भाजपा और आप का भी कांग्रेसीकरण हो गया है?
बीजेपी में आज अडवाणी जैसे कद्दावर नेता कहां है..बताने की जरूरत नहीं. मोदी के बाद दूसरे नंबर पर कोई दूर-दूर तक नहीं है. उनके बाद अगर कोई नेता हैं तो वो अमित शाह हैं. आप में भी यही हाल है. केजरीवाल और फिर मनीष सिसोदिया...
-
Total Shares
भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का प्रभाव देश के लगभग हर राजनितिक पार्टियों पर पड़ा. भाजपा एवं वामपंथी दलों को छोड़ कर प्रायः सारी पुरानी पार्टियां, कांग्रेस के रोल मॉडल का अनुकरण करते हुए, या तो व्यक्ति प्रधान हो गई हैं या परिवार प्रधान. इन पार्टियों में इस प्रमुख व्यक्ति या इस व्यक्ति के परिवार के अलावा बाहर के नेताओं का वजूद एक सेटॅलाइट या उपग्रह से ज्यादा कुछ भी नहीं होता है. भले ही उनका कुछ जनाधार भी क्यों न हो पर वो अपने राजनितिक शक्ति के लिए इस व्यक्ति के ऊपर निर्भर हो जाते हैं.
इन पार्टियों के अन्य नेताओं का वजूद इस बात पर निर्भर करता हैं की वो पार्टी प्रमुख के कितने करीब हैं. इसके ठीक उल्टा, एक कैडर वाली पार्टी के नेताओं का वजूद उनके अपने जनाधार एवं लोकप्रियता पर आधारित होता है. मूलतः कैडर आधारित वामपंथी दलें धीरे धीरे अपने पतन की ओर अग्रसर प्रतीत हो रहीं हैं. दो कैडर आधारित पार्टियां, जिनका लगातार विस्तार हो रहा है और जो मूलतः कांग्रेस के मॉडल से अलग अवधारणा के साथ प्रारम्भ हुए थे, वो हैं भारतीय जनता पार्टी एवं आम आदमी पार्टी.
लेकिन आज भाजपा वोट पाने के लिए लगभग पूर्णतया नरेंद्र मोदी पर आश्रित है तो आम आदमी पार्टी अरविन्द केजरीवाल पर. क्या आज ये दोनों पार्टियां भी व्यक्ति प्रधान हो गई हैं? क्या इन दोनों पार्टियों का भी पूर्ण रूप से कांग्रेसीकरण हो गया है?
यह भी पढ़ें- क्या समाजवादी पार्टी अपने आंतरिक महाभारत से सत्ता रूपी लंका को जलने से बचा पायेगी ?
भाजपा को उसके चाल, चरित्र और चेहरे के चलते पार्टी विथ डिफरेंस का तमगा दिया जाता रहा था. सिद्धान्त रूप में ये पार्टी व्यक्ति पूजा के खिलाफ रही है. पर यह अटल बिहारी वाजपेयी जैसे करिश्माई व्यक्तित्व के क्षत्रक्षाया में फली फूली है. जब वाजपेयी अपने राजनितिक जीवन के उत्कर्ष पर थें तो भी पार्टी पर उनका एकाधिकार नहीं था. 2002 गुजरात दंगे के समय वो प्रधानमंत्री थे. उन्होंने नरेंद्र मोदी को दंगो के समय राजधर्म का पालन करने की हिदायत दी.
बीजेपी मतलब मोदी और अमित शाह...बस |
गुजरात दंगों के बाद गोवा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में वाजपेयी ने मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाने का मन बना लिया था, लेकिन आडवाणी ने ऐसा होने नहीं दिया. तब मोदी अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने में कामयाब रहे और आगे चल के प्रधान मंत्री भी बन गए क्योंकि पार्टी में चेक एवं बैलेंस था. केवल एक व्यक्ति की नहीं चलती थी, चाहे वो कितना ही बड़ा हो.
मोदी के प्रधानमंत्री बनाने के साथ वो सारी चेक एवं बैलेंस की प्रणाली भी समाप्त हो गई. पार्टी एवं सरकार में उनका एकक्षत्र राज्य है. पार्टी की सारी परम्पराओं को तोड़ते हुए अपने चहेते अमित शाह को इसका अध्यक्ष बना दिया जो न केवल उन्हीं के प्रदेश गुजरात के हैं बल्कि जब अध्यक्ष बने तो राष्ट्रीय राजनीति का अनुभव भी बहुत ही कम था.
आज अडवाणी जैसे कद्दावर नेता हासिये पर हैं. मोदी के बाद दूसरे नंबर पर कोई दूर -दूर तक नहीं है. उनके बाद अगर कोई नेता हैं तो वो अमित शाह हैं, जिनका अपना कोई जनाधार नहीं हैं. और उनका अस्तित्व एवं कद केवल मोदी से उनकी नजदीकी के कारण है. मोदी अगर पावर हाउस हैं तो अमित शाह ट्रांसफार्मर हैं. जिस दिन पावरहाउस से बिजली आनी बंद हो जाएगी ट्रांसफार्मर भी काम करना बंद कर देगा.
यह भी पढ़ें- क्या भाजपा अमित शाह के रंग में रंग गई है?
कुल मिला कर भाजपा आज सवा नेता की पार्टी रह गई है. और भाजपा का मतलब है नरेंद्र मोदी. और जो मोदी से सहमत नहीं हैं उसके लिए पार्टी में या तो कोई जगह नहीं है या उनको हासिये पर धकेल दिया गया है.
आम आदमी पार्टी का उदय भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हज़ारे के आंदोलन से हुआ. इस आंदोलन के चेहरा भले ही अन्ना थे पर इसकी सफलता के पीछे जिन लोगों ने अहम भूमिका निभाई उनमें अरविंद केजरीवाल प्रमुख थे. वो यह कह कर राजनीति के मैदान में कूदे कि – 'देश को बेचा जा रहा है और सभी पार्टियां इसके लिए दोषी हैं. हमें ये सिस्टम साफ़ करना होगा.' उनके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण एवं प्रोफेसर आनंद कुमार जैसे लोग इस पार्टी को सींचे. पर धीरे धीरे ये पार्टी भी व्यक्ति पूजा के तरफ बढ़ गई.
सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों का आंदोलन होने के बावजूद चुनावों में इसने एक व्यक्ति विशेष का सहारा लिया। इसका नारा था- 'पांच साल केजरीवाल' और 'मांगे दिल्ली दिल से, केजरीवाल दिल से'. और जब आम आदमी पार्टी का मतलब अरविन्द केजरीवाल होने लगा तो योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण एवं प्रोफेसर आनंद कुमार जैसे लोगों ने इसका विरोध किया.
यह भी पढ़ें- पहले मोदी, फिर सुखबीर - केजरीवाल को अगला खतरा रुपानी से या...
इस विरोध को विद्रोह माना गया एवं उनको पार्टी से निकाल दिया गया. अभी हाल में जब नवजोत सिंह सिद्धू ने आम आदमी पार्टी में शामिल होने का प्रयास किया, ऐसा कहा जाता है की उनकी शर्त थी की उनको पंजाब का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाये. ये शर्त केजरीवाल को मंजूर नहीं थी. और वो अब तक पार्टी नहीं ज्वाइन कर पाए. आज आम आदमी पार्टी में ऐसा कोई भी नेता नहीं हैं जिसका कद केजरीवाल के जैसा हो. अगर कोई भी केजरीवाल के फैसले का विरोध करता है तो उसके लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है. पार्टी हो या दिल्ली सरकार दोनी के वो प्रमुख हैं. पार्टी में या दिल्ली सरकार में किसी नेता का कद उसकी योग्यता पर नहीं बल्कि उसकी अरविन्द केजरीवाल के साथ नजदीकी पर निर्भर करता है.
केजरीवाल और सिसोदिया...इनके बाद कौन? |
पार्टी प्रमुख के बाद दूसरे नंबर पर कोई दूर -दूर तक नहीं हैं. उनके बाद अगर कोई नेता हैं तो वो हैं मनीष सिसोदिया. वो दिल्ली के उप मुख्यमंत्री इसलिए हैं कि वो केजरीवाल के सबसे करीबी हैं. वो अरविन्द केजरीवाल के अमित शाह हैं. और जैसे भाजपा सवा नेता की पार्टी बन के रह गई हैं वैसा ही हाल आप का है.
आज आप हो कांग्रेस हो या भाजपा, सब के सब व्यक्ति प्रधान एवं व्यक्ति पूजक पार्टियां बन गई हैं. किसी भी पार्टी में दूसरे नंबर का कोइ भी नेता नहीं है, जिसका अपना राजनितिक वजूद हो. इन सभी पार्टियों में पार्टी प्रमुख के खिलाफ विरोध के लिए कोई जगह नहीं है. तो क्या ये कहने में कोई आपत्ति होगी की भाजपा एवं आप का पूर्ण रूप से कांग्रेसीकरण हो गया है?
यह भी पढ़ें- मोदी ने कहीं यूपी चुनाव के लिए ब्रह्मास्त्र तो नहीं छोड़ा है
आपकी राय