44 सालों के लम्बे इंतजार के बाद क्रिकेट के जन्मदाता देश इंग्लैंड ने आखिरकार विश्वकप की ट्रॉफी जीतने का गौरव पा ही लिया. 2019 के क्रिकेट विश्वकप का फाइनल मुकाबला शायद अब तक के इतिहास का सबसे ज्यादा रोमांचक फाइनल रहा होगा. इंग्लैंड न्यूज़ीलैण्ड के बीच खेले गए इस फाइनल में वो सब कुछ था जो किसी भी क्रिकेट प्रेमी के लिए किसी सपने से कम नहीं था. हर गेंद के साथ बदलते समीकरण और आखिरी गेंद तक भी विजेता का निर्णय ना हो पाना ही इस मैच की खूबसूरती रही. लॉर्ड्स का ऐतिहासिक मैदान पर खेले गए क्रिकेट विश्व कप के फाइनल ने खिलाड़ियों के साथ-साथ समर्थकों की धड़कनें भी बढ़ा रखी थीं.
हालांकि इस मैच की जो सबसे खास बात रही वो यह कि सही मायनों में न्यूज़ीलैण्ड और इंग्लैंड दोनों ही इस मुकाबले में जीत दर्ज कर पाने में नाकाम रहे. दरअसल, न्यूज़ीलैंड ने पहले बल्लेबाजी करके 241 रन बनाए और इंग्लैंड को वर्ल्ड चैंपियन बनने के लिए 242 रनों की जरूरत थी. लेकिन इंग्लैंड भी 50 ओवर में मात्र 241 रन ही बना सका और मैच टाई हो गया. इस टाई मैच का नतीजा निकालने के लिए सुपर ओवर हुआ, जिसमें इंग्लैंड ने 15 रन बनाए और बाद में न्यूज़ीलैंड भी सिर्फ 15 रन ही बना पाया. इसलिए मैच यहां भी टाई हो गया.
हालांकि इसके बाद ICC के एक "अजीबोगरीब" नियम के आधार पर इंग्लैंड की टीम को विजेता घोषित कर दिया. दरअसल आईसीसी के नियम के अनुसार अगर किसी टाई मैच का नतीजा अगर सुपरओवर में भी नहीं निकल सके और यहां भी मैच टाई हो जाये तो ऐसी सूरत में मैच का नतीजा पूरी पारी और सुपरओवर में लगाए गए चौके- छक्के की संख्या के आधार पर तय किया जाएगा. और यही नियम इंग्लैंड की झोली में वर्ल्डकप डाल गया. इंग्लैंड ने अपनी पारी और सुपरओवर के दौरान 24 चौके और...
44 सालों के लम्बे इंतजार के बाद क्रिकेट के जन्मदाता देश इंग्लैंड ने आखिरकार विश्वकप की ट्रॉफी जीतने का गौरव पा ही लिया. 2019 के क्रिकेट विश्वकप का फाइनल मुकाबला शायद अब तक के इतिहास का सबसे ज्यादा रोमांचक फाइनल रहा होगा. इंग्लैंड न्यूज़ीलैण्ड के बीच खेले गए इस फाइनल में वो सब कुछ था जो किसी भी क्रिकेट प्रेमी के लिए किसी सपने से कम नहीं था. हर गेंद के साथ बदलते समीकरण और आखिरी गेंद तक भी विजेता का निर्णय ना हो पाना ही इस मैच की खूबसूरती रही. लॉर्ड्स का ऐतिहासिक मैदान पर खेले गए क्रिकेट विश्व कप के फाइनल ने खिलाड़ियों के साथ-साथ समर्थकों की धड़कनें भी बढ़ा रखी थीं.
हालांकि इस मैच की जो सबसे खास बात रही वो यह कि सही मायनों में न्यूज़ीलैण्ड और इंग्लैंड दोनों ही इस मुकाबले में जीत दर्ज कर पाने में नाकाम रहे. दरअसल, न्यूज़ीलैंड ने पहले बल्लेबाजी करके 241 रन बनाए और इंग्लैंड को वर्ल्ड चैंपियन बनने के लिए 242 रनों की जरूरत थी. लेकिन इंग्लैंड भी 50 ओवर में मात्र 241 रन ही बना सका और मैच टाई हो गया. इस टाई मैच का नतीजा निकालने के लिए सुपर ओवर हुआ, जिसमें इंग्लैंड ने 15 रन बनाए और बाद में न्यूज़ीलैंड भी सिर्फ 15 रन ही बना पाया. इसलिए मैच यहां भी टाई हो गया.
