मैरी कॉम 2012 में लंदन में हुए ओलंपिक खेलों में उन 6 ओलंपिक पदक विजेताओं में से एक थीं जो भारत के लिए पदक लाए थे. 9 साल पहले, मैरी कॉम 5 बार की विश्व चैंपियन थीं और उन्होंने अपने ओलंपिक की शुरुआत धमाकेदार तरीके से की थी. लंदन खेलों में कांस्य पदक जीतने के तुरंत बाद, वह उन युवाओं का आदर्श बन गयीं जो देश का गौरव बढ़ाने की इच्छा रखते थे. 9 साल पहले लंदन में मैरी कॉम के पदक ने न केवल भारतीय एथलीटों - पुरुषों और महिलाओं की एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया, बल्कि इसने भारत के पूर्वोत्तर में एक तरह की क्रांति को भी उभारा.
भारत का पूर्वोत्तर. अनोखा. सुंदर. हरी भरी जमीनें. बर्फ से ढंके पहाड़. और लोग- मिलनसार, गर्मजोशी और स्वागत करने वाले. मैरी कॉम बेशक देश के इस हिस्से से उभरने वाली पहली महान भारतीय एथलीट नहीं थीं. बाइचुंग भूटिया भी यही से निकले थे जिनके फुटबॉल मैदान पर किये गए कारनामे आज भी भारत में खेल लोककथाओं का हिस्सा हैं.
लेकिन मैरी कॉम के ओलंपिक कांस्य ने पूर्वोत्तर के खेल के प्रति जागरूक युवाओं के लिए सपने देखने और बड़े सपने देखने का मार्ग प्रशस्त किया.
टोक्यो ओलंपिक में मणिपुर की एक युवती मीराबाई चानू ने इतिहास रच दिया. गौर कीजिए कि उन्होंने दुनिया के सबसे महान खेल प्रदर्शन में क्या किया? मीराबाई ओलंपिक के पहले दिन पदक जीतने वाली पहली भारतीय बनीं. वह अब ओलंपिक रजत जीतने वाली पहली भारतीय भारोत्तोलक और पीवी सिंधु के बाद रजत पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला हैं.
मीराबाई चानू के भाई ने उस समय को याद किया जब वह लकड़ी लेने के लिए जंगल जाती थी. वह हमेशा अपने सभी भाइयों और अन्य लड़कों की तुलना में अधिक भार ढोती थी. Indiatoday.in के...
मैरी कॉम 2012 में लंदन में हुए ओलंपिक खेलों में उन 6 ओलंपिक पदक विजेताओं में से एक थीं जो भारत के लिए पदक लाए थे. 9 साल पहले, मैरी कॉम 5 बार की विश्व चैंपियन थीं और उन्होंने अपने ओलंपिक की शुरुआत धमाकेदार तरीके से की थी. लंदन खेलों में कांस्य पदक जीतने के तुरंत बाद, वह उन युवाओं का आदर्श बन गयीं जो देश का गौरव बढ़ाने की इच्छा रखते थे. 9 साल पहले लंदन में मैरी कॉम के पदक ने न केवल भारतीय एथलीटों - पुरुषों और महिलाओं की एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया, बल्कि इसने भारत के पूर्वोत्तर में एक तरह की क्रांति को भी उभारा.
भारत का पूर्वोत्तर. अनोखा. सुंदर. हरी भरी जमीनें. बर्फ से ढंके पहाड़. और लोग- मिलनसार, गर्मजोशी और स्वागत करने वाले. मैरी कॉम बेशक देश के इस हिस्से से उभरने वाली पहली महान भारतीय एथलीट नहीं थीं. बाइचुंग भूटिया भी यही से निकले थे जिनके फुटबॉल मैदान पर किये गए कारनामे आज भी भारत में खेल लोककथाओं का हिस्सा हैं.
लेकिन मैरी कॉम के ओलंपिक कांस्य ने पूर्वोत्तर के खेल के प्रति जागरूक युवाओं के लिए सपने देखने और बड़े सपने देखने का मार्ग प्रशस्त किया.
टोक्यो ओलंपिक में मणिपुर की एक युवती मीराबाई चानू ने इतिहास रच दिया. गौर कीजिए कि उन्होंने दुनिया के सबसे महान खेल प्रदर्शन में क्या किया? मीराबाई ओलंपिक के पहले दिन पदक जीतने वाली पहली भारतीय बनीं. वह अब ओलंपिक रजत जीतने वाली पहली भारतीय भारोत्तोलक और पीवी सिंधु के बाद रजत पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला हैं.
मीराबाई चानू के भाई ने उस समय को याद किया जब वह लकड़ी लेने के लिए जंगल जाती थी. वह हमेशा अपने सभी भाइयों और अन्य लड़कों की तुलना में अधिक भार ढोती थी. Indiatoday.in के साथ एक साक्षात्कार में, मीराबाई के भाई ने मजाक में कहा कि उसने रजत जीता था क्योंकि वे सभी उसे लकड़ी का अपना हिस्सा ले जाने देते थे.
ऐसी है उत्तर पूर्व की भावना. प्रसन्न. आसान. रिलैक्स. लेकिन इस खुशमिजाज स्वभाव में ओलंपिक में गौरव के लिए जरूरी दृढ़ संकल्प निहित है. और लवलीना बोरगोहेन ने ऐसा ही किया. असम की इस मुक्केबाज ने ताइवान की एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी को हराकर भारत को टोक्यो ओलंपिक में अपना दूसरा पदक दिलाने का आश्वासन दिया.
