रियो ओलंपिक का आगाज 5 अगस्त से होना है. लेकिन भारतीय हॉकी दल में दो बड़े बदलाव ने सबको चौंका दिया है. पहला, सरदार सिंह को कप्तानी से हाथ धोना पड़ा और दूसरा कप्तान रितु रानी की महिला हॉकी टीम से छुट्टी. अमूमन इतने बड़े फैसले लिए नहीं जाते, खासकर जब कोई बड़ा इवेंट सामने हो. लेकिन हॉकी इंडिया ने ये फैसला लिया. कई लोग इसे साहसिक और मजबूत फैसला बता रहे हैं. लेकिन क्या ये वाकई साहसिक फैसला है या फिर हॉकी इंडिया की मजबूरी? बहरहाल सवाल उठने लगे हैं, खासकर रितु की विदाई पर.
रितु 2011 से भारतीय टीम की कमान संभाल रही थीं और उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि उन्हीं के नेतृत्व में महिला टीम ने 36 साल बाद ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया. लेकिन अब अनुशासनहीनता और उनके फॉर्म को कारण बताकर टीम से बाहर कर दिया गया है. उनकी जगह मणिपुर की सुशीला चानू कप्तान होंगी. यही कहानी पुरुष टीम की भी है. लंबे अर्से बाद भारतीय हॉकी में एक स्टार उभरा, लेकिन अब लगता है कि सरदार सिंह का स्टारडम बहुत जल्द फीका पड़ने वाला है, बशर्ते रियो में वे कोई कमाल न कर दें. वैसे, माना जा रहा है कि सरदार सिंह का ये आखिरी ओलंपिक हो सकता है.
रेप के आरोप ने छीनी सरदार की 'सरदारी'!
2014 के एशियन गेम्स के फाइनल में जब भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने पाकिस्तान को रोमांचक शूटआउट में 4-2 से हराकर रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया, तो किसी को अंदाजा नहीं था कि 2016 आते-आते इतना कुछ बदल जाएगा. उस मैच के हीरो रहे टीम के गोलकीपर पीआर श्रीजेश अब रियो में टीम की कमान संभालेंगे.
ये बात तो तय है कि सरदार पिछले कुछ महीनों से अपने खराब फॉर्म के कारण लगातार संघर्ष कर रहे थे. लेकिन क्या फॉर्म इतना खराब हो चला था कि कप्तानी छीन ली जाए, वो भी उस खिलाड़ी से जिसके नेतृत्व में पिछले दो-तीन वर्षों में टीम ने कई शानदार प्रदर्शन दिए हों?
रियो ओलंपिक का आगाज 5 अगस्त से होना है. लेकिन भारतीय हॉकी दल में दो बड़े बदलाव ने सबको चौंका दिया है. पहला, सरदार सिंह को कप्तानी से हाथ धोना पड़ा और दूसरा कप्तान रितु रानी की महिला हॉकी टीम से छुट्टी. अमूमन इतने बड़े फैसले लिए नहीं जाते, खासकर जब कोई बड़ा इवेंट सामने हो. लेकिन हॉकी इंडिया ने ये फैसला लिया. कई लोग इसे साहसिक और मजबूत फैसला बता रहे हैं. लेकिन क्या ये वाकई साहसिक फैसला है या फिर हॉकी इंडिया की मजबूरी? बहरहाल सवाल उठने लगे हैं, खासकर रितु की विदाई पर. रितु 2011 से भारतीय टीम की कमान संभाल रही थीं और उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि उन्हीं के नेतृत्व में महिला टीम ने 36 साल बाद ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया. लेकिन अब अनुशासनहीनता और उनके फॉर्म को कारण बताकर टीम से बाहर कर दिया गया है. उनकी जगह मणिपुर की सुशीला चानू कप्तान होंगी. यही कहानी पुरुष टीम की भी है. लंबे अर्से बाद भारतीय हॉकी में एक स्टार उभरा, लेकिन अब लगता है कि सरदार सिंह का स्टारडम बहुत जल्द फीका पड़ने वाला है, बशर्ते रियो में वे कोई कमाल न कर दें. वैसे, माना जा रहा है कि सरदार सिंह का ये आखिरी ओलंपिक हो सकता है. रेप के आरोप ने छीनी सरदार की 'सरदारी'! 2014 के एशियन गेम्स के फाइनल में जब भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने पाकिस्तान को रोमांचक शूटआउट में 4-2 से हराकर रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया, तो किसी को अंदाजा नहीं था कि 2016 आते-आते इतना कुछ बदल जाएगा. उस मैच के हीरो रहे टीम के गोलकीपर पीआर श्रीजेश अब रियो में टीम की कमान संभालेंगे. ये बात तो तय है कि सरदार पिछले कुछ महीनों से अपने खराब फॉर्म के कारण लगातार संघर्ष कर रहे थे. लेकिन क्या फॉर्म इतना खराब हो चला था कि कप्तानी छीन ली जाए, वो भी उस खिलाड़ी से जिसके नेतृत्व में पिछले दो-तीन वर्षों में टीम ने कई शानदार प्रदर्शन दिए हों?
