भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को हिंदुस्तान के सबसे सफल कप्तानों में शुमार किया जाता है. 8 जुलाई 1972 को कोलकाता में पैदा हुए बीसीसीआई के मौजूदा अध्यक्ष सौरभ दादा आज अपना 49वां जन्मदिन मना रहे हैं. कहते हैं कि बचपन में वो एक फुटबॉलर बनना चाहते थे, लेकिन अपने पिता के कहने पर क्रिकेट खेलने लगे. लेकिन किस्मत देखिए क्रिकेट में कदम रखते ही चमत्कार कर दिया. अपने पहले टेस्ट में ही सेंचुरी बनाकर हंगामा कर दिया.
साल 2000 में सौरव गांगुली को टीम इंडिया का कप्तान बनाया गया. उन्होंने 146 वनडे मैचों में भारत की कप्तानी करते हुए 76 मैचों में जीत दर्ज कराई. टीम इंडिया ने उनकी कप्तानी में 49 टेस्ट में से 21 में जीत हासिल की थी. भारत की ओर से 113 टेस्ट और 311 वनडे इंटरनेशनल मैच खेलते हुए उन्होंने टेस्ट में 7212 रन और वनडे में 11,363 रन बनाए हैं. सौरव गांगुली का क्रिकेट करियर हर खिलाड़ी के लिए नजीर है. इतना ही नहीं छात्र भी उनकी सफलता से सबक सीख सकते हैं.
सौरव दादा के क्रिकेट करियर से छात्रों को सीखने चाहिए ये 5 जरूरी सबक...
1. विपरीत वक्त में भी कभी हार नहीं मानना
'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती'...कवि सोहनलाल द्विवेदी की ये पंक्तियां सौरव गांगुली के संघर्षों की कहानी कहती हैं. अपने पहले ही मैच में सेंचुरी लगाना आसान होता है, लेकिन लंबे समय तक करियर के पिच पर टिके रहना बहुत मुश्किल होता है. दादा ने अपने क्रिकेट करियर की सफल शुरूआत की थी, लेकिन एक वक्त ऐसा आया, जब वो विवादों में रहने लगे. तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल (2005 से 2007) से हुए उनके विवाद की वजह से टीम में...
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को हिंदुस्तान के सबसे सफल कप्तानों में शुमार किया जाता है. 8 जुलाई 1972 को कोलकाता में पैदा हुए बीसीसीआई के मौजूदा अध्यक्ष सौरभ दादा आज अपना 49वां जन्मदिन मना रहे हैं. कहते हैं कि बचपन में वो एक फुटबॉलर बनना चाहते थे, लेकिन अपने पिता के कहने पर क्रिकेट खेलने लगे. लेकिन किस्मत देखिए क्रिकेट में कदम रखते ही चमत्कार कर दिया. अपने पहले टेस्ट में ही सेंचुरी बनाकर हंगामा कर दिया.
साल 2000 में सौरव गांगुली को टीम इंडिया का कप्तान बनाया गया. उन्होंने 146 वनडे मैचों में भारत की कप्तानी करते हुए 76 मैचों में जीत दर्ज कराई. टीम इंडिया ने उनकी कप्तानी में 49 टेस्ट में से 21 में जीत हासिल की थी. भारत की ओर से 113 टेस्ट और 311 वनडे इंटरनेशनल मैच खेलते हुए उन्होंने टेस्ट में 7212 रन और वनडे में 11,363 रन बनाए हैं. सौरव गांगुली का क्रिकेट करियर हर खिलाड़ी के लिए नजीर है. इतना ही नहीं छात्र भी उनकी सफलता से सबक सीख सकते हैं.
सौरव दादा के क्रिकेट करियर से छात्रों को सीखने चाहिए ये 5 जरूरी सबक...
1. विपरीत वक्त में भी कभी हार नहीं मानना
'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती'...कवि सोहनलाल द्विवेदी की ये पंक्तियां सौरव गांगुली के संघर्षों की कहानी कहती हैं. अपने पहले ही मैच में सेंचुरी लगाना आसान होता है, लेकिन लंबे समय तक करियर के पिच पर टिके रहना बहुत मुश्किल होता है. दादा ने अपने क्रिकेट करियर की सफल शुरूआत की थी, लेकिन एक वक्त ऐसा आया, जब वो विवादों में रहने लगे. तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल (2005 से 2007) से हुए उनके विवाद की वजह से टीम में बने रहना उनके लिए मुश्किल हो गया. साल 2005 में अचानक उनसे कप्तानी छीन ली गई. वनडे और टेस्ट टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
इन सबके बावजूद सौरव गांगुली ने हार नहीं मानी. साल 2006 में भारतीय टीम चैंपियंस ट्रॉफी में लीग स्टेज से ही बाहर हो गई. साउथ अफ्रीका के खिलाफ वनडे सीरीज में उसे 4-0 से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद टेस्ट सीरीज में गांगुली की वापसी हुई. गांगुली ने अपना जलवा दिखाया और 37 रन पर 4 विकेट खो चुकी टीम इंडिया को उन्होंने संभालते हुए 87 रनों की पारी खेली. इसके बाद साउथ अफ्रीका के खिलाफ जोहानिसबर्ग टेस्ट में पहली ही पारी में 51 रन बनाए और भारत को पहली टेस्ट जीत दिलाई. यदि सौरव विवादों से टूट जाते तो कभी भी इतनी मजबूती से वापसी नहीं कर पाते. छात्रों को भी उनके इस जज्बे से सीखना चाहिए.
