ICC World Cup 2019 में Team India से करारी शिकस्त के बाद Pakistan और कप्तान Sarfaraz Ahmed की चौतरफा आलोचना हो रही है. माना जा रहा है कि selectors ने एक ऐसी team चुनी, जो न सिर्फ फिटनेस के लेवल पर जीरो थी. बल्कि जिसके पास ऐसा कोई ठोस प्लान नहीं था जिसको अमली जामा पहनाते हुए वो जीत दर्ज कर पाए. अब जब सेलेक्टिंग कमिटी में इंजमाम हों तो लाजमी है कि वो उन ही लोगों को टीम में लेंगे जो उनकी विचारधारा से मेल खाते हैं. सरफराज अहमद की ट्विटर प्रोफाइल का रुख करने पर सारी कहानी खुद-ब-खुद हमारे सामने आ जाती है. सरफराज ने अपने बायो में खुद को हाफिज-ए-कुरान और क्रिकेटर लिखा है. अब इतनी बातों और भारत से इतनी शर्मनाक हार के बावजूद टीम पर क्या एक्शन लिया गया वो एक लम्बे वाद का विषय है. मगर ऐसे देश में जहां क्रिकेट ख़ुदा जैसा है वहां सरफराज का अपनी ट्विटर प्रोफाइल पर क्रिकेटर से पहले अपने आपको हाफिज-ए-कुरान बताना वाकई विचलित करता है. कप्तान सरफराज और सिलेक्टर इंजमाम को समझना चाहिए कि मैच जिताने खुदा नहीं आएगा. वो तभी जीता जा सकेगा जब टीम मेहनत करेगी और आज जैसे टीम के हालात हैं, साफ हो जाता है कि टीम के लिए अल्लाह के बल पर जीतना दूर के सुहावने ढोल हैं
बात समझने के लिए हमारे लिए कुछ बातें समझनी बहुत जरूरी है. 1990 से 2000 इन 10 सालों को अंतरराष्ट्रीय Cricket के लिहाज से काफी अहम माना जाता है. कई ऐसी नई तकनीकें थीं जो इन 10 सालों में विकसित हुईं. इन 10 सालों को अगर गहनता से देखें तो मिलता है कि ये 10 साल अगर किसी टीम के लिए बेहद खास थे वो टीम और कोई नहीं बल्कि Pakistan थी. माना जाना है कि इन 12 सालों में पाकिस्तान ने ऐसा बहुत कुछ हासिल कर लिया था जिसके दम पर उसका...
ICC World Cup 2019 में Team India से करारी शिकस्त के बाद Pakistan और कप्तान Sarfaraz Ahmed की चौतरफा आलोचना हो रही है. माना जा रहा है कि selectors ने एक ऐसी team चुनी, जो न सिर्फ फिटनेस के लेवल पर जीरो थी. बल्कि जिसके पास ऐसा कोई ठोस प्लान नहीं था जिसको अमली जामा पहनाते हुए वो जीत दर्ज कर पाए. अब जब सेलेक्टिंग कमिटी में इंजमाम हों तो लाजमी है कि वो उन ही लोगों को टीम में लेंगे जो उनकी विचारधारा से मेल खाते हैं. सरफराज अहमद की ट्विटर प्रोफाइल का रुख करने पर सारी कहानी खुद-ब-खुद हमारे सामने आ जाती है. सरफराज ने अपने बायो में खुद को हाफिज-ए-कुरान और क्रिकेटर लिखा है. अब इतनी बातों और भारत से इतनी शर्मनाक हार के बावजूद टीम पर क्या एक्शन लिया गया वो एक लम्बे वाद का विषय है. मगर ऐसे देश में जहां क्रिकेट ख़ुदा जैसा है वहां सरफराज का अपनी ट्विटर प्रोफाइल पर क्रिकेटर से पहले अपने आपको हाफिज-ए-कुरान बताना वाकई विचलित करता है. कप्तान सरफराज और सिलेक्टर इंजमाम को समझना चाहिए कि मैच जिताने खुदा नहीं आएगा. वो तभी जीता जा सकेगा जब टीम मेहनत करेगी और आज जैसे टीम के हालात हैं, साफ हो जाता है कि टीम के लिए अल्लाह के बल पर जीतना दूर के सुहावने ढोल हैं
बात समझने के लिए हमारे लिए कुछ बातें समझनी बहुत जरूरी है. 1990 से 2000 इन 10 सालों को अंतरराष्ट्रीय Cricket के लिहाज से काफी अहम माना जाता है. कई ऐसी नई तकनीकें थीं जो इन 10 सालों में विकसित हुईं. इन 10 सालों को अगर गहनता से देखें तो मिलता है कि ये 10 साल अगर किसी टीम के लिए बेहद खास थे वो टीम और कोई नहीं बल्कि Pakistan थी. माना जाना है कि इन 12 सालों में पाकिस्तान ने ऐसा बहुत कुछ हासिल कर लिया था जिसके दम पर उसका शुमार विश्व की उन चुनिन्दा टीमों में होता था जिसे शायद ही कोई हरा पाए. इस दौर को पाकिस्तानी क्रिकेट का स्वर्णिम काल कहा जाता है.
वहीं बात भारत की हो तो भले ही भारत के पास अजहर, सिद्धू, जडेजा, सचिन, गांगुली जैसे प्लेयर रहे हों मगर इन सभी खिलाड़ियों को तेज गेंदें खेलने में खास परेशानी होती थी. वहीं बॉलिंग में भी स्थिति जस की तस थी.माना जाता है कि 1990 से 2000 तक का समय भारतीय टीम के लिहाज से सही नहीं था और इन दस सालों में टीम इंडिया ने 'Trial And Error' के सिद्धांत का पालन किया और अपनी गलतियों से सीखा.
क्रिकेट के मद्देनजर 2000 तक टीम इंडिया की स्थिति कुछ खास नहीं थी. वहीं पाकिस्तान दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था. टीम नई ऊंचाइयों को हासिल कर सके इसके लिए सौरव गांगुली को कप्तान बनाया गया. सौरव नए थे. उनके अन्दर टीम को आगे ले जाने का जज्बा था. चूंकि अब तक टीम कुछ बड़ा करने में नाकाम थी इसलिए उन्हें फ्री-हैंड दिया गया. सौरव ने इसका पूरा फायदा उठाया और टीम में कई महत्वपूर्ण प्रयोग किये गए. जहां एक तरफ उन्होंने खिलाड़ियों की फिटनेस को प्राथमिकता दी तो वहीं उन्होंने टीम इंडिया के लिए विदेश से कोच मंगवाए, जो न सिर्फ टीम को खेलना सिखाते. बल्कि ये तक बताते कि वो कौन कौन सी कमियां हैं जिनपर यदि काम किया जाए या फिर मेहनत हो, टीम नई बुलंदियों पर पहुंच सकती है.
एक तरफ जहां टीम इंडिया बेहतर क्रिकेट और बेस्ट बनने के लिए मैदान में पसीना बहा रही थी और अपनी रणनीति पर काम कर रही थी. वहीं उसी वक़्त पाकिस्तान अपना क्रिकेट छोड़ कुछ और कर रहा था. किसी जमाने में अपनी बैटिंग से विरोधी टीम की नाक में दम कर उसके गेंदबाजों को नानी याद दिला देने वाले पाकिस्तानी कप्तान इंजमाम उल हक क्रिकेट छोड़ कर दीन की तरफ जा रहे थे. उन्होंने दाढ़ी बढ़ाना शुरू कर दिया था. मैदान में आते तो प्रैक्टिस कम करते और उनका अधिकांश वक़्त इबादत, अल्लाह-अल्लाह और जमातों में बीतता. इसी तरफ सईद अनवर, मिस्बाह उल हक और मोहम्मद युसूफ भी अपना अधिकांश समय जमात में बिता रहे हैं. ध्यान रहे कि मस्जिदों में अल्लाह-अल्लाह कर रहे मिस्बाह जहां पढ़ाई लिखाई के लिहाज से एमबीए हैं. वहीं बात अगर मोहम्मद युसूफ की हो तो पहले ये ईसाई थे और मुसलमान बनने के बाद फौरन ही ये जमातों की शान हो गए थे. जमातों में ये इस्लाम के फायदे बताते और लोगों को सच्चा मुसलमान बनने को कहते.
कप्तान की तबलीग का असर टीम पर भी हुआ. इंजमाम की देखा देखी टीम के अन्य महत्वपूर्ण लोग जैसे सईद अनवर, मिस्बाह उल हक, मोहम्मद युसूफ भी जमातों में जाने लगे और जो वक्त उन्हें क्रिकेट को देना चाहिए था वो वक़्त इनका तबलीग और जमात में बीतता. इन सब का नतीजा ये निकला की टीम मैदान में तो होती मगर वो करिश्मा कर दिखाने में नाकाम रहती, जिसके कारण पूरी दुनिया उसकी शान में कसीदे पढ़ती थी. कह सकते हैं कि जिस वक़्त पाकिस्तान की टीम अपने परवरदिगार की इबादत में बिजी थी उस वक़्त टीम इंडिया उससे दो हाथ आगे निकलते हुए उन बिन्दुओं पर काम कर रही थी जो उसे लगातर ऊंचाई पर ले जा रहा था. यहां तक आते आते टीम इंडिया कई महत्वपूर्ण मुकाबले जीत चुकी थी.
