52 साल की उम्र अधिक नहीं होती, खासतौर पर यह उम्र अगर लेग स्पिन की कला के उस्ताद शेन वॉर्न की हो, तो कत्तई नहीं. दुनिया के महान स्पिनर में शुमार ऑस्ट्रेलिया के शेन वॉर्न का निधन हो गया है. लट्टू की तरह गेंद को नचाने वाले कलाई के जादूगर का जादू तिलिस्म अनंत में खो गया है. आप वॉर्न को उनकी जिंदगी के विवादों और बयानों से परे, सिर्फ मैदान में सफेद या रंगीन कपड़ों में लाल या सफेद गेंद फेंकने वाले गेंदबाज की निगाह से देखें तो आपको पता चलेगा, आज क्रिकेट की दुनिया में हमने क्या खो दिया है. वह शांत देहभाषा के साथ गेंदबाजी करते थे. अंपायर से बस चंद कदम दूर जाकर पॉपिंग क्रीज के कोने के पास अपने रन-अप में वह बस मछली की घात में उसकी तरफ खामोशी से बढ़ते बगूले की जैसे दबे पांव से आते, फिर उनका सिर झुकता, उनके सुनहरी जुल्फें हवा में लहरातीं लेकिन उन जुल्फों के पीछे से चतुर-सुजान आंखें बल्लेबाज की तरफ टंगी होतीं और फिर इस प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण काम होता. गेंद की सिलाई को दुश्मन की गरदन की तरह उंगलियों में फंसाए वॉर्न गेंद रिलीज करते और अपनी गेंद को पर्याप्त धीमी रखते और फ्लाइट देते थे.
हवा में उड़ान भरती चिड़िया जैसी गेंद बल्लेबाज की तरफ आती, तो अमूमन बल्लेबाज उसके टप्पे का अंदाजा नहीं लगा पाते. अंदाजा लगा भी लिया तो अधिकतर यह भांपने में चकमा खा जाते कि टप्पा खाकर गेंद किधर निकलेगी, और कितना निकलेगी. यह जादू था. यही वॉर्न की अय्यारी थी. दुनिया भर के गेंदबाज उनकी कलाई के घुमाव से चकित रहते थे और बेशक, खौफ खाते थे.
शेन वॉर्न की गेंदों पर विकेट पर मौजूद बल्लेबाज ताता-थैया करने को मजबूक होते थे. टेस्ट क्रिकेट में उनकी शुरुआत 1992 में सिडनी से हुई थी....
52 साल की उम्र अधिक नहीं होती, खासतौर पर यह उम्र अगर लेग स्पिन की कला के उस्ताद शेन वॉर्न की हो, तो कत्तई नहीं. दुनिया के महान स्पिनर में शुमार ऑस्ट्रेलिया के शेन वॉर्न का निधन हो गया है. लट्टू की तरह गेंद को नचाने वाले कलाई के जादूगर का जादू तिलिस्म अनंत में खो गया है. आप वॉर्न को उनकी जिंदगी के विवादों और बयानों से परे, सिर्फ मैदान में सफेद या रंगीन कपड़ों में लाल या सफेद गेंद फेंकने वाले गेंदबाज की निगाह से देखें तो आपको पता चलेगा, आज क्रिकेट की दुनिया में हमने क्या खो दिया है. वह शांत देहभाषा के साथ गेंदबाजी करते थे. अंपायर से बस चंद कदम दूर जाकर पॉपिंग क्रीज के कोने के पास अपने रन-अप में वह बस मछली की घात में उसकी तरफ खामोशी से बढ़ते बगूले की जैसे दबे पांव से आते, फिर उनका सिर झुकता, उनके सुनहरी जुल्फें हवा में लहरातीं लेकिन उन जुल्फों के पीछे से चतुर-सुजान आंखें बल्लेबाज की तरफ टंगी होतीं और फिर इस प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण काम होता. गेंद की सिलाई को दुश्मन की गरदन की तरह उंगलियों में फंसाए वॉर्न गेंद रिलीज करते और अपनी गेंद को पर्याप्त धीमी रखते और फ्लाइट देते थे.
हवा में उड़ान भरती चिड़िया जैसी गेंद बल्लेबाज की तरफ आती, तो अमूमन बल्लेबाज उसके टप्पे का अंदाजा नहीं लगा पाते. अंदाजा लगा भी लिया तो अधिकतर यह भांपने में चकमा खा जाते कि टप्पा खाकर गेंद किधर निकलेगी, और कितना निकलेगी. यह जादू था. यही वॉर्न की अय्यारी थी. दुनिया भर के गेंदबाज उनकी कलाई के घुमाव से चकित रहते थे और बेशक, खौफ खाते थे.
शेन वॉर्न की गेंदों पर विकेट पर मौजूद बल्लेबाज ताता-थैया करने को मजबूक होते थे. टेस्ट क्रिकेट में उनकी शुरुआत 1992 में सिडनी से हुई थी. वह भी भारत के खिलाफ. सिडनी टेस्ट में भले ही भारतीय बल्लेबाजों ने वॉर्न को पदार्पण टेस्ट में विकेट के लिए तरसा दिया हो और कूट-कूटकर गेंद के धागे खोल दिए हों—पहली पारी में रवि शास्त्री का विकेट उन्होंने लिया था, और इसके लिए 150 रनों की बड़ी कीमत चुकाई थी--पर एक बार वॉर्न ने खेल की इस विधा में लय पकड़ लिया तो फिर दुनिया ने देखा कि उनका कोई सानी नहीं.
