पाकिस्तान पर मिली हर जीत भारतीयों को जश्न का मौका देती है और अगर वह क्रिकेट के मैदान में मिली हो फिर तो खुशी कई गुना और बढ़ जाती है. रविवार को भारतीय दृष्टिहीन क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान को 44 रन से हराकर पहली बार आयोजित हुए टी20 एशिया कप का खिताब अपने नाम कर लिया. इससे पहले भारतीय टीम टी20 और 50 ओवर के वर्ल्ड कप भी कब्जा जमा चुकी है. लेकिन इस जीत से मिली खुशी से ज्यादा भारतीय टीम के खिलाड़ियों के मन में चिंता है. यह चिंता उनके भविष्य और जीवनयापन से जुड़ी हुई है.
भारत में भले ही क्रिकेट को धर्म और टीम इंडिया के क्रिकेटरों को देवता का दर्जा प्राप्त हो लेकिन इसके उलट दृष्टिहीन और महिला क्रिकेटरों की हालत बेहद खराब है. इन क्रिकेटरों के सामने रोजी-रोटी का संकट हमेशा बरकरार रहता है. क्रिकेट उन्हें पैसा और शोहरत तो दूर ढंग से जीवन जीने के लिए जरूरी चीजें तक मुहैया नहीं करवा पाता है. ऐसे में अब दृष्टिहीन क्रिकेटरों ने दुनिया की सबसे धनी खेल संस्थाओं में शुमार और भारतीय क्रिकेट के कर्ता-धर्ता बीसीसीआई से मदद की उम्मीद लगाई है. आइए जानें क्यों दृष्टिहीन क्रिकटरों को भी बीसीसीआई से जुड़ना जरूरी है. जिस तरह बीसीसीआई से जुड़कर महिला क्रिकेट के भलाई की उम्मीद जगी है क्या वैसा ही कुछ दृष्टिहीन क्रिकेटरों के मामले में भी हो सकता है? क्या सिर्फ बीसीसीआई से जुड़ने भर से ही इन क्रिकेटरों का भला हो जाएगा?
बीसीसीआई बदल सकती है दृष्टिहीन क्रिकेटरों की किस्मतः
क्रिकेट नेत्रहीनों द्वारा खेला जाने वाला भारत के सबसे प्रमुख खेलों में से एक हैं. भारत में दृष्टिहीन क्रिकेट की संचालन संस्था क्रिकेट असोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इन इंडिया है. एक अनुमान के मुताबिक इस समय देश में करीब 35000 दृष्टिहीन क्रिकेटर हैं. लेकिन आर्थिक मदद और संसाधनों के अभाव में दृष्टिहीन क्रिकेटर बदहाली में जीवन जीने को विवश हैं. अपनी कप्तानी में भारतीय दृष्टिहीन क्रिकेट टीम को टी20 वर्ल्ड कप जिता चुके शेखर नायक की महीने की आमदनी महज 13 हजार रुपये है और इतने कम...
पाकिस्तान पर मिली हर जीत भारतीयों को जश्न का मौका देती है और अगर वह क्रिकेट के मैदान में मिली हो फिर तो खुशी कई गुना और बढ़ जाती है. रविवार को भारतीय दृष्टिहीन क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान को 44 रन से हराकर पहली बार आयोजित हुए टी20 एशिया कप का खिताब अपने नाम कर लिया. इससे पहले भारतीय टीम टी20 और 50 ओवर के वर्ल्ड कप भी कब्जा जमा चुकी है. लेकिन इस जीत से मिली खुशी से ज्यादा भारतीय टीम के खिलाड़ियों के मन में चिंता है. यह चिंता उनके भविष्य और जीवनयापन से जुड़ी हुई है.
भारत में भले ही क्रिकेट को धर्म और टीम इंडिया के क्रिकेटरों को देवता का दर्जा प्राप्त हो लेकिन इसके उलट दृष्टिहीन और महिला क्रिकेटरों की हालत बेहद खराब है. इन क्रिकेटरों के सामने रोजी-रोटी का संकट हमेशा बरकरार रहता है. क्रिकेट उन्हें पैसा और शोहरत तो दूर ढंग से जीवन जीने के लिए जरूरी चीजें तक मुहैया नहीं करवा पाता है. ऐसे में अब दृष्टिहीन क्रिकेटरों ने दुनिया की सबसे धनी खेल संस्थाओं में शुमार और भारतीय क्रिकेट के कर्ता-धर्ता बीसीसीआई से मदद की उम्मीद लगाई है. आइए जानें क्यों दृष्टिहीन क्रिकटरों को भी बीसीसीआई से जुड़ना जरूरी है. जिस तरह बीसीसीआई से जुड़कर महिला क्रिकेट के भलाई की उम्मीद जगी है क्या वैसा ही कुछ दृष्टिहीन क्रिकेटरों के मामले में भी हो सकता है? क्या सिर्फ बीसीसीआई से जुड़ने भर से ही इन क्रिकेटरों का भला हो जाएगा?
