2010 में जब स्पेन ने विश्व कप जीता तो सबने कहा विश्व कप वास्तव में बार्सीलोना ने जीता है. उस टीम में बार्सीलोना के सितारे भरे पड़े थे. फ़ॉरवर्ड लाइन में दवीद वीया थे, मिडफ़ील्ड में चावी-इनीएस्ता-बुस्केट्स की तिकड़ी थी, बैक लाइन में पीके-पुयोल-आल्बा थे. स्पेन ने वह विश्व कप टिकी-टाका का मुज़ाहिरा करते हुए जीता था. टिकी-टाका यानी गेंद को अपने पास रखना, छोटे-छोटे पासेस की मदद से पैटर्न्स बुनना, तब तक पास करते रहना जब तक कि गेंद स्वयं को उस खिलाड़ी के पैरों तले न पाए जो गोल करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है, और बड़े इत्मीनान से स्कोर कर देना. यह शैली प्रतिपक्षी टीम को हतप्रभ कर देती है, वे मूक-दर्शक बने खेल देखते रहते हैं- गेंद को छू तक नहीं पाते. अलबत्ता टिकी-टाका खेलना हर किसी के बूते की बात नहीं- इसके लिए आला दर्जे की बॉल-प्लेइंग तकनीक और कड़े प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है. कल विश्व कप के अपने पहले मैच में स्पेन ने कोस्टा रीका को 7-0 से हरा दिया. लेकिन 2010 की तर्ज़ पर पूछा जा सकता है, स्पेन ने कोस्टा रीका को हराया या बार्सीलोना ने? क्योंकि यह टीम भी बार्सीलोना के सितारों से सजी है. फ़ॉरवर्ड लाइन में फ़ेरान तोरेस और आन्सु फ़ाती हैं, बैक लाइन में जोर्डी अल्बा और लुइस गार्सीया हैं और मिडफ़ील्ड में पेद्री-गावी-बुस्केट्स.
जी हां, बुस्केट्स अमर हैं, वे 2010 में भी खेल रहे थे और आज भी खेल रहे हैं, अलबत्ता चावी-इनीएस्ता की जगह अब पेद्रो-गावी ने ले ली है. पेद्रो 19 साल के हैं और गावी 18 के. गए साल पेद्री ने यूरोप के सर्वश्रेष्ठ युवा खिलाड़ी का पुरस्कार जीता था, इस साल गावी ने. वे बार्सीलोना की अकादमी ला मसीया से प्रशिक्षित होकर निकले हैं. बार्सीलोना की बॉल-प्लेइंग फ़िलॉस्फ़ी...
2010 में जब स्पेन ने विश्व कप जीता तो सबने कहा विश्व कप वास्तव में बार्सीलोना ने जीता है. उस टीम में बार्सीलोना के सितारे भरे पड़े थे. फ़ॉरवर्ड लाइन में दवीद वीया थे, मिडफ़ील्ड में चावी-इनीएस्ता-बुस्केट्स की तिकड़ी थी, बैक लाइन में पीके-पुयोल-आल्बा थे. स्पेन ने वह विश्व कप टिकी-टाका का मुज़ाहिरा करते हुए जीता था. टिकी-टाका यानी गेंद को अपने पास रखना, छोटे-छोटे पासेस की मदद से पैटर्न्स बुनना, तब तक पास करते रहना जब तक कि गेंद स्वयं को उस खिलाड़ी के पैरों तले न पाए जो गोल करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है, और बड़े इत्मीनान से स्कोर कर देना. यह शैली प्रतिपक्षी टीम को हतप्रभ कर देती है, वे मूक-दर्शक बने खेल देखते रहते हैं- गेंद को छू तक नहीं पाते. अलबत्ता टिकी-टाका खेलना हर किसी के बूते की बात नहीं- इसके लिए आला दर्जे की बॉल-प्लेइंग तकनीक और कड़े प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है. कल विश्व कप के अपने पहले मैच में स्पेन ने कोस्टा रीका को 7-0 से हरा दिया. लेकिन 2010 की तर्ज़ पर पूछा जा सकता है, स्पेन ने कोस्टा रीका को हराया या बार्सीलोना ने? क्योंकि यह टीम भी बार्सीलोना के सितारों से सजी है. फ़ॉरवर्ड लाइन में फ़ेरान तोरेस और आन्सु फ़ाती हैं, बैक लाइन में जोर्डी अल्बा और लुइस गार्सीया हैं और मिडफ़ील्ड में पेद्री-गावी-बुस्केट्स.
जी हां, बुस्केट्स अमर हैं, वे 2010 में भी खेल रहे थे और आज भी खेल रहे हैं, अलबत्ता चावी-इनीएस्ता की जगह अब पेद्रो-गावी ने ले ली है. पेद्रो 19 साल के हैं और गावी 18 के. गए साल पेद्री ने यूरोप के सर्वश्रेष्ठ युवा खिलाड़ी का पुरस्कार जीता था, इस साल गावी ने. वे बार्सीलोना की अकादमी ला मसीया से प्रशिक्षित होकर निकले हैं. बार्सीलोना की बॉल-प्लेइंग फ़िलॉस्फ़ी उनकी धमनियों और शिराओं में पैठ गई है. यह इतालवी लीग के लो-ब्लॉक और इंग्लिश प्रीमियर लीग के हाई-प्रेस से कितनी भिन्न है!