वॉर्न, बेशक क्रिकेट के संगीत, जिसमें विलो की लकड़ी पर चमड़े की गेंद के टकराने से पैदा हुआ ताल शामिल होता है, के संगीतकार थे और वह इसके सुर साधने में सिद्धहस्त थे. गेंद की चमक गई नहीं, गेंद का चमड़ा थोड़ा-सा चमड़ा रुखड़ा हुआ नहीं कि वॉर्न विलंबित ताल पकड़ते थे और फिर, द्रुत और सम पर आते-जाते रहते थे. क्रिकेटरों के लिए वॉर्न कभी आसान नहीं रहे, उनको खेलना कठिन था. पर दर्शक तो दर्शक, विपक्षी बल्लेबाज भी उनकी गेंदबाजी के दीवाने थे.
आखिर, जिस गेंदबाज की घूमती गेंद ने एशेज में इंग्लैंड के घर में माइक गैंटिंग को ऐसे आउट किया, कि गैटिंग खुद चकरा गए थे. गेंद ने लेग स्टंप के बाहर टप्पा खाया और मिट्टी छोड़कर तेजी से निकली और समकोण पर घूमती हुई गैटिंग के ऑफ स्टंप से जा टकराई थी. यही गेंद थी 'बॉल ऑफ द सेंचुरी', यानी सदी की बॉल. क्रिकेट प्रशंसकों के लिए उम्र भर याद रखने वाली गेंद रही है यह. शेन वार्न ने अपने करियर के दौरान 145 टेस्ट मैच में 708 विकेट उड़ाए थे, जबकि 194 वनडे मैचों में 293 विकेट उनके खाते में दर्ज हैं.
वैसे एक बात बता दें, गेंदबाजी के साथ उनने बल्लेबाजी में भी जौहर दिखाए पर शतक नहीं लगाया कभी. वार्न ने टेस्ट क्रिकेट में 3154 रन भी बनाए, जो बिना शतक के किसी भी बल्लेबाज के सबसे ज्यादा रन का विश्व रिकॉर्ड है. वार्न ने टेस्ट क्रिकेट में 12 पचासे ठोंके, लेकिन उनका उच्चतम स्कोर 99 रन रह गया, जो उन्होंने 2001 में न्यूजीलैंड के खिलाफ पर्थ टेस्ट में बनाया था.
इसके अलावा भी वार्न एक बार और शतक के करीब पहुंचकर चूक गए थे. वनडे में भी उन्होंने 1018 रन बनाए. वे दुनिया के उन चुनिंदा क्रिकेटर्स में शामिल हैं, जिनके नाम पर टेस्ट और वनडे, दोनों में बल्ले से 1000+ रन और गेंद से 200+ विकेट दर्ज हैं. बहरहाल, वॉर्न से जुड़ा एक दिलचस्प प्रसंग है. प्रसंग तो कई हैं और इनमें से एक शारजाह में भारतीय क्रिकेट के सम्राट सचिन तेंडुलकर और फिरकी मास्टर वॉर्न के बीच ताबड़तोड़ कुटाई के किस्से का जिक्र तो हजारों बार हो चुका है.
ऐसा ही एक मौका था, जिसका जिक्र वॉर्न ने अपनी आत्मकथा में किया है. एक बार बल्लेबाजी के छोर पर तेंडुलकर थे और दूसरे छोर पर सौरभ गांगुली थे. गांगुली की तुनकमिजाजी को वॉर्न अच्छे से जानते थे. तेंडुलकर ने वॉर्न की गेंद पर चौका या संभवतया छक्का जड़ा तो वॉर्न भारत के क्रिकेट शहंशाह की तरफ न जाकर, ‘प्रिंस ऑफ कैलकूटा’ यानी गांगुली की तरफ आए और बोले, देखो, लोग तुम्हें नहीं तेंडुलकर को देखने आते हैं क्योंकि वह छक्के मारता है.
अगले ओवर में वॉर्न और गांगुली आमने-सामने थे. शायद, वॉर्न की चुटीली स्लेजिंग का असर गांगुली पर हो गया था क्योंकि गांगुली ने वॉर्न को आगे बढ़कर लॉन्ग ऑन पर छक्का मारने की कोशिश की और स्टंप्ड हो गए. अपनी निजी जिंदगी में वॉर्न बेशक बैड बॉय रहे और उनकी मौत पर भी उनकी गेंदों की तरह की फिरकी यानी रहस्य के बादल हैं.
आज सुबह विकेट कीपर मार्श के निधन और शाम में वॉर्न की मौत से ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में सनाका खिंच गया है क्योंकि अपने उत्थान के दिनों में ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के अजेय रथ के सात घोड़ों में से एक घोड़े शेन वॉर्न ही थे.
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