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Updated: 02 अक्टूबर, 2019 07:33 PM
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गांधी के नाम पर कुछ भी हो - अच्छा ही है. सरकार की ओर से हो, विपक्ष की तरफ से हो - अच्छा ही है. गैर-सरकारी तौर पर हो और भी अच्छा है. देश के लोग निजी स्तर पर कुछ करें - वो भी अच्छा है. कुछ छुपाने के लिए हो या कुछ दिखाने के लिए हो, हो रहा है ये भी कम है क्या? और कुछ हो न हो, सोशल मीडिया पर अगर ट्रोल्स भी एक दिन के लिए बाकी रूटीन वर्क छोड़ कर गांधी-गांधी करें - भला इससे अच्छा क्या हो सकता है!

भला इससे अच्छा क्या होगा कि एक ही दिन एक ही खास मौके को सत्ताधारी बीजेपी के नेता और विपक्षी कांग्रेस नेता एक ही तरीके से अपनी अपनी राजनीति करें. पहले के मुकाबले ज्यादा बहुमत से चुनाव जीत कर सत्ता में लौटी बीजेपी की मजबूत सरकार भी पदयात्रा करती है - और लगातार दूसरी बार नेता प्रतिपक्ष के पद से वंचित कांग्रेस भी पदयात्रा निकाल कर अपना विरोध दर्ज कराये - अपनी अपनी 'गांधीगिरी' है.

ये ठीक है कि अलग अलग विचारधारा और पृष्ठभूमि से आने वाली दो पार्टियां सड़क पर एक ही तरीके से उतरती हैं - 'गांधी सिर्फ हमारे हैं' जैसे दावे किये जाते हैं - महत्वपूर्ण तो ये है कि गांधी सत्ता की राजनीति की आधार भी बनते हैं और विपक्ष की राजनीति को धारदार बना देते हैं.

बीजेपी की 'गांधीगिरी'

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती का जिस कदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को इंतजार रहा होगा, तकरीबन उतनी ही बेसब्री कांग्रेस में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को भी रहा होगा.

बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों ने अपने अपने तरीके से गांधी को खुद से जोड़ने की कोशिश की. बीजेपी ने जहां 'संकल्प-यात्रा' की शुरुआत की है, कांग्रेस ने इसे 'गांधी संदेश यात्रा' नाम दिया है. बीजेपी की तैयारी 2 अक्टूबर से लेकर 31 अक्टूबर तक 150 किलोमीटर पदयात्रा की है. 31 अक्टूबर का दोनों ही दलों के लिए अपने तरीके की अहमियत है - बीजेपी इस दिन सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती मनाती है तो कांग्रेस इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि. अमित शाह का कहना है कि बीजेपी कार्यकर्ता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती से लेकर 152वीं जयंती तक उनके विचारों को गांव-गांव तक पहुंचाएंगे - और प्रदूषण मुक्त स्वच्छ भारत के निर्माण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में आगे बढ़ेंगे.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ये भी समझाते हैं कि बीजेपी का जागरुकता फैलाने का क्या कार्यक्रम है - 'हम गांधीजी के संदेश, बिना काम का धन, विवेकरहित खुशी, बिना चरित्र का ज्ञान, नैतिकता के बिना व्यापार, त्याग के बिना धर्म, मानवता के बिना विज्ञान और सिद्धांत के बिना राजनीति, इन सबका त्याग करने के लिए हम पूरे देश में जागरुकता फैलाएंगे.'

पिछले 5 अगस्त से नजरबंद जम्मू-कश्मीर के कुछ नेताओं के लिए भी 2 अक्टूबर को गांधी के ही नाम पर अच्छी खबर मिली. देखा जाये तो जम्मू-कश्मीर को लेकर मोदी सरकार के रवैये पर उठते सवालों के सिलसिले में ये भी एक तरीके की गांधीगिरी ही है.

bjp and congress claim gandhi legacyगांधी की विरासत पर दावेदारी के लिए सड़क पर उतरे बीजेपी और कांग्रेस नेता

जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने कुछ नेताओं की नजरबंदी खत्म कर दी है. धारा 370 हटाने के बाद स्थानीय पुलिस ने एहतियातन जम्मू में भी कई नेताओं को नजरबंद किया था. जिन नेताओं पर लगी नजरबंदी हटायी गयी है उनमें डोगरा स्वाभिमान संगठन पार्टी के अध्यक्ष चौधरी लाल सिंह के साथ साथ नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, पैंथर्स पार्टी के नेता भी शामिल हैं. हालांकि, घाटी में नजरबंद नेताओं को कब तक नजरबंद रखा जाएगा, अभी कोई खबर नहीं आयी है.

हो सकता हो कि आतंकवादी गतिविधियों के मद्दनजर सरकार को सही मौके और माहौल का इंतजार हो. अमेरिका के सहायक रक्षा मंत्री रेंडेल श्राइवर का बयान है कि पाकिस्तान आतंकवादी गुटों पर कितनी नजर रखेगा, ये अपने आप में चिंता की बात है. हालांकि, अमेरिकी मंत्री को ये बिलकुल नहीं लगता कि चीन ऐसे मामलों में भी पाकिस्तान का सपोर्ट करेगा. एक सवाल के जवाब में अमेरिकी मंत्री का कहना रहा कि चीन पाकिस्तान को सिर्फ कूटनीतिक और राजनीतिक समर्थन ही देगा.

