पाकिस्तान में हर घंटे कुछ ना कुछ ऐसा नया सामने आ रहा है जो भारतीय उपमहाद्वीप के लिहाज से बहुद गंभीर मसला है. कम से कम भारत की संप्रभुता के लिहाज से तो है ही. मगर उनपर बात नहीं हो रही है. पाकिस्तान में बिजली नहीं है. वहां की सरकार को मोमबत्तियों की रोशनी में मीटिंग करने पड़ रहे हैं. लेकिन पाकिस्तान परस्त यूरोप को छोड़ दीजिए भारत में भी चीजों पर बात करने में परहेज नजर आ रहा है. टीआरपीखोर और गोदी मीडिया के रूप में भी बदनाम संस्थान भी चुप हैं. भारतीय सिंडिकेट के जरिए भारतीय समाज में बहस के मुद्दे बदले जा रहे हैं.
जबकि टीटीपी खैबर पख्तून ख्वा (केपीके) में सरकार बनाने के बाद पंजाब के इलाकों में भी घुस गया है. मियांवाली में अटैक इसका स्पष्ट सबूत है. टीटीपी लगातार आगे बढ़ रहा है और भारत की सीमाओं (पीओके भी उसकी योजना में है) तक पहुंचने की कोशिश में है- भारत के सिस्टम पर सैकड़ों साल से राज करने वाले एक जरूरी बहस को भारतीय समाज में आने से रोकने में अब तक कामयाब नजर रहे हैं. मौजूदा वक्त के लिहाज से तमाम गैरजरूरी मुद्दों को उठाकर. ऐसे मुद्दे जिसपर देश में बात होती रहती है और आगे भी किए जा सकते हैं. क्या यह किसी रणनीति का हिस्सा है? पाकिस्तान के हालात कितने बदतर हो चुके हैं- अब छिपी बात नहीं है. पीसीबी में हुए एक बड़े बदलाव से भी इसे खुली आंखों देखा जा सकता है.
असल में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने मिकी आर्थर को अपना कोच बनाया है. आर्थर पहले भी पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और श्रीलंका को सफलतापूर्वक कोच कर चुके हैं. आर्थर फिलहाल डर्बीशायर काउंटी क्रिकेट के पूर्णकालिक कोच के रूप में काम कर रहे हैं. मगर मजेदार यह नहीं है. आर्थर की नियुक्ति में दिलचस्प पहलू तो यह है कि वे ऑनलाइन कोचिंग करेंगे. दुनिया में ऑनलाइन कोचिंग का यह पहला मामला है. कोविड से परेशानी के दौरान भी क्रिकेट में तमाम अग्रणी देश ऐसा सोच भी नहीं पाए. जब कोविड से दुनिया की हालत थोड़ी बेहतर हुई तो पाकिस्तान ने उसे कर दिखाया. वाकई यह ऐसी उपलब्धि है जिसके...
पाकिस्तान में हर घंटे कुछ ना कुछ ऐसा नया सामने आ रहा है जो भारतीय उपमहाद्वीप के लिहाज से बहुद गंभीर मसला है. कम से कम भारत की संप्रभुता के लिहाज से तो है ही. मगर उनपर बात नहीं हो रही है. पाकिस्तान में बिजली नहीं है. वहां की सरकार को मोमबत्तियों की रोशनी में मीटिंग करने पड़ रहे हैं. लेकिन पाकिस्तान परस्त यूरोप को छोड़ दीजिए भारत में भी चीजों पर बात करने में परहेज नजर आ रहा है. टीआरपीखोर और गोदी मीडिया के रूप में भी बदनाम संस्थान भी चुप हैं. भारतीय सिंडिकेट के जरिए भारतीय समाज में बहस के मुद्दे बदले जा रहे हैं.
