तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है, ज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती...अख़्तर सईद ख़ान की ये पंक्तियां भारतीय खिलाड़ियों पर सटीक बैठती हैं. भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही कांस्य पदक नहीं जीत पाई, लेकिन मर्दानियों ने इतिहास तो रच ही दिया. इन शेरनियों को खेलते हुए देख हमें लगा ही नहीं कि इनके सीने में इतने गम दफन हैं.
भारतीय महिला हॉकी टीम जब ब्रिटेन से 3-4 से हार गई तो हमें रोना नहीं आया क्योंकि ये खेल के मैदान को युद्ध समझकर लड़ रही थीं बिल्कुल झांसी की रानी लग रही थीं. हमारी आंखों में आंसू तब आए जब हमने इन्हें रोते हुए देखा, हमारी आखें तब रोईं जब हमने झारखंड की रहने वाली हैं सलीमा के घर की हालत देखी, हमारे चेहरे तब उदास हुए जब यह पता चला कि पिता की मौत पर भी हरिद्वार की रहने वाली वंदना कटारिया घर नहीं गईं...हमें तो बस मैच के समय मेडल दिख रहा था. ऐसा होता भी है हम नहीं चाहते कि हमारे देश हारे लेकिन जीतने के लिए इन खिलाड़ियों के पास उतनी सुविधा तो हो...ऐसे स्तिथि में भी हम मेडल की आस लगाए बैठे हैं.
असल में,न्यूज एजेंसी ANI ने ट्विटर पर कुछ तस्वीरें शेयर कीं. जिसके कैप्शन में लिखा था, ‘झारखंड का यह दृश्य हॉकी खिलाड़ी सलीमा टेटे के निवास स्थान के हैं, जो झारखंड के सिमडेगा जिला के बड़की छापर गांव में स्थित है. सलीमा, भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा हैं, जो ओलंपिक में टीम को मेडल जीताने के लिए लड़ीं.’ ये तस्वीरें थोड़ी ही देर में वायरल हो गईं और लोगों ने कलेजा चीर देने वाली बातें कहीं. हम इन तस्वीरों के बारे में ज्यादा नहीं बताएंगे...
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है, ज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती...अख़्तर सईद ख़ान की ये पंक्तियां भारतीय खिलाड़ियों पर सटीक बैठती हैं. भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही कांस्य पदक नहीं जीत पाई, लेकिन मर्दानियों ने इतिहास तो रच ही दिया. इन शेरनियों को खेलते हुए देख हमें लगा ही नहीं कि इनके सीने में इतने गम दफन हैं.
भारतीय महिला हॉकी टीम जब ब्रिटेन से 3-4 से हार गई तो हमें रोना नहीं आया क्योंकि ये खेल के मैदान को युद्ध समझकर लड़ रही थीं बिल्कुल झांसी की रानी लग रही थीं. हमारी आंखों में आंसू तब आए जब हमने इन्हें रोते हुए देखा, हमारी आखें तब रोईं जब हमने झारखंड की रहने वाली हैं सलीमा के घर की हालत देखी, हमारे चेहरे तब उदास हुए जब यह पता चला कि पिता की मौत पर भी हरिद्वार की रहने वाली वंदना कटारिया घर नहीं गईं...हमें तो बस मैच के समय मेडल दिख रहा था. ऐसा होता भी है हम नहीं चाहते कि हमारे देश हारे लेकिन जीतने के लिए इन खिलाड़ियों के पास उतनी सुविधा तो हो...ऐसे स्तिथि में भी हम मेडल की आस लगाए बैठे हैं.
असल में,न्यूज एजेंसी ANI ने ट्विटर पर कुछ तस्वीरें शेयर कीं. जिसके कैप्शन में लिखा था, ‘झारखंड का यह दृश्य हॉकी खिलाड़ी सलीमा टेटे के निवास स्थान के हैं, जो झारखंड के सिमडेगा जिला के बड़की छापर गांव में स्थित है. सलीमा, भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा हैं, जो ओलंपिक में टीम को मेडल जीताने के लिए लड़ीं.’ ये तस्वीरें थोड़ी ही देर में वायरल हो गईं और लोगों ने कलेजा चीर देने वाली बातें कहीं. हम इन तस्वीरों के बारे में ज्यादा नहीं बताएंगे क्योंकि हर तस्वीर अपनी कहानी कह रही है जिसमें सलीमा का संघर्ष दिख रहा है.
जिन देशों ने पदक जीता है, क्या उनके यहां के एथलीट्स की हालात ऐसी है कि उन्हें रात के खाने के लिए भी सोचना पड़ता है. क्या उन्हें जाति के नाम पर गाली देकर उनके परिवार वालों को प्रताड़ित किया जाता है. हमारे देश में सिर्फ मेडल की लड़ाई थोड़ी है, इसके अवाला भी 10 बाते हैं जिनसे खिलाड़ियों को जूझना पड़ता है.
आज इन खिलाड़ियों की हालत देख पूरा सोशल मीडिया रो पड़ा...लोगों के दिल टूट गया. अब शायद उन लोगों को भी तसल्ली मिल गई होगी जो हॉकी की तुलना क्रिकेट से करने लगे थे. अच्छी बात यह बात है कि लोगों ने भारतीय महिला हॉकी टीम का हौसला बढ़ाया. लोगों ने कहा तुम इस हाल में भी ओलंपिक में पहुंचीं, यही बड़ी बात है, तुम ही हमारे लिए गोल्ड हो. देर ही सही लोगों को कद्र समझा तो सही.
सच में टोक्यो ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन करने से पहले महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों को जानता ही कौन था...इन्होंने इस बार खिलाड़ियों ने इतना तो कर ही दिया है कि शायद अब इन्हें वो सारी सुविधाएं मिलें जिससे ये और बेहतर कर पाएं. लोग अब इन्हें पहचानने लगे हैं, इनका हौसला बढ़ा रहे हैं. इन्हें सैल्यूट कर रहे हैं. इनके शानदार खेलने की वजह से अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम हुआ है. भारतीय हॉकी टीम को अब पूरी दुनिया जानती है.
वो खिलाड़ी जो गम को पी गई
जिंदगी में पिता का साया होना कितना जरूरी है, यह बताने वाली बात नहीं. पिता के होते हुए लगता है कि सारा खजाना हमारी जेब में है. हॉकी मैच में सबसे ज्यादा गोल दागने वाली खिलाड़ी वंदना कटारिया ने की जितनी तारीफ की जाए कम है. इसके बाद भी इनके घर पर हमला हुआ. सेमीफाइनल में टीम अर्जेंटीना से हारने के बाद वंदना के परिवारवालों को जातिसूचक गालियां दी गईं.
क्या आपको पता है कि 30 मई को वंदना के पिता की मौत हो गई थी फिर भी वे नेशनल कैंप से घर नहीं आईं थीं, क्योंकि उन्हें पिता के सपने को पूरा करना था. इनकी इच्छा थी कि बेटी ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीते. इसलिए वे इस गम को दिल में दबाए हुए प्रैक्टिस करती रहीं. ये कहानी कितनी फिल्मी लगती है लेकिन हकीकत यही है.
काल्पनिक फिल्मों में मेडल जीतना कितना आसना होता है लेकिन हकीकत की कहानी आपके सामने हैं. हमारे देश की बेटियां आज हारी नहीं हैं बल्कि अपने आक्रमक खेल की वजह से भारतीय पूरे देश का दिल जीत लिया है…
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.