साक्षी मालिक ने भारतीय कुश्ती के इतिहास में एक नया रिकॉर्ड कायम किया है. ये रिकॉर्ड रियो ओलिंपिक में 54 किलोग्राम भार वर्ग में कांस्य पदक जीत कर बनाया गया. साक्षी भारत की पहली महिला पहलवान बनी जिसने ओलिंपिक में कोई पदक जीता हो. साथ ही साथ वो देश की चौथी महिला खिलाडी हैं जिसने आज तक ओलिंपिक में कोई पदक जीता हो. इससे पहले कर्णम मल्लेश्वरी, साइना नेहवाल और एमसी मेरी कॉम ने ओलिंपिक पदक जीत कर हमारे देश का गौरव बढ़ाया है.
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साक्षी भारत की ओर से पांचवी खिलाडी है जिसने ओलिंपिक में कुश्ती के खेल में कोई पदक पाया हो. ओलिंपिक के इतिहास में भारत का ये पच्चीसवाँ मेडल था. साक्षी द्वारा ये मेडल जितना अपने आप में बहुत खास है क्योंकि भारत का रियो ओलिंपिक में ये पहला पदक था. उसने इसे उस समय जीता जब 48 किलोग्राम भार वर्ग मेडल की दावेदार विनेश फोगाट चोट लग जाने के कारण रिटायर हर्ट हो जाती है.
साक्षी मलिक |
रोहतक, हरियाणा में जन्मी साक्षी मालिक बारह साल की उम्र से ही कुश्ती की ट्रेनिंग लेने लगी थी. ये उसकी मेहनत और लगन का ही नतीजा है जिसके कारण वो आज इस मुकाम तक पहुंची है. वे उस क्षेत्र से आती है जहाँ पर ये सोच हावी है की खेल 'लड़कियों के लिए नहीं है'. ऐसे में इस मुकाम तक पहुंचना अपने में काबिले तारीफ है. सोचिये उसको किन परेशानियों का सामना करना पड़ता होगा जब वो लड़कों के बीच अपनी पहचान स्थापित बना रही थी. कहा तो ये भी जाता है की उनके कोच को स्थानीय लोगों का भारी विरोध झेलना पड़ा था जब वे साक्षी को कोचिंग दे रहे थे.
साक्षी मालिक ने भारतीय कुश्ती के इतिहास में एक नया रिकॉर्ड कायम किया है. ये रिकॉर्ड रियो ओलिंपिक में 54 किलोग्राम भार वर्ग में कांस्य पदक जीत कर बनाया गया. साक्षी भारत की पहली महिला पहलवान बनी जिसने ओलिंपिक में कोई पदक जीता हो. साथ ही साथ वो देश की चौथी महिला खिलाडी हैं जिसने आज तक ओलिंपिक में कोई पदक जीता हो. इससे पहले कर्णम मल्लेश्वरी, साइना नेहवाल और एमसी मेरी कॉम ने ओलिंपिक पदक जीत कर हमारे देश का गौरव बढ़ाया है.
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साक्षी भारत की ओर से पांचवी खिलाडी है जिसने ओलिंपिक में कुश्ती के खेल में कोई पदक पाया हो. ओलिंपिक के इतिहास में भारत का ये पच्चीसवाँ मेडल था. साक्षी द्वारा ये मेडल जितना अपने आप में बहुत खास है क्योंकि भारत का रियो ओलिंपिक में ये पहला पदक था. उसने इसे उस समय जीता जब 48 किलोग्राम भार वर्ग मेडल की दावेदार विनेश फोगाट चोट लग जाने के कारण रिटायर हर्ट हो जाती है.
साक्षी मलिक |
रोहतक, हरियाणा में जन्मी साक्षी मालिक बारह साल की उम्र से ही कुश्ती की ट्रेनिंग लेने लगी थी. ये उसकी मेहनत और लगन का ही नतीजा है जिसके कारण वो आज इस मुकाम तक पहुंची है. वे उस क्षेत्र से आती है जहाँ पर ये सोच हावी है की खेल 'लड़कियों के लिए नहीं है'. ऐसे में इस मुकाम तक पहुंचना अपने में काबिले तारीफ है. सोचिये उसको किन परेशानियों का सामना करना पड़ता होगा जब वो लड़कों के बीच अपनी पहचान स्थापित बना रही थी. कहा तो ये भी जाता है की उनके कोच को स्थानीय लोगों का भारी विरोध झेलना पड़ा था जब वे साक्षी को कोचिंग दे रहे थे.
18 साल की उम्र में साक्षी ने जीत का पहला स्वाद चखा जब उसने 59 किलोग्राम भार वर्ग में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रोंज मैडल जीता था.
2014 डावे सचूल्ट्ज़ अंतराष्टीय रेसलिंग टूर्नामेंट में साक्षी ने गोल्ड जीत कर पहली बार विश्व एरीना में अपनी उपस्थति दर्ज करते हुए लाइम लाइट में आयी.
2014 ग्लासगो कामनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मैडल जीत कर उसने अपनी पहचान बनाना शुरू कर दिया था.
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हालांकि बुरा दौर भी आया जब सितम्बर 2014 में वो वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में क्वार्टर फाइनल में हार गयी. इसके बावजूद साक्षी ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार मेहनत करती रही. उसके बाद उसने कई प्रतियोगिताओ में पदक जीता और अपने परिश्रम से मई 2016 में रियो ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई किया.
12 साल की उम्र में रेसलिंग की शुरुआत करने वाली साक्षी की उपलब्धि से भारत का सिर फख्र से ऊँचा कर रही है. रोहतक से रियो तक का सफर साक्षी की जी तोड़ मेहनत और लगन को साफ-साफ सामने रखता है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.