New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 25 अक्टूबर, 2021 06:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

अमित शाह (Amit Shah) के जम्मू-कश्मीर दौरे का पहला मकसद तो एक ही लगता है - हौसलाअफजाई. वजह भी साफ साफ नजर आ रही है. धारा 370 हटाये जाते वक्त जो सपने दिखाये गये थे, वे अब तक तो अधूरे ही लगते हैं. बताने के लिए नजरबंद किये गये कई नेताओं की रिहाई हो गयी है. मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं भी बहाल कर दी गयी हैं. अब पत्थरबाजी की घटनाएं भी थम गयी हैं, लेकिन आतंकवाद तो बार बार पनप जा रहा है.

अमित शाह के दौरे के ठीक पहले की ही तो बात है, बल्कि कार्यक्रम भी मीडिया के माध्यम से मालूम हो गया था, आंतकवादियों ने पांच दिहाड़ी मजदूरों सहित 11 लोगों की हत्या कर दी थी. हालत ये होने लगी कि कश्मीरी पंडित और प्रवासी मजदूर घाटी छोड़ने लगे - रेलवे स्टेशन पर ऐसे लोग टीवी पत्रकारों को अपनी आपबीती सुनाते हुए ये भी बता रहे थे कि उनके बाद भी लोग अपने घरों की तरफ वैसे ही लौटने की तैयारी कर रहे हैं जैसे कोविड 19 के चलते लगे लॉकडाउन के बाद हुआ था.

हालांकि, सुरक्षा बलों ने भी उसी दौरान 18 आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया है. गहन सर्च ऑपरेशन और तलाशी के दौरान करीब 700 लोग गिरफ्तार भी किये गये हैं जिनमें काफी संख्या में स्थानीय नौजवान बताये जा रहे हैं.

आतंकवाद का रास्ता अख्तियार करने वालों को आगाह करने के साथ ही अमित शाह युवाओं से भी मुखातिब होते हैं. अमित शाह बोले, 'राज्य की शांति को जो लोग खलल पहुंचाना चाहते हैं, उनके साथ सख्ती से निपटा जाएगा, - और युवाओं से कहते हैं, 'मैं यहां कश्मीर के युवाओं से मित्रता करने आया हूं... मोदी जी और भारत सरकार के साथ हाथ मिलाइए - और कश्मीर को आगे ले जाने की यात्रा में भागीदार बनिये.'

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने युवाओं के साथ साथ घाटी के बाकी लोगों को कश्मीरी नेताओं को भी अपनी तरफ से यकीन दिलाने की कोशिश की है, ये बता कर कि चुनाव भी होंगे और जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा (Election and Statehood) भी बहाल किया जाएगा - और मैसेज भी कि ये सब होने में वक्त तो लगता है. बात तो सही है, लेकिन कब तक क्योंकि देर हद से आगे बढ़ने पर हौसला पस्त भी होने लगता है!

कश्मीर के लिए रोड मैप जो भी हो - शांति चाहिये!

मैसेज हमेशा ही बहुत मायने रखता है - और अमित शाह की भी यही कोशिश लगती है. तभी तो एयरपोर्ट से अमित शाह सीधे श्रीनगर के नौगाम इलाके में पुलिस अफसर परवेज अहमद के घर पहुंचे और परिवारवालों से मुलाकात की. पिछले महीने ही परवेज अहमद की आतंकवादियों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी. वैसे अमित शाह 2019 के दौरे में भी पुलिस इंस्पेक्टर अरशद खान के घर वालों से भी ऐसे ही मिलने गये थे, मैसेज साफ है - हम आपके साथ हैं, आप लोग खुद को अकेले न समझें. राजनीतिक होने के बावजूद ऐसे हौसलाअफजाई वाले वाकये बाकी पीड़ितों को भी राहत देने वाले होते हैं.

amit shahधारा 370 खत्म करने के साथ ही कश्मीरियों को जो ख्वाब दिखाये गये वे हकीकत में भी दिखने चाहिये, न कि उनकी हकीकत नजर आनी चाहिये!