हालांकि इसके बाद ICC के एक "अजीबोगरीब" नियम के आधार पर इंग्लैंड की टीम को विजेता घोषित कर दिया. दरअसल आईसीसी के नियम के अनुसार अगर किसी टाई मैच का नतीजा अगर सुपरओवर में भी नहीं निकल सके और यहां भी मैच टाई हो जाये तो ऐसी सूरत में मैच का नतीजा पूरी पारी और सुपरओवर में लगाए गए चौके- छक्के की संख्या के आधार पर तय किया जाएगा. और यही नियम इंग्लैंड की झोली में वर्ल्डकप डाल गया. इंग्लैंड ने अपनी पारी और सुपरओवर के दौरान 24 चौके और दो छक्के लगाए थे जबकि न्यूज़ीलैण्ड ने इस दौरान 14 चौके और 3 छक्के लगाए थे, इसको आधार मानकर इंग्लैंड की टीम को विजेता घोषित किया गया. हालांकि इस मैच के बाद इसी नियम के चलते आईसीसी को खूब खरी खोटी सुननी पड़ रही है. इस मैच के बाद जो सवाल उठ रहे हैं वो कुछ हद तक सही भी हैं. क्या वाकई वर्ल्ड कप फाइनल जैसे बड़े मुकाबले में इस तरह के नियम की कोई गुंजाइश है? क्या बड़े मुकाबलों में नतीजों के लिए एक आध ओवर और नहीं किए जा सकते थे? क्या यह नियम सही मायनों में लॉजिकल भी है?
अगर गौर करें तो आईसीसी का यह नियम लॉजिक के आधार पर भी मात खा जाता है, हालांकि अगर गौर करें तो आईसीसी का एक और विवादित नियम डकवर्थ-लुईस, भी कम से कम रनों के साथ विकटों का भी ध्यान रखता है, इसके विपरीत इस नियम में केवल चौके-छक्कों की संख्या को ही लिया जाता है जबकि विकेट की कोई बात इसमें नहीं की जाती. कल ही हुए मैच की बात करें तो 50 ओवरों में जहां न्यूज़ीलैण्ड के 8 ही विकेट गिरे थे तो वहीं इंग्लैंड आल आउट हो गयी थी, मगर इसका कोई भी फायदा न्यूज़ीलैण्ड की टीम को नहीं मिला. यानी यह नियम केवल बल्लेबाजों की बात करता है गेंदबाजों की नहीं. अगर किसी लीग मैच में इस तरह का नियम लागू हुआ होता तो ये फिर भी माना जा सकता था, लेकिन विश्वकप के फाइनल जैसे मुकाबले के नतीजे के लिए आईसीसी थोड़ी और कोशिश कर सकता था, मसलन एक और सुपरओवर. मगर आईसीसी के अजीबोगरीब नियम के कारण इतने रोमांचक मैच का अंत वैसा नहीं रहा जो आसानी से क्रिकेट प्रेमियों के गले उतर जाये.
बहरहाल अब इस फाइनल के बाद न्यूज़ीलैण्ड भी इस सुकून के साथ घर जा सकता है कि उसने यह मैच नहीं गंवाया है. इंग्लैंड यदि वर्ल्डकप जीतने का जश्न मना भी रहा है, तो वह ICC नियमों की हास्यास्पद स्थिति के बाद. हालांकि, इंग्लैंड में क्रिकेट के लिए यह दौर काफी निर्णायक होने वाला है, इंग्लैंड ने पिछले कुछ सालों में काफी बेहतरीन क्रिकेट खेली है. उनका क्रिकेट विश्वकप के फाइनल में पहुंचना इसी का नतीता है. और वर्ल्डकप की ट्राॅफी उनका बोनस है. इंग्लैंड की जीत उनके देश में क्रिकेट की लोकप्रियता में इजाफा करने में भी काफी मददगार होगा. इंग्लैंड की जीत के साथ ही यह लगातार तीसरी बार हुआ है कि विश्वकप के मेजबान टीम ने जीत का गौरव पाया है, इससे पहले भारतीय टीम ने साल 2011 और ऑस्ट्रेलिया ने साल 2015 में मेजबान रहते जीत हासिल की थी. वैसे अगर यही ट्रेंड चलता रहा तो अगली बार टीम इंडिया का विश्वकप जीतना भी पक्का है, क्योंकि साल 2023 के क्रिकेट विश्वकप की मेजबानी भारत ही करने वाला है.
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