'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर भारत के पूर्व धावक मिल्खा सिंह जी अब इस दुनिया में नहीं रहे. अपने जीवन काल में ही किवदंती बन चुके मिल्खा सिंह के निधन पर हर कोई दुःखी है. सोशल मीडिया पर भी बड़ी संख्या में लोग अपने प्रिय खिलाड़ी को याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं. अपने स्टेटस और स्टोरी में उनके चित्र लगा रहें है जो आम भारतीयों में उनके सम्मान और लोकप्रियता को दर्शाता है.
सन 1932 में पाकिस्तान में जन्में मिल्खा सिंह भारत की आज़ादी के समय विभाजन के बाद अपने परिवार को दंगों में खोने के बाद किसी तरह बचते बचाते भारत आए. बाद में वे सन 1951 भारतीय सेना में भर्ती हुए. जैसा कि हम सब जानते है कि सेना में खिलाड़ियों को मिलने वाली अतिरिक्त खुराक के लालच में मिल्खा सिंह लंबी दूरी की दौड़ में हिस्सा लेने का फैसला किया. इसके बाद तो मिल्खा सिंह ऐसा दौड़े कि कुछ वर्षों में भारत ही नहीं बल्कि एशिया के सर्वश्रेष्ठ धावक के रूप में प्रतिष्ठित हो गए.
एक बात मैं यहां ज़रूर कहना चाहूंगा कि हम भारतीयों के लोकमानस में वर्तमान में सबसे प्रसिद्ध खेल क्रिकेट के नायक सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन और धोनी के अतिरिक्त अन्य खेलों में कुछ ही ऐसे नाम है, जैसे हाकी के मेज़र ध्यानचंद, कुश्ती के दारा सिंह और दौड़ में मिल्खा सिंह जो एकसमान रूप से हम भारतीयों के लोक मानस में सर्वोच्च स्थान पर रच बस चुके हैं. इन सबकी कहानियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी ऐसे हस्तांतरित हुई जैसे हम अपने पौराणिक या धार्मिक नायकों और योद्धाओं को याद रखते हैं.
यह समझना भी अपने आप में रोचक है कि लोग अपने बच्चों को इन सब की कहानियां इसी रूप में सुनाते रहे मानों यह सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं...
'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर भारत के पूर्व धावक मिल्खा सिंह जी अब इस दुनिया में नहीं रहे. अपने जीवन काल में ही किवदंती बन चुके मिल्खा सिंह के निधन पर हर कोई दुःखी है. सोशल मीडिया पर भी बड़ी संख्या में लोग अपने प्रिय खिलाड़ी को याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं. अपने स्टेटस और स्टोरी में उनके चित्र लगा रहें है जो आम भारतीयों में उनके सम्मान और लोकप्रियता को दर्शाता है.
सन 1932 में पाकिस्तान में जन्में मिल्खा सिंह भारत की आज़ादी के समय विभाजन के बाद अपने परिवार को दंगों में खोने के बाद किसी तरह बचते बचाते भारत आए. बाद में वे सन 1951 भारतीय सेना में भर्ती हुए. जैसा कि हम सब जानते है कि सेना में खिलाड़ियों को मिलने वाली अतिरिक्त खुराक के लालच में मिल्खा सिंह लंबी दूरी की दौड़ में हिस्सा लेने का फैसला किया. इसके बाद तो मिल्खा सिंह ऐसा दौड़े कि कुछ वर्षों में भारत ही नहीं बल्कि एशिया के सर्वश्रेष्ठ धावक के रूप में प्रतिष्ठित हो गए.
एक बात मैं यहां ज़रूर कहना चाहूंगा कि हम भारतीयों के लोकमानस में वर्तमान में सबसे प्रसिद्ध खेल क्रिकेट के नायक सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन और धोनी के अतिरिक्त अन्य खेलों में कुछ ही ऐसे नाम है, जैसे हाकी के मेज़र ध्यानचंद, कुश्ती के दारा सिंह और दौड़ में मिल्खा सिंह जो एकसमान रूप से हम भारतीयों के लोक मानस में सर्वोच्च स्थान पर रच बस चुके हैं. इन सबकी कहानियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी ऐसे हस्तांतरित हुई जैसे हम अपने पौराणिक या धार्मिक नायकों और योद्धाओं को याद रखते हैं.
