और आखिरकार भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर क्रिकेट में वन डे सीरीज भी जीत ली. इस जीत के बाद भारतीय टीम के बारे में बड़ी-बड़ी बातें लिखी जाएंगी जो सही भी है. कप्तान कोहली की तारीफ में कसीदे गढ़े जाएंगे जो भी सही है. लेकिन इस जीत ने एक बात और गलत साबित कर दी है और वह है मीडिया का किसी भी खिलाड़ी को चंद मैचों के बाद ही राइट ऑफ कर देना.
पिछले कुछ महीनों से एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में तमाम नकारात्मक बातें लिखी जा रही थीं, जिसने भारतीय टीम को बुलंदियों तक पहुंचाया था और अब बढ़ती उम्र के कारण कम मैचों में खेल रहा है. मैं बात कर रहा हूं भारतीय टीम के पूर्व कप्तान और वर्तमान विकेटकीपर महेंद्र सिंह धोनी की. जिनको हर राह चलता आदमी रिटायरमेंट लेने की सलाह देने लगा था. अपने समय में चाहे सचिन रहे हों या सौरव गांगुली, सबको इन परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ा है.
चंद मिनटों में अर्श पर तो चंद मिनटों में फर्श पर पहुंचाने में मीडिया को महारत हासिल है. और जब एक नया खिलाड़ी भी मिल गया है जिसकी बल्लेबाजी के चलते उसकी कमजोर विकेटकीपिंग को दरकिनार करके उसे धोनी का विकल्प मान लिया गया है. इसमें कोई शक नहीं कि एक उम्र के बाद हर खिलाड़ी का खेल ढलान पर आने लगता है और इसका अपवाद कोई भी नहीं रहता. लेकिन जिस खिलाड़ी ने अपनी टीम के बेस्ट फिनिशर का रोल बेहद मजबूती से पिछले कई सालों से निभाया हो उसे सिर्फ कुछ मैचों की असफलता के बाद ही चूका हुआ मान लेना कहीं से भी सही नहीं था.
इस श्रृंखला में धोनी ने न सिर्फ अपनी बल्लेबाजी बल्कि विकेटकीपिंग से भी अपने विरोधियों का मुंह बंद कर दिया है. और सबसे बड़ी बात यह कि एक बार फिर से वह उसी फिनिशिंग में मास्टर दिख रहे हैं जिसमें उनके समकक्ष और कोई भी खड़ा...
और आखिरकार भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर क्रिकेट में वन डे सीरीज भी जीत ली. इस जीत के बाद भारतीय टीम के बारे में बड़ी-बड़ी बातें लिखी जाएंगी जो सही भी है. कप्तान कोहली की तारीफ में कसीदे गढ़े जाएंगे जो भी सही है. लेकिन इस जीत ने एक बात और गलत साबित कर दी है और वह है मीडिया का किसी भी खिलाड़ी को चंद मैचों के बाद ही राइट ऑफ कर देना.
पिछले कुछ महीनों से एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में तमाम नकारात्मक बातें लिखी जा रही थीं, जिसने भारतीय टीम को बुलंदियों तक पहुंचाया था और अब बढ़ती उम्र के कारण कम मैचों में खेल रहा है. मैं बात कर रहा हूं भारतीय टीम के पूर्व कप्तान और वर्तमान विकेटकीपर महेंद्र सिंह धोनी की. जिनको हर राह चलता आदमी रिटायरमेंट लेने की सलाह देने लगा था. अपने समय में चाहे सचिन रहे हों या सौरव गांगुली, सबको इन परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ा है.
चंद मिनटों में अर्श पर तो चंद मिनटों में फर्श पर पहुंचाने में मीडिया को महारत हासिल है. और जब एक नया खिलाड़ी भी मिल गया है जिसकी बल्लेबाजी के चलते उसकी कमजोर विकेटकीपिंग को दरकिनार करके उसे धोनी का विकल्प मान लिया गया है. इसमें कोई शक नहीं कि एक उम्र के बाद हर खिलाड़ी का खेल ढलान पर आने लगता है और इसका अपवाद कोई भी नहीं रहता. लेकिन जिस खिलाड़ी ने अपनी टीम के बेस्ट फिनिशर का रोल बेहद मजबूती से पिछले कई सालों से निभाया हो उसे सिर्फ कुछ मैचों की असफलता के बाद ही चूका हुआ मान लेना कहीं से भी सही नहीं था.
इस श्रृंखला में धोनी ने न सिर्फ अपनी बल्लेबाजी बल्कि विकेटकीपिंग से भी अपने विरोधियों का मुंह बंद कर दिया है. और सबसे बड़ी बात यह कि एक बार फिर से वह उसी फिनिशिंग में मास्टर दिख रहे हैं जिसमें उनके समकक्ष और कोई भी खड़ा नहीं दिखता. अब इस सीरीज की जीत के बाद वही लोग जिन्होंने धोनी को टीम से बाहर मान लिया था, अब उसे विश्व कप की टीम का अभिन्न हिस्सा मानने में भी जरा भी गुरेज नहीं करेंगे.
वैसे तो इस स्तर पर खेलने वाले हर खिलाड़ी को इन चीजों का अनुभव होता ही है और वह इसे खेल का हिस्सा मानकर चलते हैं. लेकिन जिस तरह से कैप्टेन कूल ने अपने आलोचकों का मुंह बंद किया है उससे उन लोगों को दोबारा धोनी के खिलाफ कुछ बोलने या लिखने के पहले दस बार सोचना पड़ेगा. और इसके लिए धोनी को मैन ऑफ़ द सीरीज से बेहतर पुरस्कार भी कोई नहीं हो सकता था.
ये भी पढ़ें-
'फिनिशर' धोनी ने सिडनी के दाग एडिलेड में धो दिए
जूनियर खिलाड़ी को अपशब्द कहकर धोनी ने अपने सिर से 'कूल' का खिताब उतार दिया
जिमनास्टिक्स की माइकल जैक्सन, कहानी भी वैसी ही दर्दभरी
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.