जबकि टीटीपी खैबर पख्तून ख्वा (केपीके) में सरकार बनाने के बाद पंजाब के इलाकों में भी घुस गया है. मियांवाली में अटैक इसका स्पष्ट सबूत है. टीटीपी लगातार आगे बढ़ रहा है और भारत की सीमाओं (पीओके भी उसकी योजना में है) तक पहुंचने की कोशिश में है- भारत के सिस्टम पर सैकड़ों साल से राज करने वाले एक जरूरी बहस को भारतीय समाज में आने से रोकने में अब तक कामयाब नजर रहे हैं. मौजूदा वक्त के लिहाज से तमाम गैरजरूरी मुद्दों को उठाकर. ऐसे मुद्दे जिसपर देश में बात होती रहती है और आगे भी किए जा सकते हैं. क्या यह किसी रणनीति का हिस्सा है? पाकिस्तान के हालात कितने बदतर हो चुके हैं- अब छिपी बात नहीं है. पीसीबी में हुए एक बड़े बदलाव से भी इसे खुली आंखों देखा जा सकता है.
असल में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) ने मिकी आर्थर को अपना कोच बनाया है. आर्थर पहले भी पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और श्रीलंका को सफलतापूर्वक कोच कर चुके हैं. आर्थर फिलहाल डर्बीशायर काउंटी क्रिकेट के पूर्णकालिक कोच के रूप में काम कर रहे हैं. मगर मजेदार यह नहीं है. आर्थर की नियुक्ति में दिलचस्प पहलू तो यह है कि वे ऑनलाइन कोचिंग करेंगे. दुनिया में ऑनलाइन कोचिंग का यह पहला मामला है. कोविड से परेशानी के दौरान भी क्रिकेट में तमाम अग्रणी देश ऐसा सोच भी नहीं पाए. जब कोविड से दुनिया की हालत थोड़ी बेहतर हुई तो पाकिस्तान ने उसे कर दिखाया. वाकई यह ऐसी उपलब्धि है जिसके लिए पाकिस्तान का नाम ना सिर्फ किकेट के इतिहास बल्कि खेलों के इतिहास में भी हमेशा के लिए अमर हो गया. हो सकता है कि शरिया सरकारों के आने की वजह से भविष्य में पाकिस्तान में कोई खेल ना बचे, मगर कोचिंग के लिहाज से खेलों में उसका योगदान एक फैसले की वजह से मील के पत्थर के रूप में तो दर्ज हो ही चुका है.
आर्थर को सिर्फ पाकिस्तान जाने से डर लग रहा है, भारत में अपनी टीम के साथ आएंगे अब अगर किसी को लग रहा है कि खेलों में भला ऑनलाइन कोचिंग की क्या भूमिका है? खेलों में तो कोच का मैदान पर खिलाड़ियों के साथ होना ज्यादा जरूरी है? जिन्हें पीसीबी के फैसले में इस तरह के दोष दिख रहे हैं- यह दोष देखने वालों की चिंता है पाकिस्तान की नहीं. और आर्थर सिर्फ पाकिस्तान में जाकर ऑनलाइन कोचिंग नहीं देना चाहते. इसका मतलब यह भी नहीं कि वे फुलटाइम ऑनलाइन कोचिंग ही देंगे. क्रिकेट विश्वकप के लिए वे भारत में पाकिस्तानी टीम के साथ दौरा करेंगे. और दूसरे तमाम पश्चिमी देशों में भी दौरा करेंगे. पाकिस्तान की अपनी दिक्कतें हैं- वह सिर्फ वही समझ सकता है जो झेल रहा है. बाकी दुनिया को तो शोर मचाने का बहाना चाहिए. जैसे कुछ पत्रकारों की नजर में भारत की फासिस्ट सरकार और उसके करता धरता फर्जी चीजें चिल्लाते रहते हैं. पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड की हालत तो सालों पहले तभी खराब होने लगी थी जब वहां विदेशी क्रिकेट टीम को निशाना बनाया. जानमाल की फ़िक्र सबको है.