2. विषम परिस्थितियों में नेतृत्व क्षमता
हम सभी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि 1999-2000 के मैच फिक्सिंग विवाद के बाद भारतीय क्रिकेट की साख पर गहरा बट्टा लगा था. क्रिकेट पर मैच फिक्सिंग का साया गहराया हुआ था. क्रिकेट विवादों में घिर चुका था. टीम इंडिया मुश्किल दौर से गुजर रही थी. तत्कालीन कप्तान सचिन तेंदूलकर ने इस्तीफा दे दिया था. पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन मैच फिक्सिंग में फंसे हुए थे. ऐसे विषम हालात में टीम इंडिया की कमान सौरव गांगुली को दी गई थी. साल 1999 से 2005 तक भारतीय टीम की कमान संभालने वाले गांगुली दादा ने 146 वनडे और 49 टेस्ट में कप्तानी की थी. इसमें 76 वनडे और 21 टेस्ट मैच जीते थे.
इतना ही नहीं गांगुली ने अपनी कप्तानी में एक युवा टीम खड़ी की और उसे देश-विदेश में जीतना सिखाया. वीरेंद्र सहवाग, जहीर खान, आशीष नेहरा, हरभजन सिंह और बाद में एमएस धोनी जैसे खिलाड़ी गांगुली की कप्तानी के समय ही निखर कर सामने आए थे. जब टीम बचाने की बात चल रही थी उस समय गांगुली ने साल 2001 में ऐतिहासिक बॉर्डर-गावस्कर टेस्ट सीरीज़ में ऑस्ट्रेलिया को हराकर एक नए युग की शुरुआत की थी. छात्रों को भी सौरव गांगुली से नेतृत्व के गुर सीखने चाहिए. आसान परिस्थितियों में तो कोई भी चल सकता है. लेकिन मुश्किल दौर में खराब रास्तों पर एक समूह का नेतृत्व करते हुए आगे बढ़ने की कला दादा को बखूबी आती है.
3. टीमवर्क और खुद की इच्छाओं का त्याग
कहते हैं घर के अभिभावक को अपने परिवार और उसके सदस्यों को आगे बढ़ाने के लिए अपना बहुत कुछ कुर्बान करना पड़ता है. वैसे ही एक टीम का नेतृत्व करना भी परिवार को संभालने जैसा होता है. भारतीय टीम के कप्तान बनने से पहले सौरव गांगुली एक अनुभवी सलामी बल्लेबाज थे. अक्सर उनको ओपनिंग करते हुए देखा जाता था. लेकिन जब वो टीम इंडिया के कप्तान बने तो उन्होंने देखा कि सचिन-सहवाग की जोड़ी विस्फोटक ओपनिंग करती हैं. इससे टीम का बहुत फायदा होता है. इसके बाद उन्होंने ओपनिंग करना छोड़ दिया. इसी तरह एमएस धोनी को मौका देने के लिए विकेट किपिंग भी कई बार छोड़ देते थे. धोनी को नंबर 3 पर बल्लेबाजी करना किसी भारतीय क्रिकेट कप्तान द्वारा हाल के वर्षों में लिए गए सर्वश्रेष्ठ फैसलों में से एक माना जाता है. दादा से ये सबक हर किसी को सीखने लायक है.
4. विविधीकरण विकास की कुंजी है
किसी नौकरी से रिटायरमेंट के बाद अक्सर लोग अपना जीवन ही खत्म मान लेते हैं. ऐसे लोगों को सौरव गांगुली से सीखने की जरूरत है. सक्रिय क्रिकेट से संन्यास लेने के तुरंत बाद उन्होंने अपने करियर का विविधीकरण किया. उन्होंने एक इंडियन सुपर लीग क्लब, एटलेटिको डी कोलकाता में निवेश किया, जिसे अब ATK के नाम से जाना जाता है. बंगाल में इसके न केवल भारी संख्या में प्रशंसक हैं, बल्कि ये फुटबॉल पिच पर भी सफल है. इसके बाद साल 2015 में उनको बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन (सीएबी) का अध्यक्ष बना दिया गया, जहां उन्होंने कई सकारात्मक बदलाव किए. फिर, चार साल बाद भारतीय क्रिकेट में सबसे शक्तिशाली पद पर वापसी करते हुए निर्विरोध बीसीसीआई अध्यक्ष नियुक्त किए गए. एक छात्र के रूप में दादा की तरह आप भी अपने करियर में नियमित सतत विविधता लाते रहें.
5. उन लोगों के लिए लड़ें जो मायने रखते हैं
ऐसे लीडर एक अच्छी टीम बना पाते हैं, जो अपनी टीम के सदस्यों के हक के लिए लड़ना जानते हैं. साल 2001 की बात है. ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए टीम इंडिया का चयन होना था. पदाधिकारियों सहित कप्तान गांगुली बैठे हुए थे. टीम के सदस्यों का नाम फाइनल हो रहा था. इसमें हरभजन सिंह का नाम नहीं था. लेकिन गांगुली उनके लिए अड़ गए. उन्होंने चयनकर्ताओं से कहा कि वो कमरे से तबतक नहीं जाएंगे, जबतक सूची में हरभजन का नाम नहीं देख लेते. उसके बाद जो हुआ उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय क्रिकेट टीम के बारे में लोगों की धारणा बदल दी. इस दौरे पर हरभजन सिंह सबसे सफल गेंदबाज साबित हुए. उन्होंने टेस्ट सीरीज में 32 विकेट हासिल किए, एक हैट्रिक लगाई और बल्लेबाजी करते हुए भारत को विजयी भी बनाया. दादा की तरह छात्रों को भी अपनों के हक में लड़ना सीखना चाहिए.
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