जम्मू-कश्मीर में आम अवाम की कौन कहे, बड़ी संख्या में बीजेपी के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता भी आतंकवाद के शिकार हुए हैं. ऐसे कई स्थानीय नेताओं जिनमें सरपंच जैसे जनप्रतिनिधि भी शामिल रहे हैं, मौत के घाट उतार दिये गये हैं. तभी तो गुमनाम रह कर एक बीजेपी नेता बीबीसी से बताते हैं, 'कश्मीर में जो इस वक्त हालात हैं... उन्हें देखते हुए देश के गृह मंत्री की यात्रा बहुत मायने रखती है... इससे सबका हौसला बढ़ेगा - कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग और कश्मीर में रहने वाले गैर-कश्मीरी मजदूरों का भी हौसला बढ़ेगा.'

जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के बाद अम‍ित शाह की ये पहली यात्रा है - और जब यूथ क्‍लब में आयोज‍ित कार्यक्रम में पहुंचते हैं तो अमित शाह ये याद दिलाना भी नहीं भूलते, 'सवा दो साल बाद मैं जम्मू-कश्मीर आया हूं - और सुरक्षा की समीक्षा बैठक के बाद मेरा पहला कार्यक्रम यूथ क्लब के युवा साथियों के साथ हो रहा है... मैं जम्मू-कश्मीर के युवाओं से मिलकर बहुत बहुत आनंद और सुकून का अनुभव करता हूं.'

ऐसी बातें तो अमूमन राजनीतिक आश्वासन जैसी ही लगती हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर के हालात से बरसों से जूझ रहे लोग इसे भरोसे और मरहम के तौर पर जरूर देख रहे होंगे. वैसे भी तमाम कश्मीरी नेताओं और सारे अलगाववादियों ने अब तक लोगों को गुमराह ही तो किया है.

धारा 370 हटाने के तत्काल बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया था तो यही समझाया था कि आगे से जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी वे सारी सुविधायें और सरकारी स्कीमों के फायदे मिलेंगे जैसे देश के बाकी हिस्से के लोगों को मिलती हैं. बाद के दिनों में भी जब भी जम्मू-कश्मीर का जिक्र आया, केंद्र सरकार की तरफ से यही समझाया गया - धारा 370 ही कश्मीर की तरक्की की राह में सबसे बड़ी रुकावट रही जिसके खत्म होते ही जम्मू-कश्मीर का मसला हमेशा के लिए हल हो गया है. पहले भी, बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भी आम चुनाव से पहले भी ऐसी बातें बतायी जाती रहीं कि चूंकि पाकिस्तान को सबक सिखा दिया गया है, लिहाजा वो आगे हिमाकत नहीं करेगा - लेकिन कोई खास फर्क देखने को तो नहीं ही मिला है.

साल भर बीते और हालात जस के तस बने रहे तो नौकरशाह की जगह एक पॉलिटिशियन को केंद्र शासित प्रदेश की कमान सौंपने का फैसला किया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भरोसेमंद कैबिनेट साथी रहे बीजेपी नेता मनोज सिन्हा को नया लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाया. मनोज सिन्हा कहने को तो उप राज्यपाल हैं, लेकिन शुरू से ही उनसे मुख्यमंत्री जैसी अपेक्षा रही है. शुरू से ही मनोज सिन्हा से अपेक्षा रही कि वो जम्मू-कश्मीर के नेताओं और लोगों के बीच पहुंच बनाकर राजनीतिक संवाद शुरू करेंगे और हर संभव भरोसा दिलाने की कोशिश करेंगे.

जैसी उम्मीदें रहीं मनोज सिन्हा के कामकाज संभालने के साल भर से ज्यादा होने के बाद भी जमीनी स्तर पर वैसा कुछ अब तक तो देखने को नहीं ही मिला है. अमित शाह के दौरे से पहले अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक महत्वपूर्ण मैसेज देने की कोशिश जरूर हुई है. मोदी सरकार के वाणिज्य उद्योग मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज के जरिये बताया है दुबई की सरकार जम्मू-कश्मीर में रियल एस्टेट में निवेश करने जा रही है. समझौते के तहत औद्योगिक पार्क, मेडिकल कॉलेज और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल जैसी चीजें बनाया जाना तय हुआ है.

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ साथ इसमें पाकिस्तान के लिए भी मैसेज है. दुबई का मतलब हुआ संयुक्त अरब अमीरात - और एक मुस्लिम मुल्क भारत के साथ और वो भी जम्मू-कश्मीर में ऐसे समझौते के लिए तैयार होना भी महत्वपूर्ण है. पाकिस्तान को तो तब भी अच्छा नहीं लगा था जब धारा 370 खत्म किये जाने को लेकर पाकिस्तान के स्टैंड का यूएई ने सपोर्ट नहीं किया - और दिवाली से पहले ये बोनस तो दिल ही जलाने वाला है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान निश्चित तौर पर हाथ पैर मार रहे होंगे ताकि भारत के साथ किसी मुस्लिम देश का रिश्ता इस कदर आगे न बढ़ने पाये.

यूथ क्लब में कश्मीरी नौजवानों से बातचीत में अमित शाह ने चुनाव कराये जाने को लेकर भी और जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिलाये जाने की भी बात बतायी, लेकिन इसकी कोई तारीख तय नहीं की गयी है - और उसकी भी एक क्रोनोलॉजी है.

क्रोनोलॉजी कुछ दिनों से राजनीतिक बयानों का हिस्सा बना हुआ है. जब भी कोई राजनीतिक दल या उसके नेता अपने विरोधी के खिलाफ कोई बात समझाने की कोशिश करते हैं तो ऐसे ही घटनाओं के सिक्वेंस गिना कर क्रोनोलॉजी समझाते रहे हैं - चुनाव और स्टेटहुड को लेकर जो क्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून, 2021 में कश्मीरी नेताओं के साथ मीटिंग में बताया था, अमित शाह ने भी उसी बात को दोहराया है.

अमित शाह ने कश्मीरी नौजवानों से कहा, 'कश्मीर में युवाओं को मौका मिले इसलिए अच्छा डिलिमिटेशन भी होगा, डिलिमिटेशन के बाद चुनाव भी होगा - और फिर से राज्य का दर्जा भी वापस मिलेगा.

प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद सहित बाकियों की भी यही डिमांड रही कि पहले जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल किया जाये और फिर चुनाव कराये जायें. डिलिमिटेशन को लेकर तो किसी की कोई आपत्ति हो भी नहीं सकती थी - क्योंकि वो प्रक्रिया तो चुनाव से पहले पूरी होनी निहायत ही जरूरी है.

अमित शाह से पहले करीब तीन दर्जन मंत्रियों के अलावा तमाम संसदीय समितियों के सदस्य होने के नाते 200 से ज्यादा सांसदों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया है - और वहां के हर तबके से संपर्क कर संवाद स्थापित करने के प्रयास किये गये हैं - अमित शाह का ये दौरा उसी मिशन की फौरी पूर्णाहुति जैसा लगता है.

और कश्मीरी नौजवानों को भरोसा दिलाने के क्रम में अमित शाह ने जो कहा वो है, 'कश्मीर को भारत सरकार से मदद आती है... आनी भी चाहिये... बहुत सहा है कश्मीर ने... एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब कश्मीर भारत के विकास के लिए योगदान करेगा - लेने वाला नहीं, भारत को देने वाला राज्य बनेगा.'

