एक ओर 14 जुलाई को इंग्लैंड के लॉर्ड्स ग्राउंड में विश्व कप का फाइनल मुकाबला हो रहा था, वहीं दूसरी ओर विंबलडन में दो दिग्गज आमने-सामने थे. इधर न्यूजीलैंड जीत के बेहद करीब आकर भी चैंपियन्स ट्रॉफी हासिल नहीं कर सका और जीत का सेहरा किस्मत के चलते इंग्लैंड के सिर सज गया. उधर विंबलडन मुकाबले में नोवाक जोकोविच ने रोजर फेडरर को हराकर लगातार दूसरे साल विंबल्डन सिंगल्स का खिताब जीत लिया. अब जोकोविच के खाते में 5 विंबलडन टाइटल आ चुके हैं. साथ ही जोकोविच का ये 16वां ग्रैंड स्लैम सिंगल्स खिताब भी है. वहीं फेडरर 21वें ग्रैंड स्लैम पर कब्जा कर के अपने ही रिकॉर्ड को और मजबूत करने से चूक गए और 9वां विंबलडन टाइटल हासिल नहीं कर सके.
जोकोविच की जीत पर तालियां बजाने वालों की तो कोई कमी नहीं है, लेकिन इस जीत के लिए जोकोविच ने क्या-क्या किया उसे भी जानना जरूरी है. ये जान लेना चाहिए कि आखिर कैसे जोकोविच ने खुद को इस जीत के लिए तैयार किया. कैसे खुद को लगातार मोटिवेट करते रहे ताकि विंबलडन में नए मुकाम तक पहुंच सकें. सात ही ये भी जानना जरूरी है कि कैसे हारकर भी रोजर फेडरर ने जिंदगी की एक सीख दी.
1- अपने भीतर अपना चियरलीडर डेवलप करिए
खुद जोकोविच बताते हैं कि उन्होंने अपने दिमाग को भरमाया, ताकि जितनी बार वह 'रोजर' सुनें, उन्हें यह महसूस हो कि वह दरअसल उनके लिए चीयर कर रहे हैं, ना कि रोजर के लिए. वह कहते हैं- 'अगर अधिकतर लोग आपकी तरफ हों तो इससे आपको मदद मिलती है. इससे आपको मोटिवेशन मिलता है. इससे ताकत मिलती है. इससे ऊर्जी मिलती है. अगर आपकी ओर अधिकतर लोग ना हों तो आपको खुद को ऐसा बनाना पड़ेगा. मैं इसे अपने तरीके से करता हूं. जब भीड़ चिल्लाती है 'रोजर' तो मैं उसे 'नोवाक'...
एक ओर 14 जुलाई को इंग्लैंड के लॉर्ड्स ग्राउंड में विश्व कप का फाइनल मुकाबला हो रहा था, वहीं दूसरी ओर विंबलडन में दो दिग्गज आमने-सामने थे. इधर न्यूजीलैंड जीत के बेहद करीब आकर भी चैंपियन्स ट्रॉफी हासिल नहीं कर सका और जीत का सेहरा किस्मत के चलते इंग्लैंड के सिर सज गया. उधर विंबलडन मुकाबले में नोवाक जोकोविच ने रोजर फेडरर को हराकर लगातार दूसरे साल विंबल्डन सिंगल्स का खिताब जीत लिया. अब जोकोविच के खाते में 5 विंबलडन टाइटल आ चुके हैं. साथ ही जोकोविच का ये 16वां ग्रैंड स्लैम सिंगल्स खिताब भी है. वहीं फेडरर 21वें ग्रैंड स्लैम पर कब्जा कर के अपने ही रिकॉर्ड को और मजबूत करने से चूक गए और 9वां विंबलडन टाइटल हासिल नहीं कर सके.
जोकोविच की जीत पर तालियां बजाने वालों की तो कोई कमी नहीं है, लेकिन इस जीत के लिए जोकोविच ने क्या-क्या किया उसे भी जानना जरूरी है. ये जान लेना चाहिए कि आखिर कैसे जोकोविच ने खुद को इस जीत के लिए तैयार किया. कैसे खुद को लगातार मोटिवेट करते रहे ताकि विंबलडन में नए मुकाम तक पहुंच सकें. सात ही ये भी जानना जरूरी है कि कैसे हारकर भी रोजर फेडरर ने जिंदगी की एक सीख दी.
1- अपने भीतर अपना चियरलीडर डेवलप करिए
खुद जोकोविच बताते हैं कि उन्होंने अपने दिमाग को भरमाया, ताकि जितनी बार वह 'रोजर' सुनें, उन्हें यह महसूस हो कि वह दरअसल उनके लिए चीयर कर रहे हैं, ना कि रोजर के लिए. वह कहते हैं- 'अगर अधिकतर लोग आपकी तरफ हों तो इससे आपको मदद मिलती है. इससे आपको मोटिवेशन मिलता है. इससे ताकत मिलती है. इससे ऊर्जी मिलती है. अगर आपकी ओर अधिकतर लोग ना हों तो आपको खुद को ऐसा बनाना पड़ेगा. मैं इसे अपने तरीके से करता हूं. जब भीड़ चिल्लाती है 'रोजर' तो मैं उसे 'नोवाक' सुनता हूं. मैं खुद को यही समझाता हूं कि ये ऐसा ही है.'
2- निर्णायक पल पर आपका फैसला ही आपको महान बनाता है
'रोजर' के नाम को अपना समझना ही सिर्फ जोकोविच की ट्रिक नहीं है, जिससे उन्होंने विंबलडन का टाइटल जीता है. 5 सेट में से 4 में वह बेहद खराब खेले. उनके सामने वो शख्स था जो उनसे बेहतर था. जिसने 14 अधिक प्वाइंट हासिल किए हैं. बावजूद इसके जोकोविच जीते. वह मानते हैं कि मैच के दौरान वह बैकफुट पर थे. बावजूद इसके वह तीन टाई-ब्रेक में उभरकर सामने आए और फेडरर को पीछे हटने पर मजबूर किया. ये दिखाता है कि उन्होंने निर्णायक पल पर सही फैसला लिया और आगे बढ़े.
3- प्रेरणा तो विरोधी से भी ली जा सकती है
ऐसा जरूरी नहीं कि प्रेरणा सिर्फ अपने समर्थकों या गुरुओं से ली जाए. आपको विरोधी भी आपको प्रेरणा दे सकते हैं. कम से कम जोकोविच पर तो ये बात बिल्कुल सटीक बैठती है. इस समय जोकोविच के पास 16 विंबलडन टाइटल हो चुके हैं, जो फेडरर के 20 और नडाल के 18 के बेहद करीब हैं. अभी वह 32 साल के हैं और मानते हैं कि वक्त उनके साथ है. वह कहते हैं कि रोजर 37 साल की उम्र में भी लोगों को आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रहे हैं, जिनमें से एक वह भी हैं. उनके रिकॉर्ड्स से जोकोविच प्रेरणा ले रहे हैं.
4- हार से लड़ना ही असली ताकत है
मैच 12-12 पर पहुंचा और पहली बार विंबलडन में सिंग्ल्स मैच ऐसा रहा जो टाई ब्रेक पर खत्म हुआ. एक बार फिर जोकोविच ने प्रेशर को काफी बेहतर ढंग से हैंडल किया. फेडरर ने खुद को हार के चोले से बाहर निकालने की कोशिश की और कहा- 'विंबलडन में हर हार से तकलीफ होती है, लेकिन में बहुत ही मजबूत हूं. मैं एक शानदार टेनिस के मैच के लिए डिप्रेशन में नहीं रहना चाहता हूं.'
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