भारत और न्यूजीलैंड के बीच खेली जा रही 5 वन डे मैच की सीरीज अब खत्म हो चुकी है. न्यूजीलैंड की धरती पर हुई इस सीरीज में कीवी अपने घर में ही एक के बाद एक 4 मैच हार गए सिर्फ एक में जीत दर्ज कर पाए. इस सीरीज को भारत 4-1 से जीत गया है. आखिर ऐसा क्या है कि जिस मैदान पर न्यूजीलैंड के खिलाड़ी अब तक भारत को हराते आए थे, वहीं पर अब उनके पैर नहीं चल रहे हैं. कोई शॉट ढंग से नहीं लग रहा है, यूं लग रहा है मानो खेलने में कीवियों के पैर कांप रहे हों. वहीं दूसरी ओर भारत के खिलाड़ी धुआंधार रन मना रहे हैं. तो क्या भारतीय खिलाड़ी न्यूजीलैंड के खिलाड़ियों से बेहतर हैं? अगर बेहतर हैं तो किस मामले में, खेलने के मामले में? भारत के खिलाड़ियों का खेल बेहतर है या इनमें कोई और खासियत है?
भारत और न्यूजीलैंड के खिलाड़ियों की काबीलियत को अगर अलग-अलग देखा जाए तो इसमें कोई दोराय नहीं है कि दोनों ही टीमों में देश के बेहतरीन खिलाड़ी हैं. लेकिन एक टीम जीत पर जीत दर्ज करती रही, जबकि दूसरी सिर्फ एक मैच जीत सकी बाकी चारों हार गई. दरअसल, किसी खेल में सिर्फ अच्छा खिलाड़ी होना ही मायने नहीं रखता. जब मैदान पर खेल रही दोनों टीमें टक्कर की हों, तो खिलाड़ियों की साइकोलॉजी बहुत बड़ी भूमिका निभाती है. खिलाड़ियों को न सिर्फ सामने वाले खिलाड़ी से लड़ना होता है, बल्कि अपने अंदर के प्रेशर या यूं कहें कि तनाव से भी लड़ना होता है.
जो इस तनाव को हरा देता है, सामने वाली टीम को भी वही हराता है और विजेता बनता है, जैसा कि भारत ने किया. लेकिन जो टीम इस साइकोलॉजिकल दबाव से लड़ नहीं पाती है, उसका हाल न्यूजीलैंड की टीम की तरह होता है और उसे हार का मुंह देखना पड़ता है. यानी इस साइकोलॉजिकल दबाव को भारतीय खिलाड़ियों ने बहुत ही अच्छे से संभाला. चौथे मैच में विराट कोहली और धोनी की गैरमौजूदगी में आत्मविश्वास थोड़ डगमगाया और बाजी हाथ से निकलकर न्यूजीलैंड के हाथ में चली गई. लेकिन आखिरी मैच में भारतीय खिलाड़ियों ने अपना आत्मविश्वास फिर से जगाया और जीत का परचम लहरा दिया.
भारत की टीम ने न्यूजीलैंड साथ हुई 5 मैचों की वन डे सीरीज 4-1 से जीत ली है.
भारत की जीत और न्यूजीलैंड की हार की वजह दबाव!
भारत का आत्मविश्वास न्यूजीलैंड जाने से पहले ही काफी बढ़ा हुआ था, क्योंकि भारत ने ऑस्ट्रेलिया को उसी की जमीन पर हराया था. ऐसा पहली बार हुआ था कि ऑस्ट्रेलिया के साथ हुई कोई टेस्ट सीरीज भारत ने विदेशी धरती पर जीती हो, तो फिर आत्मविश्वास से लबरेज रहना तो लाजमी था. इसी आत्मविश्वास की बदौलत भारत न्यूजीलैंड की धरती पर एक के बाद एक लगातार वन डे सीरीज के मैच जीतता गया और देखते ही देखते सीरीज पर कब्जा भी कर लिया. खिलाड़ियों पर कोई दबाव नहीं था, बल्कि उन्हें तो चौतरफा तारीफें मिल रही थीं.
5 मैचों की सीरीज में न्यूजीलैंड सिर्फ एक मैच जीत पाया. एक के बाद एक लगातार मैच में हार झेलने की वजह से खिलाड़ियों पर सीरीज गंवा देने के डर ने दबाव बना दिया, वहीं आलोचनाओं के चलते भी उनका मनोबल टूटता गया, जिसका असर उनके प्रदर्शन पर साफ देखा जा सकता है. न्यूजीलैंड की पुलिस से लेकर सोशल मीडिया तक पर न्यूजीलैंड की टीम आलोचनाएं झेल रही है और इसी प्रेशर की वजह से मैदान पर उनके बल्ले नहीं चले. रन लेने में जैसे पैर कांप रहे थे. हर वक्त एक डर सता रहा था कि कहीं ये मैच भी ना हार जाएं और इसी दबाव के चलते न्यूजीलैंड सीरीज ही गंवा बैठा. तो आखिर क्यों खिलाड़ी दबाव या प्रेशर में अच्छा नहीं खेल पाते हैं?
