क्रिकेट भले ही फुटबाल या रग्बी जैसा विश्व के सबसे लोकप्रिय खेल में न हो लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में यह उससे कम भी नहीं है. वैसे इसके जनक देश इंग्लैंड से यह उन सभी देशों में गया जहां उनका शासन था लेकिन जिस तरह से हमारे यहां इसे अपनाया गया, वैसा शायद ही किसी दूसरे देश में हुआ होगा. शुरुआत में इसे भद्रजनों का खेल कहा गया, वजह थी इसकी सफ़ेद ड्रेस और पांच दिन तक चलने वाला टेस्ट मैच. न तो ज्यादा शोर शराबा होता था और न ही झटपट होने वाले मैचों का दिल की धड़कनों को बढ़ा देने वाला रोमांच. इस खेल के दीवानों के पास भरपूर समय होता था और वे पांच दिन तक इसे बिना किसी दिक्कत के देख सकते थे.
इसके बाद खेल में प्रवेश हुआ एक शख्स का जिसका नाम था "कैरी पैकर". उस व्यक्ति ने 9 मई 1977 से वर्ल्ड सीरीज क्रिकेट की शुरुआत की और इस खेल का स्वरुप बदल दिया और यह खेल पांच दिन के बदले एक दिन का धूम धड़ाका वाला खेल भी बन गया. उस समय तक वैसे तो वन डे क्रिकेट शुरू हो गया था लेकिन असली रंग भरा इसमें कैरी पैकर ने ही. फिर इस वन डे के खेल में सफ़ेद जर्सी रंग बिरंगी हुई, ओवर की संख्या 60 से घटकर 50 हुई, दिन में खेला जाने वाला खेल रात और दिन का हुआ और क्रिकेट का विश्वकप भी शुरू हुआ. इसके बाद की यात्रा तो अब 50 से 20 ओवरों तक सिमट गई है.
शुरूआती 20 सालों तक वन डे क्रिकेट एक निश्चित ढर्रे पर चलता रहा, पहले के 15 ओवर्स में संभलकर विकेट बचाते हुए रन बनाना, फिर धीरे धीरे रन गति बढ़ाना और आखिर के दस ओवर्स में धुआंधार गति से रन बनाना. यह सिलसिला पता नहीं और कितने सालों तक ऐसे ही चलता रहता, लेकिन सन 1993 में एक खिलाड़ी ने इस खेल का नक्शा ही बदल दिया. यह खिलाड़ी था श्रीलंका का एक गेंदबाज जो कामचलाऊ बैटिंग भी कर लेता था और छठवें या सातवें नंबर पर आकर कुछ रन बना देता था. इस शख्स का नाम था "सनथ जयसूर्या" और उसने...
क्रिकेट भले ही फुटबाल या रग्बी जैसा विश्व के सबसे लोकप्रिय खेल में न हो लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में यह उससे कम भी नहीं है. वैसे इसके जनक देश इंग्लैंड से यह उन सभी देशों में गया जहां उनका शासन था लेकिन जिस तरह से हमारे यहां इसे अपनाया गया, वैसा शायद ही किसी दूसरे देश में हुआ होगा. शुरुआत में इसे भद्रजनों का खेल कहा गया, वजह थी इसकी सफ़ेद ड्रेस और पांच दिन तक चलने वाला टेस्ट मैच. न तो ज्यादा शोर शराबा होता था और न ही झटपट होने वाले मैचों का दिल की धड़कनों को बढ़ा देने वाला रोमांच. इस खेल के दीवानों के पास भरपूर समय होता था और वे पांच दिन तक इसे बिना किसी दिक्कत के देख सकते थे.
इसके बाद खेल में प्रवेश हुआ एक शख्स का जिसका नाम था "कैरी पैकर". उस व्यक्ति ने 9 मई 1977 से वर्ल्ड सीरीज क्रिकेट की शुरुआत की और इस खेल का स्वरुप बदल दिया और यह खेल पांच दिन के बदले एक दिन का धूम धड़ाका वाला खेल भी बन गया. उस समय तक वैसे तो वन डे क्रिकेट शुरू हो गया था लेकिन असली रंग भरा इसमें कैरी पैकर ने ही. फिर इस वन डे के खेल में सफ़ेद जर्सी रंग बिरंगी हुई, ओवर की संख्या 60 से घटकर 50 हुई, दिन में खेला जाने वाला खेल रात और दिन का हुआ और क्रिकेट का विश्वकप भी शुरू हुआ. इसके बाद की यात्रा तो अब 50 से 20 ओवरों तक सिमट गई है.
शुरूआती 20 सालों तक वन डे क्रिकेट एक निश्चित ढर्रे पर चलता रहा, पहले के 15 ओवर्स में संभलकर विकेट बचाते हुए रन बनाना, फिर धीरे धीरे रन गति बढ़ाना और आखिर के दस ओवर्स में धुआंधार गति से रन बनाना. यह सिलसिला पता नहीं और कितने सालों तक ऐसे ही चलता रहता, लेकिन सन 1993 में एक खिलाड़ी ने इस खेल का नक्शा ही बदल दिया. यह खिलाड़ी था श्रीलंका का एक गेंदबाज जो कामचलाऊ बैटिंग भी कर लेता था और छठवें या सातवें नंबर पर आकर कुछ रन बना देता था. इस शख्स का नाम था "सनथ जयसूर्या" और उसने अपने टीम के कहने पर 1993 में ओपनिंग करना शुरू किया.
मजबूत कदकाठी के इस खिलाड़ी ने शुरूआती ओवर्स में, जब कुछ ही खिलाड़ी बॉउंड्री लाइन पर खड़े हो सकते थे, बेधड़क तरीके से बल्ला घुमाना शरू किया. खेल के शुरूआती ओवर्स में ही, जहां पहले शायद धीमी गति से ही रन बनते थे, अब चौके और छक्के बरसने शुरू हो गए. पहले जिन 15 ओवर्स में बमुश्किल 50 रन बनते थे, अब 75 से 100 रन तक बनने लगे. इसका असर कुल बनाए गए रनों पर भी पड़ा, पहले जहां 50 ओवर्स में 225 से 240 रन बड़ी मुश्किल से बनते थे, अब 250 से ज्यादा अमूमन हर मैच में बनने लगे और कुछ ही सालों में यह आकड़ा 300 पार कर गया. कुछ मैचों में तो यह 400 को भी पार कर गया.
धीरे धीरे हर टीम ने शुरुआत में ऐसे ही हिटर खिलाडियों को भेजना शुरू कर दिया जो गेंद को लम्बा हिट लगाने में सक्षम थे. फिर इसमें भी बदलाव आया और क्रिकेट 20 ओवर्स का हुआ जो शायद आगे चलकर 10 ओवर्स का भी हो जाए. यदि जयसूर्या ने ओपनिंग करनी शुरू नहीं की होती तो शायद वह वन डे में शतक बनाना तो दूर, शायद अर्धशतक भी नहीं बना पाते. लेकिन एक परिवर्तन ने न सिर्फ वन डे क्रिकेट का स्वरुप बदल दिया, बल्कि सनथ जयसूर्या को विश्व के बेहतरीन आल राउंडर्स में से एक बना दिया. बहरहाल जयसूर्या के बारे में इतना सब लिखने का कारण यह है कि कुछ दिन पहले ही उनसे मुलाकात हुई थी और इस पहली मुलाकात ने सब कुछ याद दिला दिया.
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