लवलीना असम के गोलघर जिले के बड़ा मुखिया नाम के गांव की रहने वाली हैं. लंदन खेलों में मैरी कॉम की सनसनीखेज शुरुआत के बाद, उन्हें अपना आदर्श मानने वाली युवा खिलाड़ी लवलीना के लिए जीवन कभी आसान नहीं रहा.
पिछले जुलाई में, जब लवलीना के अधिकांश सहयोगी नेशनल कैंप में पूरे जोर-शोर से प्रशिक्षण ले रहे थे, लवलीना अपनी मां के साथ थी, जिसका नेफ्रोलॉजिकल बीमारियों के चलते अस्पताल में इलाज किया जा रहा था. जब वह अस्पताल से बाहर निकली, तो लवलीना अपने पिता के धान के खेत में उनकी मदद करने गई.
स्थिति लवलीना के लिए किस हद तक विपरीत थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लवलीना की कोविड -19 जांच रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गयी. ये सब तब हुआ था जब उन्हें एक प्रशिक्षण-सह-प्रतियोगिता के लिए इटली के लिए उड़ान भरनी थी. कह सकते हैं कि अपनी कहानी छोटी करते हुए लवलीना ने भारत के लिए गौरव हासिल करने के लिए तमाम बाधाओं को टाल दिया.
जो लोग पूर्वोत्तर से परिचित होंगे जानते होंगे कि वहां जीवन आसान नहीं है. यह ज्यादातर हिस्सों में कभी नहीं होता है. आंतरिक संघर्ष, विभिन्न जनजातियों के बीच के मुद्दे और उभरते एथलीटों के लिए बुनियादी ढांचे की कमी, जब आप बड़े होकर ओलंपिक पदक जीतने की इच्छा रखते हैं तो इन चुनौतियों से निपटना आसान नहीं होता.
वरिष्ठ पत्रकार कर्मा पलजोर ने यह सब प्रत्यक्ष देखा है. अपनी साइकिल राइड के दौरान, कर्मा ने कुछ लड़कों को देखा, जो पूरी तरह से तल्लीन होकर एक झील के पास फुटबॉल की प्रैक्टिस कर रहे थे. 'मैंने दूसरी तरफ क्या देखा? मैंने उन लड़कियों को देखा जो यूनिफार्म में नहीं थीं, उनमें से कुछ ने स्कर्ट पहन रखी थी, उनमें से ज्यादातर नंगे पैर थीं और वे (फुटबॉल) खेल रही थीं.
उन्हें इस तरह खेलते देख मुझे बहुत आनंद आया. गोल के बाद जो उनकी ख़ुशी थी वो बहुत रॉ थी और वो लोग पूरे पैशन से खेल रहे थे. उन्होंने कहा कि मेरे लिए पूर्वोत्तर में यही खेलों की परिभाषा है. कर्मा ने कहा कि पूर्वोत्तर के बच्चे जीतने के लिए ही खेलते हैं. वे खेल को अपने घरों से बाहर हरियाली वाले चरागाहों (अच्छे जीवन )में जाने के साधन के रूप में देखते हैं और एक पहचान बनाते हैं.
पूर्वोत्तर में माता-पिता सक्रिय रूप से अपने बच्चों को खेल को एक पेशे के रूप में अपनाने और गंभीर करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. कर्मा ने कहा कि मीराबाई चानू और लवलीना बोरगोहेन की उपलब्धियां दूसरी पीढ़ी को प्रेरित करेंगी. 'बच्चे अब सोचेंगे कि अगर वे वहां हैं, तो हम भी वहां पहुंच सकते हैं. मैरी कॉम ने मणिपुर में सैकड़ों मैरी कॉम को प्रेरित किया है.
उत्तर पूर्व के अपने मुद्दे हैं, लेकिन युवा पुरुष और महिलाएं जो बड़े शहरों में जीवन यापन करने के लिए आते हैं, अक्सर नस्लवाद और यहां तक कि हिंसा का भी शिकार होते हैं. कर्मा का मानना है कि या चिंताजनक है और पूर्वोत्तर और उसके लोगों के बारे में जागरूकता की कमी का परिणाम है.
देश आज मीराबाई और लवलीना की तारीफ कर रहा है. सोशल मीडिया के इस युग में, उनकी जीवन कहानियां पहले से ही वायरल हैं और बहुत से आम भारतीयों के साथ प्रतिध्वनित होती हैं. इनके संघर्ष वास्तविक हैं और इनसे हम सभी परिचित हैं.
पूर्वोत्तर की दो महिलाएं टोक्यो में भारत के लिए पदक जीतने वाली पहली दो महिलाएं थीं. क्या वे उत्तर पूर्व के लिए अधिक एकता और गर्मजोशी को प्रेरित कर सकती हैं? क्या वे शेष भारत के साथ शांति और विश्वास का पुल बनाने में मदद कर सकती हैं?
कर्मा कहते हैं कि वह नहीं चाहते कि मीराबाई या लवलीना में से किसी का इस्तेमाल लंबे भाषणों के लिए किया जाए, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि उनका खेल उनके लिए खुद बोलेगा. मीराबाई चानू और लवलीना बोरगोहेन ने न केवल पूर्वोत्तर के लिए बल्कि भारत के लिए पदक जीते हैं.
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