क्या डीयू में ABVP की हार बीजेपी की भी हार है ?
दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी से लेकर गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने दिल्ली विश्वविद्यालय जाकर वोट मांगा था. अब इस हार का मतलब बीजेपी की हार ही माना जाना चाहिए.
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जेएनयू के चुनावों में हार को जीत मानने वाली एबीवीपी को असल झटका दिल्ली विश्वविद्यालय के नतीजो के बाद लगा है. जेएनयू में हारने के बाद भी एबीवीपी का कहना था कि भले ही उन्हें चारों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा हो लेकिन उनका वोट प्रतिशत पिछले साल के मुकाबले बढ़ा है. एबीवीपी इस हार में भी अपनी जीत देख रही थी. पहली बार जेएनयू के चारों सीटों पर दूसरे नंबर पर रही एबीवीपी जश्न मना रही थी. खुशी इस उम्मीद पर भी टिकी थी कि आगे आनेवाले दिल्ली विश्वविद्यालय के नतीजों में पिछले चार सालों की तरह ही इस साल भी नतीजा उनके पक्ष में होगा. और डीयू के अध्यक्ष पद पर एबीवीपी का ही उम्मीदवार काबिज होगा. लेकिन नतीजे इसके ठीक विपरीत रहे. साल 2016 के चुनाव में चार में से तीन सीटों पर कब्ज़ा जमाने वाली एबीवीपी, इस साल दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में दो सीटें ही जीत सकी. सबसे बड़ी बात तो यह रही कि उसे अध्यक्ष पद भी उन्हें गवाना पड़ा.
डीयू छात्र संघ चुनाव में विजयी एनएसयूआई छात्र सोनिया गांधी के साथ.क्या बीजेपी को नकार दिया गया ?
क्या युवाओं ने प्रधानमंत्री मोदी को नकार दिया है? क्या दिल्ली विश्वविद्यालय में एनएसयूआई से एबीवीपी की हार की यही वजह है? ऐसा इसलिए कह रहे है क्योंकि डीयू की राजनीति काफी हद तक केंद्र में बैठे नेताओ से जुड़ी है. इन चुनावों की अहमीयत बड़े-बड़े नेताओं के ट्वीट से समझा जा सकता है. इस चुनाव में एक मुद्दा गुरमेहर कौर का भी था. जिस तरह से सोशल मीडिया के जरिए उन्हें रेप और जान से मारने की धमकी दी गयी. इससे गुरमेहर कौर का विवाद सीधे तौर पर केंद्र की राजनीति से जुड़ा गयी थी. गुरमेहर कौर ने सोशल मीडिया पर अपनी एक तस्वीर अपलोड की थी इसमें उन्होंने हाथों में एक बोर्ड को पकड़ा था. इसपर लिखा था कि "पाकिस्तान ने नहीं, जंग ने मेरे पिता को मारा है". इसके बाद इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि इसे लेकर टीवी चैनल पर प्राइम टाइम में डिबेट होने लगी. इसके बाद इस डिबेट में बड़े-बड़े नेतागण शामिल होने लगे, इससे मामले ने एक राजनीतिक रूप ले लिया. डीयू चुनावों के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के पोस्टर का इस्तेमाल किया गया. यहां तक कि दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी भी वोट मांगने डीयू गए थे. वहीं गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने भी छात्रों को संबोधित किया था. अब यह विपरीत नतीजे इस बात का संकेत देते हैं कि मोदी को युवाओ ने कहीं-न-कहीं नकार दिया है.
रामजस कॉलेज का विवाद है हार का कारण
क्या एबीवीपी को रामजस कॉलेज में हुए विवाद के चलते हार का सामना करना पड़ा है? शायद हां. क्योंकि जिस तरह से ये पूरा विवाद फैलता चला गया, मार-पिट हुई. नारेबाजी हुई. पुलिस का कॉलेज कैंपस में दाखिल होना, एफआईआर दर्ज़ किया जाना. यहां तक कि कॉलेज में एनुअल फंक्शन को बंद करा दिया गया. इन्हीं वजहों से शायद युवाओं के एक बड़े वर्ग ने एबीवीपी को नकार दिया. कई युवाओं का तो यहां तक कहना था कि एबीवीपी गुंडागर्दी करने लगी है, इनके लोग मनमानी करते है, तानाशाह बन बैठे है. इन्हीं कारणों से कांग्रेस संगठन ने जीत मिली और अब संगठन का उम्मीदवार अध्यक्ष पद पर काबीज हो गया हैं.
गुरमेहर कौर ने जताई ख़ुशी
एबीवीपी के ख़िलाफ सोशल मीडिया कैंपेन चलाने वाली गुरमेहर कौर भी नतीजों से काफ़ी खुश हैं. उन्होंने ट्वीट किया, ''डीयू के हर छात्र को मुबारक़बाद, आप लोगों ने अपनी यूनिवर्सिटी दोबारा जीत ली है. आपने दिखा दिया है कि हिंसा और हुड़दंग स्वीकार नहीं किया जाएगा... एनएसयूआई और राहुल गांधी को इस जीत पर बधाई.''
Congratulations to every DU student, you've reclaimed your university back. You've proved violence and hooliganism will not be tolerated!
— Gurmehar Kaur (@mehartweets) September 13, 2017
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