चाहे मेन स्ट्रीम मीडिया हो या फिर सोशल मीडिया बीते कई दिनों से बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह, बाबा रामपाल, आसाराम बापू समेत चीन और डोकलाम चर्चा में है. कहा जा सकता है कि इन चीजों और बातों को छोड़ शायद हमारे पास कोई मुद्दा ही नहीं बचा है. या ऐसा भी हो सकता है कि सोशल मीडिया के इस टॉयलेट युग में हम इन मुद्दों पर बात कर पब्लिसिटी पाने के भूखे हैं. हो कुछ भी सकता है, संभव सब है.
व्यक्तिगत रूप से मेरा इन मुद्दों से दिल भर चुका है, और शायद अब तक आप भी इन खबरों और बातों से उकता गए हों. तो चलिए आज कुछ ऐसी बात की जाए जिसको पढ़कर या जिसपर चर्चा करते हुए हमें और आपको स्वयं पर गर्व की अनुभूति हो. जी हां, बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. जिस बात के लिए आपको अपने भारतीय होने पर गर्व करना चाहिए वो ये है कि, आज 'हॉकी के जादूगर' काहे जाने वाले मेजर ध्यान चंद का बर्थ डे, यानी जन्मदिन है.
क्रिकेट, बैडमिंटन, टेनिस जैसे खेलों के बीच भले ही आज हमारी हॉकी विश्व मानचित्र पर उतना प्रभाव न रखती हो मगर इसे जब भी और जितना भी जाना गया है वो मेजर ध्यान चंद के जरिये ही जाना गया है. कहा जा सकता है कि वर्तमान परिपेक्ष में मेजर ध्यानचंद और हॉकी दोनों ही एक दूसरे के पर्याय हैं.
हमें मेजर ध्यानचंद और हॉकी दोनों पर कोई लंबा चौड़ा और दो या 3 हजार शब्दों का आर्टिकल नहीं लिखना है. न ही हमें इस खानापूर्ति भर के लिए लिखना है क्योंकि आज उनका जन्मदिन है. आज ध्यानचंद को याद करने का या उन पर बात करने का उद्देश्य, केवल इतना है कि उनपर बात होनी चाहिए और उनके बारे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जानना चाहिए. चाहे आप सहमत हों या न हों मगर इतना समझ लीजिये कि मेजर ध्यानचंद किसी एक दिन के मोहताज नहीं हैं और न ही इन्हें...
चाहे मेन स्ट्रीम मीडिया हो या फिर सोशल मीडिया बीते कई दिनों से बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह, बाबा रामपाल, आसाराम बापू समेत चीन और डोकलाम चर्चा में है. कहा जा सकता है कि इन चीजों और बातों को छोड़ शायद हमारे पास कोई मुद्दा ही नहीं बचा है. या ऐसा भी हो सकता है कि सोशल मीडिया के इस टॉयलेट युग में हम इन मुद्दों पर बात कर पब्लिसिटी पाने के भूखे हैं. हो कुछ भी सकता है, संभव सब है.
व्यक्तिगत रूप से मेरा इन मुद्दों से दिल भर चुका है, और शायद अब तक आप भी इन खबरों और बातों से उकता गए हों. तो चलिए आज कुछ ऐसी बात की जाए जिसको पढ़कर या जिसपर चर्चा करते हुए हमें और आपको स्वयं पर गर्व की अनुभूति हो. जी हां, बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. जिस बात के लिए आपको अपने भारतीय होने पर गर्व करना चाहिए वो ये है कि, आज 'हॉकी के जादूगर' काहे जाने वाले मेजर ध्यान चंद का बर्थ डे, यानी जन्मदिन है.
क्रिकेट, बैडमिंटन, टेनिस जैसे खेलों के बीच भले ही आज हमारी हॉकी विश्व मानचित्र पर उतना प्रभाव न रखती हो मगर इसे जब भी और जितना भी जाना गया है वो मेजर ध्यान चंद के जरिये ही जाना गया है. कहा जा सकता है कि वर्तमान परिपेक्ष में मेजर ध्यानचंद और हॉकी दोनों ही एक दूसरे के पर्याय हैं.
हमें मेजर ध्यानचंद और हॉकी दोनों पर कोई लंबा चौड़ा और दो या 3 हजार शब्दों का आर्टिकल नहीं लिखना है. न ही हमें इस खानापूर्ति भर के लिए लिखना है क्योंकि आज उनका जन्मदिन है. आज ध्यानचंद को याद करने का या उन पर बात करने का उद्देश्य, केवल इतना है कि उनपर बात होनी चाहिए और उनके बारे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जानना चाहिए. चाहे आप सहमत हों या न हों मगर इतना समझ लीजिये कि मेजर ध्यानचंद किसी एक दिन के मोहताज नहीं हैं और न ही इन्हें एक दिन के घेरे में कैद किया जा सकता है.
गौरतलब है कि 29 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्में मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. 16 साल की उम्र में सेना में सर्विस देकर मेजर की रैंक पर रिटायर होने वाले ध्यान चंद ने 400 गोल किये थे. ध्यानचंद के बारे में ये भी कहा जाता है कि इन्होंने 1928 के एम्स्टर्डम ओलिंपिक्स में 14 गोल किए और सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी बने.
ध्यान चंद का हॉकी स्टिक पर कमांड कैसा था, इसे आप एक घटना से समझ सकते हैं. कहा जाता है कि एक बार नीदरलैंड्स के अधिकारियों ने ध्यानचंद का हॉकी स्टिक सिर्फ इसलिए तोड़ दी क्योंकि उनको शक था कि जरूर ध्यानचंद हॉकी स्टिक में चुंबक जैसी कोई चीज लगाकर आते हैं जिससे जब एक बार गेंद इनके कब्जे में आती है तो उसे कोई छुड़ा नहीं पाता.
1956 में भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित ध्यानचंद ने तब भारत का नाम विश्व पटल पर रौशन किया था जब उन्होंने तीन ओलिंपिक खेलों 1928, 1932 और 1936 में भारत को गोल्ड मेडल दिलवाया था. ध्यानचंद के बारे में ये तक मशहूर है कि जर्मनी का तानाशाह हिटलर तक इनके खेल से प्रभावित था और चाहता था कि ध्यानचंद जर्मनी के लिए खेलें.
उपरोक्त सारो बातों के बाद मुझे ध्यानचंद पर गर्व है और मुझे महसूस हो रहा है कि इन जानकारियों के बाद आपको भी ध्यानचंद के अलावा अपने भारतीय होने पर गर्व हो रहा होगा. अंत में इतना ही कि ध्यानचंद या इनसे मिलती जुलती शख्सियतें ऐसी हैं जिन्हें हमें न सिर्फ हर रोज बल्कि हर पल याद करना चाहिए. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ध्यानचंद हमारे इतिहास से जुड़े हैं और अगर हम अपना इतिहास भूलते हैं तो न सिर्फ हम अपना वर्तमान खराब कर रहे रहे हैं बल्कि हमारा भविष्य भी गर्त के अंधेरों में डूब जाएगा.
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