दरअसल, पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और इशारा भी करती है. ये अंदाजा उस समय भी लग गया था कि जब जून में लंदन में हुए चैंपियंस ट्रॉफी के लिए सरदार सिंह को आराम देकर श्रीजेश को कमान सौंपी गई. इसी साल फरवरी में भारतीय मूल की एक ब्रिटिश हॉकी खिलाड़ी ने सरदार सिंह पर रेप की कोशिश का आरोप लगाया. उस महिला खिलाड़ी ने इंग्लैंड और भारत, दोनों जगह पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. ये एक कारण हो सकता है कि सरदार को तब चैंपियंस ट्रॉफी के लिए नहीं चुना गया हो. क्योंकि लंदन जाने का मतलब था कि ब्रिटिश पुलिस उन पर कोई एक्शन ले सकती थी. सरदार की गैरहाजिरी में कमान श्रीजेश को मिली और टीम फाइनल तक पहुंचने में सफल रही. वहां उसे जरूर ऑस्ट्रेलिया से हार का सामना पड़ा लेकिन फिर भी ये बड़ी सफलता थी. निश्चित रूप से इस सफलता ने सरदार सिंह को फिलहाल मीडिया से दूर रखने का एक विकल्प हॉकी इंडिया को दे दिया. क्योंकि रियो में सरदार के कप्तान होने का मतलब था कि एक नहीं कई बार वहां उन्हें राष्ट्रीय और खासकर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का सामना करना पड़ता. और क्या पता फिर रेप के उस आरोप से जुड़ा सवाल भी आ सकता था. जाहिर है, इस फजीहत से दूर रहने में ही समझादारी थी, वो भी ऐसी जगह जहां पूरी दुनिया की नजर होगी. रितु रानी का दोष कितना बड़ा? ये बहस का विषय है. पिछले करीब एक दशक से सीनियर टीम का हिस्सा रहीं रितु ने 2011 में कप्तानी हासिल की. लेकिन अब टीम से बाहर किए जाने के बाद रितु का आरोप है कि उनके साथ बेवजह ऐसा किया गया और वे राजनीति का शिकार हुई हैं. सोशल मीडिया पर भी रितु के समर्थन में एक अभियान चल रहा है. हालांकि टीम का सेलेक्शन हो चुका है इसलिए ये उम्मीद करना अब बेमानी है कि कोई बदलाव हो. 10 जुलाई को टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार रितु ने बेंगलुरु में रियो ओलंपिक के लिए चल रहे कैंप को बीच में ही छोड़ दिया और घर लौट गईं. टीम का चुनाव 12 जुलाई को होना था लेकिन रितु को इसका अंदाजा लग गया था कि 16 सदस्यीय टीम में उनका चुनाव नहीं होगा. उनसे कहा गया कि वे कैंप छोड़ दे. रितु इससे काफी आहत और नाराज हुईं और लौट गईं.
एक खबर कोच नील हॉगुड से मनमुटाव की भी है. एक जुलाई को रितु ने सगाई की. इसके बाद वह बेंगलुरु गईं जहां कैप चल रहा था. ऑस्ट्रेलियाई कोच नील दरअसल रितु के इस रवैये से नाराज थे कि उन्होंने सगाई के लिए कैंप छोड़ दिया. जब वो लौंटीं तो उन्हें कैंप छोड़ने के लिए कह दिया गया. जबकि रितु के परिवार वालों की ओर से कहा गया कि रितु छुट्टी लेकर सगाई के लिए घर आईं थीं. पीछे की कहानी क्या है, इस बारे में कुछ कह पाना बहुत मुमकिन नहीं है. वैसे ये भी दिलचस्प है कि करीब दो महीने पहले ही हॉकी इंडिया की ओर से रितु को 'अजीत पाल सिंह मिडफिल्डर अवॉर्ड' से नवाजा गया. अर्जुन अवार्ड के लिए उनका नाम भेजा गया और फिर कुछ ही दिन पहले जब नरेंद्र मोदी ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों से मिले तो उसमें भी रितु शामिल थी. और फिर अचानक ये फैसला! इसलिए फैसले को साहसिक बताने की बजाय अगर ये कहें कि कोच और कप्तान के बीच मनमुटाव से बचने के लिए रितु को बाहर किया गया और फजीहत से बचने के लिए सरदार सिंह को दूर, तो क्या गलत है! इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |