राजीव गांधी खेलरत्न पुरस्कार (Rajiv Gandhi Khel Ratna Award) को अब ‘मेजर ध्यानचंद खेलरत्न पुरस्कार’ के नाम से जाना जाएगा. मोदी जी ने ट्वीट करके ये ख़ुशख़बरी देश की जनता को दी है. चलिए बढ़िया बात है कि कल ही भारतीय पुरुष टीम ने हॉकी में 41 साल बाद ओलम्पिक ब्रॉंज़ मेडल जीता है. ऐसे में हॉकी के जादूगर के नाम से अगर खेल रत्न सम्मान दिया जाएगा तो इससे सुंदर बात क्या होगी.
जिनको नहीं पता है, उन्हें बता दूं कि मेजर ध्यानचंद की बदौलत ही भारत को 1928, 1932 और 1936 के ओलिंपिक में गोल्ड मेडल हांसिल हुआ था. 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक में उन्होंने सबसे ज्यादा 14 गोल किए थे. तब एक लोकल न्यूज़ पेपर ने लिखा था, “This is not hockey, this was magic and Dhyan Chand is the magician oh hockey.” और तब से ही दुनिया मेजर ध्यानचंद जी को हॉकी का जादूगर कहने लगी.
ख़ैर, चलिए मोदी जी ने खिलाड़ियों को सम्मान देने के लिए खेल रत्न का नाम बदल दिया है और ये स्वागत योग्य कदम है लेकिन इतने से ही काम नहीं चलने वाला. मोदी जी को खिलाड़ियों के जीवन, जीवन की मूलभूत सुविधाएं और उनके उनके प्रशिक्षण पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है. ऐसा भविष्य में नहीं हो कि कोई मीरा बाई चानू लकड़ियों को गट्ठर ढो-ढो कर वेट-लिफ़्टिंग की प्रैक्टिस करें. कोई हॉकी का खिलाड़ी साइकिल की दुकान में काम करके दो वक़्त की रोटी जुटा पाए तो कोई एथलीट भर पेट खाना खाए बिना सो जाए.
देखिए, ओलम्पिक में जीत का जश्न पूरा देश माना रहा है और मनाना भी चाहिए लेकिन ये जीत देश की जीत नहीं है. ये जीत, ये मेडल सिर्फ़ और सिर्फ़ उन खिलाड़ियों के अदम्य साहस और कभी न हार मानने वाले जज़्बे का प्रतीक है. आप उनकी ख़ुशी...
राजीव गांधी खेलरत्न पुरस्कार (Rajiv Gandhi Khel Ratna Award) को अब ‘मेजर ध्यानचंद खेलरत्न पुरस्कार’ के नाम से जाना जाएगा. मोदी जी ने ट्वीट करके ये ख़ुशख़बरी देश की जनता को दी है. चलिए बढ़िया बात है कि कल ही भारतीय पुरुष टीम ने हॉकी में 41 साल बाद ओलम्पिक ब्रॉंज़ मेडल जीता है. ऐसे में हॉकी के जादूगर के नाम से अगर खेल रत्न सम्मान दिया जाएगा तो इससे सुंदर बात क्या होगी.
जिनको नहीं पता है, उन्हें बता दूं कि मेजर ध्यानचंद की बदौलत ही भारत को 1928, 1932 और 1936 के ओलिंपिक में गोल्ड मेडल हांसिल हुआ था. 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक में उन्होंने सबसे ज्यादा 14 गोल किए थे. तब एक लोकल न्यूज़ पेपर ने लिखा था, “This is not hockey, this was magic and Dhyan Chand is the magician oh hockey.” और तब से ही दुनिया मेजर ध्यानचंद जी को हॉकी का जादूगर कहने लगी.
ख़ैर, चलिए मोदी जी ने खिलाड़ियों को सम्मान देने के लिए खेल रत्न का नाम बदल दिया है और ये स्वागत योग्य कदम है लेकिन इतने से ही काम नहीं चलने वाला. मोदी जी को खिलाड़ियों के जीवन, जीवन की मूलभूत सुविधाएं और उनके उनके प्रशिक्षण पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है. ऐसा भविष्य में नहीं हो कि कोई मीरा बाई चानू लकड़ियों को गट्ठर ढो-ढो कर वेट-लिफ़्टिंग की प्रैक्टिस करें. कोई हॉकी का खिलाड़ी साइकिल की दुकान में काम करके दो वक़्त की रोटी जुटा पाए तो कोई एथलीट भर पेट खाना खाए बिना सो जाए.
देखिए, ओलम्पिक में जीत का जश्न पूरा देश माना रहा है और मनाना भी चाहिए लेकिन ये जीत देश की जीत नहीं है. ये जीत, ये मेडल सिर्फ़ और सिर्फ़ उन खिलाड़ियों के अदम्य साहस और कभी न हार मानने वाले जज़्बे का प्रतीक है. आप उनकी ख़ुशी में शामिल तो हो सकते हैं लेकिन आप ये नहीं कह सकते कि उनकी जीत में आपने किसी भी तरह का कोई योगदान दिया है. और ये देश के लिए शर्मिंदगी की बात होनी चाहिए कि आज आप जिन खिलाड़ियों के जीतने का जश्न मना रहे हैं कल तक उनकी थाली में पेट भरने योग्य भोजन भी नहीं था बाक़ी सुविधाओं की क्या ही बात करें.
तो मोदी जी सिर्फ़ नाम बदलने से जो खेल जगत की विडम्बनाएं हैं वो सुलझने से रही. हो सके तो खिलाड़ियों का जीवन स्तर सुधारने की कोशिश कीजिए. खेल बजट को बढ़ाइए. जो नई प्रतिभाएं हैं उनको संवारने के लिए ग्राउंड लेवल पर काम करवाइए तब जाकर मेजर ध्यानचंद जी की आत्मा को सुकून मिलेगा. एक खिलाड़ी ही दूसरे खिलाड़ी के दर्द जो समझ सकता है. बाक़ी तो सब बढ़िया ही है. आप ओलम्पिक में खिलाड़ियों के जाने से पहले भी उनसे बात करते हैं, जीतने पर फ़ोन करते हैं और मैच भी देखते हैं. ये सब कुछ सुंदर बात है अब बस ग्राउंड लेवल पर देश के खिलाड़ियों के उत्थान के लिए भी कुछ कर दिखाइए फिर दिल से सलाम आपको मिलेगा. जय हिंद.
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