बीसीसीआई और आईसीसी के बीच की जंग ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही, चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम की घोषणा करने की आखिरी तारीख ख़त्म होने के चार दिन बाद भी बीसीसीआई ने 1 जून से इंग्लैंड में होने वाले चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम कि घोषणा नहीं की है. ऐसा माना जा रहा है कि शायद बीसीसीआई चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम ही न भेजे. ऐसा होने की स्थिति में चैंपियंस ट्रॉफी के आयोजन पर भी संकट के बादल छा सकते हैं. बीसीसीआई ने टीम चयन पर आखिरी फैसला लेने के लिए 7 मई को एक विशेष बैठक बुलाई है जिसके बाद बीसीसीआई अपने आगे की रणनीति तय करेगी.
अभी तक क्या होता आ रहा था... साल 2014 में पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन एक फार्मूला लेकर आए थे जिसके तहत आईसीसी के लाभ का बड़ा हिस्सा भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के क्रिकेट बोर्ड को दिया जाता था. इस फॉर्मूले के तहत भारत को आईसीसी के रेवेन्यू का 20 फीसदी हिस्सा मिलता था जो कि 570 मिलियन डॉलर था. इस फॉर्मूले के पीछे तर्क था कि आईसीसी अपना 70 से 80 फ़ीसदी मुनाफा इन तीन देशों के क्रिकेट बोर्ड से कमाती है ऐसे में आईसीसी के लाभ में भी इन देशों को बड़ी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.
अब क्या होगा... साल 2016 में आईसीसी के चेयरमैन का पद संभालते ही शशांक मनोहर को लगा कि रेवेन्यू बंटवारे का यह मॉडल तार्किक नहीं है. इस मॉडल से खेल के विकास को भी मदद नहीं मिलेगी, साथ ही साथ खेल को नए देशों तक...
बीसीसीआई और आईसीसी के बीच की जंग ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही, चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम की घोषणा करने की आखिरी तारीख ख़त्म होने के चार दिन बाद भी बीसीसीआई ने 1 जून से इंग्लैंड में होने वाले चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम कि घोषणा नहीं की है. ऐसा माना जा रहा है कि शायद बीसीसीआई चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम ही न भेजे. ऐसा होने की स्थिति में चैंपियंस ट्रॉफी के आयोजन पर भी संकट के बादल छा सकते हैं. बीसीसीआई ने टीम चयन पर आखिरी फैसला लेने के लिए 7 मई को एक विशेष बैठक बुलाई है जिसके बाद बीसीसीआई अपने आगे की रणनीति तय करेगी.
अभी तक क्या होता आ रहा था... साल 2014 में पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन एक फार्मूला लेकर आए थे जिसके तहत आईसीसी के लाभ का बड़ा हिस्सा भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के क्रिकेट बोर्ड को दिया जाता था. इस फॉर्मूले के तहत भारत को आईसीसी के रेवेन्यू का 20 फीसदी हिस्सा मिलता था जो कि 570 मिलियन डॉलर था. इस फॉर्मूले के पीछे तर्क था कि आईसीसी अपना 70 से 80 फ़ीसदी मुनाफा इन तीन देशों के क्रिकेट बोर्ड से कमाती है ऐसे में आईसीसी के लाभ में भी इन देशों को बड़ी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.
अब क्या होगा... साल 2016 में आईसीसी के चेयरमैन का पद संभालते ही शशांक मनोहर को लगा कि रेवेन्यू बंटवारे का यह मॉडल तार्किक नहीं है. इस मॉडल से खेल के विकास को भी मदद नहीं मिलेगी, साथ ही साथ खेल को नए देशों तक ले जाना भी मुश्किल होगा. इन बातों को ध्यान में रखते हुए आईसीसी ने प्रॉफिट शेयरिंग का एक नया फार्मूला बनाया जो साल 2016-2023 के लिए लागू होगा, यही फार्मूला बीसीसीआई को रास नहीं आया. इस फॉर्मूले के तहत बीसीसीआई को 293 मिलियन डॉलर, इंग्लैंड को 143 मिलियन डॉलर, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, वेस्ट इंडीज, श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों को 132 मिलियन डॉलर और ज़िम्बाब्वे को 94 मिलियन डॉलर साथ ही एसोसिएट देशों के लिए कुल 280 मिलियन डॉलर की व्यवस्था की गयी.
हालाँकि, बीसीसीआई की नाराजगी को देखते हुए आईसीसी बीसीसीआई को 400 मिलियन डॉलर देने पर राजी हुई मगर बीसीसीआई इस पर भी राजी नहीं हुआ. बीसीसीआई ने इसके लिए सभी सदस्य देशों के साथ वोटिंग पर अड़ा रहा, मगर इस वोटिंग में भी बीसीसीआई को मुंह की खानी पड़ी, इस मॉडल को 14 में से 13 वोटों के साथ पास किया गया.
वैसे देखा जाये तो इस नए फॉर्मूले में भी बीसीसीआई को सबसे ज्यादा हिस्सेदारी दी गयी है, इसके आलावा भी बीसीसीआई के आय के कई जरिए हैं, ऐसे में आईसीसी का यह नया फैसला स्वातयोग्य है क्योंकि इस फॉर्मूले से पैसे की भारी कमी से जूझ रहे कई क्रिकेट बोर्ड्स को अपने यहाँ क्रिकेट के इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने में मदद मिलेगी. साथ ही साथ यह क्रिकेट को और प्रतियोगी बनाने में भी मददगार साबित होगा. बीसीसीआई को आईसीसी के इस मुहीम में सहयोग करना चाहिए जो क्रिकेट को नए देशों में विस्तार करना चाहती है. बीसीसीआई के खुश होने की वजह यह भी होनी चाहिए कि आईसीसी के इस सुधार के पीछे भी बीसीसीआई के पूर्व चीफ शशांक मनोहर ही हैं. ऐसे में बीसीसीआई को अपना हठ छोड़ क्रिकेट की बेहतरी के लिए आगे आना चाहिए.
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