबॉल के लीजेंड्स में शुमार हो गया. सेमीफ़ाइनल में उसने बेल्जियम के ख़िलाफ़ दो और गोल किए.
वेस्ट जर्मनी के ख़िलाफ़ खेले गए फ़ायनल में उसने ख़ोर्ख़े बुर्रुख़ागा को सुई की आंख में धागा पिरोने वाला महीन पास दिया, जिस पर विजयी गोल दाग़ा गया और अर्जेंतीना ने विश्वकप ट्रॉफ़ी चूमी. खेलों के इतिहास में इससे पहले और इसके बाद में किसी और कप्तान ने इस दर्जे का एकल प्रदर्शन करते हुए अपनी टीम को दुनिया का सरताज नहीं बनाया था.
अगर माराडोना 1986 के विश्वकप के बाद एक भी मैच नहीं खेलता, तब भी वह फ़ुटबॉल की दुनिया का सिरमौर कहलाता. लेकिन इसके बाद उसने लगभग इसी जोड़ का एक और कारनामा किया, जब वह बार्सीलोना से नैपली गया और 'सेरी आ' (इतालवी लीग) की इस मिड टेबल टीम को पांच ख़िताब जितवा दिए. इनमें दो लीग टाइटिल शामिल थे.
जब माराडोना नेपल्स पहुंचा था तो उन लोगों ने कहा, हमारा मसीहा और उद्धारक आ गया है, अब हमें चिंता करने की ज़रूरत नहीं. दक्षिण इटली के इस शहर में आज भी माराडोना जीज़ज़ क्राइस्ट के बाद दूसरा सबसे लोकप्रिय व्यक्ति है. उसने नेपल्स को रोम और मिलान से आंख मिलाने की वक़अत दी थी. 1990 के विश्व कप का सेमीफ़ाइनल जब अर्जेंतीना और इटली के बीच नेपल्स में हुआ तो दर्शक अपनी टीम को छोड़कर माराडोना का नाम पुकार रहे थे.
आज माराडोना की मौत के बाद फ़ुटबॉल क्लब नैपली ने कहा- 'दुनिया हमें सुनना चाहती है, लेकिन हम गूंगे हो गए हैं. प्लीज़, हमें शोक में डूब जाने दीजिए.' इमीर कुस्तुरिका ने माराडोना को 'सेक्स पिस्टल' कहा था. उसने कहा था कि अगर ये आदमी फ़ुटबॉल नहीं खेल रहा होता तो गुरिल्ला छापामार योद्धा होता. अलबत्ता माराडोना ने खेल के मैदान पर भी जूतमपैजार से तौबा नहीं की.
बार्सीलोना के लिए खेलते हुए एथलेटिक बिल्बाओ के खिलाड़ियों की वह पिटाई कर बैठा था. वो टूटे पंखों वाला बदनाम फ़रिश्ता था. वो नशेड़ी था और कोकेन की तरंग में डूबा रहता था. वो मुंहफट और बदतमीज़ था. वो ख़ुद को ख़ुदा से कम नहीं समझता था. पर जब वो खेल के मैदान पर उतरता, तो ऐसा लगता जैसे क़ायनात के सबसे ख़ूबसूरत अहसास उसके दिल में धड़क रहे हैं.
महान मिचेल प्लातीनी ने कहा था, जो मैं फ़ुटबॉल के साथ कर सकता हूं, डिएगो एक संतरे के साथ कर सकता था. 1986 के विश्वकप में जब माराडोना ने 'गोल ऑफ़ द सेंचुरी' दाग़ा तो टीवी पर लेजेंडरी कमेंटेटर विक्तोर ह्यूगो मोरालेस कमेंट्री कर रहे थे. उस गोल का आंखों देखा हाल सुनाते हुए मोरालेस की आवाज़ में पारलौकिक आवेश उतर आया था. वे 'वीवा एल फु़तबोल' कहते हुए हर्षातिरेक से भर उठे थे.
आज भी वह कमेंट्री सुनकर रोमांच हो आता है. इस तरह के लमहों को केवल डिएगो माराडोना ही साकार कर सकता था. मेरा मानना है कि नियति जिस व्यक्ति को सामूहिकता के उन्माद से भरे ऐसे क्षणों के लिए चुनती है, वो साधारण नहीं होता, उसके माध्यम से अस्तित्व की आदिम शक्तियाँ स्वयं को व्यक्त करती हैं. डिएगो उन्हीं प्रिमिटव और एलीमेंटल ताक़तों का सजीव पुतला था.
माराडोना नाम के इस करिश्मे के बारे में सोचते हुए आज मुझको ग़ालिब का यह शे'र याद आ रहा है-
ये लाश-ए-बे-कफ़न 'असद'-ए-ख़स्ता-जां की है
हक़ मग़फ़िरत करे अजब आज़ाद मर्द था'
और जैसा कि 1986 की उस जादुई शाम विक्तोर ह्यूगो मोरालेस ने कहा था- 'आई वान्ट टु क्राय, डियर गॉड, लॉन्ग लिव फ़ुतबोल!' जबकि मैं जानता हूं कि डिएगो नाम का यह अजब आज़ाद मर्द हमेशा किंवदंतियों के एलबम में अमर रहेगा!
ये भी पढ़ें -
रोहित शर्मा के पास रिज़ल्ट के मामले में है मोदी जी वाली कंसिस्टेंसी!
CSK के IPL 2020 playoff से बाहर होने से आहत कपिल देव ने धोनी के आगे ज्ञान की गंगा बहा दी
Dhoni तुम्हें लोग खेलते हुए देखना चाहते हैं, तुम आईपीएल में बने रहो!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.