माना जाता है कि 1990 से 2000 तक बुलंदी पर रहने वाली पाकिस्तान की टीम का गर्त में जाने का कारण उसका धर्म की तरफ कुछ ज्यादा ही आकर्षित हो जाना था. टीम अल्लाह-अल्लाह करते हुए कुछ इस हद तक खो गई कि उसे ये तक नहीं दिखा कि वो क्रिकेट जिसने उन्हें विश्व मानचित्र पर एक खास पहचान दी थी वो उनसे उनकी आंखों के सामने दूर हो रहा है और वो बस खड़े खड़े तमाशा देख रहे हैं.
बात साफ थी इंजमाम और टीम जो भी कर रहे थे वो एक बेहतर इंसान बनने के लिए कर रहे थे.. मगर सच्चाई यही है कि कैच लेने अल्लाह या फिर रन आउट और स्टम्पिंग करने फ़रिश्ते नहीं आते और न ही कुरान में ये बताया गया है कि गेंदबाज को आतंकित करने वाले बल्लेबाज को काबू करने के लिए एलबीडब्लू कैसे किया जाता है. ध्यान रहे कि जिस वक़्त टीमें क्रिकेट खेल रही होती हैं वो सिर्फ क्रिकेट खेलती हैं और बात जब क्रिकेट की चल रही है तो हमारे लिए ये बताना बेहद जरूरी है कि एक तरफ जहां क्रिकेट अनुशासन का खेल है तो वहीं दूसरी तरफ इसमें एकाग्रता का भी विशेष महत्त्व है. तब पाकिस्तान के पास अनुशासन तो था लेकिन एकाग्रता का वो ग्राफ लगातार गिरा जो टीम को आगे ले जा सकता था.
एक लम्बे समय तक पाकिस्तान की टीम में रहकर पाकिस्तान के क्रिकेट को नई बुलंदियों पर ले जाने वाले इंजमाम को यदि आज देखें तो लगता ही नहीं है कि ये वो शख्स है जिसने क्रिकेट खेला है. इन्हें देखने पर प्रतीत होता हैं कि पाकिस्तान के किसी मदरसे के कोई मौलाना साहब हैं जिन्हें पीसीबी ने टीम के प्लेयर्स को नमाज पढ़ाने के लिए नियुक्त किया है.
बात आगे बढ़ाने से पहले हमारे लिए ये बताना बेहद जरूरी है कि, हमें दिक्कत न तो सईद अनवर, इंजमाम, मोहमम्द युसूफ और मिस्बाह जैसे लोगों के 'मुसलमान' होने से है. न ही हम ये कह रहे हैं जमात में जाना या दीन का अनुसरण करना गलत बात है. बात बस इतनी है कि हर चीज का एक दायरा होता है और जैसे पाकिस्तान टीम के हाल हैं और जैसा प्रदर्शन उसने ICC World Cup 2019 में किया है साफ हो जाता है कि टीम अल्लाह के बताते मार्ग पर चल तो रही है. लेकिन जब बात खुद क्रिकेट की हो तो चीजों को अल्लाह भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता.
बहरहाल, अब जब इंजमाम सेलेक्टिंग कमिटी में हैं तो लाजमी है कि वो उन ही लोगों को टीम में लेंगे जो उनकी विचारधारा से मेल खाते हैं. बात वर्तमान टीम की चल रही है तो टीम के वर्तमान कप्तान सरफराज अहमद को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. भारत से मिली करारी हार के बाद इस असफलता का सारा ठीकरा सरफराज पर फिदा जा रहा है. खुद पाकिस्तान के लोग इस बात को मान रहे हैं कि ये सरफराज के गलत निर्णय ही थे जिनके चलते पाकिस्तानी टीम का वो हाल हुआ जिसकी कल्पना शायद ही किसी क्रिकेट प्रेमी ने की हो.
बहरहाल, जिस हिसाब से पाकिस्तान टीम का रवैया है. कहा यही जा सकता है कि या तो टीम क्रिकेट खेल ले या फिर इस्लाम का अनुसरण कर ले. यदि टीम ये सोच रही है कि वो दोनों काम एक साथ कर लेगी तो ये न सिर्फ क्रिकेट के साथ नाइंसाफी है. बल्कि ये भी बता देता है इससे न तो टीम इधर ही हो पाएगी और न ही उधर ही जा पाएगी. मैदान में अपनी चीर उसे स्वयं बचानी होगी और उस परिस्थिति में मदद को कृष्ण तो बिल्कुल न आएंगे.
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