इटली और इंग्लैंड में खेलने के लिए आपका दमखम वाला एथलीट होना ज़रूरी है, स्पेन में खेलने के लिए नफ़ासत वाला आर्टिस्ट. और इस आर्ट के पिकासो का नाम है- लुईस एनरीके. वे स्पेन के कोच हैं. अतीत में बार्सीलोना के ट्रेबल-विनिंग कोच रह चुके हैं. ट्रेबल यानी एक ही सीज़न में लीग, कप और चैम्पियंस लीग जीतना. जब स्पेन की विश्व कप स्क्वाड चुनी गई तो उसमें सेर्ख़ीया रामोस का नाम नहीं पाकर सब चकित हुए.
रामोस रीयल मैड्रिड के लेजेंड हैं और 2010 की विश्व-विजेता टीम के सेंटर-बैक थे. कहा गया कि एनरीके बार्सीलाना के खिलाड़ियों को आगे बढ़ा रहे हैं और मैड्रिड के साथ पक्षपात कर रहे हैं. लेकिन अगर ऐसा ही होता तो फिर एनरीके मैड्रिड के असेन्सीयो को 10 नम्बर की जर्सी पहनाकर कल मैदान में क्यों उतारते? असेन्सीयो ने गोल किया. उन्हें बार्सीलोना के लेफ्ट-बैक जोर्डी आल्बा ने पास दिया था.
मैड्रिड और बार्सीलोना स्पेन में आकर मिल गए. प्रवाद और प्रपंचों का अंत हुआ. फ़ुटबॉल जीत गई. एनरीके अपनी टीम बनाना चाहते थे, उन्होंने इस ख़ूबसूरत कशीदे को सजाकर दुनिया के सामने पेश कर दिया है. और कमेंटेटर बोल पड़े, 'पास... पास... पास... एंड फ़िनिश, यही तो स्पेन है!" जी हां, यही स्पेन है. उन्होंने कल 81 प्रतिशत पज़ेशन अपने पास रखा. वे चाहते तो गेंद को अपने साथ घर ले जा सकते थे. उन्होंने कोस्टा रीका के 165 पासेस के मुक़ाबले कुल 976 पासेस पूरे किए.
उन्होंने 17 शॉट अटेम्प्ट किए और 7 को गोल में तब्दील किया. स्पेन की टीम से इतने गोल करने की उम्मीद तो कोई नहीं रखता था. वह एक बॉल-होल्डिंग टीम कहलाती थी. एनरीके के बारे में कहा जाता है कि वे गेंद को अपने पास रखने को लेकर ऑब्सेस्ड हैं. 'किसी भी क़ीमत पर गेंद को मत गंवाओ'- उन्होंने निर्देश दे रखे हैं. यही कारण है कि वे बुस्केट्स को खिला रहे हैं, जो कि आलातरीन होल्डिंग मिडफ़ील्डर हैं- भले उनके पास गति और बल न हो.
जब आप गेंद को होल्ड करते हैं तो खेल में रोमांच कम हो जाता है. रोमांच तब आता है, जब आप ड्रिबल करें, और इस चक्कर में गेंद को गंवा दें, फिर उसे हासिल करने के लिए हाई-प्रेस करें, इस फेर में अपनी पोज़िशन छोड़कर प्रतिपक्षी को स्पेस दे दें, वह उन स्पेस में रन करे, आप उससे गेंद छीनकर काउंटर-अटैक शुरू कर दें : इस सबसे खेल में रस आता है. एनरीके को इसमें दिलचस्पी नहीं. वे गेंद पर अपनी मिल्कियत रखना चाहते हैं.
यह बार्सीलोना की टिपिकल क्राएफ़-फ़िलॉस्फ़ी है : बॉल-पजे़शन. गेंद आपके पास में है तो खेल के सूत्र आपके हाथों में हैं. और जब आप 81 प्रतिशत पज़ेशन रखते हैं तो गोल तो आएंगे ही- क्योंकि आप अपने हाफ़ में गेंद को नहीं घुमाते रहेंगे, आप मूव बनाएंगे. टिकी-टाका करेंगे. क्योंकि आपके पास इस शैली के लिए निष्णात खिलाड़ी हैं- भट्टी में पके हुए.
स्पेन का आग़ाज़ न केवल विश्व कप बल्कि फ़ुटबॉल के लिए भी अच्छी ख़बर है. क्या यह टीम लम्बी दूरी तय कर सकती है? क्योंकि दूसरी टीमों ने अब तक नोट्स ले लिए होंगे और होमवर्क शुरू कर दिया होगा. आप मानकर चलिए, अगले मैच में स्पेन का सामना एक हाई-प्रेसिंग टीम से होने वाला है, जो उनकी टिका-टाका की महफ़िल में ख़लल डालेगी. तभी बार्सीलोना की इस टीम की वास्तविक परख होगी. माफ़ कीजिए- गोल बार्सीलोना नहीं, स्पेन की टीम. पर बात एक ही है.
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