बेशक ये महज अच्छी अच्छी बातें नहीं बल्कि मोदी सरकार की तरफ से 'जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत' के पैमाने के इर्द-गिर्द वाला भरोसा समझा जा सकता है. चुनाव और स्टेटहुड के साथ डिलिमिटेशन की जो भी क्रोनोलॉजी हो, लेकिन अब इतने भर से काम नहीं चलने वाला - नतीजा चाहिये और कोई एक संभावित तारीख भी, लेकिन अदालती जुमला बने 'तारीख पे तारीख' तो कतई नहीं, बिलकुल भी नहीं.

परिसीमन, पाकिस्तान और कश्मीरी नेता!

धारा 370 खत्म किये जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी के साथ पहली मुलाकात में ही पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने बातचीत में पाकिस्तान को भी शामिल किये जाने की पैरवी की थी - और अब फारूक अब्दुल्ला भी वैसी ही बातें कर रहे हैं. तब महबूबा मुफ्ती का कहना रहा, 'आप चीन के साथ बात कर रहे हैं, जहां लोगों की भागीदारी नहीं है... अगर जम्मू-कश्मीर के लोगों को सुकून मिलता है तो आपको पाकिस्तान से बात करनी चाहिये - हमारा कारोबार बंद है और उसे लेकर बात की जानी चाहिये.'

राजौरी-कालाकोट पहुंचे नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला ने अमित शाह को याद दिलाने की कोशिश की कि प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में जम्मू-कश्मीर और दिल्ली की दूरी मिटाने की बात कही गयी थी, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ.

भारत-पाक सरहद का जिक्र करते हुए फारूक अब्दुल्ला ने कहा, 'दावा किया जाता है कि बॉर्डर पर हालात ठीक हैं... अगर ऐसा है तो आतंकवादी कहां से आ रहे हैं? कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे के दावे किये जाते हैं, लेकिन पाकिस्तान से आकर आतंकी नागरिकों की हत्या कर देते हैं' - और फिर सलाह दी कि केंद्र सरकार स्थायी समाधान को लेकर सोचे, जो सिर्फ बातचीत से ही मुमकिन है.

पाकिस्तान से बातचीत के मसले पर तो फारूक अब्दुल्ला भी महबूबा मुफ्ती की लाइन ही घुमा फिरा कर दोहरा रहे हैं, लेकिन कुछ और चीजों पर ध्यान भी खींचते हैं, 'आये दिन सरहद के पार 200-300 आतंकवादी होने के दावे किये जाते हैं - सरकार को ये संख्या मालूम कैसे होती है? अगर ये जानकारी सही है तो फिर उस पार जाकर उनको मारा क्यों नहीं जाता?'

फारूक अब्दुल्ला कम से कम ये बात तो सही ही कह रहे हैं, लेकिन एक और अहम बात है जिस पर अमल बेहद जरूरी लगता है, बशर्ते उनका शक सही हो तो. फारूक अब्दुल्ला बताते हैं, 'डिलिमिटेशन को लेकर हिंदू और मुस्लिम आबादी के पैमाने पर बात हो रही है - केंद्र इस पूरी प्रक्रिया में धर्म को आधार न बनाये.'

निश्चित रूप से ऐसा होना भी नहीं चाहिये क्योंकि ऐसा हुआ फिर तो भारत-पाक बंटवारे जैसा ही समझा जाएगा - करीब करीब वैसे ही जैसे पंजाब में मुस्मिल बहुल क्षेत्र मलेरकोटला को नया जिला बना दिया गया और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पंजाब के तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के कदम पर कड़ा ऐतराज जताया था.

इन्हें भी पढ़ें :

370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में सब कुछ बढ़िया हो गया - सिर्फ आतंकवाद रुकने के!

प्रधानमंत्री मोदी को कश्मीरी नेताओं के मन में वही मिला, जिसकी उम्मीद थी

यूपी को 'नया जम्मू कश्मीर' कहने वाले उमर अब्दुल्ला के मुंह से अनायास सच निकल गया

#जम्मू और कश्मीर, #अमित शाह, #आतंकवाद, Amit Shah, Jammu And Kashmir, Election And Statehood

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय