'म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के' फिल्म दंगल में बेटी गीता और बबिता को सफलता की सीढ़ियां चढ़ते देखा, बाप महावीर सिंह फोगाट के मुंह से ये पंक्तियां सुन के थियेटर में बैठे अधिकांश दर्शक झूम उठे थे. एक दर्शक के तौर पर, पंक्ति को सुने हुए हमें अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. वैसे भी कहने और सुनने में तो हम माहिर हैं ही. कहने और सुनने दोनों में, ज्यादा कुछ जाता नहीं है. हां बस इसके लिए टाइमिंग होनी चाहिए. कहना और सुनना टाइमिंग का खेल है.
खेल कुश्ती भी है, खेल क्रिकेट भी है, लेकिन तब, जब इसे लड़के खेलें. लड़कियां इस खेल से दूर रहती हैं, और अगर गलती से लड़कियों ने ये खेल खेला तो हमारे मुंह से अपने आप ही निकल जाता है कि 'भाई वाह ये तो बिल्कुल विजेंदर, धोनी या सचिन की तरह खेली है'.
मिताली राज ने रचा इतिहास
ये कितना हास्यपद है कि बेचारी लड़की अभी जीत के घर आई भी नहीं है कि उसकी तुलना शुरू हो जाती है. इस बात को समझने के लिए आपको मिताली राज को उदाहरण मानना होगा, इससे आपको बात समझने में आसानी होगी. मिताली ने इतिहास रच दिया है, वो उस मुकाम को हासिल कर चुकी हैं जहां जाना आज भी किसी भारतीय लड़की के लिए मंगल पर जाने जैसा है. मिताली ने वो कर दिखाया जो हमारी सोच से परे था.
मगर, अब ये सोचिए कि इसके बदले में मिताली को क्या मिला तो शायद आपका जवाब हो वो 'सचिन जैसी बन गयी हैं'. मिताली को महिला क्रिकेट का सचिन कहा जा रहा है. गौर से देखिये मिताली को, 'सचिन' के अलावा हम सबने मिताली का दम घोंट दिया है. मिताली पर सचिन छाए हैं, आज मिताली की सफलता पर सचिन हावी हैं. कह सकते हैं कि मौजूदा परिस्थितियों में इन सब के बीच से 'मिताली' कहीं गायब हो गयी हैं.
मिताली राज महिला क्रिकेट में सबसे अधिक रन बनाने वाली खिलाड़ी बन गई हैं
मैं जैसे-जैसे मिताली पर सोच रहा हूं तो मुझे लग रहा है कि अपने इस कीर्तिमान के बाद एक तरफ जहां मिताली कहीं दूर बैठी खुद पर रो रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ होंठों पर एक कुटिल मुस्कान लिए हमें अचरज भरी निगाह से देख रही हैं और हमसे प्रश्न कर रही हैं कि क्यों ये समाज इस बात से सहमत नहीं हो पाता है कि उसे एक महिला के नाम से जाना जाए.
मैं नारीवाद या किसी भी तरह के वाद और उस वाद के बाद उठने वाले वाद विवाद से प्रायः बचने का प्रयास करता हूं. मगर आज जो मिताली के साथ हो रहा है वो मुझसे देखा नहीं जा रहा. चूंकि मिताली ने एक बेहद दुर्लभ काम किया है अतः ये लाज़मी हैं कि टीवी से लेकर अखबार और वेबसाइटों में इस घटना का वर्णन होगा और जाहिर है जब वर्णन होगा तो मिताली के नाम के साथ सचिन जैसे क्रिकेट के मील का पत्थर का नाम जुड़ना स्वाभाविक है. अब सोचिए इस बात को और अंदाजा लगाइये मिताली की स्थिति का. क्या ये बात उन्हें संतोष और खुशी दे रही होगी. क्या सचिन का मिताली से कुछ लेना देना है तो शायद जवाब हो न.
मिताली की इस सफलता में, न सचिन का हाथ है, न किसी और का. सचिन, सचिन हैं. मिताली, मिताली हैं. न कोई सचिन सरीखा हो सकता है न मिताली जैसा. ये सफलता सिर्फ और सिर्फ मिताली की है. तारीफ से लेकर अलोचना तक सबकी जिम्मेदार मिताली स्वयं हैं. यदि आप मिताली के 6000 रनों के ऊपर सचिन, धोनी या किसी और को रख देते हैं तो न सिर्फ आप बतौर खिलाड़ी मिताली की भावना को आहत कर रहे हैं बल्कि पुरुषवादी समाज का एक ऐसा चेहरा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं जो एक तरफ बेहद डरावना है तो वहीं दूसरी तरफ इसके घातक परिणाम भी हैं. घातक परिणाम इसलिए क्योंकि फिर ये देखकर कोई आम लड़की मिताली के बताए मार्ग पर चलने का प्रयास न कर पाएगी.
अंत मे इतना ही कि हम हमें ये मान लेना चाहिए कि दो व्यक्तियों की आपस में तुलना न सिर्फ घातक हैं बल्कि ये विकास के मार्ग में पड़ा वो पत्थर है जो सिर्फ और सिर्फ तकलीफ देगा. बेहतर यही है कि आप मिताली को उनके नाम से पहचानें न कि किसी और का नाम उनके नाम से जोड़कर. यदि आप ऐसा कर पाए तो न सिर्फ आप मिताली का प्रोत्साहन कर रहे हैं बल्कि आप उन तमाम लड़कियों को भी बल दे रहे हैं जो मिताली जैसा बनना चाहती हैं, जिनमें अपार संभावनाएं हैं.
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