स्कूल के छात्रों से भरे स्टेडियम में फुटबॉल मैच देखने का अपना अलग ही रोमांच है. साथ ही ये बहुत कुछ सीखाता भी है. बस अपने आंख और कान खुले रखिए फिर देखिए कैसे बदलते भारत में युवाओं के खेल प्रति बदलती रूचि का नजारा दिखाई देता है. मेरे लिए तो सबसे पहले तो यही भरोसा करना मुश्किल था कि वीरेंद्र सहवाग और विराट कोहली के शहर में स्कूली बच्चों के प्रति फुटबॉल के प्रति इतनी दिवानगी!
बीते शुक्रवार को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में भारत बनाम यूएसए मैच में पंद्रह, सोलह, सत्रह साल के स्कूली बच्चों को अंडर-17 की टीम के हर खिलाड़ी का नाम मालूम था. और सिर्फ नाम ही नहीं बल्कि नेशनल कोच ने जूनियर बेनफिका को ट्रेनिंग दी थी जैसी कई सूक्ष्म जानकारियां पता थी.
मैच में 20 मिनट बचे थे. तब भारत यूएसए से 2-0 से पिछड़ रहा था. टीचर ने बच्चों से कहा- 'चलो अब हमलोग चलते हैं. गेम अब खत्म हो चुका है.' टीचर मैच खत्म होने के बाद की भीड़ से बचना चाहते थे, इसलिए जल्दी निकल जाना चाहते थे. लेकिन बच्चों ने एक साथ टीचर का आदेश मानने से मना कर दिया. छात्रों ने कहा- 'जब तक मैच खत्म नहीं हो जाता हम नहीं जाएंगे सर. यही कारण है कि हमारी टीम फुटबॉल में पिछड़ रही है. हम खुद अपनी टीम का समर्थन नहीं करते.' सालों से स्टेडियम में मैच देखने के दौरान ये पहला मौका था जब मैंने अपने युवाओं के इस रूप को देखा. वो भी स्कूली छात्रों का.
इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे लगातार 'भारत माता की जय' के नारे लगा रहे थे. खुले गले से राष्ट्रगान गाना और 'इंडिया, इंडिया' के लगातार नारे लगाना कोई नॉर्मल बात नहीं थी. जब एक स्टूडेंट ने यूएस के खिलाड़ी की तारीफ की तो उसका दोस्त कहता है- 'ये मॉर्डन इंडिया है भाई. अपने टीम की तारीफ कर.' बच्चों की बातें आक्रामक और...
स्कूल के छात्रों से भरे स्टेडियम में फुटबॉल मैच देखने का अपना अलग ही रोमांच है. साथ ही ये बहुत कुछ सीखाता भी है. बस अपने आंख और कान खुले रखिए फिर देखिए कैसे बदलते भारत में युवाओं के खेल प्रति बदलती रूचि का नजारा दिखाई देता है. मेरे लिए तो सबसे पहले तो यही भरोसा करना मुश्किल था कि वीरेंद्र सहवाग और विराट कोहली के शहर में स्कूली बच्चों के प्रति फुटबॉल के प्रति इतनी दिवानगी!
बीते शुक्रवार को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में भारत बनाम यूएसए मैच में पंद्रह, सोलह, सत्रह साल के स्कूली बच्चों को अंडर-17 की टीम के हर खिलाड़ी का नाम मालूम था. और सिर्फ नाम ही नहीं बल्कि नेशनल कोच ने जूनियर बेनफिका को ट्रेनिंग दी थी जैसी कई सूक्ष्म जानकारियां पता थी.
मैच में 20 मिनट बचे थे. तब भारत यूएसए से 2-0 से पिछड़ रहा था. टीचर ने बच्चों से कहा- 'चलो अब हमलोग चलते हैं. गेम अब खत्म हो चुका है.' टीचर मैच खत्म होने के बाद की भीड़ से बचना चाहते थे, इसलिए जल्दी निकल जाना चाहते थे. लेकिन बच्चों ने एक साथ टीचर का आदेश मानने से मना कर दिया. छात्रों ने कहा- 'जब तक मैच खत्म नहीं हो जाता हम नहीं जाएंगे सर. यही कारण है कि हमारी टीम फुटबॉल में पिछड़ रही है. हम खुद अपनी टीम का समर्थन नहीं करते.' सालों से स्टेडियम में मैच देखने के दौरान ये पहला मौका था जब मैंने अपने युवाओं के इस रूप को देखा. वो भी स्कूली छात्रों का.
इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे लगातार 'भारत माता की जय' के नारे लगा रहे थे. खुले गले से राष्ट्रगान गाना और 'इंडिया, इंडिया' के लगातार नारे लगाना कोई नॉर्मल बात नहीं थी. जब एक स्टूडेंट ने यूएस के खिलाड़ी की तारीफ की तो उसका दोस्त कहता है- 'ये मॉर्डन इंडिया है भाई. अपने टीम की तारीफ कर.' बच्चों की बातें आक्रामक और स्वार्थ से भरी भले लग रही हों लेकिन ये युवा अलग ही जुनून से भरे हैं.
नॉर्थ ईस्ट की दस्तक-
नॉर्थ ईस्ट के राज्य देश में स्पोर्ट्स के पावर हाउस के रूप में अपनी पहचान बनाते जा रहे हैं. अंडर-17 के 21 में से 9 खिलाड़ी उत्तर-पूर्वी राज्यों से आते हैं. 7 मणिपुर और एक-एक आसाम और सिक्किम से. दर्शकों में उत्तर-पूर्वी राज्यों के लड़के-लड़कियां हजारों की मात्रा में थे. जिन राज्यों को देश ने सालों से अनदेखा किया है शायद अपनी स्पोर्ट्स क्षमता के कारण बदलाव की बयार देख पाए.
खेल मंत्रालय ने स्पेशल एरिया गेम स्कीम की शुरूआत की है. साथ ही मणिपुर में नेशनल स्पोर्ट्स यूनीवर्सिटी भी स्थापित कर रही है. शुक्रवार को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैदान में मौजूद थे. उन्होंने खेलों में फंडिग को 40 प्रतिशत बढ़ाने की घोषणा की. नागालैंड में सरकार ने राज्य के डिपार्टमेंट ऑफ यूथ रिसोर्सेज एंड स्पोर्ट्स को एक प्रोपोजल भेजा है. इसमें राज्य में 100 फुटबॉल ग्राउंड जिसमें से 10 इंडोर और आउटडोर बनाने का प्रस्ताव भी शामिल है.
क्या हो सकता है-
फुटबॉल देश में क्रिकेट की लोकप्रियता को ध्वस्त कर सकता है. फुटबॉल के प्रति देश के युवाओं में उत्साह बढ़ा है. फिर चाहे बात इंग्लिश प्रीमियर लीग की हो या फिर ला लीगा की. इसके साथ ही कमाई का अच्छा जरिया और नौकरी देने वाला एरिया भी बन सकता है. ब्राजील के जीडीपी का 2 प्रतिशत फुटबॉल से आता है. साथ ही देश के ट्रेड बैलेंस को भी संभाल लिया है.
भारत का नया राष्ट्रवाद और खेल संस्कृति दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेलों में अपनी पैठ बनाने के लिए तैयार है. ये एक ऐसा शिकार है जिसे टारगेट करना तो बनता है.
(Mail Today से साभार)
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