भारत में 'सांप्रदायिकता' एक ऐसी चीज है, जिसके लपेटे में कोई न कोई गाहे-बगाहे आते ही रहता है. उत्तराखंड टीम के पूर्व कोच और इंडियन डोमेस्टिक क्रिकेट के सबसे सफल बल्लेबाज वसीम जाफर इन दिनों 'सांप्रदायिकता' के आरोप झेल रहे हैं. कहा जा रहा है कि वसीम जाफर ने उत्तराखंड की टीम का 'राम भक्त हनुमान की जय' का नारा बदलवा दिया. जाफर पर बायो-बबल के नियम तोड़ने और खिलाड़ियों का चयन धर्म के आधार पर करने के भी आरोप लगे. ये सब कुछ तब हो रहा है, जब वसीम जाफर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. जाफर का इस्तीफा इन आरोपों के लगाए जाने की सबसे बड़ी वजह है.
वसीम जाफर ने अपने इस्तीफे में टीम चयन में चयनकर्ताओं और क्रिकेट असोसिएशन ऑफ उत्तराखंड (CA) के अधिकारियों के दखल की बात कही. और, इसी के बाद आरोपों का सिलसिला शुरू हो गया. जाफर को एक 'अघोषित मजबूरी' की वजह से इन आरोपों का खंडन करने के लिए सामने भी आना पड़ा. सीएयू ने कोच वसीम जाफर और कप्तान इकबाल अब्दुल्ला सहित कुछ खिलाड़ियों को नमाज अदा कराने की वजह से बायो बबल टूटने की रिपोर्ट तलब की है. मामले पर सबकी अपनी ढपली और अपना राग है. लेकिन, इस मामले पर सवाल उठ रहा है कि किसी पर भी 'सांप्रदायिक' होने के आरोप लगा देना कितना जायज है?
हमारे देश में दूसरों पर आरोप लगाना बहुत ही सरल और सहज है. आरोप इतने प्यार से लगाए जाते हैं कि लोग मना भी नहीं कर पाते हैं. विश्वास न हो रहा हो, तो महाराष्ट्र की ओर रुख कर लीजिए. कांग्रेस ने 'भारत रत्नों' पर भाजपा के दबाव में ट्वीट करने के आरोप लगाए थे. साथ ही इन लोगों को उद्धव सरकार की ओर से सुरक्षा मुहैया कराने की बात भी कह दी थी. सोचिए कितनी विचित्र स्थिति में होंगे हमारे 'भारत रत्न'? खैर, देश की एकता को लेकर बात करना जब जांच के दायरे में आ सकता है. वसीम जाफर ने तो सीधे-सीधे सिस्टम पर ही सवाल उठा दिए हैं. ये तो अच्छा हुआ कि उन पर केवल 'सांप्रदायिक' होने के आरोप लग रहे हैं. देश के माहौल पर गौर करेंगे, तो कई और चीजें हो सकने की आशंका से आपका मन घिर जाएगा.
वसीम जाफर इस्तीफे को लेकर दिए गए अपने कारणों पर कायम हैं.
वसीम जाफर इस्तीफे को लेकर दिए गए अपने कारणों पर कायम हैं. हालांकि, जाफर ने ये स्वीकर किया कि टीम स्लोगन को लेकर उन्होंने अपनी एक राय रखी थी. लेकिन, उन्होंने इसे किसी पर जबरदस्ती थोपा नहीं था. जाफर का मानना था कि उत्तराखंड के लिए खेल रहे खिलाड़ी किसी एक संप्रदाय का नहीं प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं. खिलाड़ियों को उनकी बात सही लगी और इसे मान लिया गया. इस बात के लिए वसीम जाफर पर आरोप लगाना निहायत ही बचकाना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में ऐसे ही नहीं कहा था कि ना खेलब ना खेले देब, खेलवे बिगाड़ब. दरअसल, भारत में कुछ ऐसे लोग हैं, जो प्रगति नहीं करना ही नहीं चाहते हैं. आप लाख कोशिश कर लीजिए, लेकिन घूम-फिरकर वो 'सांप्रदायिकता' को बीच में ले ही आते हैं.
वसीम जाफर ने अपने इस्तीफे में क्रिकेट असोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के वरिष्ठ अधिकारियों पर टीम चयन में दखल देने की बात कही थी. इसके बाद वो अचानक से 'मजहबी' तौर-तरीके अपनाने वाले घोषित कर दिए गए. उन पर चौतरफा आरोपों की बौछार होने लगी. आरोप लगाने वाले वही थे, जिनके बारे में वसीम जाफर ने इस्तीफे में जिक्र किया था. ऐसे में इन आरोपों के क्या मायने रह जाते हैं. अपनी छवि को बचाने के लिए सीएयू के ये अधिकारी अपनी हदों को तोड़ते हुए एक अच्छे खिलाड़ी रहे जाफर पर बहुत ही घटिया आरोप लगा रहे हैं. सीएयू के वर्तमान आदेश के हिसाब से कोच और खिलाड़ियों द्वारा बायो बबल तोड़ने की जांच होगी. अन्य आरोपों पर सीएयू ने कुछ नहीं कहा है. ऐसे में इसे सीधे तौर पर किसी की छवि को खराब करने के लिए कुछ भी आरोप लगा देने की मानसिकता क्यों न माना जाए?
बायो बबल तोड़कर नमाज पढ़ने के आरोप भी वसीम पर लगे हैं. सीएयू इसी मामले पर जांच भी करेगा. बायो बबल तोड़ने पर वसीम जाफर ने कहा कि कप्तान इकबाल अब्दुल्ला ने इसके लिए मुझसे पूछा था. मैंने उन्हें टीम मैनेजर से बात करने को कहा था. इस पर अब्दुल्ला ने परमीशन मिलने की बात कहकर मौलवियों को बुलाया था. मैंने इसे लेकर कोई परमीशन नहीं दी थी और न किसी को बुलाया था. इस पर जांच होगी, तो हो सकता है कि शायद कप्तान इकबाल अब्दुल्ला ही बायो बबल तोड़ने के जिम्मेदार निकलें. ऐसे में वसीम जाफर पर 'मजहबी' होने का आरोप लगाना सीधे तौर पर दबाव बनाने की कोशिश करना ही नजर आता है.
वसीम जाफर ने खुद पर लगाए गए आरोपों को कम्युनल एंगल देने के आरोपों को बहुत ही दु:खद बताया है. उन्होंने इसे सांप्रदायिक रंग देने की वजह से ही आरोपों पर सफाई देने की बात कही. वसीम जाफर को जानने वाले लोगों ने भी इसे लेकर उनका बचाव किया है. खैर, मुझे पूरा विश्वास है कि फर्स्ट क्लास क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले वसीम जाफर इस दबाव को अच्छे से हैंडल कर ले जाएंगे. इस पिच पर भी जाफर कलाईयों का बेहतरीन उपयोग करते हुए कवर ड्राइव पर एक शानदार चौका लगाते हुए दिखेंगे. लेकिन, सवाल जस का तस है कि केवल मुस्लिम होने पर आप कैसे किसी भी व्यक्ति पर 'सांप्रदायिक' होने का आरोप थोप सकते हैं. फिर चाहे वो देश के लिए क्रिकेट खेला हो, बॉलीवुड में अभिनय करता हो या देश की सीमाओं की चौकसी में लगा हो.
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