मिताली राज (Mithali Raj) ने 39 साल की उम्र में क्रिकेट से सन्यास ले लिया. वह जो क्रिकेट के बिना रहने का सोच नहीं सकतीं थीं, लेकिन हर खिलाड़ी का एक वक्त ऐसा आता है, जब उसे खेल को अलविदा कहना पड़ता है. मिताली भारत की सर्वश्रेष्ठ महिला बल्लेबाज हैं, हालांकि उन्हें वह स्टारडम कभी नहीं मिला जो किसी पुरुष कप्तान को मिलता है. ना ही लोगों के अंदर महिला खिलाड़ियों को लेकर वह क्रेज रहा है जो पुरुष खिलाड़ियों के लिए होता है.
ऐसा लगता है महिला खिलड़ियों की बात करके किसी ने उनपर एहसान कर दिया हो. लोग कहते हैं कि 21वीं सदी में पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर खत्म हो गया है, लेकिन यह अंतर महिला और पुरुष क्रिकेट जगत में हम सरेआम देख सकते हैं. दोनों के खेल के तरीके में ही अंतर है तो बाकी का तो छोड़ ही दीजिए.
मिताली से एक बार किसी ने पूछा था कि आप इतनी फेमस क्रिकेटर हैं, क्या लड़कों का अटेंशन मिला...इसपर उन्होंने कहा था कि सच कहूं तो हमें वो अंटेशन नहीं मिलता जो पुरुष खिलाड़ियों को मिलता है.
पिछले साल की ही बात ले लीजिए, जब महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप भारतीय महिला खिलाड़ियों ने पाकिस्तान को हरा दिया था, वो भी एकतरफा. तब भी वह जोश और जुनूनू भारत के क्रिकेट प्रेमियों में देखने को नहीं मिली थी, जो दो देशों के पुरुष क्रिकेट मुकाबले में देखने को मिलता है.
जब पुरुष क्रिकेट टीम मैदान से खेल जीतकर आते हैं तो उनका जोरदार स्वागत होता है, कैप्टन को माला पहनाया जाता है, मीडिया उन्हें हीरो बताती है. लोग उन्हें कंधे पर उठा लेते हैं. मिठाइयां बंटती हैं, जश्न होता है, सोशल मीडिया पर तारीफों के पुल बांधे जाते हैं, लेकिन महिला खिलाड़ियों के साथ...
मिताली राज (Mithali Raj) ने 39 साल की उम्र में क्रिकेट से सन्यास ले लिया. वह जो क्रिकेट के बिना रहने का सोच नहीं सकतीं थीं, लेकिन हर खिलाड़ी का एक वक्त ऐसा आता है, जब उसे खेल को अलविदा कहना पड़ता है. मिताली भारत की सर्वश्रेष्ठ महिला बल्लेबाज हैं, हालांकि उन्हें वह स्टारडम कभी नहीं मिला जो किसी पुरुष कप्तान को मिलता है. ना ही लोगों के अंदर महिला खिलाड़ियों को लेकर वह क्रेज रहा है जो पुरुष खिलाड़ियों के लिए होता है.
ऐसा लगता है महिला खिलड़ियों की बात करके किसी ने उनपर एहसान कर दिया हो. लोग कहते हैं कि 21वीं सदी में पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर खत्म हो गया है, लेकिन यह अंतर महिला और पुरुष क्रिकेट जगत में हम सरेआम देख सकते हैं. दोनों के खेल के तरीके में ही अंतर है तो बाकी का तो छोड़ ही दीजिए.
मिताली से एक बार किसी ने पूछा था कि आप इतनी फेमस क्रिकेटर हैं, क्या लड़कों का अटेंशन मिला...इसपर उन्होंने कहा था कि सच कहूं तो हमें वो अंटेशन नहीं मिलता जो पुरुष खिलाड़ियों को मिलता है.
पिछले साल की ही बात ले लीजिए, जब महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप भारतीय महिला खिलाड़ियों ने पाकिस्तान को हरा दिया था, वो भी एकतरफा. तब भी वह जोश और जुनूनू भारत के क्रिकेट प्रेमियों में देखने को नहीं मिली थी, जो दो देशों के पुरुष क्रिकेट मुकाबले में देखने को मिलता है.