ध्यान रहे ये बयान ये बयान संयुक्त राष्ट्र में इमरान खान के भाषण के बाद बेहद अहम हो जाता है. इमरान ने कश्मीर घाटी में कर्फ्यू हटते ही खून-खराबे की धमकी दी है. ये बात अलग है कि भारत की ओर से भी साफ कर दिया गया है कि वो कश्मीर नही, बल्कि PoK को लेकर फिक्र करे कि उसके साथ क्या होने वाला है.

संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो साफ साफ कह दिया था कि भारत युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध का देश है - ये भी एक तरीके से गांधी जयंती से पहले ही सत्य और अहिंसा का संदेश पहुंचाने की ही कोशिश रही - लेकिन नये मिजाज के भारत में गांधीगिरी का देशहित में मतलब मुंहतोड़ जवाब भी है, जिसके दायरे में सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे तौर तरीके शुमार हो चुके हैं.

जम्मू-कश्मीर को लेकर महात्मा गांधी का एक बयान याद करने लायक है. अगस्त, 1947 में गांधी ने कश्मीर में सांप्रदायिक सौहार्द की पूरे देश में भड़की सांप्रदायिक हिंसा से तुलना करते हुए कहा था, 'अगर मुझे कहीं शांति, सद्भाव और सांप्रदायिक सौहार्द्र की कोई किरण नजर आती है तो वो कश्मीर ही है.'

कांग्रेस की 'गांधीगिरी'

महात्मा गांधी को लेकर बीजेपी के दावे का प्रतिकार करते हुए सोनिया गांधी ने कहा, 'गांधी जी का नाम लेना आसान है लेकिन उनके रास्ते पर चलना आसान नहीं है.'

कांग्रेस दफ्तर से राजघाट तक राहुल गांधी के नेतृत्व में चली कांग्रेस संदेश यात्रा के समापन पर सोनिया गांधी जो कुछ कहा उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस की कोशिश यही है कि गांधी की विरासत को वो किसी से शेयर करने के मूड में नहीं है - क्योंकि कांग्रेस का दावा है कि गांधी उसी के हैं और वो अब तक वो ही अकेली गांधी के सिद्धांतों के रास्ते और उन पर अमल करती चली आ रही है. दिल्ली की ही तरह लखनऊ में कांग्रेस संदेश यात्रा का नेतृत्व प्रियंका गांधी वाड्रा ने किया.

सोनिया गांधी ने दावा किया कि गांधी जी के रास्ते पर चल कर कांग्रेस ने जितने नये रोजगार के अवसर पैदा किए, जितने लोगों को गरीबी से मुक्ति दिलाई, किसानों को जितने नये नये साधन उपलब्ध कराये, महिलाओं के लिए जितनी सुविधाएं मुहैया करायी और नौजवानों के लिए जितनी शिक्षा की सुविधाएं दी वे बेमिसाल हैं.'

सोनिया गांधी ने भारत और गांधी जी एक दूसरे का पर्याय बताया और कहा - 'ये अलग बात है कि आज कल कुछ लोगों ने इसे उलटा करने की जिद पकड़ ली है.'

गांधी के बहाने सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री मोदी, बीजेपी और RSS के दावों पर सवालिया निशान:

1. 'जिन्हें मौका मिलते ही अपने को सर्वेसर्वा बताने की इच्छा हो वो कैसे समझेंगे कि गांधी जी की निःस्वार्थ सेवा का मूल्य क्या होता है?'

2. 'जिन्हें लोकतंत्र में भी सारी शक्ति खुद की मुट्ठी में रखने की प्यास है, वो कैसे समझेंगे कि महात्मा गांधी के स्वराज का क्या महत्व है?'

3. 'जो झूठ पर आधारित राजनीति कर रहे हैं, वे कैसे समझेंगे कि गांधी सत्य के पुजारी थे?'

4. 'जिन्हें अपनी सत्ता के लिए कुछ भी करना मंजूर है वे कैसे समझेंगे कि गांधी अहिंसा के उपासक थे?'

साथ ही साथ, बगैर नाम लिये या घटना का कोई जिक्र किये सोनिया गांधी ने चिन्मयानंद केस को लेकर बीजेपी नेतृत्व को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश भी की, बोलीं - 'बहनें... गांव तो छोड़िये बड़े शहरों में भी सुरक्षित नहीं हैं - और उन पर अत्याचार करने वाले प्रभावशाली लोग तो आराम फरमा रहे हैं और जिन पर जुल्म हुआ वे ही जेल में डाली जा रही हैं.'

महात्मा गांधी को लेकर RSS हमेशा कांग्रेस नेतृत्व के निशाने पर रहा है. वैसे भी राहुल गांधी तो संघ के खिलाफ बयान देने को लेकर मानहानि के दो मामलों में मुकदमे फेस कर रहे हैं. एक तरफ सोनिया गांधी ने संघ को लेकर गांधी के बहाने हमला बोला तो बीजेपी के राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा ने तो नये तरह का ही दावा कर डाला. सोनिया गांधी ने कहा कि वे चाहते हैं कि गांधी नहीं बल्कि RSS भारत का प्रतीक बन जाये.

RSS विचारक और बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने तो यहां तक दावा कर डाला है कि 'आज महात्मा गांधी होते तो वो RSS में होते.' RSS को गांधी की विचारधारा का सबसे बड़ा अनुयायी होने का दावा करते हुए राकेश सिन्हा ने आरोप लगाया कि गांधी के नाम और तस्वीर का इस्तेमाल करने वाले ही गांधी के विचारों के खिलाफ हैं.

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