वह रियो ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में अपने देश की ध्वजवाहक थीं. रियो ओलंपिक में भाग लेने वाली वह अपने देश की एकमात्र महिला एथलीट हैं. जिस देश को सिर्फ हिंसा और आतंकवाद के लिए जाना जाता हो, वहां की एक महिला एथलीट का ओलंपिक में भाग लेने का सफर निश्चित तौर पर काबिलेतारीफ है.
इस खिलाड़ी का नाम है किमिया युसुफी, जोकि रियो ओलंपिक में अफगानिस्तान की तरफ से भाग लेने वाली एकमात्र महिला एथलीट हैं. किमिया युसुफी रियो में अफगानिस्तान की तरफ से ट्रैक ऐंड फील्ड स्पर्धा में हिस्सा ले रही हैं. किमिया की कहानी न सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि पूरी दुनिया की लड़कियों के प्रेरणास्रोत है, आइए जानिए किमिया युसुफी की कहानी.
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उम्मीद की किरण जगाती हैं किमिया युसुफी!
हिंसा, आंतकवाद और गरीबी से जूझने वाले देश अफगानिस्तान जैसे देश से अगर कोई महिला ओलंपिक का सफर तय करती है तो निश्चित तौर पर उसकी मेहनत, लगन और हिम्मत की तारीफ होनी ही चाहिए. 22 वर्षीय किमिया युसुफी वर्ष 1994 में ईरान में जन्मी एक अफगानी शरणार्थी हैं.
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लेकिन उनके लिए ईरान में जिंदगी कतई आसान नहीं रही. अफगानी शरणार्थियों के खिलाफ ईरान में कड़े प्रतिबंधों की वजह से किमिया को ईरानी एथलीटों के साथ प्रतिस्पर्धा का मौका नहीं मिल सका. लेकिन जब वह 17 साल की थीं, तो उन पर प्रतिभाशाली महिला एथलीटों की खोज में लगे अफगानी अधिकारियों की नजर...
वह रियो ओलंपिक के उद्घाटन समारोह में अपने देश की ध्वजवाहक थीं. रियो ओलंपिक में भाग लेने वाली वह अपने देश की एकमात्र महिला एथलीट हैं. जिस देश को सिर्फ हिंसा और आतंकवाद के लिए जाना जाता हो, वहां की एक महिला एथलीट का ओलंपिक में भाग लेने का सफर निश्चित तौर पर काबिलेतारीफ है.
इस खिलाड़ी का नाम है किमिया युसुफी, जोकि रियो ओलंपिक में अफगानिस्तान की तरफ से भाग लेने वाली एकमात्र महिला एथलीट हैं. किमिया युसुफी रियो में अफगानिस्तान की तरफ से ट्रैक ऐंड फील्ड स्पर्धा में हिस्सा ले रही हैं. किमिया की कहानी न सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि पूरी दुनिया की लड़कियों के प्रेरणास्रोत है, आइए जानिए किमिया युसुफी की कहानी.
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उम्मीद की किरण जगाती हैं किमिया युसुफी!
हिंसा, आंतकवाद और गरीबी से जूझने वाले देश अफगानिस्तान जैसे देश से अगर कोई महिला ओलंपिक का सफर तय करती है तो निश्चित तौर पर उसकी मेहनत, लगन और हिम्मत की तारीफ होनी ही चाहिए. 22 वर्षीय किमिया युसुफी वर्ष 1994 में ईरान में जन्मी एक अफगानी शरणार्थी हैं.
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लेकिन उनके लिए ईरान में जिंदगी कतई आसान नहीं रही. अफगानी शरणार्थियों के खिलाफ ईरान में कड़े प्रतिबंधों की वजह से किमिया को ईरानी एथलीटों के साथ प्रतिस्पर्धा का मौका नहीं मिल सका. लेकिन जब वह 17 साल की थीं, तो उन पर प्रतिभाशाली महिला एथलीटों की खोज में लगे अफगानी अधिकारियों की नजर पड़ी.
किमिया युसुफी रियो ओलंपिक में भाग लेने वाली अफगानिस्तान की एकमात्र महिला खिलाड़ी हैं |
इसके बाद तीन साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद 2016 के दक्षिण एशियाई खेलों में उन्होंने अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व किया. हालांकि वह सैफ खेलों में कोई मेडल तो नहीं जीत पाई लेकिन अपने प्रदर्शन से सभी को प्रभावित जरूर किया.
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उनके प्रदर्शन से प्रभावित अफगानी अधिकारियों ने उन्हें अफगानिस्तान की ओलंपिक टीम के लिए चुना. रियो ओलंपिक में अफगानिस्तान की तरफ से सिर्फ तीन खिलाड़ी ही हिस्सा ले रहे हैं और उसमें शामिल एकमात्र महिला खिलाड़ी किमिया युसुफी हैं. अफगानिस्तान ने उन्हें रियो में अपना ध्वजवाहक बनाया.
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रियो ओलंपिक में जहां बाकी एथलीटों का लक्ष्य सिर्फ मेडल पर कब्जा जमाना होगा तो वहीं किमिया इस मंच से दुनिया को अपने देश के बारे में कुछ संदेश देना चाहती हैं. वह कहती हैं, ‘वैसे तो मेरे देश के सामने कई मुद्दे हैं, लेकिन मैं दुनिया के सामने ये साबिक करूंगी कि हम प्रयास कर रहे हैं.’
किमिया युसुफी की कहानी तमाम मुश्किलों के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने की कोशिशों में जुटी दुनिया की हर लड़की के लिए प्रेरणास्रोत है!
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