जब पुरुष क्रिकेट टीम मैदान से खेल जीतकर आते हैं तो उनका जोरदार स्वागत होता है, कैप्टन को माला पहनाया जाता है, मीडिया उन्हें हीरो बताती है. लोग उन्हें कंधे पर उठा लेते हैं. मिठाइयां बंटती हैं, जश्न होता है, सोशल मीडिया पर तारीफों के पुल बांधे जाते हैं, लेकिन महिला खिलाड़ियों के साथ ऐसा नहीं होता. जैसे ये खेल रही हैं, यही बडी़ बात है. पटाखे सिर्फ पुरुष खिलाड़ियों के लिए फूटते हैं महिलाओं के लिए नहीं. ना ही महिला खिलाड़ियो ंकी जीत के लिए लोग हवन-पूजन करते हैं.
मिलाती वही हैं जिन्होंने टीम इंडिया के लिए 10,000 से ज्यादा रन बनाए हैं. मिताली राज ने 23 साल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला और महान खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को टक्कर देती हैं. मिताली राज ने खुद कहा था कि 'लोगों का मुझे 'लेडी सचिन तेंदुलकर' कहना सम्मानजनक लगता है लेकिन हमें पुरुषों और महिलाओं के खेल की तुलना करनी ही क्यों चाहिए?
जबकि मिताली कप्तान बनकर सचिन तेंडुलकर से भी आगे निकल गई. वह सफल कप्तान रहीं. वह दो बार टीम को वनडे विश्वकप के फाइनल तक ले कर गईं.
मिताली राज यानी महिला क्रिकेट की सचिन तेंडुलकर लेकिन क्यों?
यह सही है, बेटियां कुछ अच्छा करें तो आप उन्हें गर्व से बोल दो कि, ये तो हमारा बेटा है. वैसे ही अगर महिला खिलाड़ी अच्छा खेल रही है तो उसे लेडी सचिन बना दो. अरे बेटी को बेटी ही कहो और मिताली को उसके नाम से ही बुलाओ, ना कि उसे किसी और के नाम की उपाधि दो.
ऐसे तो वह हमेशा उस नाम के नीचे ही दबी रहेगी. मिताली राज यानी महिला क्रिकेट की सचिन तेंडुलकर लेकिन क्यों? वह मिताली हैं जिन्होंने खुद क्रिकेट जगत में रिकॉर्ड बनाए हैं. आज की युवा महिलाओं की वह आदर्श हैं. उनकी पहचान किसी और के नाम से नहीं होनी चाहिए. उन्होंने अपनी इतनी जगह बना ली है कि उन्हें किसी महान खिलाड़ी का नाम देने की जरूरत ही नहीं है. लेडी सचिन नाम देने से अगर उन्हें कोई नुकसान नहीं है तो फायदा भी नहीं है.
महिला-परुष कप्तानों की सैलरी में 23 गुना का फर्क होता है
साल 2021 में tv9 में छपी एक रोपर्ट के अनुसार, पुरुष और महिला खिलाड़ियों की सैलरी में जमीन-आसमान का अंतर होता है. भारतीय महिला टीम की कप्तान मिताली राज को बीसीसीआई ने बी ग्रेड लिस्ट में रखा था. उस वक्त मिताली का सालाना इनकम 30 लाख रुपये थी, जबकि पुरुष टीम के कप्तान विराट कोहली A+ ग्रेड में थे और उनकी एक साल की सैलरी 7 करोड़ रुपए थी. इस रिपोर्ट के अनुसार तो विराट को मिताली से 23 गुना से ज्यादा सैलरी मिलती थी. सबसे बड़ा अंतर तो यही हैं. इसी तरह पुरुष खिलाड़ियों की तुलना में महिला खिलाड़ियों का इंक्रीमेंट भी कम होने की बातें भी सामने आई हैं.