इसके बाद तो क्रिकेट खेलने वाले देशों ने पाकिस्तान से किनारा करना शुरू कर दिया. पीसीबी को नुकसान हुआ तो उसने पाकिस्तान में क्रिकेट जिंदा रखने के लिए न्यूट्रल वैन्यू पर ना सिर्फ क्रिकेट मैच खेले बल्कि अपनी टीम को रोकने और उनके ट्रेनिंग कैंप का इंतजाम किया. आतंक से ग्रस्त अफगानिस्तान में भी क्रिकेट ऐसे ही जिंदा रहा. भारत की न्यूट्रल भूमि के जरिए. एक दशक पहले तक जब भारत में ईमानदार सरकारें हुआ करती थीं और उसके भारत से कारोबारी संबंध थे- पाकिस्तान आर्थिक रूप से न्यूट्रल वेन्यू पर ऐसा करने में सक्षम था. मगर फिलहाल तो वह अपनी भूखी अवाम का पेट भरने में परेशान है. बलूचिस्तान और केपीके के इलाकों से जो जलजला उठा है उससे दूसरे इलाकों को बचाने की चिंता है. भला वह न्यूट्रल वेन्यू पर खर्चीला तामझाम कैसे कर सकता है? सवाल यह भे एही कि ऐसे हालात में वहां क्रिकेट को भी जिंदा रखना है जो उसके लिए अतीत में एकमात्र उपलब्धि रही है.
ऐसे में पीसीबी का फैसला तो हर लिहाज से एक क्रांतिकारी कदम ही माना जाएगा. पाकिस्तान जिस तरह की स्थितियों से गुजर रहा है- भविष्य में तमाम देश और बेशक तमाम खेलों में उसके दिखाए मार्ग का अनुसरण किया जा सकता है. बावजूद कि पाकिस्तान को जिन वजहों से ऐसे हालात का सामना करना पड़ रहा है- किसी भी देश के साथ ना ही हो तो बेहतर है. भारत को सोचना चाहिए. वैसे पाकिस्तान में भी कुछ लोगों ने ऑनलाइन कोचिंग पर सवाल उठाया है. उनका कहना है कि विदेशी कोच की बजाए देसी कोच रखे जा सकते हैं. सवाल वाजिब भी है. पाकिस्तान में एक से बढ़कर एक क्रिकेटर हुए हैं. तमाम बेरोजगार हैं और आजकल यूट्यूब पर भारत से जुड़े कॉन्टेंट बनाकर गुजारा करते दिखते हैं. आर्थर की बजाए उनमें से किसी एक को काम दिया जाता तो पीसीबी का काम भी हो जाता और एक पाकिस्तानी को रोजगार भी मिल जाता. मगर पाकिस्तान तो हमेशा दूर की कौड़ी देखने वाले देशों में रहा है. उसने जरूर कुछ बड़ा और बेहतर सोच रखा होगा.
सिंडिकेट चुप और बहस का विषय दूसरा क्यों है, भारत का दस साल पुराना अतीत याद कर लीजिए
बावजूद कि पाकिस्तान की हालत पिछले एक दशक में किस तरह बदली है- यह किसी को बताने की जरूरत नहीं. इस्लामिक आतंक की वजह से भले तमाम देशों पर तोहमत लगाया जाए, लेकिन उसकी जड़ें तो पाकिस्तान में ही गहरे धंसी नजर आती हैं. इसमें उसकी अवाम का दोष नहीं. जुसे जो बताया गया, उसने भरोसा किया. भारत विभाजन भी उसी इस्लामिक आतंकवाद की एक निर्णायक कोशिश भर थी. बावजूद कि पाकिस्तान के जरिए भारतीय उपमाहद्वीप और दक्षिण एशियाई देशों में उपनिवेश चलाने वाली विदेशी ताकतों ने हमेशा उसके कुकर्मों पर भारत की अस्थिरता का बहाना देकर पर्दा डालने का काम किया. यहां तक कि भारत के शहरों को आतंकी वारदातों से लहूलुहान करने से भी संकोच नहीं किया गया. राजनीतिक दलों ने ध्यान बंटाने के लिए जातीय नरसंहार तक करवाए और यह भी नहीं सोचा कि इसका कितना खतरनाक नतीजा उसके अपने समाज पर पड़ने वाला है. पाकिस्तान में जिस तरह की अस्थिरता और अराजक माहौल है- पूरी दुनिया और तथाकथित मानवतावादी, सेकुलर मीडिया का लोगों के कत्लेआम पर चुप्पी- बिना कुछ कहे अतीत की बहुत सारी स्याह चीजों को खोलकर सामने रख देती है. असल में भारत के साथ पाकिस्तान का सिंडिकेट करता क्या रहा?
