टोक्यो ओलंपिक्स का समापन हो चुका है, लेकिन टोक्यो ओलंपिक 2021 (Tokyo Olympic 2021) भारत के लिए कई मायनों में न भूलने वाला ओलंपिक बन गया है. खेलों के महाकुंभ के पहले ही दिन भारत के लिए मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीत कर खुशियों से झोली भर दी थी. वहीं, इसके समापन से पहले जेवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक के साथ देश के करोड़ों लोगों का सीन गर्व से चौड़ा कर दिया था. इन दो पदकों के बीच में भारत के खाते में रवि दहिया ने सिल्वर, पीवी सिधु-लवलीना बोरगोहेन-बजरंग पुनिया और भारतीय हॉकी टीम ने कांस्य पदक के साथ भारतीयों का उत्साह सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था. भारत ने टोक्यो ओलंपिक्स में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 7 पदक जीते. लेकिन, टोक्यो ओलंपिक केवल भारत के नजरिये से ही अच्छा नहीं रहा. खेलों का ये महाकुंभ भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से इतर भी कई बातों के लिए याद किया जाएगा. आइए जानते हैं वो क्या हैं:
रुढ़िवादी जापान में LGBTQ खिलाड़ियों की बढ़ी भागीदारी
टोक्यो ओलंपिक में इस बार 160 से ज्यादा LGBTQ (समलैंगिक-बाइ सेक्सुअल-ट्रांसजेंडर) एथलीट्स ने हिस्सा लिया था. जापान जैसे रुढ़िवादी देश में, जहां समलैंगिक संबंधों को आज भी हेय दृष्टि से देखा जाता हो, खेलों के महाकुंभ के आयोजन पर सबकी नजरें इस देश की ओर थीं. जापान के एलजीबीटी समुदाय ने भी मांग की थी कि ओलंपिक के आयोजन का इस्तेमाल विभिन्नता को प्रोत्साहित करने के लिए पुरजोर तरीके से किया जाना चाहिए. शायद यही वजह रही कि जापान में आयोजित इस खेल महाकुंभ का एक स्लोगन 'यूनिटी इन डायवर्सिटी' यानी विभिन्नता में एकता रखा गया था. भारत की ओर से गए दल में दुती चंद भी समलैंगिक हैं.
गोल्ड मेडल पर भारी पड़ी मानवता
टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों के हाई जंप इवेंट के फाइनल में एक चौंकाने वाला नजारा सामने आया था. मानवता की मिसाल पेश करते हुए कतर के एथलीट मुताज एस्सा बारशिम ने चोटिल हुए इटली के गियानमार्को तांबेरी के साथ गोल्ड मेडल को आपस में साझा किया. दरअसल, मुताज एस्सा...
टोक्यो ओलंपिक्स का समापन हो चुका है, लेकिन टोक्यो ओलंपिक 2021 (Tokyo Olympic 2021) भारत के लिए कई मायनों में न भूलने वाला ओलंपिक बन गया है. खेलों के महाकुंभ के पहले ही दिन भारत के लिए मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीत कर खुशियों से झोली भर दी थी. वहीं, इसके समापन से पहले जेवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक के साथ देश के करोड़ों लोगों का सीन गर्व से चौड़ा कर दिया था. इन दो पदकों के बीच में भारत के खाते में रवि दहिया ने सिल्वर, पीवी सिधु-लवलीना बोरगोहेन-बजरंग पुनिया और भारतीय हॉकी टीम ने कांस्य पदक के साथ भारतीयों का उत्साह सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था. भारत ने टोक्यो ओलंपिक्स में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 7 पदक जीते. लेकिन, टोक्यो ओलंपिक केवल भारत के नजरिये से ही अच्छा नहीं रहा. खेलों का ये महाकुंभ भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से इतर भी कई बातों के लिए याद किया जाएगा. आइए जानते हैं वो क्या हैं:
रुढ़िवादी जापान में LGBTQ खिलाड़ियों की बढ़ी भागीदारी
टोक्यो ओलंपिक में इस बार 160 से ज्यादा LGBTQ (समलैंगिक-बाइ सेक्सुअल-ट्रांसजेंडर) एथलीट्स ने हिस्सा लिया था. जापान जैसे रुढ़िवादी देश में, जहां समलैंगिक संबंधों को आज भी हेय दृष्टि से देखा जाता हो, खेलों के महाकुंभ के आयोजन पर सबकी नजरें इस देश की ओर थीं. जापान के एलजीबीटी समुदाय ने भी मांग की थी कि ओलंपिक के आयोजन का इस्तेमाल विभिन्नता को प्रोत्साहित करने के लिए पुरजोर तरीके से किया जाना चाहिए. शायद यही वजह रही कि जापान में आयोजित इस खेल महाकुंभ का एक स्लोगन 'यूनिटी इन डायवर्सिटी' यानी विभिन्नता में एकता रखा गया था. भारत की ओर से गए दल में दुती चंद भी समलैंगिक हैं.
गोल्ड मेडल पर भारी पड़ी मानवता
टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों के हाई जंप इवेंट के फाइनल में एक चौंकाने वाला नजारा सामने आया था. मानवता की मिसाल पेश करते हुए कतर के एथलीट मुताज एस्सा बारशिम ने चोटिल हुए इटली के गियानमार्को तांबेरी के साथ गोल्ड मेडल को आपस में साझा किया. दरअसल, मुताज एस्सा बारशिम और गियानमार्को तांबेरी ने हाई जंप के फाइनल इवेंट में 2.37 मीटर की छलांग लगाई. दोनों ही एथलीट्स को इसके बाद अगले तीन प्रयासों में एकदूसरे से आगे निकलना था. लेकिन, ऐसा नहीं हो सका.
किसी एक की जीत तय होने तक दोनों खिलाड़ियों को प्रयास करते रहना था. लेकिन, इस दौरान तांबेरी चोटिल हो चुके थे. जिसके बाद बारशिम ने मैच ऑफिशियल्स से पूछा कि अगर मैं अपना नाम वापस लेता हूं, तो क्या दोनों खिलाड़ियों को गोल्ड मिलेगा? जैसी ही अधिकारियों ने 'हां' कहा, बारशिम ने एक पल गंवाए बिना ही स्वर्ण पदक साझा करने का फैसला कर लिया. बारशिम ने मानवता के साथ ही लोगों को एक बड़ी सीख दी कि खेल में हार-जीत ही सबकुछ नहीं होती है.
मेडल से ज्यादा जरूरी मेंटल हेल्थ
मानसिक सेहत को लेकर दुनियाभर के देशों में जागरुकता का स्तर बहुत अच्छा नही है. लोग लगातार सामाजिक और पारिवारिक दबाव में अपनी मानसिक सेहत को नजरअंदाज कर अपनी रोजमर्रा की चीजों में लगे रहते हैं. लेकिन, ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम (GOAT) यानी अब तक सबसे महान कहलाने वाली अमेरिकी जिमनास्ट सिमोन बाइल्स ने टोक्यो ओलंपिक के दौरान सभी इवेंट्स से अपना नाम वापस लेकर सभी को चौंका दिया था. टोक्यो ओलंपिक में सिमोन बाइल्स केवल चार पदक जीतकर ओलंपिक इतिहास में सबसे ज्यादा मेडल जीतने वाली एथलीट बन सकती थीं.
और, उनके पिछले ओलंपिक के गोल्ड मेडल और 30 बार के विश्व चैंपियन वाले करियर को देखकर कोई भी आसानी से कह सकता था कि वो ये कारनाम कर दिखाएंगी. लेकिन, मेडल से ऊपर अपनी मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता दी. उन्होंने जिमनास्टिक के सभी इवेंट्स से अपना नाम वापस ले लिया. सिमोन ने बताया था कि उन्हें मेंटल हेल्थ की समस्या 'ट्वीस्टीज' का सामना करना पड़ रहा है. प्रदर्शन के भारी दबाव के बीच ऐसा फैसला कर सिमोन बाइल्स ने दुनिया को बताया कि खिलाड़ी भी इंसान ही हैं. वो भी तनाव से गुजरते हैं.
स्वेटर बुनता नजर आया ओलंपिक चैंपियन
भारत में बुनाई अगर व्यवसायिक हो, तो अलग बात है. वरना इसे अमूमन महिलाओं का काम ही माना जाता है. लेकिन, इस बार के टोक्यो ओलंपिक में एक गोल्ड विजेता चैंपियन खिलाड़ी स्वेटर की बुनाई करता नजर आया. ब्रिटेन के गोताखोर यानी डाइवर टॉम डेले ने टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर खुद को चैंपियन साबित किया. लेकिन, डाइविंग के इस महारथी को केवल अपने पसंदीदा खेल में ही महारत हासिल नहीं है. बल्कि, उनके हाथों में बुनाई का जादू भी बखूबी बसा हुआ है.
दरअसल, पुरुषों की 10 मीटर सिंक्रनाइज डाइविंग में ब्रिटेन के टॉम डेले ने मैटी ली के साथ गोल्ड मेडल जीता. वहीं, इस इवेंट के बाद वो महिलाओं की 3 मीटर स्प्रिंगबोर्ड फाइनल में दर्शकों के बीच स्वेटर बुनते दिखे. उनके इस हुनर पर दुनियाभर के फैंस हैरान रह गए. टॉम डेले ने दिसंबर 2013 में अपने समलैंगिक होने की घोषणा की थी. अमेरिकन ऑस्कर विनर फिल्म स्क्रीनराइटर, डायरेक्टर और प्रॉड्यूसर डस्टिन लांस ब्लैक के उन्होंने शादी की है. इस कपल का एक बेटा भी है.
रेवेन सान्डर्स का पोडियम प्रोटेस्ट
अमेरिकी खिलाड़ी रेवेन सान्डर्स (Raven Saunders) ने टोक्यो ओलंपिक की शॉट पुट स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीता था. एलजीबीटीक्यू समुदाय से आने वाली रेवेन सान्डर्स की को बचपन से ही लोगों की हीनभावना का शिकार होना पड़ा. समलैंगिक होने की वजह से उन्हें समाज में काफी मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ा. कभी अवसाद से जूझ रही रेवेन सान्डर्स ने आत्महत्या जैसा कदम उठाने की सोच ली थी. लेकिन, उन्होंने इस अवसाद पर जीत के साथ ही ओलंपिक पदक भी जीत लिया.
मेडल सेरमनी के दौरान रेवेन सान्डर्स ने पोडियम पर अपने दोनों हाथों के सहारे एक क्रॉस बनाया. मेडल सेरेमनी के बाद उन्होंने कहा कि उनका ये जेस्चर समाज के उत्पीड़ित लोगों के लिए था. उन्होंने इस निशान के बारे में कहा कि ये वो चौराहा है, जहां ये सभी समाज के उपेक्षित लोग मिलते हैं. टोक्यो ओलंपिक में पोडियम प्रोटेस्ट करने वाली पहली खिलाड़ी हैं. दरअसल, अमेरिका जैसे उन्नत देश में आज भी ब्लैक लोगों के लिए हालात काफी मुश्किल हैं. वहीं, अगर वह समलैंगिक है, तो स्थितियां और बदतर हो जाती हैं. सान्डर्स ऐसी ही तमाम चुनौतियों से लड़कर ओलंपिक पदक जीतने वाली समलैंगिक महिला बनी हैं.
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