भारतीय क्रिकेट के सबसे महानतम युग के सबसे बड़े खिलाड़ी के करियर ने 15 अगस्त 2020 को बड़ी शांति से करवट ले ली और दुनिया भर के लाखों-करोड़ों फैंस को यादों में समुंदर में डुबो दिया, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां हैं और उनकी सबसे बड़ी वजह- माही. एक ऐसा नाम, जिसकी शाब्दिक व्याख्या करें तो इसका अर्थ ‘सबसे प्यारा’ होता है. महेंद्र सिंह धोनी वाकई सबके प्यारे हैं. बीते शनिवार को उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया. अब दुनिया उन्हें कभी भी नीली जर्सी में देख नहीं पाएगी. टेस्ट क्रिकेट से पहले ही संन्यास ले चुके धोनी ने स्वतंत्रता दिवस के दिन खुद को भारतीय क्रिकेट टीम से स्वतंत्र कर दिया. लंबे समय से उनके रिटायरमेंट के कयास लग रहे थे और माही ने बड़ी शांति से रिटायरमेंट की घोषणा करते हुए अपने करोड़ों फैंस से बस इतना कहा- आपके साथ और प्यार के लिए शुक्रिया. महेंद्र सिंह धोनी जैसा खिलाड़ी सदियों में होता है, जो करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर खड़ा उतरना के साथ ही अपने साथ के खिलाड़ियों के लिए न सिर्फ प्रेरणास्रोत बनता है, बल्कि छोटे शहरों के लाखों-करोड़ों लोगों को सपना देखने लायक बनाता है और कड़ी मेहनत से चुनौतियों से पार पाने का हौसला भरता नजर आता है. रांची के लाडले धोनी ऐसे ही खिलाड़ी थे, जिन्होंने लाखों-करोड़ों लोगों को न सिर्फ क्रिकेट के माध्यम से अनगिनत खुशियां और यादें दीं, बल्कि लाखों लोगों के सपने देखने की वजह बने.
रांची जैसे टीयर 2 सिटी या छोटे शहर से निकले धोनी की कहानी तो आप साल 2016 में आई सुशांत सिंह राजपूत की प्रमुख भूमिका वाली फ़िल्म M.S. Dhoni: The ntold Story में देख ही चुके हैं. लेकिन धोनी ऐसे शख्स थे, जिन्होंने क्रिकेट समेत अन्य स्पोर्ट्स हो, एक्टिंग हो, बिजनेस हो या पैसा या शोहरत कमाने की अन्य विधाएं, हर फील्ड के लोगों को मेहनत करना और चुनौतियों से पार पाते हुए अपने फील्ड में ऊंचा करने का हौसला दिया. उन्होंने साबित किया कि अगर मौका मिले तो छोटे शहर में पले-बढ़े और सीमित संशाधनों में भी बच्चे इतना कुछ कर सकते...
भारतीय क्रिकेट के सबसे महानतम युग के सबसे बड़े खिलाड़ी के करियर ने 15 अगस्त 2020 को बड़ी शांति से करवट ले ली और दुनिया भर के लाखों-करोड़ों फैंस को यादों में समुंदर में डुबो दिया, जहां सिर्फ और सिर्फ खुशियां हैं और उनकी सबसे बड़ी वजह- माही. एक ऐसा नाम, जिसकी शाब्दिक व्याख्या करें तो इसका अर्थ ‘सबसे प्यारा’ होता है. महेंद्र सिंह धोनी वाकई सबके प्यारे हैं. बीते शनिवार को उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया. अब दुनिया उन्हें कभी भी नीली जर्सी में देख नहीं पाएगी. टेस्ट क्रिकेट से पहले ही संन्यास ले चुके धोनी ने स्वतंत्रता दिवस के दिन खुद को भारतीय क्रिकेट टीम से स्वतंत्र कर दिया. लंबे समय से उनके रिटायरमेंट के कयास लग रहे थे और माही ने बड़ी शांति से रिटायरमेंट की घोषणा करते हुए अपने करोड़ों फैंस से बस इतना कहा- आपके साथ और प्यार के लिए शुक्रिया. महेंद्र सिंह धोनी जैसा खिलाड़ी सदियों में होता है, जो करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर खड़ा उतरना के साथ ही अपने साथ के खिलाड़ियों के लिए न सिर्फ प्रेरणास्रोत बनता है, बल्कि छोटे शहरों के लाखों-करोड़ों लोगों को सपना देखने लायक बनाता है और कड़ी मेहनत से चुनौतियों से पार पाने का हौसला भरता नजर आता है. रांची के लाडले धोनी ऐसे ही खिलाड़ी थे, जिन्होंने लाखों-करोड़ों लोगों को न सिर्फ क्रिकेट के माध्यम से अनगिनत खुशियां और यादें दीं, बल्कि लाखों लोगों के सपने देखने की वजह बने.
