आज बांग्लादेश के खिलाफ सेमीफइनल में जब युवराज सिंह मैदान पर उतरेंगे तो यह उनके करियर का 300वां एकदिवसीय मैच होगा. हालांकि युवराज पहले ऐसे खिलाड़ी नहीं हैं जो 300वां एकदिवसीय खेलने जा रहे हों, उनसे पहले 18 खिलाड़ी इस माइलस्टोन को हासिल कर चुके हैं और चार भारतीय भी इस लिस्ट में शुमार हैं.
मगर युवराज ने इस माइलस्टोन को हासिल करने के लिए न केवल मैदान पर विरोधियों के छक्के छुड़ाए बल्कि असल जिंदगी में भी युवराज को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को मात देनी पड़ी है. युवराज सिंह की जीवटता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता कि कैंसर जैसी बीमारी से लोहा लेने के बाद भी युवराज आज उसी दम ख़म के साथ बल्ला लेकर डटे हुए हैं.
जब असल जिंदगी में हुए रिटायर्ड हर्ट
आपने शायद क्रिकेट के खेल में कई खिलाडियों को चोट के कारण रिटायर्ड हर्ट होते देखा होगा मगर युवराज को असल जिन्दगी में रिटायर्ड हर्ट होना पड़ा था. युवराज 2011 के विश्व कप में मैदान पर अपनी गेंदबाजी, बल्लेबाजी में जबरदस्त प्रदर्शन कर रहे थे, मगर मैदान से बाहर युवराज जबरदस्त दर्द से भी जूझ रहे थे, हालांकि यह दर्द मैदान पर न तो युवराज के चेहरे पर दिखा और न ही उनके प्रदर्शन में. युवराज ने इस विश्वकप के नौ मैचों में 90 की जबरदस्त औसत से 362 रन बनाये और साथ ही 15 विकेट भी चटकाए. ये कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 2011 में भारत अगर विश्व विजेता बना तो इसमें युवराज का फॉर्म एक बड़ी वजह थी.
आज बांग्लादेश के खिलाफ सेमीफइनल में जब युवराज सिंह मैदान पर उतरेंगे तो यह उनके करियर का 300वां एकदिवसीय मैच होगा. हालांकि युवराज पहले ऐसे खिलाड़ी नहीं हैं जो 300वां एकदिवसीय खेलने जा रहे हों, उनसे पहले 18 खिलाड़ी इस माइलस्टोन को हासिल कर चुके हैं और चार भारतीय भी इस लिस्ट में शुमार हैं.
मगर युवराज ने इस माइलस्टोन को हासिल करने के लिए न केवल मैदान पर विरोधियों के छक्के छुड़ाए बल्कि असल जिंदगी में भी युवराज को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को मात देनी पड़ी है. युवराज सिंह की जीवटता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता कि कैंसर जैसी बीमारी से लोहा लेने के बाद भी युवराज आज उसी दम ख़म के साथ बल्ला लेकर डटे हुए हैं.
जब असल जिंदगी में हुए रिटायर्ड हर्ट
आपने शायद क्रिकेट के खेल में कई खिलाडियों को चोट के कारण रिटायर्ड हर्ट होते देखा होगा मगर युवराज को असल जिन्दगी में रिटायर्ड हर्ट होना पड़ा था. युवराज 2011 के विश्व कप में मैदान पर अपनी गेंदबाजी, बल्लेबाजी में जबरदस्त प्रदर्शन कर रहे थे, मगर मैदान से बाहर युवराज जबरदस्त दर्द से भी जूझ रहे थे, हालांकि यह दर्द मैदान पर न तो युवराज के चेहरे पर दिखा और न ही उनके प्रदर्शन में. युवराज ने इस विश्वकप के नौ मैचों में 90 की जबरदस्त औसत से 362 रन बनाये और साथ ही 15 विकेट भी चटकाए. ये कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 2011 में भारत अगर विश्व विजेता बना तो इसमें युवराज का फॉर्म एक बड़ी वजह थी.
हालांकि विश्व कप जितने के बाद क्रिकेट प्रेमियों को उस समय झटका लगा जब उन्हें इस बात का इल्म हुआ कि उनका ये स्टार खिलाडी कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से जूझ रहा है.
वो काली रात...
हालांकि कैंसर जैसी बीमारी को भी युवराज के हौसलों के आगे हार मानना पड़ा और युवराज ने पूरी तरह से स्वस्थ होकर 2012 के आखिरी महीनों में टीम में वापसी कर ली, मगर कैंसर जैसी बीमारी से लड़ाई ने कहीं न कहीं युवराज के शरीर को काफी नुकसान पहुंचाया था और इसके कारण युवराज न तो मैदान पर उतनी चपलता से नजर आए और ना ही उनकी बैटिंग में वो पुराना रंग दिखा, और लोगों को लगने लगा कि अब युवराज में क्रिकेट बाकि नहीं रहा. और आखिर में 6 अप्रैल 2014 को वो काली रात भी आयी जिसने इस स्टार क्रिकेटर को लोगों के नजर में विलेन बना दिया.
दरअसल भारत और श्रीलंका के बीच T20 विश्वकप का फाइनल मुकाबला चल रहा था, भारत पहले बल्लेबाजी करते हुए सुखद स्थिति में दिख रहा था और आखिर के ओवरों में तेज रन बनाने के लिए युवराज मैदान पर थे, मगर तेज रन बनाने के बजाय युवराज 21 गेंदों में सिर्फ 11 रन ही बना सके, 1 ओवर में छह छक्के लगाने वाला यह खिलाडी एक-एक रन के लिए संघर्ष करता नजर आया और इसका नतीजा यह रहा कि भारत उम्मीद के मुताबिक रन नहीं बना सका और टीम को हार झेलनी पड़ी. इस प्रदर्शन के बाद युवराज क्रिकेट प्रेमियों के निशाने पर भी रहे और साथ ही उन्हें टीम में अपनी जगह भी खोनी पड़ी.
ना हारने का माद्दा
मगर वो खिलाडी ही क्या, जो इतनी जल्दी हार मान ले, और जो कैंसर को पटक कर आया हो उसे एक असफलता क्या हरा पाती. युवराज ने इस परिस्तिथि में हार मानने से इंकार कर दिया, हालांकि कई जानकार यह मान चुके थे कि युवराज के लिए टीम में जगह बना पाना अब लगभग असंभव है. मगर युवराज के इरादे कुछ और थे, युवराज ने अपनी पुरानी लय पाने के लिए जीतोड़ मेहनत करनी शुरू कर दी, वो न केवल नेट्स में घंटों बिताने लगे बल्कि अपनी पुरानी फिटनेस पाने के लिए उन्होंने जिम में भी घंटो पसीना बहाया.
युवराज ने इसके बाद बल्ला थाम घरेलु क्रिकेट की ओर रुख किया, बिलकुल उसी तरह जैसे एक नए क्रिकेटर को टीम में जगह के लिए करना पड़ता है. युवराज ने अपने उन विरोधियों को अपने बल्ले से जबरदस्त जवाब दिया जो उन्हें चूका हुआ मान गए थे. युवराज को 2015 के आईपीएल नीलामी में सबसे ज्यादा 16 करोड़ में खरीदा गया. हालांकि इसके बाद भी युवराज टीम में अंदर बाहर होते रहे मगर हार नहीं मानी. साल 2017 में एक बार युवराज को वन डे टीम में मौका दिया गया और युवराज ने भी अपने प्रदर्शन से चयनकर्ताओं को निराश नहीं किया और बल्ले से अच्छा प्रदर्शन किया.
अब आज जब युवराज अपना 300वां वनडे खेलने उतर रहे हैं तो गेंदबाजों में उनके लिए वही खौफ देखने को मिल रहा है जो साल 2007 में स्टुअर्ट ब्रॉड के आंखों में दिख रहा था, जब युवराज ने उनकी 6 गेंदों पर लगातार छक्के लगाए थे, और यही युवराज के दृढ़ निश्चय और इच्छा शक्ति की झलक देती है. वैसे युवराज का पूरा करियर ही स्पोर्ट्समैन स्पिरिट की व्याख्या करता नजर आता है, जो तमाम विपरीत परिस्तिथियों के बावजूद आज उसी तेवर के साथ बल्ला ले उतरने को तैयार है.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.