कोविड टीकाकरण के समय भी भेदभाव का आरोप
इंग्लैंड टूर पर जाने से पहले भारतीय टीम के सभी खिलाड़ियों का कोविड टेस्ट होना जरूरी था. उस समय बीसीसीआई पर यह आरोप लगा था, कि उन्होंने पुरुष खिलाड़ियों के लिए कोविड-19 टेस्ट की व्यवस्था घर पर ही कर दी थी, जबकि महिला खिलाड़ियों को खुद टेस्ट कराने के लिए बोला गया था. हालांकि, जब विवाद बढ़ा तो मिताली राज और हरमनप्रीत कौर ने ही उस वक्त बोर्ड का बचाव किया था.
जब एक बार मिताली से पसंदीदा मेल क्रिकेटर का नाम पूछा गया
असल में हमारे दिमाग में ही पुरुष खिलाडी हावी हैं. एक बार जब रिपोर्टर ने मिताली राज से उनके 'पसंदीदा पुरुष क्रिकेटर का नाम' पूछा था तो, उन्होंने जवाब देते हुए कहा था, 'क्या आप किसी पुरुष क्रिकेटर से पूछते हैं कि उनकी पसंदीदा महिला क्रिकेटर कौन है?' इससे आप समझ सकते हैं कि कहीं ना कहीं उनके मन में इस बात की तकलीफ थी कि इतना अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी वो तवज्जो ना मिली जिसकी वह हकदार थीं.
महिला-पुरुष क्रिकेट खेल में अंतर
महिला क्रिकेट टेस्ट मैच 4 दिन का होता है जबकि पुरुषों का टेस्ट मैच अधिकतर 5 दिनों का होता है. महिला क्रिकेट टेस्ट में प्रतिदिन न्यूनतम 100 ओवर की गेंदबाजी होती है, जबकि पुरुष मैंच में 90 ओवर जरूरी है. महिला टेस्ट मैच में बाउंड्री 55 मीटर और अधिकतम 64 मीटर हो सकती है, जबकि पुरुषों के टेस्ट में यह 59 मीटर और 82 मीटर होती है. महिला खिलाड़ी अंपायर के फैसले को चुनौती नहीं दे सकती हैं जबकि पुरुष क्रिकेट में डीआरएस का इस्तेमाल होता है औऱ वे अंपयर को चुनौती दे सकते हैं. महिला टेस्ट मैच में एक ओवर करने के लिए करीब 3.6 मिनट तय किए गए हैं, जबकि पुरुषों के मैच में यह औसतन 4 मिनट होता है. खिलाड़ियों के मैदान से बाहर रहने के लिए पेनल्टी टाइम भी अलग-अलग है. महिला टेस्ट मैच में पेनल्टी टाइम 110 मिनट का है जबकि पुरुषों के लिए यह 120 मिनट हो जाता है
ना इनके आने का शोर ना जाने का गम
क्रिकेट प्रेमियों को मिताली के क्रिकेट खेलने पर ना इतनी खुशी हुई थी. अब जब उन्होंने खेल को अलविदा कह दिया है तो ना ही इतना गम हो रहा है. जबकि अगर कोई पुरुष खिलाड़ी अच्छा खेलता है तो वह हर तरफ छा जाता है. हर तरफ उसकी तस्वीरें लगती हैं. उसे हर ऐड में देखा जा सकता है. उसके फैंस की दिवानगी देखने बनती है. जबकि महिला खिलाड़ी अच्छा खेलती है तो उसका कितना शोर होता है यह हम जानते है.
मिताली के क्रिकेट छोड़ने पर भी लोगों का अफसोस ही हो रहा है, लेकिन वैसा गमगीन जैसा माहौल नहीं दिख रहा जो पुरुष टीम के कैप्टन के सन्यास लेने पर होता है...खैर, अभी महिला खिलाड़ियों को वक्त लगेगा लेकिन उनका हौंसला तो हम बढ़ा ही सकते हैं. वो भी अपने देश के लिए ही खेलती हैं, उनके यहां तक पहुंचने वाले रास्तों में 10 कांटे भी होते हैं.
मिताली ने तो 10 साल की उम्र क्रिकेट खेलना शुरु किया. वे पिच पर लड़कों के साथ प्रेक्टिस करती थीं. उन्हें इसके लिए लोगों की बातें भी सुनने को मिली लेकिन वो आगे बढ़ना चाहती थीं इसलिए बढ़ती रहीं. और आगे भी हर मिताली बढ़ती ही रहेगी...उनका भी वक्त आएगा...
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