रांची जैसे टीयर 2 सिटी या छोटे शहर से निकले धोनी की कहानी तो आप साल 2016 में आई सुशांत सिंह राजपूत की प्रमुख भूमिका वाली फ़िल्म M.S. Dhoni: The ntold Story में देख ही चुके हैं. लेकिन धोनी ऐसे शख्स थे, जिन्होंने क्रिकेट समेत अन्य स्पोर्ट्स हो, एक्टिंग हो, बिजनेस हो या पैसा या शोहरत कमाने की अन्य विधाएं, हर फील्ड के लोगों को मेहनत करना और चुनौतियों से पार पाते हुए अपने फील्ड में ऊंचा करने का हौसला दिया. उन्होंने साबित किया कि अगर मौका मिले तो छोटे शहर में पले-बढ़े और सीमित संशाधनों में भी बच्चे इतना कुछ कर सकते हैं कि दुनिया उन्हें वर्षों याद करने के लिए मजबूर हो जाए. छोटे शहरों के टैलेंट के सबसे बड़े प्रतिनिधि और हर चुनौतियों को निर्भयता से पार कर दुनिया को अपने कदमों में झुकाने की काबिलियत किसी में थी, तो वह धोनी थे. धोनी का प्रभाव ऐसा था कि चाहे बिजनेस हो, स्टार्टअप्स हो, फिल्म इंडस्ट्री हो अन्य विधाएं, छोटे शहरों के काबिल लोगों की फेहरिस्त में धोनी सबसे ऊंचे पायदान पर दिखते हैं और वह छोटे शहरों के लोगों के लिए सबसे बड़े प्रेरणास्रोत हैं.
छोटे शहरों का सबसे बड़ा नाम
महेंद्र सिंह धोनी ने एक तरह से छोटे शहरों के टैलेंट का प्रतिनिधित्व किया और बाकी लोगों को अपने सपने के पीछे भागने का हौसला दिया. साल 2006-07 के दौर में जब इंटरनेट का आगमन हो चुका था और दुनिया तेजी से बदल रही थी. उस समय हर फील्ड में छोटे शहरों के लोगों की भूमिका बढ़ रही थी. फ़िल्मों में इरफान, अनुराग कश्यप, नवाजुद्दीन सिद्दीकी समेत ढेरों नए चेहरे स्थापित हो रहे थे, वहीं टाटा, बिरला जैसी स्थापित कंपनियों की भीड़ में कई नए स्टार्टअप्स अपनी जगह बनाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे. उस दौर में हर किसी की जुबान पर था कि देखो, धोनी जब मेहनत से इतना ऊंचा मुकाम हासिल कर सकता है तो फिर हम क्यों नहीं कर सकते. जिस तरह 80 के दशक में पैदा हुए हर खिलाड़ी के आदर्श सचिन थे, उसी तरह 90 के दशक में पैदा हर खिलाड़ी और जीवन में कुछ बड़ा करने की ख्वाहिशों के गुलाम हर शख्स की जुबां पर धोनी एक उदाहरण और सच के तौर पर थे.
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