बीसीसीआई बदल सकती है दृष्टिहीन क्रिकेटरों की किस्मतः
क्रिकेट नेत्रहीनों द्वारा खेला जाने वाला भारत के सबसे प्रमुख खेलों में से एक हैं. भारत में दृष्टिहीन क्रिकेट की संचालन संस्था क्रिकेट असोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इन इंडिया है. एक अनुमान के मुताबिक इस समय देश में करीब 35000 दृष्टिहीन क्रिकेटर हैं. लेकिन आर्थिक मदद और संसाधनों के अभाव में दृष्टिहीन क्रिकेटर बदहाली में जीवन जीने को विवश हैं. अपनी कप्तानी में भारतीय दृष्टिहीन क्रिकेट टीम को टी20 वर्ल्ड कप जिता चुके शेखर नायक की महीने की आमदनी महज 13 हजार रुपये है और इतने कम पैसों में उनके लिए क्रिकेट खेलना तो छोड़िए अपना घर चलाना भी मुश्किल है.
शेखर नायक का कहना है कि दृष्टिहीन क्रिकेट की हालत बीसीसीआई से जुड़कर सुधर सकती है. लेकिन लंबे समय से चली आ रही इस मांग पर बीसीसीआई ने अब तक ध्यान नहीं दिया है, जबकि इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और यहां तक कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड भी अपने दृष्टिहीन क्रिकेट टीम को मान्यता दे चुके हैं. लेकिन बीसीसीआई ने अब तक ऐसा कुछ नहीं किया है. टी20 एशिया कप जीतने पर भारतीय टीम को इनामी राशि के रूप में 3 लाख रुपये मिले. इससे ज्यादा पैसे तो टीम इंडिया के लिए सिर्फ वनडे खेलने वाले क्रिकेटर को मिल जाता है. इसी से आप दृष्टिहीन क्रिकेटरों की मुश्किल स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं.
महिला क्रिकेटरों की भी स्थिति सुधरीः
1973 में पहली बार अस्तित्व में आई वीमंस क्रिकेट असोसिएशन ऑफ इंडिया को बीसीसीआई की मान्यता मिलने और उसकी छत्र-छाया में आने में 23 साल लग गए. 2006 में भारतीय महिला क्रिकेटरों को पहली बार बीसीसीआई की संबद्धता मिली. बीसीसीआई का हिस्सा बनने से पहले महिला क्रिकेटरों की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय थी. लेकिन बीसीसीआई से जुड़ने के बाद इसमें काफी सुधार आया. हालांकि अब भी भारत में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला क्रिकेटरों के लिए गिने-चुने ही टूर्नामेंट आयोजित किए जाते हैं लेकिन फिर भी टीम को मिलने वाली सुविधाओं और महिला क्रिकेटरों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है. 2015 में बीसीसीआई ने पहली बार 11 महिला क्रिकेटरों को बीसीसीआई की सलाना कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा बनाया. हालांकि अब भी पुरुष और महिला क्रिकेटरों को मिलने वाले पैसों के बीच जमीन-आसमान का अंतर है. पुरुष क्रिकेटरों के लिए बीसीसीआई का सलाना कॉन्ट्रैक्ट A,B और c कैटिगरी में बंटा है, A कैटिगरी में शामिल क्रिकेटरों को 1 करोड़ रुपये, B कैटिगरी के लिए 50 लाख जबकि C कैटिगरी के लिए 25 लाख रुपये मिलते हैं.
तो वहीं महिला क्रिकेटरों के लिए A और B कैटिगरी बनाई गई है और इसमें क्रमशः 15 और 10 लाख रुपये मिलेंगे. अंतर सिर्फ यहीं नहीं है बल्कि टीम इंडिया के पुरुष क्रिकेटरों को एक टेस्ट मैच खेलने पर 7 लाख रुपये, एक वनडे खेलने पर 4 लाख और एक टी20 खेलने पर 2 लाख रुपये मिलते हैं. तो वहीं महिला क्रिकेटरों को एक मैच वनडे या टी20 मैच खेलने के लिए महज 2500 रुपये ही मिलते हैं. पुरुष और महिला क्रिकेटरों के बीच कमाई की इस खाई के बावजूद बीसीसीआई से जुड़ने से भविष्य में महिला क्रिकेटरों को भी फायदा होने की पूरी संभावना है.
अब देखना ये है कि टीम इंडिया को सफलतापूर्वक दुनिया की सबसे बेहतरीन टीमों में से एक बनाकर खुद सबसे अमीर खेल संस्था बनने वाली बीसीसीआई अपने देश की दृष्टिहीन क्रिकेटरों की सुध कब लेता है!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.