यह समझना भी अपने आप में रोचक है कि लोग अपने बच्चों को इन सब की कहानियां इसी रूप में सुनाते रहे मानों यह सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं बल्कि लोक के सामान्य जीवन और आचरण में मानक भी रहे हों. मिल्खा सिंह की छवि भी ऐसे ही नायक के रूप में ख्यात रही है. व्यवहार की सरलता और देश के प्रति अपना सब कुछ न्यौछावर करने का जज़्बा ही मिलकर किसी सामान्य इंसान को मिल्खा सिंह बनाती है.
हमें यह भी याद रखना होगा कि मिल्खा सिंह ने जो कुछ भी सीखा बिना किसी औपचारिक ट्रेनिंग के दौड़ के मैदान में ही सीखा. एक बार आप इनकी उपलब्धियों को इस तथ्य के साथ देखे फिर समझ जायेंगे कि क्यों कोई यूं हीं मिल्खा सिंह नहीं बन जाता. मिल्खा सिंह प्रथम भारतीय धावक है जिन्होंने 400 मीटर की दौड़ में एशियाई खेलों के साथ साथ कॉमनवेल्थ खेलों में भी गोल्ड मेडल जीता हुआ था.
सन् 1958 के टोक्यो एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल हासिल किया था. टोक्यो में ही 200 मीटर की वह प्रसिद्ध दौड़ हुई जिसमें मिल्खा सिंह ने अपनी हंसी उड़ाने वाले पाकिस्तानी धावक 'अब्दुल खालिक' जो कि उस समय एशिया के सर्वश्रेष्ठ धावक थे ,उनको बहुत बारीक अंतर से हराकर उनकी एशियाई सर्वश्रेष्ठता को ध्वस्त कर दिया. इसी प्रकार सन् 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर और 4× 400 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड मेडल हासिल किया था.
1958 के कार्डिफ़ कॉमनवेल्थ खेलों में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल हासिल किया था. इस दौड़ को ख़त्म करने के बाद मिल्खा सिंह मैदान में ही बेहोश हो गए. इसी दौड़ के बाद विजयलक्ष्मी पंडित ने जब मिल्खा सिंह से यह कहा कि प्रधानमंत्री नेहरू जी ने इस जीत पर बधाई के साथ उनसे कुछ भी चीज़ मांग लेने का प्रस्ताव भेजा है तो जवाब में मिल्खा सिंह ने अपने सरल व्यवहार के अनुरूप तमाम वैभव या सुख की लालसा को दरकिनार करने हुए विजय लक्ष्मी पंडित से कहा कि 'जिस दिन वह भारत वापस आए उस दिन देश भर में अवकाश कर दिया जाए.'
ओलंपिक में 1960 के रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की दौड़ 45.73 सेकेंड में पूरी की थी, वे जर्मनी के एथलीट से सेकेंड के मात्र सौवें हिस्से से पिछड़ गए थे. हालांकि ओलंपिक में मिल्खा सिंह के नाम कोई पदक नहीं है लेकिन उन्होंने जितने भी दौड़ या पदक जीते है उतना उनकी महानता के बखान के लिए पर्याप्त है. मैं फिर कहूंगा कि लोकमानस में सम्मान के साथ जगह बनाना और जिंदगी भर उस पर काबिज़ रहना विरले लोगों को नसीब होता है.
क्रिकेट के भगवान भारत रत्न सचिन तेंडुलकर यूं ही नहीं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह कहते है कि 'आपके निधन से हर भारतीय के मन में ख़ालीपन घर कर गया है. लेकिन आप आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरणा देते रहेंगे'.
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