भारत के जो महान पत्रकार दशकभर पहले भारतीय टीवी पर नागिन नचाकर टीआरपी बटोरते थे आजकल पत्रकारिता के सबसे बड़े अग्रदूत हैं. बावजूद पाकिस्तान में लगातार मानवता पर कत्लेआम और वहां के अल्पसंख्यक समुदाय के जान माल की सुरक्षा को लेकर उनकी चुप्पी संदिग्ध है. तमाम पत्रकारों, राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्याओं और बॉलीवुड से भी किसी ने अबतक पाकिस्तान के हालात को लेकर भारत से कोई गुजारिश नहीं की. क्यों भाई? पाकिस्तान के साथ हमेशा रिश्ते रखने और कारोबार करने के हिमायती लोगों ने मानवता को भी बहाना बताते हुए पाकिस्तान के संदर्भ में जिक्र तक नहीं किया है. ऐसा क्यों? यह तो बिल्कुल बदला हुआ ट्रेंड है.
पाकिस्तान की चिंता में व्यस्त रहने वालों का विषय भारत के रक्षा बजट में अप्रत्याशित बढ़ोतरी क्यों है?
कभी जो पाकिस्तान की चिंता में दिनरात व्यस्त रहते थे- उनके लिए अभी भी राममंदिर के लिए शालिग्राम शिला का लाना, भारत के रक्षा बजट में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी क्यों कर दी गई, पठान ब्लॉकबस्टर फिल्म ही है- शाहरुख खान, मोदी से ज्यादा बड़े नेता हैं आदि आदि विषय ही ज्यादा गंभीर और महत्वपूर्ण मसला है. वे गौतम अडानी की बर्बादी, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर तो बात करना चाहते हैं, मगर यह चर्चा क्यों नहीं कर रहे कि इजरायल जैसे ताकतवर देश ने आखिर क्यों अडानी जैसे 'बेईमान' को हाइफा का पोर्ट दे दिया. वह इजरायल जो अमेरिका तक पर भरोसा नहीं करता, भारत पर आज की तारीख में क्यों भरोसा कर रहा है? वह मिस्र जो अरब ही नहीं दुनिया की सबसे महान और प्राचीन सभ्यता थी, क्यों भारत की तरफ उम्मीद लगाए बैठा है.
और इस पर भी बात नहीं कर रहे कि टीटीपी जैसे-जैसे केपीके से आगे बढ़ता जा रहा है, कनाडा ऑस्ट्रेलिया आदि जगहों पर खालिस्तान का मुद्दा क्यों उठाया जा रहा है और उसके पीछे असल में है कौन और उसकी वजह क्या है? यह भी चर्चा नहीं हो रही कि स्वीडन और डेनमार्क में एक धर्मविशेष के धर्मग्रन्थ क्यों जलाए जा रहे? क्या फांसीवादी भारत को जोड़ने के बाद राहुल गांधी इटली में भी इटली जोड़ो यात्रा निकालने जा रहे हैं. क्योंकि वहां तो मुसोलिनी की पार्टी ही सत्ता में आ चुकी है.
खैर विपक्ष पर क्या ही कहा जाए. मोदी सरकार भी पीओके में अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर सार्वजनिक रूप से चिंतित नजर नहीं है. जबकि टीटीपी ने पीओके को भी अपने नक़्शे में दिखाया है जो सीधे-सीधे भारत की संप्रभुता पर ही एक तरह से हमला है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.