साइकोलॉजी का है सारा खेल!
दबाव में खिलाड़ियों के अच्छा नहीं खेल पाने की वजह क्या है, इसका जवाब खिलाड़ियों की साइकोलॉजी में छुपा है. मशहूर साइकोलॉजिस्ट Dr Jamie Barker इस सवाल का जबाव बखूबी दे रहे हैं. 2013 में जेमी ने खिलाड़ियों की साइकोलॉजी को समझने और उन्हें तैयार करने के लिए एक डिवाइस बनाया था, जिससे कार्डियोवास्कुलर टेस्ट किया जाता था. इस डिवाइस के जरिए खिलाड़ियों के फिजियोलॉजिकल रिएक्शन मॉनिटर किए जाते थे. खिलाड़ियों को एक टारगेट दे दिया जाता था जैसे 30 गेंदों में 36 रन बनाने का. इसके साथ ही बता दिया जाता था कि नतीजे सार्वजनिक किए जाएंगे और जो इस टेस्ट में पास होगा वही टीम में शामिल किया जाएगा. ऐसा लग रहा है कि इस समय जेमी के इस डिवाइस की जरूरत न्यूजीलैंड को बहुत अधिक है, ताकि वह ये समझ सकें कि वह कितने दबाव में हैं. साथ ही उन्हें किसी साइकोलॉजिस्ट से ये भी राय लेनी चाहिए कि उस दबाव से मुक्ति कैसे पाएं.
क्या होता है शरीर में, जो हार-जीत तय करता है?
जेमी की थ्योरी से ये समझना काफी आसान है कि क्यों क्रिकेट के मैदान पर भारतीय खिलाड़ी धुंआधार रन बनाते हैं, जबकि न्यूजीलैंड के खिलाड़ियों के पैर कांपने लगते हैं. जेमी बताते हैं कि जब हम दबाव में होते हैं तो हमारे शरीर में Cortisol hormones बनते हैं, जिन्हें स्ट्रेस हार्मोन्स भी कहा जाता है. इसकी वजह से हमारी नसें सिकुड़ने लगती हैं, जिससे शरीर में खून का बहाव धीमा पड़ जाता है, जिसकी वजह से पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन शरीर के हर हिस्से तक नहीं पहुंच पाता है. यही वजह है, जिसके चलते प्रदर्शन खराब हो जाता है, जो न्यूजीलैंड के साथ हुआ.
वहीं दूसरी ओर, जब हम खुश होते हैं और आत्मविश्वास से भरे हुए होते हैं तो हमारे शरीर में Adrenal hormones बनता है, जो नसों को फैला देता है. इसकी वजह से शरीर में अधिक खून का बहाव होता है, जिसके साथ पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन शरीर के हर हिस्से में पहुंचता है. जब ऐसा होता है तो खिलाड़ी बैटिंग-बॉलिंग से जुड़े निर्णय तेजी से ले सकते हैं और कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है भारतीय टीम के खिलाड़ियों में. न तो उनमें आत्मविश्वास की कमी है ना ही फुर्ती की, जिसकी बदौलत वह एक के बाद एक सभी मैच जीतते जा रहे हैं.
ऐसा नहीं है कि साइकोलॉजी का ये खेल सिर्फ क्रिकेट में होता है, बल्कि हर खेल में साइकोलॉजी की भूमिका होता है. बल्कि यूं कहना चाहिए कि साइकोलॉजी की भूमिका न सिर्फ खेल, बल्कि हर क्षेत्र में होती है. अक्सर हड़बड़ाहट या डर में हम सही फैसले नहीं ले पाते हैं, ये भी Cortisol hormones की वजह से ही होता है. यूं लग रहा है कि न्यूजीलैंड के खिलाड़ियों को यही दिक्कत हो गई है. जबकि लगातार मिल रही जीत और सीरीज पर कब्जे के चलते भारत का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर पहुंच गया. यानी भारतीय खिलाड़ियों के शरीर में Adrenal hormones बनता रहा, जिसने उनकी रफ्तार और प्रदर्शन को और भी निखार दिया. और इसी का नतीजा है कि न्यूजीलैंड और भारत के बीच चल रही वन डे सीरीज को भारत ने 4-1 से जीत लिया है.
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